गणगौर
जानकारी के अनुसार, अखंड सौभाग्य के लिए मनाया जाने वाला गणगौर पर्व मनाने के लिए कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं घर-घर में गणगौर यानी शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। इसमें ईसर और गौर यानी शिव-पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर सोलह शृंगार कर सजाया जाता है। यह पूजा 16 दिन तक लगातार चलती है।
गणगौर को पानी पिलाने का गीत
सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते
है। पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है।
पानी पिलाने का गीत –
म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो …
स्त्रियाँ व कन्याये तालाब से मिट्टी लाकर ईशर गणगौर [ शिव – पार्वती ] की मुर्तियाँ बनाती हैं। पूजा के लिए हरी दूर्वा (दुब), पुष्प, जल लेन के लिए टोली बनाकर मधुर गीत गाते हुए सिर पर रख जल भरे लोटे या कलश में दूर्वा व फूल सजाकर लाती हैं | स्त्रियाँ अखंड सौभाग्य के लिए, कंवारी कन्याये योग्य वर पाने की इच्छा में ईशर गणगौर की बड़ी श्रद्धा से पूजन करती हैं। विवाहित लडकियां ‘ ब्या वाले वर्ष ‘ [ विवाह वाले वर्ष ] की गणगौर सभी कन्याओं के साथ धूम धाम के साथ सबसे पहले ईशर – गणगौर का पूजन करती हैं | प्रात: पूजन करती हैं सायंकाल पानी पिलाती हैं बिन्दोरे खिलाती हैं खूब नाच गान करती हैं। छोटी कन्याओ को दूल्हा – दुल्हन बनाती हैं |
Gangaur Pujan
Gangaur Pujan
सौलह्वे दिन शुभ वार हुआ तो उसी दिन नहीं तो अगले दिन तालाब में और जहाँ तालाब नही हो वहाँ कुए में ससमारोह ढोल नगाड़ों के साथ मंगल गीत गाते हुए ईशर गणगौर की प्रतिमा का विसर्जन करती हैं।
स्त्रियों के ‘गणगौर‘ त्यौहार के गीत अपनी अलग ही विशेषता रखते हैं। उनमें भगवती गौरीं की प्रार्थना के साथ वसन्त के मास का अनुराग भी झलकता हैं। जब सौभग्यवती स्त्रिया, कन्याये पूजन करने जाती हैं तो किवाड़ी [ दरवाजा ] खोलने की प्रार्थना माता गणगौर से करती हैं।
गणगौर पूजन के गीत
गणगौर के समय सबसे ज्यादा समस्या पूजन आदि के दौरान गाए जाने वाले गीतों के चयन व उनकी उपलब्धता को लेकर आती है। गणगौर के गीत गणगौर की पूजा में अहम् स्थान रखते है। यहाँ गणगौर गीत के बोल लिखे गये हैं। गणगौर की पूजा के समय गाये जाने वाले गीतों के बोल किवाड़ी खुलवाने के, गौर गौर गोमती , ऊँचो चवरो चोकुंठो, हिंडा के गीत, चुनड़ी के गीत, टीकी के गीत , चोपड़ा के गीत आदि गीत गणगौर पर गाए जाते हैं। यहां पाठकों की सुविधा के लिए गणगौर के दौरान विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले कईं लोकगीतों की सूची दी गई है जिसे आप गणगौर के अवसर पर गा सकती हैं।
गणगौर पूजा
गणगौर होलिका दहन के दुसरे दिन 02 मार्च शुक्रवार चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से आरम्भ कर 20 मार्च मंगलवार चैत्र शुक्ला तृतीया तक पुरे सौलह दिन गणगौर पूजन किया जाता हैं। राजस्थान के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में घर – घर में मनाया जाने वाला एक पवित्र सांस्कृतिक, धार्मिक और पारम्परिक त्यौहार हैं। अखंड सोभाग्य, उत्तम गुणवान पति एवं एश्वर्य तथा भगवान शिव और माँ पार्वती के आशीर्वाद प्राप्ति के लिए ईशर – गणगौर की बड़े उत्साह व उल्लास एवं समारोह के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं। इस दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। इस दिन सुहागिनें दोपहर तक व्रत रखती हैं।
पाटा धोने का गीत
पाटो धोय पाटो धोय , बीरा की बहन पाटो धो ,
पाटा ऊपर पिलो पान , महे जास्या बीरा की जान ,
जान जास्या , पान खास्या , बीरा न परनार ल्यास्या ,
अली गली में साँप जाय , भाभी थारो बाप जाय ,
अली गली गाय जाय , भाभी तेरी माय जाये ,
दूध में डोरों , म्हारो भाई गोरो ,
खाट पर खाजा , म्हारो भाई राजा ,
थाली में जीरो म्हारो भाई हीरो ,
थाली में हैं , पताशा बीरा करे तमाशा
ए खेले नंदी बैल , ओ पानी कठे जासी राज ,
आधो जासी अली गली ,आधो ईसर न्हासी राज ,
ईसर जी तो न्हाय लिया , गौर बाई न्हासी राज ,
गौरा बाई रे बेटो जायो , भुवा बधाई ल्याई राज ,
अरदा तानो परदा तानो , बंदरवाल बंधाओ राज ,
सार की सुई पाट का धागा , भुआ बाई के कारने भतीजा रहगया नागा ,
नागा नागा काई करो और सिवास्या बागा ,
गणगौर पूजा की आरती
म्हारी डूंगर चढती सी बेलन जी
म्हारी मालण फुलडा से लाय |
सूरज जी थाको आरत्यों जी
चन्द्रमा जी थाको आरत्यो जी |
ब्रह्मा जी थाको आरत्यो जी
ईसर जी थाको आरत्यो जी
थाका आरतिया में आदर मेलु पादर मेलू
पान की पचास मेलू
पीली पीली मोहरा मेलू , रुपया मेलू
डेड सौ सुपारी मेलू , मोतीडा रा आखा मेलू
राजा जी रो सुवो मेलू , राणी जी री कोयल मेलू
करो न भाया की बहना आरत्यो जी
करो न सायब की गौरी आरत्यो जी
गणगौर पूजा की आरती (Gangaur Mata Ki Aarti)
म्हारी डूंगर चढती सी बेलन जी
म्हारी मालण फुलडा से लाय |
सूरज जी थाको आरत्यों जी
चन्द्रमा जी थाको आरत्यो जी |
ब्रह्मा जी थाको आरत्यो जी
ईसर जी थाको आरत्यो जी
थाका आरतिया में आदर मेलु पादर मेलू
पान की पचास मेलू
पीली पीली मोहरा मेलू , रुपया मेलू
डेड सौ सुपारी मेलू , मोतीडा रा आखा मेलू
राजा जी रो सुवो मेलू , राणी जी री कोयल मेलू
करो न भाया की बहना आरत्यो जी
करो न सायब की गौरी आरत्यो जी
गणगौर क्या है? इसका महत्त्व, इतिहास और पूजा विधि
भारत त्योहारों का देश है। पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते है और सभी धर्मों की अपनी-अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, पहनावा और त्योहार होते है। इसके अलावा हर राज्य के मूल निवासियों के पहनावे, संस्कृति, रीति-रिवाजों और त्योहार भी कुछ विभिन्नता लिए हुए होते है।
एक ही धर्म के लोगों के अलग-अलग राज्यों में रहने के कारण संस्कृति, रीति-रिवाज, पहनावा और त्योहारों में अंतर आ जाता है। कुछ ऐसे त्योहार होते है जिन्हें किसी धर्म के लोग पूरे देश में मनाते है तो कुछ ऐसे भी है जो किसी विशेष क्षेत्र से संबंधित होते है। ऐसे ही त्योहारों में से एक है गणगौर का त्योहार।
गणगौर राजस्थान का एक लोकप्रिय त्योहार है, जिसे यहाँ के मूल निवासी अर्थात मारवाड़ी लोग बड़ी धूमधाम से मनाते है। आज-कल मारवाड़ी लोग पूरे देश में ही नहीं विदेशों तक भी पँहुच चुके है। इसलिए पूरे देश में ही नहीं विदेश में भी ये लोग गणगौर की पूजा व व्रत बड़े धूमधाम से करते है।
राजस्थान ही की तरह मध्यप्रदेश का निमड़ी समाज भी गणगौर का त्योहार मनाते है और मारवाड़ियों की तरह ही गणगौर की पूजा व व्रत बड़े धूमधाम से करते है। लेकिन दोनों जगहों पर पूजा विधि और रीति-रिवाजों में कुछ अंतर आ जाता है।
त्योहार तो एक ही है, लेकिन पुरानी कहावत है हर नौ कोस पर बोली, पहनावा व रीति रिवाज बदल जाते है। जहाँ राजस्थान में मारवाड़ी गणगौर की पूजा सोलह दिन तक करते है तो वहीं मध्यप्रदेश में निमाड़ी गणगौर की पूजा तीन दिनों तक करते है।
खैर, जो भी हो गणगौर है बहुत ही धूमधाम और मेलजोल वाला त्योहार। गणगौर की पूजन के समय कई तरह के गीत गाए जाते हैं और बड़ी धूमधाम से पूजन माता गणगौर व ईसरदास जी की पूजा कर उन्हें भोग लगाया जाता है। कई तरह के रीति-रिवाज किये जाते है।
आज के इस लेख में मैं आपको गणगौर के व्रत का महत्व, विधी, कथा, व इसमें गाए जाने वाले गीतों की जानकारी दे रही हूँ।
तो आइए चलते है, गीतों से गणगौर माता को रिझा कर उनसे मनचाहा वर मांगने के लिए!
