कबूतरों का जोड़ा और शिकारी – Kabutaron Ka Joda Aur Shikari
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – कबूतरों का जोड़ा और शिकारी – Kabutaron Ka Joda Aur Shikari – The Pair of Pigeons and Hunter
कबूतरों का जोड़ा और शिकारी की कहानी में बताया गया है कि कैसे एक कबूतर ने अपनी शरण में आए अपने शत्रु शिकारी के लिए भी अपने प्राणों की आहूति दे दी।
किराट नगर में रीछपाल नामक एक शिकारी रह रहा था। वह बड़ा ही लोभी और निर्दयी था। वह रोज जंगल में जाता, पशु-पक्षियों को अपने जाल में फँसाता और उन्हे मार कर खा जाता।
एक दिन वह शिकार की तलाश में जंगल में गया। उसने वहाँ एक पेड़ के नीचे अपना जाल बिछा दिया और खुद दूसरे पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गया। सुबह से शाम हो गई, लेकिन उसके जाल में कोई भी पशु-पक्षी नहीं फंसा। भूख के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था।
निराश होकर वह अपना जाल उठाने ही वाला था कि उसमें एक कबूतरी फँस गई। उसे देखकर रीछपाल को बहुत खुशी हुई। उसने कबूतरी समेत जाल को समेट कर अपने कंधे पर डाला और अपने घर की ओर रवाना हो गया। वह अभी थोड़ी दूर ही पँहुचा था कि आसमान में बादल छा गए और मूसलाधार बारिश होने लगी।
रीछपाल पूरा भीग गया और ठंड से कांपने लगा। बारिश और ठंड से बचने के लिए वह आश्रय खोजने लगा। तभी उसे एक विशाल पीपल का पेड़ दिखाई दिया। उसके अंदर एक खोल था। वह भाग कर उसके अंदर घुस गया। खोल में घुसते हुए उसने कहा,
🧔🏿 रीछपाल – यहाँ जो भी रहता है मैं उसकी शरण में हूँ। इस मुसीबत के समय जो भी मेरी सहायता करेगा, मैं उसका जीवन भर ऋणी रहूँगा।
उस खोल में वही कबूतर रहता था, जिसकी पत्नी को उसने अपने जाल में फँसाया था। उस समय वह अपनी पत्नी के वियोग में दुखी होकर विलाप कर रहा था। जब जाल में फँसी कबूतरी ने कबूतर का विलाप सुना तो वह मन ही मन बहुत खुश हुई।
उसने सोचा, “मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो मुझे इतना प्यार करने वाला पति मिला है। जो मेरे लिए इतना विलाप कर रहा है। पति का प्रेम ही एक स्त्री के जीवन का अनमोल धन है। जिस स्त्री को पति का प्रेम मिल जाए उसका तो पूरा जीवन ही सफल है। आज मैं धन्य हो गई, मेरा जीवन सार्थक हो गया। अब मैं मर भी जाऊँ तो मुझे कोई गम नहीं होगा।” उसने अपने पति से कहा,
🐤 कबूतरी – प्रियतम, देखो मैं तुम्हारे सामने ही हूँ।
अपनी पत्नी की आवाज सुनकर कबूतर ने अपना विलाप रोककर इधर-उधर देखा और बोला,
🐥 कबूतर – कहाँ?”
