एकता की शक्ति – Ekta Ki Shakti
पंचतंत्र की कहानियाँ – दूसरा तंत्र – एकता की शक्ति – Ekta Ki Shakti – The Power of Unity
दक्षिण क्षेत्र के महिलारोप्य नगर के समीप एक वन में बहुत सारे पशु-पक्षी रहते थे। उसी वन में एक विशाल वट वृक्ष (बरगद का पेड़) था। उसकी शाखाओं पर बहुत सारे पक्षी निवास करते थे। उसी पेड़ की एक शाखा पर लघुपतनक नामक एक कौवा अपने घोंसले में रहता था।
एक दिन भोजन की तलाश में वह नगर की ओर गया तो उसने देखा कि एक यमदूत के समान दिखने वाला काला कलूटा, फटे पाँव व बिखरे बालों वाला व्याध (शिकारी) अपने हाथ में जाल लिए उस बरगद के पेड़ की तरफ ही चला आ रहा है। उसे बरगद के पेड़ पर रहने वाले पक्षियों की चिंता हो गई कि कहीं वह उन्हें जाल बिछाकर पकड़ ना लें।
बच के रहना रे बाबा
वह उल्टे पाँव उन्हें आगाह करने के लिए वापस बरगद के पेड़ की ओर लौट आया। वहाँ पँहुचते ही वह सब पक्षियों को चेतावनी देते हुए बोला,
🦅 लघुपतनक – सुनो मित्रों, सभी मेरी बात गौर से सुनों, मैंने अभी एक शिकारी को जाल और अनाज के दाने लेकर इस तरफ आते हुए देखा है। हो सकता है वह तुम्हें पकड़ने के लिए यहीं आकर अपना जाल बिछा दे। इसलिए जब वह अपना जाल बिछाए तो तुम उन अनाज के दानों को जहर के समान समझ कर लालच में मत आना, नहीं तो तुम लोग शिकारी का शिकार बन जाओगे।
वह अभी सभी जानवरों को चेतावनी दे ही रहा था कि शिकारी उस बरगद के पेड़ के पास ही आ गया। उसने बरगद के पेड़ पर बहुत सारे पक्षियों को देखा। उसने उसी पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा के अनाज के दाने बिखेर दिए और स्वयं थोड़ी दूर एक पेड़ के पीछे जाकर छुप गया।
वह मन ही मन यह सोच कर खुश हुआ कि आज तो मुझे यहीं से बहुत सारे पक्षी मिल जाएंगे। लेकिन लघुपतनक की चेतावनी के बाद बरगद के पेड़ का कोई भी पक्षी उन अनाज के दानों को चुगने नहीं आया। जब बहुत देर तक कोई भी पक्षी जाल में नहीं फंसा तो शिकारी को बहुत निराशा हुई।
वह अपना जाल हटाने के लिए जाने ही वाला था कि एक कबूतरों का दल उड़ता हुआ वहाँ आया। उस दल के मुखिया का नाम चित्रग्रीव था। वह बहुत बुद्धिमान था। जब उन्होंने बरगद के पेड़ के नीचे इतने सारे अनाज के दानों को देखा तो वे उन्हें खाने के लिए तेजी से उस और बढ़ने लगे।
लघुपतनक ने जब देखा कि शिकारी के जाल से अनजान कबूतरों का दल दानों के लालच में शिकारी के जाल में फँसने वाला है तो वह उन्हें रोकते हुए बोला,
🦅 लघुपतनक – ठहरों मित्रों, इन दानों को मत खाओ। यहाँ शिकारी ने जाल बिछा रखा है।
हम तुम्हारी क्यों माने
चित्रग्रीव – लगता है तुम स्वयं ये सारे दाने खाना चाहते हो, इसलिए तुम हमें शिकारी का भय दिखा रहे हो जिससे हम डर जाए और यहाँ से चले जाएँ और तुम आराम से इन दानों को खा सकों।
🦅 लघुपतनक – नहीं, मेरी बात का यकीन करों मैं सच कह रहा हूँ। इस दानों के लालच में तुम सब शिकारी के जाल में फँस जाओगे।
सच ही कहा है लालच सोचने की शक्ति को खत्म कर देता है। इसलिए लघुपतनक के बहुत समझाने पर भी चित्रग्रीव व उसके साथियों ने उसकी बात नहीं मानी और दाने चुगने के लिए जमीन पर बैठ गए। दानों को खाने के लालच में वे सब जाल में फँस गए। उन्होनें उड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन जाल में फँसने के कारण वे उड़ नहीं पा रहे थे।