गणगौर कब मनाई जाती है?
गणगौर का त्योहार चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया या तीज के दिन मनाया जाया है। इस दिन कुंवारी कन्याएं अपना मनपसंद पति प्राप्त करने और विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और मंगल कामना के लिए ईसर (भनवान शिव) और गौरा (माता पार्वती) की पूजा करती है।
लेकिन इसकी पूजा फाल्गुन माह की पूर्णिमा, होली दहन के अगले दिन अर्थात धुलण्डी के दिन से ही शुरू हो जाती है, जो पूरे 16 दिन तक चलती है। सोलहवें दिन अर्थात चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस पूजा का समापन और व्रत किया जाता है।
इसी दिन की महिलायें अपने इस व्रत का उद्यापन भी करती है।
गणगौर – 2023
दिनांक | दिन | तिथि |
---|---|---|
24 March 2023 | शुक्रवार | चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया या तीज |
गणगौर क्यों मनाई जाती है? इसका इतिहास व महत्त्व – Gangaur KyoN Manaya Jata Hai
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर स्त्री चाहे वह विवाहित हो या कुंवारी, बड़े हर्ष और उल्लास से मनाती है। कुंवारी कन्याएं अपने लिए अच्छे वर की तथा और विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु और परिवार की मंगल कामना के लिए ईसर (भनवान शिव) और गौरा (माता पार्वती) की पूजा करती है।
गणगौर क्यों मनाई जाती है?
कहते है कि माँ पार्वती ने भागवाआण शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी और इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें उनके इच्छित वर का वरदान दिया था।
तब से कुंवारी कन्याएं अपना इच्छित वर पाने के लिए 16 दिन तक सोलह श्रंगार करके गण के रूप में भगवान शिव (ईसर जी) और गौर के रूप में माता पार्वती (अर्थात गण + गौर = गणगौर) की पूजा करके उनसे अपने लिए मनवांछित वर तथा अखंड सौभाग्य की कामना करती है।
इसके पीछे एक कहानी और है कि शिवरात्रि पर शादी बाद गौरजा (माँ पार्वती) होलीका दहन के अगले दिन पहली अपने पीहर आती हैं तथा 15 दिन बाद ईसर जी (भगवान शिव ) उन्हें वापस ससुराल ले जाने के लिए आते हैं। सोलहवें दिन अर्थात चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन माँ गौरजा को ईसर जी के साथ विदा किया जाता है।
इसी के आधार पर होलीका दहन के अगले दिन
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
शीतला अष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में छोटे-छोटे दूल्हा-दुल्हन के साथ गूंजे गौरी मां के गीत
शीतलाष्टमी के दिन गुलाबी नगरी में एक अलग ही नजर देखा गया, जैसे लग रहा था कि छोटे-छोटे बच्चों का विवाह हो रहा था. इस दौरान ढोल-नगाड़ों के बीच गीत गाती हुई महिलाएं इन्हें लेकर उद्यानों में पहुंची.
गणगौर की पूजा में गाये जाने वाले लोकगीत इस अनूठे पर्व की आत्मा हैं। इस पर्व में गवरजा और ईसर की बड़ी बहन और जीजाजी के रूप में गीतों के माध्यम से पूजा होती है तथा उन गीतों के उपरांत अपने परिजनों के नाम लिए जाते हैं। राजस्थान के कई प्रदेशों में गणगौर पूजन एक आवश्यक वैवाहिक रीत के रूप में भी प्रचलित है।
निमाड़ में गणगौर का पवित्र त्योहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है त्योहार के अंतिम दिन प्रत्येक गांव में भंडारे का आयोजन होता है तथा माता की विदाई की जाती है
गणगौर पूजन में कन्याएँ और महिलाएँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य, अपने पीहर और ससुराल की समृद्धि तथा गणगौर से प्रतिवर्ष फिर से आने का आग्रह करती हैं।
गणगौर का महत्त्व
विवाहित स्त्री हो या कुंवारी कन्या सभी के लिए गणगौर की पूजा बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। इस दिन वे अपने लिए अच्छा वर, जीवन भर पति का प्रेम और अखंड सौभाग्य और ससुराल तथा पीहर में सभी के लिए कुशलता की कामना करती हैं।
गणगौर का त्योहार कैसे मनाया जाता है?
राजस्थान में मारवाड़ी स्त्रियाँ गणगौर की पूजा लगभग 16 दिनों तक हर रोज करती है।
फाल्गुन माह की पूर्णिमा, होली दहन के अगले दिन अर्थात धुलण्डी के दिन होलिका दहन वाली जगह से राख व मिट्टी लाकर उससे कच्ची गणगौर बनाई जाती है और गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, उस पर विराजित करके वहीं पर पूरे सोलह दिन तक गणगौर का पूजन किया जाता है। सोलहवें दिन गणगौर की पूजा करके उनका विसर्जन कर दिया जाता है।
गणगौर की पूजा मुख्यत: या तो उन लड़कियों के पीहर वाले घर में की जाती है, जिनका उस वर्ष के दौरान (गणगौर के बाद अगली गणगौर के आने के बीच में) विवाह हुआ हो अर्थात जिनकी विवाह के बाद पहली गणगौर हो या फिर जो स्त्रियाँ गणगौर के व्रत का उद्यापन करना चाहती हों उन घर में।
घर के आँगन में गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है।
वैसे तो गणगौर की पूजा की पूजा का विधान पूरे सोलह दिन पूजा करने का ही है लेकिन आजकल समयाभाव के कारण कोई आठ दिन की तो कोई केवल एक दिन की पूजा भी करते है। इसमें कोई दोष भी नहीं है।
गणगौर की पूजा कई महिलाओं के द्वारा समूह में तथा दो-दो के जोड़े से की जाती है सामूहिक दल के रूप में मनाया जाता है। पूजा के समय की रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जिसकी पूरी विधि व पूजन सामग्री के बारे में मैं आपको जानकारी आगे दे रही हूँ।
यहाँ मैं आपको यह भी बता दूं कि यह जरूरी नहीं की सभी को इसी विधि का सम्पूर्ण तरीके से पालन करना होगा। यह सब अपनी-अपनी श्रद्धा पर निर्भर करता है। वैसे भी भगवान तो बस भाव के भूखे होते है, हम उनकी आराधना किस तरीके से करते है इससे उन्हें कोई मतलब नहीं होता है।
भक्त की श्रद्धा और प्रेम से तो भगवान केले के छिलके भी खा लेते है। इसलिए यदि आपके लिए संभव हो तो सभी रीति-रिवाजों, विधि और पूरे धूमधाम से आप गणगौर का पूजन कीजिए। इसका तो मजा ही कुछ और होता है।
गणगौर के पूजन सामग्री – Items for Gangaur Poojan
किसी भी पूजा में इससे जुड़ी पूजन सामग्री का बहुत ही महत्व होता है। यदि आप पूरे रीति-रिवाजों से गणगौर का पूजन करना चाहते है तो पूजा की सारी सामग्री की जानकारी होना भी आपके लिए आवश्यक है: –
- काली मिट्टी तथा होली की राख़ (होलीका दहन के बाद दूसरे दिन सुबह लेकर आते है।)
- लकड़ी की चौकी/बाजोट/पाटा – 1
- मिट्टी के कुंडे/गमले – 1
- बाँस की टोकरी
- ताम्बे का कलश – 2
- आम या पानके पत्ते
- नारियल – 1
- मिट्टी का दीपक – 1
- मिट्टी का कलश – 2
- इडुनी (सिर पर मटका रखने के लिए)
- घी की कटोरी
- रुई
- माचिस
- अगरबत्ती
- थाली
- कुमकुम
- चावल
- हल्दी
- मेहन्दी
- काजल
- गुलाल
- अबीर
- दूब (हरि घास के आगे का हिस्सा – रोज ताजी)
- फूल
- सुपारी – 1
- गेंहू – 50 से 100 ग्राम
- जौ – 50 से 100 ग्राम
- गणगौर के कपडे (लहंगा, चोली, चुन्नी, साफा, कुर्ता, धोती)
- पानी (रोज एक कलश)
- पताशे
- गुड़
- माता का भोग (अपनी श्रद्धा से जो भी मीठा बनाना चाहे – रोज)
गणगौर पूजन की विधि – Gangaur Poojan Vidhi
सोलह दिन गणगौर पूजने के लिए पहले दिन (धुलण्डी) से लेकर आखरी दिन (चेत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया) तक नीचे लिखे अनुसार गणगौर का पूजन किया जाता है।
- होलिका दहन के अगले दिन अच्छा चौकड़िया देखकर होलीका की राख तथा काली मिट्टी को घर पर लाया जाता है। जिस घर में गणगौर माँड़ी जानी है उस घर की स्त्रियाँ तथा आस-पड़ोस की स्त्रियाँ जो भी सोलह दिन तक गणगौर की पूजा करना चाहती है, सभी पारंपरिक वस्त्र और आभूषण पहन कर तथा सोलह शृंगार करके गणगौर के लिए गीत गाते हुए मिट्टी लाने जाती है।
मिट्टी लाने का गीत
ईसरदास बीरां लीलड़ी पालणं के टीकी लयाजों जड़ाव की जी।
कानीराम बीरां लीलड़ी पालणं के टीकी लयाजों जड़ाव की जी।
टीकी लगावे हेमजल जी की धीय, के ब्रह्मादास जी की कुलबहू जी।
टीकी लगावे सजनियौंरी धीय, के ब्रह्मादास जी की कुलबहू जी।
देखो म्हारी सैयों ए, ब्रह्मादास जी के छावै की गणगौर।
ईसरदास जी ल्याया छ: गणगौर, कानीराम जी ल्याया छ: गणगौर।
रोवां बाई के बीरां की गणगौर, झाला देती आवै छै गणगौर।
प्याला पिटी आवै छै गणगौर, मुजरा करता आवै छै राठौड़।
देखो म्हारी सैयों ए, झाला देती आवै छै गणगौर।
https://www.youtube.com/watch?v=rxrYDqmyV7Q
- फिर होली की राख व मिट्टी घर पर लाने के बाद उनसे सोलह छोटी-छोटी पिंडियाँ बनाई जाती है।
- इसके बाद सभी महिलायें सिर पर इडुनी और मिट्टी या तांबे का कलश लेकर बाग-बगीचे या किसी कुएं पर जातीं हैं। वहीं से ताजा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं घर आती हैं।
दूब लाने का गीत
बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की किवाड़ी खोल, सखियाँ आई दूब ने।
थे कुणजी री बेटी हो और कुणजी री पोती हो?
