उठते-बैठते – Uthte-Baithte
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – उठते-बैठते – Uthte-Baithte
सोमपुर गाँव में एक लड़का गोपी अपनी मां के साथ रहता था। उसकी शादी बचपन में ही हो गई थी। वह थोड़ा मंदबुद्धि था। उसकी माँ उसे हर बात के लिए समझाती रहती थी। वह भी अपनी माँ की सारी बात मानता था। उसे अपने मन से कुछ भी नहीं सूझता था। जो भी उसे कुछ करने के लिए कहता वह कर देता, इसलिए गाँव के लोग कई बार उसके साथ मजाक करते रहते थे।
इस बात से उसकी माँ बहुत परेशान रहती थी कि मेरे बाद मेरे बच्चे का क्या होगा? पता नहीं इसकी पत्नी भी इसका ध्यान रखेगी या नहीं? कहीं वह उसे छोड़ तो नहीं देगी? इसी डर से उसने अब तक अपनी बहु का गोना भी नहीं करवाया था।
एक बार उसकी माँ ने उससे कहा बेटा अब मैं बूढ़ी हो गई हूँ, तू अपनी ससुराल जाकर बहु को लेकर आ जा। वह तैयार हो गया। ससुराल जाते वक्त उसकी माँ ने उसे कुछ हिदायते दी,
चलों उठते-बैठते चलें ससुराल
👵 माँ – बेटा, ससुराल में रुकना मत। यदि वे लोग ज्यादा जिद करके रोक भी ले, तो एक दिन से ज्यादा मत रुकना। वहाँ खाना धीरे-धीरे खाना। जब तक कोई तीन चार बार मनुहार ना करें, तब तक और खाना ले ने से मना करते रहना। बड़ो के सामने अपनी पत्नी से ज्यादा बात मत करना, और रास्ते में उठते-बैठते जाना।
🧖🏻 गोपी – ठीक है माँ मैं ऐसा ही करूँगा।
गोपी ने अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी। उठते-बैठते से उसकी माँ का यह मतलब था कि थोड़ी-थोड़ी दूर पर आराम कर लेना। लेकिन इसने उसका अलग ही मतलब निकाल लिया, वह रास्ते भर उठ-बैठ करता हुआ चलने लगा। इस तरह चलने में उसे परेशानी हो रही थी, लेकिन माँ की आज्ञा थी।
थोड़ी दूर पर एक खेत था। एक चोर रोज उस खेत में से फसल चुरा लेता था । इसलिए आज उसका मालिक खेत की बाड़ के पास डंडा लेकर छुप कर बैठ गया, और बोला, “आज उस चोर की खैर नहीं, आज तो मैं उसे अच्छा मजा चखाऊंगा।” तभी उसे उठ-बैठ करता गोपी आता दिखाई दिया। उसने सोचा कि यह आदमी इस तरह छुपते-छुपाते आ रहा है, जरूर ये ही चोर है।
बस फिर क्या था जैसे ही गोपी उसके नजदीक आया वह डंडा लेकर उस पर पिल पड़ा। उसकी खूब धुनाई की। गोपी चिल्लाता रहा
🧖🏻 गोपी – मुझे क्यों मार रहे हो?
🧔🏻 खेत का मालिक – तुम रोज मेरे खेतों से अनाज चुरा लेते हो।
🧖🏻 गोपी – लेकिन मैंने आपका अनाज नहीं चुराया। मैं तो अपनी पत्नी को लेने ससुराल जा रहा हूँ । आज पहली बार इस तरफ आया हूँ।
🧔🏻 खेत का मालिक – तो फिर तुम इस तरह उठते-बैठते क्यों जा रहे थे?
🧖🏻 गोपी – मेरी माँ ने मुझे कहा था कि बेटा उठते बैठते जाना इसलिए।
ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए
🧔🏻 खेत का मालिक – लेकिन अब ऐसे मत जाना।
🧖🏻 गोपी – तो फिर?
