करवा चौथ की कथा – Karwa Chouth Ki Katha
चौथ माता की कथाएं – करवा चौथ की कथा – Karwa Chouth Ki Katha
करवा चौथ की कथा
एक बार एक साहूकार था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी । सात भाइयों के बीच में इकलौती बहन थी, इसलिए सारे भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। जो भी भाई काम से वापस आता, उसे अपने साथ बैठा के खाना खिलाता। समय आने पर साहूकार ने अपने सभी बेटों और अपनी बेटी की शादी कर दी।
लेकिन भाइयों ने अपनी बहन के ससुराल वालों से उसे कुछ दिन मायके में ही रहने देने की विनती करके उसे मायके में ही रोक लिया। एक दिन करवा ने अपनी सभी भाभियों को साज-शृंगार करके मेहंदी लगाते हुए देखा तो उसने उनसे पूछा, “भाभी, आज आप सब साज-धज कर मेहंदी क्यों लगा रही हो?
एक भाभी ने कहा, “कल करवा चौथ का व्रत और आज सिंजारा है। सभी सुहागन स्त्रियाँ सिंजारे के दिन साज-शृंगार करती है, मेहंदी लगाती है और करवा चौथ के दिन सोलह शृंगार करके अपने पति की लंबी आयु और अमर सुहाग के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत करती है।”
तो उसने कहा, “मैं भी अपने पति के लिए यह व्रत करूंगी।”
उसकी भाभियों ने उससे कहा, “आप पूरे दिन अपने भाइयों के साथ कुछ ना कुछ खाती रहती है। आपसे यह व्रत नहीं होगा।”
लेकिन फिर भी उसने व्रत रखा। रोज की तरह जो भी भाई आता वह अपनी बहन को खाना खाने के लिए कहता तो बहन जवाब देती, “भाई, आज मैं खाना नहीं खाऊँगी, आज मेरा चौथ का निर्जला व्रत है। मैं रात को चाँद को अर्ध्य देकर ही खाना खाऊँगी।”
शाम तक तो उसका चेहरा भूख और प्यास से कुम्हला गया। अपनी बहन की ऐसी हालत कर उसके भाई चिंता में पड़ गए। उन्होंने सोचा इस तरह से तो उनकी बहन भूख-प्यास से मर जाएगी। इसलिए उसके भाइयों ने एक योजना बनाई। वे पहाड़ पर गए और वहाँ एक भाई ने दिया जलाया और दूसरे भाई ने उसके आगे छलनी लगा दी।
एक भाई दौड़ा-दौड़ा अपनी बहन के पास आया और बोला, “देखो बहन चाँद निकल आया है। तुम चाँद को अर्ध्य देकर भोजन कर लो। बहन ने अपनी भाभियों से कहा, “चलों भाभी चाँद निकल आया है। चाँद को अर्ध्य देकर भोजन करते है।
उसकी भाभियों ने कहा, “आपका चाँद निकल गया होगा, लेकिन अभी हमारा चाँद अभी नहीं निकला है।
बहन चाँद को अर्ध्य देकर भोजन करने बैठ गई।
जैसे ही उसने पहला निवाला मुँह में डाला छींक आ गई। दूसरा निवाला मुँह में डाला तो बाल आ गया। जैसे ही तीसरा निवाला मुँह में डाला तो ससुराल से बुलावा आ गया कि “बेटा बीमार है, पेटी खोलने पर जो भी साड़ी सबसे ऊपर आए, उसे पहना कर बहु को जल्दी भेजो।”
उसकी माँ बहुत समझदार दी वह समझ गई की ससुराल में कुछ गड़बड़ है। इसलिए उसने ऐसी पेटी निकाली जिसमें सुहागनों के झिलमिल सितारों वाले कपड़े रखे हुए थे। लेकिन जैसे ही पेटी को खोल तो उसमें सबसे ऊपर काली साड़ी निकली। उसने वही साड़ी अपने बेटी को पहना दी और साड़ी के पल्लू में सोने का सिक्का बांधते हुए कहा, “ससुराल के गाँव में घुसते ही जो भी मिले उसके पैर छूते जाना। जो भी तुझे अमर सुहाग का आशीर्वाद दे, उसे यह सिक्का देकर अपने पल्लू में गांठ बांध लेना।
सेठ की लड़की ससुराल के लिए निकल पड़ी। ससुराल में घुसते ही उसे जो भी मिला उसके पैर छूती गई, लेकिन किसी ने भी उसे अमर सुहाग का आशीष नहीं दिया। जब वह ससुराल के दरवाजे पर पहुँची तो पालने में उसकी जेठुती सो रही थी। उसने उसके पैर छूए तो उसने कहा, “सिली-सपूती तेरा सुहाग-भाग अमर रहे।” यह सुनकर उसने सोने का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया और अपने पल्लू में गांठ लगा ली।
घर के अंदर गई तो उसका पति मरा हुआ पड़ा था। सब उसे श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। उसने कहा, “मैं मेरे पति को नहीं ले जाने दूँगी।” लेकिन सब उसे अलग हटकर जबरदस्ती उसके पति को श्मशान ले गए। वह उनके पीछे-पीछे श्मशान पँहुच गई और उन्हे अपने पति को जलाने नहीं दिया और बोली, “मुझे मेरी जेठुती ने अमर सुहाग का आशीर्वाद दिया है। मैं इन्हें नहीं जलाने दूँगी।”