म्हें ईसरदास री बेटी हाँ और ब्रह्मादास जी री पोती हाँ।
बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की किवाड़ी खोल, सखियाँ आई दूब ने।
थे कुणजी री बेटी हो और कुणजी री बहना हो?
म्हें ……… सा री बेटी हाँ और ……… जी री पोती हाँ। (इस तरह अपने-अपने पिता व दादा का नाम म बोलें)
बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की किवाड़ी खोल, छोरियाँ आई दूब ने
थे कुणजी री बेटी हो और कुणजी री बहना हो?
म्हें ब्रह्मादास री बेटी हाँ और ईसरदास जी री बहन हाँ, रोवां म्हारों नाम है।
बाड़ी वाला बाड़ी खोल, बाड़ी की किवाड़ी खोल, छोरियाँ आई दूब ने
थे कुणजी री बेटी हो और कुणजी री बहना हो?
म्हें बाबा सा री बेटी हाँ और वीरा जी री बहन हाँ, ……… म्हारों नाम है। (इस तरह अपने-अपने पिता व भाई तथा अपना नाम बोलें)
म्हें आया ए फलसा रे बाहर, धाई धमोडा गुजरी।
धमोड़ा ईसरदास जी थारी नार, आछी गोटी पाटली।
म्हें पातलियाँ ने पातल धो धार सिंहासन बैठणो।
म्हें देस्याँ ए तिलड़ी को हार , हरियाँ मूंग मरोड़स्याँ।
म्हें आया ए फलसा रे बाहर, धाई धमोडा गुजरी।
- तत्पश्चात पूजन की सारी सामग्री घर के आँगन की दीवार के पास या जहाँ पर भी गणगौर की पूजा निर्विघ्न हो सके ऐसे स्थान पर एकत्रित कर लेवें।
- इसके बाद एक थाली में साथिया बनाएं और तांबे का जल से भरा कलश तथा कुमकुम, चावल, गुड, मोली, हल्दी, मेहन्दी, काजल, गुलाल, अबीर आदि रख लें।
- इसके बाद दीवार के पास एक चौकी रख कर उस पर साथिया बनाएं। फिर उसके चौकी के दाहिनी जल से भरा एक तांबे का या मिट्टी का कलश रखें, उसमें पान या आम के पाँच पत्ते फैलाकर रखें और उसके बीच में एक नारियल रखें। उसके बाद नारियल और कलश पर मोली बाँधें।
- फिर उस चौकी पर सवा रूपया और सुपारी पर मोली बांध कर (गणेशजी स्वरूप मानकर) रखें।
- इसके बाद होली की राख तथा काली मिट्टी से बनी सोलह छोटी-छोटी पिंडी पिंडियाँ पाटे/चौकी पर रखें।
- फिर कलश, गणेश जी और पिंडियों की पर पानी के छींटे देकर, हल्दी-कुमकुम, अबीर-गुलाल तथा चावल से, पूजा करें तथा गुड़ चढ़ाए।
- मिट्टी के दीपक में रुई की बाती और घी डाल कर रखें
ऐसे होती है पूजा
गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां सुबह
16 दिन, 16 छींटे और 16 श्रृंगार
शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर संपूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब घास और पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। पूरे 16 दिन तक दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी, हल्दी और काजल की लगाई जाती हैं। दूब से पानी के 16 बार छींटे 16 शृंगार के प्रतीकों पर लगाए जाते हैं। गणगौर (गौर तृतीया) को व्रत रखकर कथा सुनकर पूजा पूर्ण होती है।
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है.
उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है.
तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है. उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है.
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है.
इसके बाद मिट्टी से बने शिव स्वरूप ईसर और पार्वती स्वरूप गौर की प्रतिमा और होली की राख से बनी 8 पिंडियों को दूब पर एक टोकरी में स्थापित करती हैं।
अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है. उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है. गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है. इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है.
गणगौर की पूजा होली के दूसरे दिन से ही शुरू होती है और इसके उपरांत होली के समापन के लगभग 16 दिनों तक लगातार चलती।
राजस्थान राजधानी जयपुर में तो गणगौर माता की सवारी बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक इस दिन जयपुर पँहुचते है।
मारवाड़ी स्त्रियाँ सोलह दिन की गणगौर पूजती है. जिसमे मुख्य रूप से, विवाहित कन्या शादी के बाद की पहली होली पर, अपने माता-पिता के घर या सुसराल मे, सोलह दिन की गणगौर बिठाती है. यह गणगौर अकेली नही, जोड़े के साथ पूजी जाती है. अपने साथ अन्य सोलह कुवारी कन्याओ को भी, पूजन के लिये पूजा की सुपारी देकर निमंत्रण देती है. सोलह दिन गणगौर धूम-धाम से मनाती है अंत मे, उद्यापन कर गणगौर को विसर्जित कर देती है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा, जिस दिन होलिका का दहन होता है उसके दूसरे दिन, पड़वा अर्थात् जिस दिन होली खेली जाती है उस दिन से, गणगौर की पूजा प्रारंभ होती है. ऐसी स्त्री जिसके विवाह के बाद कि, प्रथम होली है उनके घर गणगौर का पाटा/चौकी लगा कर, पूरे सोलह दिन उन्ही के घर गणगौर का पूजन किया जाता है.राजस्थान राजधानी जयपुर में तो गणगौर माता की सवारी बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है जिसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक इस दिन जयपुर पँहुचते है।
पूजन के साथ गणगौर की कथा (gangaur ki katha) सुनी जाती है। गणगौर की कथा सुनने वाले पर ईसर गणगौर की कृपा बनी रहती है।
गणगौर की कहानी गणगौर के दिन पूजन करने के पश्चात हाथ में आखे(गेहूं के दाने) लेकर सुनते हैं। गणगौर को अपनी सुविधा अनुसार पांच या सात कहानी सुन सकते हैं। इस दिन गणगौर की कहानी (गणगौर की कथा) सुनने के साथ विनायक जी और लपसी तपसी की कहानियां सुनी जाती हैं। यहां गणगौर के दिन सुने जाने वाली गणगौर की कहानियां दी गई है
गणगौर की कहानी – एक बार राजा ने जौ और चने बोये,और माली ने अपने घर मे दूब बोयी । राजा के जौ चने बढ़ते गए और माली की दूब घटती गई । एक दिन माली ने सोचा कि क्या बात है ? राजा के जौ चने तो बढ़ते जा रहे हैं और मेरी दूब क्यों घटती जा रही है । एक दिन माली छुपकर बैठ गया और देखने लगा कि क्या कारण है ? तब माली ने देखा कि कुंवारी लड़कियां आई और दूब तोड़कर ले गई तब माली उनके कपड़े छीनने लगा । और पूछने लगा कि तुम दूब क्यों ले जा रही हो ?