🧔🏻 खेत का मालिक – तुम यह कहते हुए जाना, “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए”
🧖🏻 गोपी – ठीक है।
तो भई, अब गोपी ने अपनी यात्रा फिर से शुरू कर दी, यह बोलते हुए
🧖🏻 गोपी – “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए”, “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए”
आगे एक नगर सेठ के यहाँ कई सालों के बाद बच्चा हुआ था। वहाँ सब लोग खुशियाँ मना रहे थे, और मियां गोपी वहाँ पँहुच गए, यह बोलते हुए,
🧖🏻 गोपी – “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए”, “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिए”
जब सेठ के रिश्तेदारों ने उसे यह कहते सुना तो उसे पकड़ कर उसको मारते हुए कहा,
👳🏾 रिश्तेदार – एक तो हमारे यहाँ कितने वर्षों के बाद खुशियाँ आई है और तुम ऐसा कह रहे हो।
ऐसा सबके साथ होना चाहिए
🧖🏻 गोपी – तुम लोग मुझे क्यों मार रहे हो , मुझे तो उस खेत के मालिक ने ऐसा कहने के लिए कहा था।
👳🏾 रिश्तेदार – ऐसा नहीं ऐसा बोलना चाहिए, “ऐसा सबके साथ होना चाहिए”
तो बस फिर क्या था, महाशय गोपी जी का रट्टा बदल गया, अब वे यह कहते हुए चलने लगे,
🧖🏻 गोपी – “ऐसा सबके साथ होना चाहिए, “ऐसा सबके साथ होना चाहिए”
आगे एक गाँव के पंच का जवान बेटा मर गया था। सब उसकी अर्थी की तैयारी कर रहे थे और मियां पँहुच गए रट्टा लगाते हुए,
🧖🏻 गोपी – “ऐसा सबके साथ होना चाहिए, “ऐसा सबके साथ होना चाहिए”
उसे ऐसा बोलते देख गाँव वालों ने उसकी धुनाई चालू कर दी। और कहा,
🧓🏽 गाँव वाला – यहाँ हमारे पंच का बेटा मर गया है और यह कह रहा है, “ऐसा सबके साथ होना चाहिए”। मारों साले को।
🧖🏻 गोपी – मुझे क्यों मार रहे हो? मुझे मत मारों, मुझे तो सेठ के रिश्तेदारों ने ऐसा कहने के लिए कहा था।
🧓🏽 गाँव वाला – ऐसा नही ऐसा बोलना चाहिए “ऐसा किसी के साथ नहीं होना चाहिये”
आखिर पँहुच ही गए
वह मन ही मन सोचने लगा, “मैं कुछ भी करता हूँ या बोलता हूँ, सब लोग मुझे मारते है। इससे अच्छा है मैं बिना बोले चुपचाप ही चलूँ।” ऐसा निश्चय करके कह चुपचाप चलने लगा। मार खा-खा कर उसका चेहरा सूज गया था। पूरे शरीर में दर्द हो रहा था, फिर भी वह चलता रहा। तो भाई, सूजे हुए गोपी महाराज पँहुच गए अपनी ससुराल।
उसे आया देख कर उसके सास-ससुर, साला-साली, पत्नी सभी बहुत खुश हुए। उसने दरवाजे पर ही उनसे कहा,
🧖🏻 गोपी – माँ ने जानकी को घर ले जाने के लिए मुझे भेजा है। आप उसे अभी मेरे साथ भेज दीजिये, माँ ने कहा था जल्दी आ जाना।
🤷🏻♀️ सास – पहले आप घर में तो चलिए, जानकी कहाँ भागी जा रही है। आप कितने दिनों बाद हमारे यहाँ आये हो, एक-दो दिन तो आपकों यहाँ रुकना पड़ेगा।
👨🏼🦰 साला – हाँ, जीजाजी एक दो-दिन तो यहाँ रुकिये।
👨🏽⚕️ साली – (उसके हाथों से उसका समान लेते हुए) हम आज आपको नहीं जाने देंगे, जीजाजी आज तो आपको रुकना पड़ेगा।
🧖🏻 गोपी – ठीक है, आप सब इतना जिद कर रहें है तो मैं आज रात यहाँ रुक जाता हूँ। लेकिन कल सुबह ही मैं और जानकी यहाँ से निकल जाएंगे।
👴🏽 ससुर – ठीक है जमाई सा, आप अन्दर तो आइये।
ससुराल की मान-मनुहार
सब उसे आदर के साथ अंदर ले गए।उसे खाट पर बैठा कर, कोई उसके लिए पानी लेकर आया तो कोई उसके लिए शर्बत बना कर लेकर आया। उसकी सास उसे पंखा झलने लगी। उसके शरीर पर चोटों के निशान देख कर उसकी सास ने पूछा,
🤷🏻♀️ सास – जमाई सा आपको ये चोटें कैसे लगी?