जब शिकारी ने देखा कि बहुत सारे कबूतर जाल में फँस चुके है तो वह बहुत खुश हुआ। वह पेड़ की ओट से निकल कर अपने जाल की तरफ बढ़ने लगा। शिकारी को अपनी ओर आता देख वे सभी घबरा गए। चित्रग्रीव बुद्धिमान तो था ही, वो तो लालच ने उसकी बुद्धि हर ली थी। उसका दिमाग तेजी से इस समस्या का हल खोजने लगा। तभी उसे एक युक्ति सूझी। उसने अपने सभी साथियों से कहा,
🕊️ चित्रग्रीव – साथियों हम अपने लालच के कारण जाल में फँस गए है, लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है। हम सब मिलकर इस समस्या का हल निकाल लेंगे।
🐤 एक कबूतर – लेकिन, हम सब तो पूरी तरह से जाल में फँस चुके है और उड़ भी नहीं पा रहे है। अभी थोड़ी देर में शिकारी आकर हमें पकड़ कर ले जाएगा।
🕊️ चित्रग्रीव – तुम लोगों को घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैंने शिकारी से बचने की युक्ति सोच ली है। तुम सब जैसा मैं बताऊँ वैसा ही करना।
🐤 अन्य कबूतर – तो जल्दी से बताइए।
🕊️ चित्रग्रीव – तुम सब अभी उड़ने की कोशिश करके अपनी ताकत व्यर्थ मत करों। जब मैं तुम लोगों को इशारा करूँ तो तुम सब एक साथ जोर लगाकर उड़ने की कोशिश करना। हम सब मिलकर इस जाल को ही अपने साथ उड़ा कर ले जाएंगे।
एकता की शक्ति
सभी कबूतरों ने उसकी बात मान ली और उन्होनें उड़ने की कोशिश बंद कर दी। थोड़ी देर रुकने के बाद उसने सभी कबूतरों से कहा, “उड़ो” तो सभी कबूतर एक साथ अपना सारा जोर लगाया और जाल को अपने साथ उड़ा ले गए। शिकारी ने जब यह देखा कि कबूतर उसके जाल को उड़ा ले जा रहे है तो वह उनके पीछे भागा।
लघुपतनक भी कौतूहलवश यह देखने के लिए कि अब आगे क्या होता है उनके पीछे-पीछे उड़ चला।
शिकारी ने बहुत देर तक उनका पीछा किया लेकिन थोड़ी ही देर में सारे कबूतर जाल समेत उसकी आँखों से ओझल हो गए। आज उसके हाथ से उसका शिकार और उसका जाल दोनों ही छिन चुके थे। आखिर थक हार कर बड़े दुखी मन से वह वापस अपने घर की तरफ लौट चला।
चित्रग्रीव ने जब देखा कि शिकारी लौट गया है तो उसने अपने साथियों से कहा,
🕊️ चित्रग्रीव – साथियों, दुष्ट शिकारी लौट गया है, इसलिए अब घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। महिलारोप्य नगर के पूर्व में मेरा घनिष्ट मित्र हिरण्यक चूहा रहता है। हम अभी उसके पास चलते है। उससे अपना जाल कटवा कर हम स्वतंत्र हो जाएंगे।
हमारी मदद करों
उसकी बात मानकर सभी कबूतर उसी दिशा में उड़ चले। थोडी देर बाद वे सब एक सौ मुँह वाले किले जैसे बिल के पास पँहुचे। बिल के पास पँहुच कर चित्रग्रीव ने कहा,
🕊️ चित्रग्रीव – साथियों इस किले जैसे बिल में ही मेरा मित्र हिरण्यक चूहा रहता है। यहीं उतर जाओ।
सभी कबूतर जाल समेत वहीं उतर गया। उतरने के बाद चित्रग्रीव ने अपने मित्र हिरण्यक को पुकारते हुए कहा,
🕊️ चित्रग्रीव – मित्र, जल्दी बाहर आओं, हम बहुत मुसीबत में है। हमें तुम्हारी मदद की आवश्यकता है। कृपया बाहर आकर हमारी मदद करों।
🐭 हिरण्यक – (बिल के अंदर से ही) तुम कौन हो, कहाँ से आए हो और तुम्हारे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है?