लड़कियां बोली हम सोलह दिन गणगौर पूजते हैं इसलिए पूजा के लिए दूब ले जा रहे हैं। सो हमारे कपड़े दे दो । सौलह दिन बाद गणगौर विदा होगी जिस दिन हम तुम्हें लापसी ,हलवा , घेवर , मिठाई आदि लाकर देंगे । फिर उसने सबके कपड़े वापस दे दिए । जब सौलह दिन पूरे हुए तब लड़कियों ने लापसी , हलवा आदि सामग्री मालन को लाकर दी । बाहर से मालन का बेटा आया और बोला माँ मुझे बहुत भूख लगी है । मालन बोली कि बेटा आज तो लड़कियां बहुत सारा खाना देकर गयी है । रसोई में रखा है ।
बेटे से रसोई खुली नहीं , तब माँ ने आकर चिन्टी अंगूली से छींटा दिया तो रसोई खुल गई । अंदर देखा तो ईसर गणगौर बैठे थे। ईसरजी ने बहुत सुंदर वस्त्र पहने हुए थे और गोरा माता मांग सवार रही थी। रसोई में अन्न धन के भंडार भरे पड़े थे। माली, मालन और उनके बेटे को ईसर गणगौर जी के सुंदर दर्शन हुए। है गणगौर माता जिस प्रकार माली के परिवार को दर्शन दिया उसी प्रकार सबको दर्शन देना। ईसरजी जैसा भाग और गोरा जैसा सुहाग सबको देना। गणगौर की कहानी कहतां न सुनतां न और सारे परिवार को देना।
गणगौर की कहानी – एक बार भगवान शिव व पावती जी कैलाश पर्वत से सृष्टि का भ्रमण करने के लिए उतरे । तो सबसे पहले उनको एक गाय मिली जो बहुत ही तड़प रही थी क्योंकि उसको बच्चा होने वाला था तो माता पार्वती को बहुत घबराहट हुई । उन्होंने भगवान से कहा कि मेरे तो आप गाँठ बाँध दो मैं ऐसे दुःख देख नहीं सकती । तब भगवान बोले अभी तो बहुत कुछ देखना है । तब दोनों आगे चले तो हथिनी परेशान हो रही थी । फिर आगे चलने पर देखा कि राजा के रजवाड़े से उल्टे निशान हो रहे थे तब माता गौरा ने भगवान से पूछा कि ये क्या हो रहा है ?
तब भगवान ने कहा कि राजा की रानी भी गर्भवती है और उसे प्रसव पीड़ा है तब गौरां जी ने जबरदस्ती भगवान के मना करने पर भी गांठ लगवा ली और कहने लगी कि मुझे कभी भी बच्चा नहीं चाहिये । तब आगे और सैर करने लगे । तब वापस आते समय क्या देखते हैं कि राजा के यहाँ शहनाई बाजे बज रहे हैं और खुशियां मनाई जा रही हैं , रानी बहुत खुश हैं । तब गौरा जी बोली जब रानी ही बहुत खुश है तो मुझे बेटा होवे तो मैं कितनी खुश होऊँ ? आप मेरी गाँठ कृपा करके खोल दें ।
तब भगवान ने मना कर दिया और आगे चले । तो हथिनी भी अपने बच्चे को प्यार से चाट रही थी और गाय भी बहुत खुश नजर आ रही थीं । तब गौरा ने भगवान से बहुत जिद की । फिर वे घूमते – घूमते कैलाश पर्वत पहुँचे ।
कुछ दिन बाद गणगौर का दिन आया । औरतें माता गौरा ( गणगौर ) की पूजा करने व अपने सुहाग को अमर रखने के लिए आई । तब उन्होंने सारा सुहाग पहले पहुँचने वाली औरतों को बांट दिया । तब भगवान बोले कि तुम्हारी पुजारिनें ब्राह्मणी व बनियानियां तो धीरे धीरे सज – धज कर अब आयेंगी और तुमने सारा सुहाग पहले ही बांट दिया । तब उनके आने पर गौरां जी ने ” नैनों में से सुरमा निकाला , मांग में से सिन्दूर निकाला , टीकी में से रोली निकाली और चिटली अंगुली से अमर सुहागिन होने के छींटे दिए ,और अमर सुहाग को बांटा । “
हे भगवान ! गणगौर माता की कहानी कहने वाले को , सुनने वाले को , हुँकारा भरने वाले को सभी को ईसर गणगौर की कृपा प्राप्त हो और सभी को अमर सुहागन रखें ।
गणगौर की कहानी – एक बार ईसरजी सौलह दिन गणगौर के हुए तो सब ससुराल गौरां जी को लेने पहुंचे । वहाँ उनकी माँ ने ( गौरां की माँ ) जितना भी खाना बनाया वो सब खाना ईसरजी ने गौरां की परीक्षा लेने के लिए जीम गए । तब माता गणगौर को भूख लगी और वे कहने लगी कि माँ घर में जो भी खाने को है वो ही मुझे दे दो तब देखा तो बथुए की दो पींडी व जल का लोटा मिला तो गौरां जी ने वो ही खा लिया और पानी पी लिया । तब ईसरजी विदाई के लिए जल्दी करने लगे ।
जब वे ससुराल से विदा हो लिए तब उन्हे रात को जंगल में विश्राम करना पड़ा । माता गौरां को भूख के कारण गहरी नींद आ गई । तब ईसरजी ने उनके पेट मे देखा तो बथुए की पींडी व जल का लोटा झूल रहा था । भगवान ईसरजी ने बाद में गौरांजी से पूछा कि आज तुमने क्या – क्या खाया ? तब माताजी बोली आपने खाया वही मैंने खाया । तब भगवान बोले कि तुम झूठ बोलती हो तुम्हारे पेट में तो बथुए की पींडी व जल का लोटा झूल रहा है ।
तब गौरा जी को क्रोध हुआ और वे बोली कि आज तो आपने औरत जात के पेट में ढकनी खोली है आइन्दा कभी भी मत खोलना जंवाई को खिला दे और बेटी को कुछ भी । आपने तो मेरी माँ की परीक्षा ले ही ली थी । इसी प्रकार दोनों कैलाश पर्वत पर पहुँचे ।
आशा है आपको गणगौर की कहानी (gangaur ki kahani) अथवा गणगौर की कथा (gangaur ki katha)पसंद आई होगी, धन्यवाद।
जैसा कि आपको बता दे कि गणगौर पूजा को भारत के विभिन्न राज्यों के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यदि हम गणगौर का संधि विच्छेद करें तो हमारे सामने दो शब्द आते हैं, एक तो ‘गण’ और दूसरा ‘गौर’। यदि हम इन दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ बताएं तो गण शब्द का अर्थ भगवान शिव जी से है। अर्थात गण शब्द भगवान शंकर जी के लिए प्रयोग किया जाता है। यही इसके विपरीत यदि हम गौर शब्द का अर्थ बताएं तो गौर शब्द का अर्थ माता पार्वती से होता है।
गणगौर प्रेम एवं सौहार्द का पावन पर्व है।
यहां गणगौर के गीत दिए गए हैं जो पूजन के समय गाए जाते हैं।
गणगौर क्यों मनाई जाती है?
आपको बता दें कि गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।
गणगौर कब मनाया जाता है?
इस त्यौहार को लगातार मनाया जाता ही है, इसके साथ-साथ इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार गणगौर का पूजन चैत्र पक्ष की तृतीया को शुरू होता है। पुराणों के अनुसार गणगौर पूजन का आरंभ पौराणिक काल से ही चलता आ रहा है, उसी समय से इस पर्व को प्रत्येक वर्ष बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
गणगौर का इतिहास क्या है?