🐤 कबूतरी – मैं यहाँ शिकारी के जाल में हूँ। इस शिकारी ने मुझे अपने जाल में कैद कर रखा है।“
उसे जाल में फँसा देख कर कबूतर को बहुत दुख हुआ। उसे दुखी देखकर कबूतरी ने कहा,
🐤 कबूतरी – दुखी होने की कोई आवश्यकता नहीं है प्रियवर, हो सकता है, मुझे अपने किसी पूर्व जन्म के कर्मों की सजा मिली है। हमें अपने पाप कर्मों का फल स्वयं ही भुगतना पड़ता है।
🐥 कबूतर – थोड़ी देर रुको प्रिये, मैं अभी तुम्हें जाल से निकालने का कुछ उपाय करता हूँ।
🐤 कबूतरी – प्रियवर, आप मेरी चिंता छोड़िए और अपने शरणागत आए अतिथि की सेवा कीजिए। शरणागत की रक्षा से बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं है। यदि अतिथि का सत्कार नहीं किया जाए तो अर्जित किए सारे पुण्य भी उसके साथ चले जाते है और केवल पाप ही रह जाते है।
कबूतरी की बात सुनकर कबूतर ने शिकारी से कहा,
🐥 कबूतर – हे वधिक, तुम किसी बात की चिंता मत करों। इस खोल को अपने घर के समान ही समझो और आराम से यहाँ रहो।
शिकारी ठंड के मारे कांप रहा था, वह बोला,
🧔🏿 रीछपाल – मुझे बहुत तेज सर्दी लग रही है, इसे दूर करने का कोई उपाय कर दो।
कबूतर ने जल्द ही कुछ सूखी लकड़ियाँ पेड़ के नीचे एकत्रित कर दी और शिकारी से कहा,
🐥 कबूतर – मैंने पेड़ के नीचे सूखी लकड़ियाँ रख दी है, तुम उनमें आग लगाकर अपने शरीर को ताप लो।
रीछपाल ने पास पड़े दो पत्थरों उठाए और उनको आपस में रगड़ कर लकड़ियों में आग लगा ली और अपने शरीर को सेंकने लगा। आग की गर्मी से थोड़ी देर में उसको ठंड से राहत मिल गई। अब उसकों भूख सताने लगी। वह खाने की तलाश में इधर-उधर देखने लगा। उधर कबूतर को भी अपने अतिथि के भोजन की चिंता होने लगी थी। उसके पास तो अन्न का एक दाना भी नहीं था और रात भी हो चुकी थी। अब वह अपने अतिथि के भोजन की व्यवस्था कैसे करे?
उसने सोचा, “किसी के घर में यदि अतिथि भूखा रह जाए तो उसके लिए यह मर जाने वाली बात होती है। यदि मैं शिकारी के लिए भोजन की व्यवस्था नहीं कर सका, तो ये मेरे लिए मरने के समान ही है, इसलिए में अपने शरीर से शिकारी के भोजन की व्यवस्था करूंगा। उसने शिकारी से कहा,
🐥 कबूतर – आपके भोजन के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। मैं अपने आपको इस आग के हवाले कर रहा हूँ। पकने पर आप मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लेना।
रीछपाल कुछ कह पाता उससे पहले ही कबूतर आग में कूद गया। रीछपाल ने जब उसका यह बलिदान देखा तो वह अपने आपको धिक्कारने लगा। उसने सोचा, “एक ये कबूतर है, जिसने अतिथि सेवा हेतु मुझ जैसे अपने शत्रु तक के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया और एक मैं हूँ, जो केवल अपने स्वाद की खातिर निरीह जानवरों को मार कर उनका भक्षण करता हूँ।
उसे अपने आप से घृणा हो गई। उसने उसी क्षण कबूतरी को जाल से मुक्त कर दिया। जाल से बाहर आने पर कबूतरी ने अपने पति कबूतर को आग में जलते हुए देखा तो यह कहते हुए वह भी आग मैं कूद गई,
🐤 कबूतरी – प्रियतम, तुम्हारे बिना अब मेरे इस जीवन का क्या प्रयोजन है। मैं भी आपके साथ ही चलूँगी।
उसके आग में कूदते ही आसमान से पुष्पों की वर्षा होने लगी। ईश्वर के दूत आकर उन्हे अपने साथ ले गए।
यह सब देखकर रीछपाल ने अपना जाल और शिकार करने वाले सारे औजार फेंक दिए। उसने उसी दिन से हिंसा का जीवन छोड़ कर सात्विक जीवन जीने का प्रण ले लिया। उसके बाद से वह जानवरों को मारना छोड़कर हिंसा रहित जीवन जीने लगा।
सीख
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि अपने शरणागत की रक्षा के लिए यदि अपने प्राणों का बलिदान करना पड़े तो भी हिचकिचाना नहीं चाहिए। चाहे वह आपका शत्रु ही क्यों ना हो।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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