🧖🏻 गोपी – वो, मैं चलते-चलते एक गड्ढे में गिर गया था।
🤷🏻♀️ सास – जमाई जी, मेरी समधन कैसी है।
🧖🏻 गोपी – माँ की तबियत आजकल ठीक नहीं रहती, इसलिए तो उन्होंने मुझे जानकी को लेने के लिए भेजा है।
थोड़ी देर बाद उसकी सास ने कहा,
🤷🏻♀️ सास – जमाई सा, खाना तैयार हो गया है। आप नहा-धोकर सफर की थकान उतार लो, फिर भोजन करके आराम कर लेना।
गोपी साहब नहा-धोकर आसान पर विराजमान हो गये। साथ में ससुर और साले भी बैठे हुए थे। सास ने उन्हें खाना परोसा। भूख तो बहुत तेज लगी थी। पेट में चूहे धमा-चौकड़ी मचा रहे थे। सामने खीर-पूड़ी, सब्जी-हलवा रखा हुआ था। उसे ऐसा लग रहा था कि बस खाने पर टूट पडूं, लेकिन माँ की बात याद आ गई। इसलिए वह धीरे धीरे खाने लगा। उसकी सास ने उससे पूछा,
🤷🏻♀️ सास – और खीर परोसू जमाई सा?
इतने से खाने से उसका पेट कहाँ भरा था, लेकिन माँ ने कहाँ था, तीन-चार बार मनुहार करने पर ही और खाना लेना। इसलिए उसने मना कर दिया।
👴🏽 ससुर – अरे जमाई सा अपने तो कुछ खाया ही नहीं है, थोड़ी खीर तो ले लों।
🧖🏻 गोपी – नहीं-नहीं, मुझे ज्यादा भूख नहीं है।
👨🏽⚕️ साली – जीजाजी जीजी ने बड़े प्यार से बनाया है, थोड़ा सा हलवा तो और ले लों।
🧖🏻 गोपी – नहीं , मेरा पेट भर गया है।
उसके मन मैं गिनती चल रही थी, “तीन बार तो पूछ चुके, बस चौथी बार पूछते ही थोड़ी खीर और हलवा और ले लूंगा।
तभी उसके साले ने कहा,
👨🏼🦰 साला – माँ, ज्यादा जोर मत दो। इतनी दूर से आए है, थके हुए भी है, इसलिए खाया नहीं जा रहा होगा। कहीं रात को परेशानी ना हो जाए। रहने दो।
वह तो बस इंतजार ही करता रह गया और चौथी बार किसी ने खाने के लिए नहीं पूछा। अब क्या मियां गोपी को भूखा ही उठना पड़ा। आँगन में उसकी खटिया लगा दी गई। साले ने कहा,
👨🏼🦰 साला – जीजाजी, आपकी खटियाँ आँगन में लगा दी है। अब आप आराम से सो जाइए। मैं और पिताजी आपके साथ यहीं आँगन में ही सो रहे है। किसी चीज की आवश्यकता हो तो बता देना। जानकी, माँ और बहनों के साथ अंदर कमरे में सो रही है।
भूखे तो भजन भी नहीं होते!