बहुत ही पुराने समय की बात है, प्राचीन समय में माता पार्वती ने भगवान शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या और कठिन साधना के साथ-साथ व्रत भी रखा था। माता पार्वती ने इतनी कठोर तपस्या की थी कि भगवान शिव जी इन सब के फलस्वरूप माता पार्वती की तपस्या से बहुत ही प्रसन्न हो गए और वे माता पार्वती के समक्ष प्रकट हो गए।
माता पार्वती ने भगवान शिव जी के कहे अनुसार एक वरदान मांगा। माता पार्वती भगवान शिव से वरदान नहीं मांग रही थी, परंतु भगवान शिव ने उन पर जोर डाला कि आप वरदान मांगिए। माता पार्वती ने भगवान शिव से वरदान स्वरूप उन्हें अपने पति के रूप में मांग लिया। भगवान शिव के वरदान के रूप में माता पार्वती की इच्छा पूर्ण हो गई और इसके पश्चात माता पार्वती जी का विवाह शिव शंभू भोलेनाथ जी के साथ हो गया।
इन सभी के पश्चात यह माना जाता है कि भगवान शिव जी ने इस दिन माता पार्वती जी को इस वरदान के साथ-साथ अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। माता पार्वती ने यह वरदान न केवल अपने तक ही सीमित रखा, बल्कि माता पार्वती ने यह वरदान उन सभी महिलाओं को दे दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर भगवान की पूजा पूरे विधि विधान से कर रही थी। ऐसा माना जाता है कि तब से ही गणगौर की पूजा लोगों के द्वारा मनाई जाने लगी और इन सभी के पश्चात गणगौर की पूजा इतनी प्रसिद्ध हो गई कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाई जाने लगी।
गणगौर व्रत रखने की विधि (Gangaur Puja Vidhi in Hindi)
गणगौर की पूजा मनाने के लिए सबसे पहले हमें चौकी लगा करके उस पर साखिया बनाया जाता है और पूजन की विधियां शुरू की जाती हैं।
इसके बाद आपको पानी से भरे कलश के ऊपर पान के 5 पत्ते रखने होते हैं और सबसे ऊपर एक नारियल रखना होता है। इस कलश को चौकी के दाहिनी तरफ रखा जाता है।
इसके पश्चात चौकी पर पैसे और सुपारी रखी जाती है।
इन सभी के पश्चात दीवार पर एक पेपर लगा करके कुंवारी कन्या 8-8 और विवाहित कन्या 16-16 टिकी लगाती हैं।
इन सभी के पश्चात गणगौर पूजन का गीत गाया जाता है। पानी का कलश साथ रखकर हाथ में घास लेकर के हाथ जोड़कर के 16 बार गणगौर का गीत गाया जाता है।
इन सभी प्रक्रियाओं को क्रमशः पूरे 16 दिन की जाती है। इस दिन औरतें भगवान श्री गणेश जी की कहानियां कहती हैं और इसके पश्चात गीत गाया करती है।
इस त्यौहार को अष्टमी की तीज तक प्रत्येक सुबह बिजोरा जो कि फूलों का बना होता है, उससे की जाती है।
गणगौर के गीत (Gangaur Puja Geet in Hindi)
गणगौर पूजने का गीत
गोर रे, गणगौर माता खोल ये, किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये, पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू, लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू।
कान कुवर सो, बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू।
गौर – गौर गोमनी , ईसर पूजे पार्वती , पार्वती का आला – गीला , गौर का सोना का टीका , टीका दे टमका दे रानी , व्रत करियो गौरा दे रानी । करता – करता आस आयो , वास आयो । खेरे – खाण्डे लाड़ू ल्यायो , लाड़ू ले वीरा न दियो , वीरो ले मने चूँन्दड़ दीनी , चून्दड़ ले मने सुहाग दियो । वीरो ले मने पाल दी , पाल को मैं बरत करयो । सन – मन सोला , सात कचौला , ईसर गौरा दोन्यू जोड़ा । जोड़ जवाराँ गेहूँ ग्यारह , रानी पूजे राज में । मैं म्हाके स्वाग में , रानी को राज घटतो जाय , म्हाको स्वाग बढ़तो जाय । कीड़ी कीड़ी कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात ले । जात ले गुजरात ले , गुजरात्यां रो पाणी , देदे तम्बा ताणी , ताणी में सिंघाड़ा , बाड़ी में बिजोरा । म्हारो बाई एमल्यो , पेमल्यो म्हारो बाई एमल्यो सेमल्यो , सिघाड़ाल्यो , झर झरती जलेबी ल्यो , नी भावे तो और ल्यो , सोई ल्यो । ( यह आठ बार बोले ) अंत में एक ल्यो , दो ल्यो , तीन ल्यो , चार ल्यो , पाँच ल्यो , छः ल्यो , सात ल्यो और आठ ल्यो ।
16 बार गणगौर पूजन का गीत
गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे
करता करता, आस आयो मास आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे, किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे, गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो, आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे।
पाटा धोने का गीत
पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये
दूध मे डोरों, म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा, म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी।
गणगौर का अरग के गीत
अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक, दो, तीन, चार, पांच, छ:, सात,
आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह,
तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह।
पानी पिलाने का गीत
म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो।
(इसमें परिवार के पुरुषो के क्रमशः नाम लिए जाते है।)
गणगौर पर्व के दिनों में जहां भगवान शिव-पार्वती और गणगौर की आराधना की जाती हैं, वहीं गणगौर के गीत गाकर माता गौरी की प्रसन्न किया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा समस्या पूजन आदि के दौरान गाए जाने वाले गीतों के चयन व उनकी उपलब्धता को लेकर आती है। यहां हमने आपकी सुविधा के लिए गणगौर के दौरान विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीत दिए हैं। आइए जानें-
गणगौर के गीत
(1) गारा की गणगौर
गारा की गणगौर कुआ पर क्यों रे खड़ी है।
सिर पर लम्बे-लम्बे केश, गले में फूलों की माला पड़ी रे।। गारा की गणगौर…
चल्यो जा रे मूरख अज्ञान, तुझे मेरी क्या पड़ी रे।
म्हारा ईशरजी म्हारे साथ, कुआ पर यूं रे खड़ी रे।। गारा की गणगौर…
माथा ने भांवर सुहाय, तो रखड़ी जड़ाव की रे।
कान में झालज सुहाय, तो झुमकी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर…
मुखड़ा ने भेसर सुहाय, तो मोतीड़ा जड़ाव का रे।
हिवड़ा पे हांसज सुहाय, तो दुलड़ी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर…
तन पे सालू रंगीलो, तो अंगिया जड़ाव की रे।
हाथों में चुड़ला पहना, तो गजरा जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर…
पावों में पायल पहनी, तो घुंघरू जड़ाव का रे।
उंगली में बिछिया सुहाय, तो अनवट जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर…
(2) हिंगलू भर बालद लाया रे
हिंगलू भर बालद लाया रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।
कौन के आंगन रालूं रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।।
ईसरजी के आंगन रालो रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।
बाई गौरा कामन गाली रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।।
जिनने मोह्या ईसरजी गौरा रा, म्हारा मान गुमानी ढोला।
हिंगलू भर… कौन के आंगन… मान गुमानी ढोला।।
बासकजी के आंगन रालो रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।
बाई नागन कामन गाली रे, म्हारा मान गुमानी ढोला।।
जिनने मोह्या बासकजी नागन रा, म्हारा मान गुमानी ढोला।
हिंगलू भर… कौन के आंगन… मान गुमानी ढोला।
(इसी प्रकार सूरजजी- रामल, चांदकजी- सामल के नाम लेने के बाद अपने घर वालों, घर वाली के नाम लेकर गीत को आगे गाती जाएं।)
(3) नाना अमरसिंह पागां बांधे
नाना अमरसिंह पागां बांधे, पेंचा संवारे अजमेर।
नाना अमरसिंह मोती हो पहने, चूनी संवारे अजमेर।।
झाली जी एं खेलन दो गणगौर, खेलन दो गणगौर।
खेलन दो री हाड़ा राव की गणगौर, निरखन दो गणगौर।।
नाना अमरसिंह बागा हो पहने, कसना संवारे अजमेर।
नाना अमरसिंह कंठा हो पहने, डोरा संवारे अजमेर।
झाली जी एं खेलन दो गणगौर, खेलन दो गणगौर।
खेलन दो री हाड़ा राव की गणगौर, निरखन दो गणगौर।।
(इसी प्रकार अन्य गहनों, वस्त्रों का नाम लेकर गाएं।)
(4) ओ जी म्हारे आंगन कुवलो
ओ जी म्हारे आंगन कुवलो खुदा दो, जे को ठंडो पानी।।2।।
जूड़ो छोड़यो नहाबा बैठिया, ईसरजी की रानी।
रानी से पटरानी की जो, बोले अमृत वाणी।।
अमृत का दोई प्याला भरिया, कंकू की रे प्याली।
मीठो बोल्या हृदय बसिया, मन में हरक उछाव।। ओ जी म्हारे आंगन…
जूड़ो छोड़यो नहाबा बैठिया, बासकजी की रानी।
रानी से पटरानी की जो, बोले अमृत वाणी।।
अमृत का दोई प्याला भरिया, कंकू की रे प्याली।
मीठा बोलिया हृदय बसिया, मन में हरक उछाव।। ओ जी म्हारे आंगन…
