कामदा एकादशी व्रत
कामदा एकादशी व्रत 2 अप्रैल:परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है चैत्र महीने की एकादशी का व्रत
कामदा एकादशी का जिक्र विष्णु पुराण में किया गया है। राम नवमी के बाद ये पहली एकादशी होती है। कामदा एकादशी को सांसारिक कामनाएं पूरी करने वाला व्रत माना गया है। इसलिए इस व्रत को बेहद खास माना गया है। कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहते हैं। इस बार ये एकादशी व्रत 1 अप्रैल को पड़ रही है। कामदा एकादशी का व्रत जिस कामना से किया जाता है। वो पूरी होती है। पारिवारिक जीवन की समस्याएं भी खत्म हो जाती हैं।
कामदा एकादशी की पूजा विधि
- शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।
- व्रत के एक दिन पहले एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण किया जाता है।
- कामदा एकादशी व्रत के दिन स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
- एकादशी व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व है।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए।
कामदा एकादशी का महत्व
धर्म ग्रंथों के अनुसार, कामदा एकादशी व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोवांछित फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामना पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है। इस एकादशी की कथा व महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इससे पूर्व राजा दिलीप को यह महत्व वशिष्ठ मुनि ने बताया था।
चैत्र मास में भारतीय नव संवत्सर की शुरुआत होने के कारण यह एकादशी अन्य महीनों की अपेक्षा और अधिक खास महत्व रखती है। शास्त्रों के अनुसार जो मनुष्य कामदा एकादशी का व्रत करता है वह प्रेत योनि से मुक्ति पाता है।
दशमी से ही शुरू हो जाती है तैयारी
कामदा एकादशी व्रत के एक दिन पहले से ही यानी दशमी की दोपहर में जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोजन करके भगवान की पूजा की जाती है। दूसरे दिन यानी एकादशी को सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत और दान का संकल्प लिया जाता है।
पूजा करने के बाद कथा सुनकर श्रद्धा अनुसार दान किया जाता है। इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता है। सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन कर के व्रत पूरा किया जाता है। इसके बाद रात में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता है।