लोगों ने सोचा अभी यह हट पर लगी हुई है, दो-चार घंटे में थक हार कर घर आ जाएगी, तब जला देंगे।
लेकिन विरावती ने तो श्मशान में ही झोपड़ी बना ली और वहीं रहने लगी। उसकी सास रोज उसे एक बाजरी की रोटी और थोड़ा गुड ग्वालों के साथ भेज देती थी। उसका वह चूरमा बना लेती और खा लेती। ऐसा करते-करते चार महीने बीत गए। माघ की तिल चौथ आई, सेठ की लड़की ने चौथ माता के पाँव पकड़ लिए।
चौथ माता उसे झिड़कते हुए बोली, “हे पापनी-हत्यारनी, छलनी में से चाँद देखनी, मेरे पाँव क्यों पकड़ रही है।”
वह बोली, “हे चौथ माता, मेरे पति को जीवन दान दे दो।”
चौथ माता बोली, “चार महीने बाद मेरे से बड़ी बैसाख की चौथ आएगी तू उसके पाँव पकड़ना। वो ही तेरे पति को जीवित कर सकती है।
चार महीने बाद बैसाख की चौथ आई, उसने उनके पाँव पकड़ लिए। चौथ माता उससे पाँव छुड़ाते हुए बोली, “हे पापनी-हत्यारनी, छलनी में से चाँद देखनी, मेरे पाँव क्यों पकड़ रही है।”
वह बोली, हे चौथ माता, मेरे पति को जीवित कर दीजिए।”
चौथ माता बोली, “चार महीने बाद मेरे से बड़ी भादुडी चौथ आएगी तू उसके पाँव पकड़ना। वो ही तुझे सुहाग दे सकती है।”
चार महीने बाद गाजती-बाजती, बिजलियाँ चमचमाती भादुडी चौथ आई, उसने उनके पाँव पकड़ लिए। चौथ माता उसे झिड़कते हुए बोली, “हे पापनी-हत्यारनी, छलनी में से चाँद देखनी, मेरे पाँव क्यों पकड़ रही है।”
वह बोली, “हे चौथ माता, मेरे सुहाग को मुझे लौटा दीजिए।”
चौथ माता बोली, “चार महीने बाद मेरे से बड़ी कार्तिक मास की करवा चौथ आएगी, तू उसके पाँव पकड़ना। तूने उन्ही का व्रत खंडित किया था। वो ही तुझे सुहाग दे सकती है। जब तक वो तेरा सुहाग वापस ना दे तब तक उनके पैर मत छोड़ना।”
चार महीने बाद करवा चौथ आई, सेठ की लड़की ने चौथ माता के पाँव पकड़ लिए। चौथ माता उससे पाँव छुड़ाते हुए बोली, “हे पापनी-हत्यारनी, छलनी में से चाँद देखनी, मेरे पाँव क्यों पकड़ रही है।”
लेकिन उसने उनके पाँव नहीं छोड़े और बोली, “हे चौथ माता मुझसे नासमझी में गलती हो गई। मेरी भूल को क्षमा करके मेरे पति को जीवन दान दे दो।”
चौथ माता उससे पाँव छुड़ाते हुए बोली, “हे व्रत भांडनी, दिन में ही चाँद देखनी मेरे पाँव छोड़।”
उसने कहा, “मैं तब तक आपके पाँव नही छोड़ूँगी, जब तक आप मेरा सुहाग मुझे वापस नहीं करती।“
तब चौथ माता ने खुश होकर अपनी छोटी उंगली से खून का छाँटा देकर उसके पति को पुन: जीवित कर दिया। उसका पति जम्हाई लेता हुआ उठ बैठा और बोला, “आज तो बहुत गजब की नींद आई।” उसकी पत्नी ने कहा, “हाँ, पूरे एक साल की नींद लेकर उठे हो।” उसने अपने पति को पूरी बात बता दी। उसका पति बहुत खुश हुआ।
दोनों बैठ कर चौपड़-पासा खेलने लगे। दूसरे दिन जब ग्वाले उसका खाना देने के लिए आए, तो झोंपड़ी के अंदर से हंसने-खिलखिलाने की आवाजें आ रही थी। उन्होनें खिड़की में से झांक कर देखा तो सेठ की लड़की और उसका पति चौपड़-पासा खेल रहे थे। ग्वाले यह देख कर भाग छूटे और गाँव में जाकर कहने लगे, “मुर्दा जिंदा हो गया, मुर्दा जिंदा हो गया।”
गाँव वालों ने कहा, क्या आज तुमने भाग पी ली है जो इस तरह की बातें कर रहे हो।” लेकिन एक ग्वाला आया, दूसरा ग्वाला आया। एक के बाद एक सब यही कहते हुए आने लगे तो गाँव वालों ने उसके घर वालों से कहा, “जब सारे जने यहीं बोल रहे है, तो एक बार श्मशान में जाकर देख लेते है।”
उसके माता-पिता वहाँ गए तो देखा कि उनका बेटा सचमुच जीवित हो गया है। उनके बेटे ने उनसे कहा, “मुझे नया जीवन मिला है, इसलिए हम दोनों को गाजे बाजे के साथ घर लेकर चलों। सब गाजे-बाजे के साथ उन्हें घर लेकर गए।
हे चौथ माता, जैसा साहूकार की बेटी को सुहाग का आशीष दिया वैसा सबको देना। कहानी कहने वाले, सुनने वाले और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
“बोलों गणेश जी महाराज की जय, चौथ माता की जय”
चौथ माता की कहानी सुनने के बाद गणेश जी और लपसी-तपसी की कहानी भी सुननी चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
यह भी पढ़े –
सम्पूर्ण पंचतंत्र की कहानियाँ,
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।