(इसी प्रकार देवताओं के बाद घर वालों के नाम लें।)
(5) माथन भांवर घड़ा
माथन भांवर घड़ा री गणगौर, घड़ा री गणगौर।
रखड़ी के ऊपर नम जाती री, जरा झुक जाती री।।
खीची राजा का लड़का ने पाटन लूटी री,
पटवारियां लूटी, रंगवाड़ियां लूटी री। खीची राजा…
मुखड़ा ने मेसर घड़ा री गणगौर, घड़ा री गणगौर।
मोतीड़ा के ऊपर नम जाती री, जरा झुक जाती।। खीची राजा…
(इसी प्रकार अन्य गहनों का वर्णन करें।)
(6) सोनी गढ़ को खड़को
सोनी गढ़ को खड़को म्हे सुन्यो सोना घड़े रे सुनार
म्हारी गार कसुम्बो रुदियो
सोनी धड़जे ईश्वरजी रो मुदड़ो,
वांकी राण्या रो नवसर्यो हार म्हांरी गोरल कसुम्बो रुदियो
वातो हार की छोलना उबरी बाई
सोधरा बाई हो तिलक लिलाड़ म्हारे गोर कसुम्बो रुदियो।
(नोट- इसके आगे अपने पति का नाम लेना चाहिए)
(7) हांजी म्हारे आंगन कुओ
हांजी म्हारे आंगन कुओ खिनयदो हिवड़ा इतरो पानी
हांजी जुड़ो खोलर न्हावा बेठी ईश्वरजी री रानी
हांजी झाल झलके झुमना रल के बोले इमरत बानी
हांजी इमरत का दो प्याला भरिया कंकुरी पिगानी
(नोट- इसके आगे अपने पति का नाम लेना चाहिए)
(8) गाढ़ो जोती न रणु बाई आया
गाढ़ो जोती न रणु बाई आया
यो गोडो कुण छोड़ोवे
गाढ़ो छोज्ञावे ईश्वरजी हो राजा
वे थारी सेवा संभाले
सेवा संभाले माता अगड़ घड़ावे, सासरिये पोचावे
सासरिये नहीं जांवा म्हारी माता पिपरिया में रे वां
भाई खिलावां भतीजा खिलावां, तो भावज रा गुण गांवा
(नोट- इसके आगे अपने पति का नाम लेना चाहिए)
(9) रणु बाई रणुबाई रथ सिनगारियो तो
रणुबाई रणुबाई रथ सिनगारियो तो
को तो दादाजी हम गोरा घर जांवा
जांवो वाई जावो बाई हम नहीं बरजां
लम्बी सड़क देख्या भागी मती जाजो
उंडो कुओ देख्या पाणी मती पीजो
चिकनी सिल्ला देखी न पांव मती धरजो
पराया पुरुष देखनी हसी मती करजो
(10) म्हारा दादाजी के जी मांडी गणगौर
म्हारा दादाजी के जी मांडी गणगौर
म्हारा काकाजी के मांडी गणगौर
रसीया घडी दोय खेलवाने जावादो
घडी दोय जावता पलक दोय आवता
सहेलियां में बातां चितां लागी हो रसीया
घडी दोय खेलवाने जावादो
थारो नथ भलके थारो चुड़लो चमके
थारा नेना रा निजारा प्यारा लागे हो मारुजी
थारा बिना जिवडो भुल्यो डोले।
(नोट- इसके आगे काकाजी, बिराजी, मामाजी सभी का नाम लेना चाहिए)
निष्कर्ष
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से हमने आपको गणगौर पूजा से संबंधित सभी जानकारियों के विषय में बहुत ही विस्तार पूर्वक से बताया है। गणगौर पूजा राजस्थान में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार के दिन सभी औरतें अपने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
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क बार भगवान शंकर पार्वती जी एवं नारदजी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए । वे चलते चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुचे । उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियो में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हतु तुरतं पहुँच गई । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिडक दिया । वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी । धनी वर्ग कि स्त्रियाँ थोडी देर बाद अनेक प्रकार के पकवान सोने चाँदी के थालो में सजाकर पहुँची। इन स्त्रियाँ को देखकर भगवान् श्ंाकर ने पार्वती से कहा- ”तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया । अब इन्हें क्या दोगी“? पार्वतीजी बोली- प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थो से बना रस दिया गया हैं । इसलिए उनका रस धोती से रहेगा । परन्तु मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रस दूँगी जो मेरे समान सौभाग्यवती हो जाएँगी । जब इन स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर उस रक्त को उनके ऊपर छिडक दिया । जिस पर जैसे छीटें पडे उसने वैसा ही सुहाग पा लिया । इसके बाद पार्वती जी अपने पति भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई । स्नान करने के पश्चात् बालू की शिवजी की मूर्ति बनाकर पूजन किया । भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाकर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए तथा पार्वती को वरदान दिया- ”आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोंक्ष को प्राप्त होगा।“ भगवान शिव यह वरदान देकर अन्तर्धान हो गए । इतना सब करते करते पार्वती जी को काफी समय लग गया । पार्वतीजी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहाँ पर भगवान शंकर व नारदजी को छोडकर गई थी । शिवजी ने विलम्ब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली, ” मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिल गए थे । उन्होने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया । इसी कारण से आने में देर हो गई।“ ऐसा जानकर अन्तर्यामी भगवान शंकर भी दूध भात खाने क लालच में नदी तट की ओर चल दिए । पार्वतीजी ने मौन भाव से भगवान शिवजी का ही ध्यान करके प्रार्थना की, ”भगवान आप अपनी इस अनन्य दासी की लाज रखिए।“ प्रार्थना करती हुई पार्वती जी उनके पीछे पीछे चलने लगी । उन्हे दूर नदी तट पर माया का महल दिखाई दिया । वहाँ महल के अन्दर शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव पार्वती का स्वागत किया । वे दो दिन वहाँ रहे । तीसरे दिन पार्वती जी ने शिवजी से चलने के लिए कहा तो भगवान शिव चलने को तैयार न हुए । तब पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दी । ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पडा । नारदजी भी साथ चल दिए । चलते चलते भगवान शंकर बोले, ” मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया । माला लाने के लिए पार्वतीजी तैयार हुई तो भगवान ने पार्वतीजी को न भेजकर नारद जी को भेजा । वहाँ पहुचने पर नारद जी को कोई महल नजर नही आया । वहाँ दूर दूर तक जंगल ही जंगल था । सहसा बिजली कौंधी । नारदजी को शिवजी की माला एक पेड पर टंगी दिखाई दी । नारदजी ने माला उतारी और शिवजी के पास पहुँच कर यात्रा कर कष्ट बताने लगे । शिवजी हँसकर कहने लगे- यह सब पार्वती की ही लीला हैं । इस पर पार्वती जी बोली- मैं किस योग्य हूँ । यह सब तो आपकी ही कृपा हैं । ऐसा जानकर महर्षि नारदजी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना की मुक्त कंठ से प्रंशसा की ।
उद्यापन की सामग्री
उपरोक्त सभी सामग्री, उद्यापन मे भी लगती है परन्तु, उसके अलावा भी कुछ सामग्री है जोकि, आखरी दिन उद्यापन मे आवश्यक होती है.
सीरा (हलवा)
पूड़ी
गेहू
आटे के गुने (फल)
साड़ी
सुहाग या सोलह श्रंगार का समान आदि.
चैत्र माह की पूर्णिमा को श्रीराम चंद्र जी के सबसे बड़े भक्त हनुमान की जयंती होती हैं, जिसका हिन्दू भक्तों में बहुत महत्व है.
घुड़ला नृत्य किसकी याद में किया जाता है?
यह लोक नृत्य जोधपुर के राजा सताल की याद में किया जाता है। घुड़ला नृत्य मारवाड़ क्षेत्र में शीतला अष्टमी से गणगौर तक किया जाता है। लड़कियां और महिलाएं एक बर्तन के अंदर एक दीया पकड़कर नृत्य करती हैं जिसमें छेद होता है।
राजस्थान में घुड़ला त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
- महिलाओं की मुक्ति के इस पर्व को उसके बाद से हर साल मनाया जाता है। – इसके तहत महिलाएं मिलकर एक छोटा घड़ा खरीदती है। इस घड़े पर घुड़ले खान के चेहरे पर हुए घाव के प्रतीक के रूप में छिद्र करवाती है। – इसके बाद घड़े को रंगों की आकर्षक कलाकारी से रंग कर इसमें एक दीपक रख वे गीत गाती हुई शहर में रोज शाम को घूमने निकलती है।
घुड़ला महोत्सव कब मनाया जाता है?
मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है।
घुड़ला खान कौन था?
दरअसल हुआ ये था की “घुड़ला खान” अकबर का मुग़ल सरदार था; वह अत्याचार और पैशाचिकता का एक गंदा पिशाच था । उधर से ही घुडला खान अपनी फ़ौज के साथ निकल रहा था, उसकी गंदी नज़र उन बच्चियों पर पड़ी तो उसकी वंशानुगत पैशाचिकता जाग उठी । उसने सभी बच्चियों का बलात्कार के उद्देश्य से अपहरण कर लिया, जिसका गाँव वालों ने विरोध किया ।
घुड़ला नृत्य कौन सी जनजाति करती है?
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घुड़ला नृत्य मारवाड़ क्षेत्र में किया जाता है। यह सुहागिन स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। कई स्थानों पर कुंवारी कन्याएं भी इसमें भाग लेती हैं।
घुड़ला नृत्य कैसे किया जाता है?
घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखाहोता है। इसके तहत लड़कियाँ 10-15 के झुंड में चलती है। इसके लिए वे सबसे पहले कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली खरीद कर लाती हैं, फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छेद करती हैं और इसमें दीपक जला कर रखती है।
मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखाहोता है। इसके तहत लड़कियाँ 10-15 के झुंड में चलती है। इसके लिए वे सबसे पहले कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली खरीद कर लाती हैं, फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छेद करती हैं और इसमें दीपक जला कर रखती है।
इस त्यौहार में गाँव या शहर की लड़कियाँ शाम के समय एकत्रित होकर सिर पर घुड़ला लेकर समूह में मोहल्ले में घूमती है। घुड़ले को मोहल्लें में घुमाने के बाद बालिकाएँ एवं महिलाएँ अपने परिचितों एवं रिश्तेदारों के यहाँ घुड़ला लेकर जाती है। घुड़ला लिए बालिकाएँ घुड़ला व गवर के मंगल लोकगीत गाती हुई सुख व समृद्धि की कामना करती है।जिस घर पर भी वे जाती है, उस घर की महिलाएँ घुड़ला लेकर आई बालिकाओं का अतिथि की तरह स्वागत सत्कार करती हैं।
साथ ही माटी के घुड़ले के अंदर जल रहे दीपक के दर्शन करके सभी कष्टों को दूर करने तथा घर में सुख शांति बनाए रखने की मंगल कामना व प्रार्थना करते हुए घुड़ले पर चढ़ावा चढ़ाती हैं। घुड़ले के शहर व गाँवों में घूमने का सिलसिला शीतला सप्तमी से चैत्र नवरात्रि के तीज पर आने वाली गणगौर तक चलता है। इस दिन गवर को घुड़ले के साथ विदाई दी जाती है। इन दिनों कई लड़कियों द्वारा परंपरा के अनुरूप गणगौर का उपवास भी रखा जाता है। घुड़ला नृत्य है अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त घुड़ला लेकर घूमर एवं पणिहारी अंदाज किया जाने वाला घुड़ला नृत्य आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।
महिलाओं द्वारा किए जाने वाले इस नृत्य को प्रोत्साहित करने और इसके विकास कर इसे राष्ट्रीय स्तर का मंच प्रदान करने में जयपुर के कलाविद् मणि गांगुली, लोक कला मंडल उदयपुर के संस्थापक देवीलाल सामर तथा जोधपुर स्थित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व सचिव पद्मश्री कोमल कोठारी (संस्थापक रूपायन संस्थान बोरून्दा, जोधपुर) का महत्वपूर्ण योगदान है जिससे यह राजस्थानी कला आमजन एवं देश विदेश में लोकप्रिय बनी।
दीपावली
सर्वप्रथम चौकी लगा कर, उस पर साथिया बना कर, पूजन किया जाता है. जिसके उपरान्त पानी से भरा कलश, उस पर पान के पाच पत्ते, उस पर नारियल रखते है. ऐसा कलश चौकी के, दाहिनी ओर रखते है.
अब चौकी पर सवा रूपया और, सुपारी (गणेशजी स्वरूप) रख कर पूजन करते है.
फिर चौकी पर, होली की राख या काली मिट्टी से, सोलह छोटी-छोटी पिंडी बना कर उसे, पाटे/चौकी पर रखा जाता. उसके बाद पानी से, छीटे देकर कुमकुम-चावल से, पूजा की जाती है.
दीवार पर एक पेपर लगा कर, कुवारी कन्या आठ-आठ और विवाहिता सोलह-सोलह टिक्की क्रमशः कुमकुम, हल्दी, मेहन्दी, काजल की लगाती है.
उसके बाद गणगौर के गीत गाये जाते है, और पानी का कलश साथ रख, हाथ मे दुब लेकर, जोड़े से सोलह बार, गणगौर के गीत के साथ पूजन करती है.
तदुपरान्त गणगौर, कहानी गणेश जी की, कहानी कहती है. उसके बाद पाटे के गीत गाकर, उसे प्रणाम कर भगवान सूर्यनारायण को, जल चड़ा कर अर्क देती है.
ऐसी पूजन वैसे तो, पूरे सोलह दिन करते है परन्तु, शुरू के सात दिन ऐसे, पूजन के बाद सातवे दिन सीतला सप्तमी के दिन सायंकाल मे, गाजे-बाजे के साथ गणगौर भगवान व दो मिट्टी के, कुंडे कुमार के यहा से लाते है.
अष्टमी से गणगौर की तीज तक, हर सुबह बिजोरा जो की फूलो का बनता है. उसकी और जो दो कुंडे है उसमे, गेहू डालकर ज्वारे बोये जाते है. गणगौर की जिसमे ईसर जी (भगवान शिव) – गणगौर माता (पार्वती माता) के , मालन, माली ऐसे दो जोड़े और एक विमलदास जी ऐसी कुल पांच प्रतिमाए होती है. इन सभी का पूजन होता है , प्रतिदिन, और गणगौर की तीज को उद्यापन होता है और सभी चीज़ विसर्जित होती है.
गणगौर माता की कथा / कहानी (Gangaur Katha)
राजा का बोया जो-चना, माली ने बोई दुब. राजा का जो-चना बढ़ता जाये पर, माली की दुब घटती जाये. एक दिन, माली हरी-हरी घास मे, कंबल ओढ़ के छुप गया. छोरिया आई दुब लेने, दुब तोड़ कर ले जाने लगी तो, उनका हार खोसे उनका डोर खोसे. छोरिया बोली, क्यों म्हारा हार खोसे, क्यों म्हारा डोर खोसे , सोलह दिन गणगौर के पूरे हो जायेंगे तो, हम पुजापा दे जायेंगे. सोलह दिन पूरे हुए तो, छोरिया आई पुजापा देने माँ से बोली, तेरा बेटा कहा गया. माँ बोली वो तो गाय चराने गयों है, छोरियों ने कहा ये, पुजापा कहा रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली मे रख दो. बेटो आयो गाय चरा कर, और माँ से बोल्यो माँ छोरिया आई थी , माँ बोली आई थी, पुजापा लाई थी हा बेटा लाई थी, कहा रखा ओबरी मे. ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी ओबरी नही खुली , बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो कि, माँ-माँ ओबरी तो नही खुले तो, पराई जाई कैसे ढाबेगा. माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा, पर ओबरी नी खुले. माँ आई आख मे से काजल, निकाला मांग मे से सिंदुर निकाला , चिटी आंगली मे से मेहन्दी निकाली , और छीटो दियो ,ओबरी खुल
गई. उसमे, ईश्वर गणगौर बैठे है ,सारी चीजों से भण्डार भरिया पड़िया है. है गणगौर माता , जैसे माली के बेटे को टूटी वैसे, सबको टूटना. कहता ने , सुनता ने , सारे परिवार ने.
दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा के साथ ही साथ राक्षसों के राजा बलिप्रतिप्रदा की भी पूजा की जाती हैं.
गणगौर पूजते समय का गीत (Gangaur Geet)
यह गीत शुरू मे एक बार बोला जाता है और गणगौर पूजना प्रारम्भ किया जाता है –
प्रारंभ का गीत –
गोर रे, गणगौर माता खोल ये , किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये, पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू , लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू.
कान कुवर सो, बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू..
उसके बाद सोलह बार गणगौर के गीत से गणगौर पूजी जाती है.
सोलह बार पूजन का गीत –
गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला.
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे.
करता करता, आस आयो मास
आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों.
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा.
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे.
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे,
किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे,
गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो,
आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह.
सोलह बार पूरी गणगौर पूजने के बाद पाटे के गीत गाते है
पाटा धोने का गीत –
पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो,
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान.
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये.
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये.
दूध मे डोरों , म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा , म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी..
ओडो खोडो का गीत –
ओडो छे खोडो छे घुघराए , रानियारे माथे मोर.
ईसरदास जी, गोरा छे घुघराए रानियारे माथे मोर..
(इसी तरह अपने घर वालो के नाम लेना है )
कार्तिक माक की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन गाय की पूजा की जाती हैं जिसे गोपाष्टमी कहा जाता है.
गणपति जी की कहानी (Ganesh Kahani)
एक मेढ़क था, और एक मेंढकी थी. दोनों जनसरोवर की पाल पर रहते थे. मेंढक दिन भर टर्र टर्र करता रहता था. इसलिए मेंढकी को, गुस्सा आता और मेंढक से बोलती, दिन भर टू टर्र टर्र क्यों करता है. जे विनायक, जे विनायक करा कर. एक दिन राजा की दासी आई, और दोनों जना को बर्तन मे, डालकर ले
गई और, चूल्हे पर चढ़ा दिया. अब दोनों खदबद खदबद सीजने लगे, तब मेंढक बोला मेढ़की, अब हम मार जायेंगे. मेंढकी गुस्से मे, बोली की मरया मे तो पहले ही थाने बोली कि ,दिन भर टर्र टर्र करना छोड़
दे. मेढको बोल्यो अपना उपर संकट आयो, अब तेरे विनायक जी को, सुमर नही किया तो, अपन दोनों मर जायेंगे. मेढकी ने जैसे ही सटक विनायक ,सटक विनायक का सुमिरन किया इतना मे, डंडो टूटयों हांड़ी फुट गई. मेढक व मेढकी को, संकट टूटयों दोनों जन ख़ुशी ख़ुशी सरोवर की, पाल पर चले गये. हे विनायकजी महाराज, जैसे मेढ़क मेढ़की का संकट मिटा वैसे सबका संकट मिटे. अधूरी हो तो, पूरी कर जो,पूरी हो तो मान राखजो.
गणगौर अरग के गीत
पूजन के बाद, सुरजनारायण भगवान को जल चड़ा कर गीत गाया जाता है.
अरग का गीत –
अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक,दो,तीन,चार,पांच,छ:,सात,आठ,नौ,दस,ग्यारह,बारह,
तेरह, चौदह,पंद्रह,सोलह.
ज्येष्ठ माह की एकादशी के दिन पांडू पुत्र भीम ने रखा था निर्जला उपवास, इसलिए इसे भीमसेन एकादशी कहा जाता है.
गणगौर को पानी पिलाने का गीत
सप्तमी से, गणगौर आने के बाद प्रतिदिन तीज तक (अमावस्या छोड़ कर) शाम मे, गणगौर घुमाने ले जाते है. पानी पिलाते और गीत गाते हुए, मुहावरे व दोहे सुनाते है.
