आजमाए को आजमाना – Ajmaaye Ko Ajmana
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – आजमाए को आजमाना – Ajmaaye Ko Ajmana – Try it Out
एक घने वन में करालकेसर नाम का शेर रहता था। उसके साथ उसका एक सेवक धूसरक नामक गीदड़ भी उसके साथ रहता था। करालकेसर जानवरों का शिकार करके अपना भोजन करता, और बचे-खुचे माँस से गीदड़ भी अपना पेट भर लेता। एक बार करालकेसर की लड़ाई एक बहुत बलवान हाथी के साथ हो गई, जिसमें वह बहुत घायल हो गया।
उसके शरीर पर बहुत सारे घाव हो गए, उसकी एक टाँग भी टूट गई। उसके लिए शिकार करना तो दूर एक कदम चलना भी दूभर हो गया था। बिना शिकार के दोनों के भूखों मरने की नौबत आ गई। भूख से व्याकुल होकर एक दिन करालकेसर ने धूसरक से कहा,
🦁 करालकेसर – धूसरक, तुम जंगल में या आसपास के गाँव में जाओं और किसी जानवर को खोज कर बहला-फुसला कर मेरे पास ले आओं। पास में आने पर मैं उसे मार डालूँगा। फिर हम दोनों मिलकर उसे खाकर अपना पेट भर लेंगे।
आओं तुम्हे जंगल की सैर करा दूँ!
करालकेसर की बात मान कर धूसरक शिकार की खोज में पास के एक गाँव में गया। वहाँ उसने देखा कि लम्बकर्ण नामक गधा तालाब के किनारे हरी-हरी घास की कोमल कोंपलें खा रहा था। वह उसके पास गया और बड़े ही मीठे शब्दों में बोला,
🐺 धूसरक – प्रणाम मामा, बहुत ही दिनों बाद दिखाई दिए हो। इतने दुबले कैसे हो गए?
🐩 लम्बकर्ण – भगिनीपुत्र! तुमसे क्या कहूँ? मेरा मालिक धोबी बड़ा निर्दयी है। वह बहुत सारा बोझा मेरी पीठ पर रख कर सारा दिन मुझसे काम करवाता है। थोड़ा सा भी धीरे चलने पर लाठियों से मारता है। इतना काम करवाने के बाद भी खाने के लिए मुझे मुठ्ठीभर घास भी नहीं देता।
अपनी भूख को शांत करने के लिए मैं इस तालाब के किनारे मिट्टी-मिली घास के तिनकों को खाकर किसी तरह अपना गुजारा करता हूँ। इसीलिये दुबला होता जा रहा हूँ।
🐺 धूसरक – अच्छा तो यह बात है। मामा, मैं यहाँ पास ही के जंगल में एक ऐसी जगह जानता हूँ, जहां पर मरकत-मणि के समान स्वच्छ हरी-हरी घास के मैदान हैं, पास ही निर्मल जल का जलाशय भी है। तुम्हें वहाँ पेट भर कर घास खाने को मिलेगी। मेरे साथ वहाँ चलों, वहाँ पर मजे से हरी-हरी घास खाना, जलाशय का ठंडा-ठंडा पानी पीना और मेरे साथ हँसते-गाते हुए अपना जीवन व्यतीत करना।
जंगल में मेरा क्या काम?
🐩 लम्बकर्ण – तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। लेकिन बेटा, मैं गाँव में रहने वाला सीधा-सादा शाकाहारी पशु हूँ। वहाँ जंगल में रहने वाले जंगली जानवर मुझे मार कर खा जाएंगे। ऐसी जगह जाने से क्या फायदा जहाँ जान का खतरा हो। जंगल के घास के मैदान हमारे लिए नहीं है।
🐺 धूसरक – मामा, तुम्हें इस बात की चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। जंगल में मेरा ही राज चलता है। मेरे रहते कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता। मैंने तुम्हारे जैसे धोबियों के अत्याचारों से सतायी हुई तीन गर्दभ-कन्याओं को भी मुक्ति दिलाई थी। वहाँ जंगल में रहते हुए बहुत ही हृष्ट-पुष्ट और जवान हो गई है।
उन्होनें ही मुझे अपने लिए पति की तलाश के लिए इस गाँव में भेजा है। उन्हीं के लिए साथी की तलाश में मैं तुम्हारे पास आया हूँ। तुम मेरे साथ वहाँ चलों। उनसे विवाह करके तुम सुख से अपना जीवन व्यतीत करना।
धूसरक की मीठी-मीठी बाते सुनकर लम्बकर्ण उसके झांसे में आ गया और उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया। धूसरक उसे अपनी बातों के जाल में फँसाता हुआ उसे करालकेसर के पास ले गया जो बहुत देर से उनकी ही प्रतीक्षा कर रहा था।
बच गया साला
जैसे ही लम्बकर्ण करालकेसर के पास पँहुचा, वह उसे मारने के लिए उठा। उसने अपना पंजा उसकी और उठाया। यह देख लम्बकर्ण भागने लगा, फिर भी करालकेसर ने उसकी पीठ पर अपना पंजा लगा दिया। लेकिन लम्बकर्ण करालकेसर के पंजे में नहीं फँसा और भाग गया। तब धूसरक ने कहा,
🐺 धूसरक – महाराज, लगता है, आपका पंजा बिल्कुल बेकार हो गया है, जिससे तुम एक गधे को भी नहीं मार सकते। फिर तुम हाथी का तो सामना कैसे करोगे?