गोपी खटिया पर लेट गया। पेट में तो चूहे दौड़ रहे थे, नींद कहा से आती। बस लेटा-लेटा तारे गिन रहा था। उसने सोचा, “जब सब गहरी नींद में सो जाएंगे, तब जानकी के पास जाकर उससे कुछ खाने के लिए माँग लूँगा।” सबके सोने के बाद वह धीरे से अपनी खटियाँ से उठा और कमरे के बाहर से धीरे से जानकी को आवाज लगाने लगा, लेकिन जानकी ने तो नहीं सुना लेकिन अंदर से उसकी सास की आवाज आई,
🤷🏻♀️ सास – कौन है?
वह डरकर वापस अपनी खटिया पर आ गया। आधी रात बीत गई लेकिन उसकी आँखों में नींद का नामों निशान नहीं था। उसे तो अपनी आँखों के सामने हलवा-पूरी नाचते दिखाई दे रहे थे। जब भूख सहन नहीं हुई तो वह धीरे से उठा और रसोई की तरफ गया। वहाँ जाकर देखा तो रसोई के दरवाजे पर ताला लटक रहा था। अब क्या किया जाए, भूख के मारे उसकी हालत पतली हो रही थी।
उसने इधर-उधर देखा, पास ही एक लकड़ी की सीढ़ी पड़ी हुई थी। उसने सीढ़ी उठाई और रसोई की दीवार पर लगा कर रसोई की छत पर चढ़ गया। रसोई की छत घास-फूस की बनी हुई थी। तो गोपी राम जी सीधे रसोई में रखी चाशनी की कढ़ाई में गिर पड़े। पूरे शरीर पर चाशनी चिपक गई। किसी तरह से उठे, लेकिन एक तो अंधेरा और दूसरे चाशनी से आँखे भी चिपक गई थी।
सफेद भूत!
उसने हाथ बढ़ाकर कुछ पकड़ने की कोशिश की तो उसके हाथ में आटे का डिब्बा आ गया। उसने उसे पकड़ा तो आटे का डिब्बा उसके ऊपर ही उलट गया और गोपी जी पूरे आटे में नहा गए। शरीर पर चाशनी तो चिपकी ही हुई थी आटा और चिपक गया। मियां गोपी पूरे सफेद भूत बन गए। अब तो वह रसोई में इधर से उधर भागने लगा और बर्तनों से टकराने लगा। उसके टकराने से रसोई के बर्तन गिरने लगे।
रसोई में से खटपट की आवाज सुनकर उसके ससुराल वाले जाग गए। उन्होंने सोचा रसोई में कोई चोर घुस गया हैं। उन्होंने अपने हाथों में लठियाँ उठाई और जल्दी से रसोई का दरवाजा खोला तो क्या देखते है, एक सफेद भूत रसोई में इधर से उधर भाग रहा है। एक बार तो वे डर गए, लेकिन फिर लाठियाँ लेकर उस पर पिल पड़े। अब वह यह भी नहीं बोल सकता था कि मुझे मत मारों, मैं तो आपका जवाई हूँ।
खूब पिटाई करने के बाद उसे यह कहते हुए रस्सियों से बांध कर रसोई में ही पटक दिया। उसे बांध का बाहर आए तो खटिया पर जवाई जी नहीं थे। अब सब लगे जवाई जी को ढूँढने। पर जवाई जी कैसे मिलते उन्हें तो वे खुद ही रसोई में बांध पटक आए थे। जब बहुत देर ढूँढने पर भी जवाई जी नहीं मिले तो सबने तय किया, “अब इतनी रात में कहाँ ढूँढने जाएंगे थोड़ी देर में सुबह होने वाली है, उजाला होने पर जवाई जी को ढूँढने जाएंगे।”
पत्नी का प्यार या दुलार
सब सो गए, लेकिन जानकी की आँखों में नींद कहाँ क्योंकि जब गोपी ने आवाज दी थी तब उसने सुन लिया था, लेकिन माँ बीच में ही बोल पड़ी थी। उसने बाहर आकर देखा भी, लेकिन गोपी वापस जाकर सो गया था। उसे गोपी की चिंता हो रही थी, इसलिए सबकी आँख लगने के बाद वह चुपके से उठकर रसोई में गई और उससे पूछा,
🧖🏻♀️ जानकी – कौन हो तुम ?