🕊️ चित्रग्रीव – मैं तुम्हारा मित्र कबूतरों का राज्य चित्रग्रीव हूँ। मैं और मेरे साथी एक मुसीबत में फँस गए है। हमारी मदद तुम ही कर सकते हो, इसलिए जल्दी से बाहर आओं।
उसकी बात सुनकर हिरण्यक बहुत प्रसन्नता से अपने बिल में से बाहर आया। लेकिन जब उसने अपने मित्र को अपने साथियों सहित जाल में फँसे देखा तो उसे बहुत दुख और आश्चर्य हुआ। उसने पूछा,
🐭 हिरण्यक – अरे मित्र, यह क्या हो गया? तुम और तुम्हारे मित्र इस जाल में कैसे फँस गए?
🕊️ चित्रग्रीव – क्या बताऊँ मित्र, यह सब हमारे लालच का फल है। दानों के लालच में हम इस जाल में फँस गए।
🐭 हिरण्यक – लेकिन तुम तो बहुत बुद्धिमान हो मित्र, फिर ऐसा कैसे हो गया।
🕊️ चित्रग्रीव – मित्र, लालच किसी की भी मति भ्रष्ट कर सकता है। अब तुम बातों में समय व्यर्थ मत करों और जल्दी से अपने दांतों से इस जाल को काटकर हमें मुक्त करों।
मुझसे पहले मेरे साथी
उसकी बात सुन कर हिरण्यक चित्रग्रीव के बंधन काटने के लिए आगे बढ़ा, तो चित्रग्रीव ने उसे रोकते हुए कहा,
🕊️ चित्रग्रीव – पहले मेरे नहीं मेरे साथियों को बंधन से मुक्त करों मित्र।
🐭 हिरण्यक – लेकिन तुम तो इनके राजा हो, इसलिए पहले तुम्हें ही बंधन मुक्त होना चाहिए।
🕊️ चित्रग्रीव – नहीं मित्र, ये सभी मुझ पर आश्रित है और मुझ पर भरोसा करके ही अपने परिवार को छोड़कर मेरे साथ आए है। एक राजा होने के नाते मेरा यह धर्म है कि मैं अपने से भी पहले इन सभी की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखूँ। तभी ये मुझ पर विश्वास करेंगे और संकट के समय में भी मेरा साथ देंगे।
ऐसा भी हो सकता है कि सभी का जाल काटने से पहले शिकारी यहाँ आ जाए या तुम्हारे दाँत टूट जाए तो मेरे अनुचर मुक्त नहीं हो पाएंगे। जो राजा अपने सेवकों की रक्षा नहीं कर सकता वह नरक का भागी होता है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तू मुझसे पहले इन सभी को बंधन मुक्त कर।
🐭 हिरण्यक – मित्र, मैं भी राजधर्म जानता हूँ। मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुम्हारे जैसे राजा ही अपने अनुचरों का विश्वास जीत कर उनके मन पर भी राज करते है।
इतना कहकर हिरण्यक ने पहले चित्रग्रीव के साथियों का जाल काटा और अंत में चित्रग्रीव के जाल को काट कर सभी को मुक्त कर दिया और बोला,
🐭 हिरण्यक – अब तुम सभी बंधन मुक्त हो। अब तुम अपने घर जाओं। भविष्य में भी जरूरत पड़ने पर बेझिझक यहाँ आ जाना।
🕊️ चित्रग्रीव –तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र, अब हम चलते है फिर मुलाकात होगी।
इतना कहकर चित्रग्रीव ने हिरण्यक से गले मिलकर विदा ली। उनकों विदा करके हिरण्यक वापस अपने बिल में चल गया।
सीख
- लालच बुरी बला है।
- एकता में शक्ति होती है।
- संकट में जो काम आए वहीं सच्चा मित्र है।
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पिछली कहानी – सूत्रधार कथा – मित्रसंप्राप्ति
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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