🦁 करालकेसर – (लज्जित होते हुए) मैं पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ था और गधा अचानक से ही भाग गया। नहीं तो मेरे पंजे के वार से हाथी भी घायल हुए बिना नहीं भाग सकता।
अब नहीं छोड़ूँगा
🐺 धूसरक – चलिए कोई बात नहीं महाराज, मैं एक बार फिर उसे फँसाकर तुम्हारे पास लाता हूँ। पर इस बार ध्यान रखना कि प्रहार खाली ना जाए, क्योंकि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
🦁 करालकेसर – उसने अपनी आँखों से मेरे रूप में अपनी मौत को देखा है, अब वह वापस नहीं आएगा। अब तुम कोई दूसरा शिकार ढूंढो।
🐺 धूसरक – इस बात की चिंता आपको करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस इस बार आप आक्रमण के लिए पूरी तरह तैयार रहना।
धूसरक फिर उसी गाँव की तरफ गया। उसने देखा कि लम्बकर्ण अब भी उसी तालाब के किनारे घास चर रहा था। वह उसके पास गया। उसे देखकर लम्बकर्ण ने कहा,
🐩 लम्बकर्ण – अरे बेटा, तुम तो मुझे बहुत अच्छी जगह लेकर गया। यदि भागने में एक क्षण की भी देर हो जाती तो मेरा काम ही तमाम हो जाता। वह कौनसा जानवर था, जिसने मुझे देखते ही मुझ पर हमला कर दिया? भागते-भागते भी उसका काँटों से भी नुकीला हाथ मेरी पीठ पर पड़ गया। देखों मेरी पीठ पर कितना बड़ा घाव हो गया है।
तुम बिन मर जाएगी
🐺 धूसरक – (हँसते हुए) मामा, तुम भी बड़े विचित्र हो। वह तो एक गधी थी। तुम्हें देख कर वह तुम्हारे स्वागत करते हुए तुम्हें अपने गले से लगाने के लिए उठी थी। लेकिन तुम तो भागने लगे तो उसने तुम्हें रोकने के लिए अपना हाथ उठाया था।
🐩 लम्बकर्ण – गधी, मुझे तो वह कहीं से भी गधी के समान नहीं लगी।
🐺 धूसरक – (हँसते हुए) मैंने तुम्हें पहले भी बताया था कि जंगल की हरी-हरी घास खाकर वे बहुत ही हृष्ट-पुष्ट और बलवान हो गई है। देखों तुम भी धोखा खा गए। तुम्हें देखते ही वह तुम पर मोहित हो गई है। वह तुम्हारे बिना जीवित नहीं रहेगी, भूखी-प्यासी मर जायगी। उसने ही मुझे फिर से तुम्हारे पास यह कहकर भेजा है कि लंबकर्ण को जाकर कहों कि यदि वो मेरा पति नहीं बनेगा तो मैं आग में कूद कर अपनी जान दे दूँगी। इसलिए उस पर कृपा करके मेरे साथ वापस चलों, नहीं तो तुम्हें स्त्री हत्या का पाप लगेगा।
लम्बकर्ण फिर से धूसरक की बातों में आ गया और उसके साथ चल दिया। इस बार करालकेसर पूरी तरह से तैयार था। उसने उसके बिल्कुल पास आने का इंतजार किया और पास आते ही उस पर टूट पड़ा और मार डाला। उसे मारकर करालकेसर ने धूसरक से कहा,
🦁 करालकेसर – धूसरक, मैं नहा-धोकर संध्या पूजन करके आता हूँ, तब तक तुम इसकी रखवाली करना। फिर हम इसे खाएंगे।
🐺 धूसरक – जो आज्ञा महाराज।
कान तो मैं किसी के भी काट सकता हूँ!
करालकेसर तालाब की ओर चला गया। भूख से व्याकुल धूसरक से रहा नहीं गया और उसने गधे के कान और दिल के हिस्से खा लिये। करालकेसर जब भजन-पूजन से वापस आया तो उसने देखा कि गधे के कान नहीं थे और दिल भी निकला हुआ था। यह देखकर उसे बहुत क्रोध आया। वह क्रोधित होकर बोला,
🦁 करालकेसर – अरे पापी धूसरक! तूमने अपने स्वामी से पहले इसके कान और दिल खा कर इसे जूठा क्यों कर दिया?
🐺 धूसरक – स्वामी, आप ऐसा कैसे सोच सकते है? आपका यह सेवक आके साथ गद्दारी नहीं कर सकता। इसके कान और दिल तो पहले से ही नहीं थे, तभी तो यह एक बार जाकर भी वापस आ गया।
करालकेसर ने धूसरक की बातों पर विश्वास कर लिया। फिर दोनों ने मिल बाँट कर गधे का भोजन किया।
सीख
- किसी की मीठी-मीठी बातों में आकर उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए
- एक बार धोखा खाने के बाद दुबारा किसी पर आँखे बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
पिछली कहानी – अपने शत्रुओं के नाश के लिए सांप से मित्रता करने वाले मेंढक की कहानी “मेंढकराज और साँप”
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अगली कहानी – अपने दंभ और अति आत्मविश्वास के कारण अपना राज खोलने वाले युधिष्ठिर नामक कुम्हार की कहानी “समय का राग कुसमय की टर्र”
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।