🧖🏻 गोपी – मैं गोपी हूँ, लेकिन तुम कौन हो?
🧖🏻♀️ जानकी – मैं तुम्हारी पत्नी जानकी हूँ। लेकिन तुम रसोई में क्या कर रहे थे?
🧖🏻 गोपी – माँ ने कहा था, जब तक ससुराल वाले तीन-चार बार मनुहार ना करें जब तक और खाना मत लेना। लेकिन सबने तीन बार ही मनुहार करी, चौथी बार की ही नहीं। इसलिए मैं भूखा रह गया। भूख के मारे नींद नहीं आ रही थी तो तुमको भी आवाज दी, लेकिन तुमने भी नहीं सुना। भूख सहन नहीं हुई, तो मैं कुछ खाने के लिए रसोई में घुस गया और फिर यह सब हो गया। अब तो मेरी बहुत हँसी उड़ेगी। मेरी वजह से तुम्हें भी अपमानित होना पड़ेगा।
🧖🏻♀️ जानकी – चिंता मत करों, कुछ नहीं होगा। बस, तुम ये सब बातें किसी से भी मत कहना। कोई पूछे कि तुम रात को कहाँ चले गए थे तो कह देना लघु शंका करने गया था। फिर उसने उसे पूरी तरह से समझा दिया कि क्या-क्या बोलना है।
🧖🏻 गोपी – ठीक है। लेकिन मुझे तो अब भी बहुत जोरों से भूख लग रही है।
जानकी अपने पति के भोलेपन पर मुस्कुरा दी। उसने उसकी रस्सियाँ खोल दी और उसको पानी से साफ किया। फिर उसे खाना खिला कर खटिया पर सुला दिया। पेट भर जाने पर उसे थोड़ी ही देर में नींद आ गई। सुबह सब उठे तो जवाई जी तो खटिया में सो रहे थे, पर रसोई से चोर साहब गायब थे। जब गोपी की आँख खुली तो ससुर जी ने पूछा,
👴🏽 ससुर – जवाई साहब रात को कहाँ चले गए थे।
🧖🏻 गोपी – लघु शंका करने।
👨🏼🦰 साला – हमने बहुत आवाज लगाई, लेकिन आपने जवाब नहीं दिया।
🧖🏻 गोपी – वह मुझे यहाँ पास में संकोच हो रहा तो तो मैं यह से थोड़ी दूर खेतों में चला गया था। अब आप मुझे और जानकी को विदा कर दीजीए। जिससे हम रात होने से पहले अपने घर पँहुच जाए।
उसके ससुराल वालों ने उसे उपहार देकर जानकी के साथ विदा कर दिया। घर पँहुच के गोपी ने अपनी माँ को सारी बात बताई। उसकी माँ को तसल्ली हो गई कि उसके बेटे को प्यार के साथ दुलार के साथ संभालने वाली आ गई है।
सच ही कहा है, “भोले के साथ भगवान होता है”।
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तो दोस्तों, कैसी लगी कहानी उठते-बैठते ? आशा करती हूँ आप सबका खूब मनोरंजन हुआ होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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