पानी पिलाने का गीत –
म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो..
(इसमें परिवार के पुरुषो के नाम क्रमशः लेते जायेंगे. )
गणगौर उद्यापन की विधि (Gangaur Udhyapan Vidhi)
सोलह दिन की गणगौर के बाद, अंतिम दिन जो विवाहिता की गणगौर पूजी जाती है उसका उद्यापन किया जाता है.
विधि –
आखरी दिन गुने(फल) सीरा , पूड़ी, गेहू गणगौर को चढ़ाये जाते है.
आठ गुने चढा कर चार वापस लिये जाते है.
गणगौर वाले दिन कवारी लड़किया और ब्यावली लड़किया दो बार गणगौर का पूजन करती है एक तो प्रतिदिन वाली और दूसरी बार मे अपने-अपने घर की परम्परा के अनुसार चढ़ावा चढ़ा कर पुनः पूजन किया जाता है उस दिन ऐसे दो बार पूजन होता है.
दूसरी बार के पूजन से पहले ब्यावाली स्त्रिया चोलिया रखती है ,जिसमे पपड़ी या गुने(फल) रखे जाते है. उसमे सोलह फल खुद के,सोलह फल भाई के,सोलह जवाई की और सोलह फल सास के रहते है.
चोले के उपर साड़ी व सुहाग का समान रखे. पूजा करने के बाद चोले पर हाथ फिराते है.
शाम मे सूरज ढलने से पूर्व गाजे-बाजे से गणगौर को विसर्जित करने जाते है और जितना चढ़ावा आता है उसे कथानुसार माली को दे दिया जाता है.
गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाते है.
भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश की पूजा की जाती हैं.
नोट – गणगौर के बहुत से, गीत और दोहे होते है. हर जगह अपनी परम्परानुसार, पूजन और गीत जाये जाते है. जो प्रचलित है उसे, हम अपने अनुसार डाल रहे है. निमाड़ी गणगौर सिर्फ तीन दिन ही पूजी जाती है. जबकि राजस्थान मे, मारवाड़ी गणगौर प्रचलित है जो, झाकियों के साथ निकलती है.
गणगौर को पानी पिलाने का गीत
म्हारी गोर तिसांई जी ,राज घटियांरो मुकुट करो।
म्हारी गँवरा पानीडो सो पाय घटियांरो मुकुट करो
म्हारी गवर तिसांई ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
ब्रह्मदास जी रा ईशरदास जी ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
म्हारी गवर तिसांई ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।ब्रह्मदास जी रा कानीराम जी ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
म्हारी गवरा पानीड़ो पिलाय घांटा रो मुकुट करो।
म्हारी गवरा तिसाई ओ राज घांटा रो मुकुट करो।
(बह्मदास जी की जगह पिता और ईशरदास जी की जगह पुत्र का नाम लेना हैं )
पानी प्यान का गीत
म्हारी गोर तीसाई ओ राज घाट्यारी मुकट करो।
ब्रह्मादास बीरा ईसरदास राज घाट्यारी मुकट करो।
ब्रह्मादासजी रा कानीराम राज घाट्यारी मुकट करो।
म्हारी गोरा न पाणीड़ा प्याई ओ राज घाट्यांरी मुकट करो।
सुसरा जी रा (पुरुष के नाम) जी ओ राज,घाट्यारी मुकट करो।म्हारी गोर तीसाई ओ राज घाट्यारी मुकट करो।
म्हारी गोरा न पाणीड़ा प्याई ओ राज घाट्यांरी मुकट करो।म्हारी गोर तीसाई ओ राज घाट्यारी मुकट करो।
गणगौर को पानी पिलाने का गीत
म्हारी गोर तिसांई जी ,राज घटियांरो मुकुट करो।
म्हारी गँवरा पानीडो सो पाय घटियांरो मुकुट करो
म्हारी गवर तिसांई ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
ब्रह्मदास जी रा ईशरदास जी ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
म्हारी गवर तिसांई ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।ब्रह्मदास जी रा कानीराम जी ओ राज घाटयांरो मुकुट करो।
म्हारी गवरा पानीड़ो पिलाय घांटा रो मुकुट करो।
म्हारी गवरा तिसाई ओ राज घांटा रो मुकुट करो।
(बह्मदास जी की जगह पिता और ईशरदास जी की जगह पुत्र का नाम लेना हैं )
म्हारा हरिया जंवारा ओ राज लंबा-तिखा सरस बदृया।
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By Pushpanjali
Post date
February 14, 2022
No Commentson Gangor geet mhara hariya jawara o lamba tikha saras badhya,म्हारा हरिया जंवारा ओ राज लंबा-तिखा सरस बदृया
म्हारा हरिया जंवारा ओ राज लंबा-तिखा सरस बदृया।
म्हारा लुणीया जंवारा हो लांबा-तिखा सरस बदृय।
ये तो सुरजीरा बाया हो राज, रेणा दे जी सिंच लिया।
ये तो इसरजीरा बाया ओ राज, गोरा दे जी सिंच लिया।
ये तो सासु बहुरा सिंच्या ओ राज, गहुडा पिला पड रह्या।
बाईसा तो गड सिंच्या ओ राज, लांबा-तिखा सरस बदृया।
म्हारो दूध भरो कटोरो ओ राज, बाई रोवा पीव लिया।
म्हारो गेना भरीयो डाबो ओ राज, बाई सोवा पेर लिया।
म्हारी पचरंगी चुंदडी ओ राज, बाई गोरां ओढ लिया।म्हारो सरस पटोलो ओ राज, बाई सोवा पेर लिया।
म्हारा हरिया जंवारा ओ राज लंबा-तिखा सरस बदृया।
म्हारा लुणीया जंवारा हो लांबा-तिखा सरस बदृय।
ऊँचा धोरा ए म्हारा हरीया जंवारा लुलीया जंवारा। हरण चर दोय मिरगला मिरगा घेरो ओ, ब्रह्मदास जीरो इशरदास जी,थारी बाड़ी मं मिरगा जो चर ।
म्हें क्यू घेरा ए म्हारी, नार सांवलड़ी नार पातलड़ी। म्हांरी बाई सुदरा सासर, म्हारी बाई रोवां, नाने। धोला बलधा, ओ सायक बैल जुडास्या, काच मदास्यां । ल्यावां बाई गवरां री तीजणी ।
ऊँचा धोरा ए म्हारा हरीया जंवारा लुलीया जंवारा। हीरण चर दोय मिरगला – मिरगा घोरो ओ….
नोट: (सभी घर वालों का नाम लेव)
ईसर आयो ए म्हारी गायां रोर गुलाब।
बो तो चाल्यो ए म्हारी धोली गाय गुमाय।
म्हें तो राखी ए म्हारा बाबाजीरी काण।
नातर देता ओ घमड़ घेसलां री चार।राये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
साये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
ईसर आयो ए म्हारी भैस्यां रोर गुलाब।
बो तो चाल्यो ए म्हारी भूरी भैंस गुमाय।राये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
साये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
म्हे तो राखी ए म्हारा ताऊजी री काण। नातर देता ओ घमड़ घेसलां री चार।राये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
साये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
ईसर आयो ए म्हारी ऊँटा रोर गुलाब।
बो तो चाल्यो ए म्हारी गैंली ऊँट गुमाय।
म्हें तो राखी ए म्हारा बापूजी री काण।नातर देता ओ घमड़ घेसलां री चार।राये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
साये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
ईसर आयो ए म्हारी बकऱ्या रोर गुलाब।
बो तो चाल्यो ए म्हारी भूरी बकरी गुमाय।
म्हें तो राखी ए म्हारा बीराजीरी काण। नातर देता ओ घमड़ घेसलां री चार।राये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
साये जादा ओ ईसर लीलड़ी पलान।
गौर गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती
पार्वती का आला-गीला , गौर का सोना का टीका।
टीका दे , टमका दे , बाला रानी बरत करयो,
करता करता आस आयो वास आयो
खेरे खांडे लाडू आयो , लाडू ले बीरा ने दियो।
बीरो ले मने पाल दी , पाल को मै बरत करयो।
सन मन सोला , सात कचौला , ईशर गौरा दोन्यू जोड़ा।
जोड़ ज्वारा ,गेंहू ग्यारा , राण्या पूजे राज ने , म्हे पूजा सुहाग ने।
राण्या को राज बढ़तो जाए , म्हाको सुहाग बढ़तो जाय।
कीड़ी- कीड़ी , कीड़ी ले , कीड़ी थारी जात है , जात है गुजरात है ,
गुजरात्यां को पाणी , दे दे थाम्बा ताणी।
ताणी में सिंघोड़ा , बाड़ी में भिजोड़ा,
म्हारो भाई एम्ल्यो खेमल्यो , सेमल्यो सिंघाड़ा ल्यो।
लाडू ल्यो , पेड़ा ल्यो सेव ल्यो सिघाड़ा ल्यो
झर झरती जलेबी ल्यो , हरी -हरी दूब ल्यो गणगौर पूज ल्यो।
इस तरह सोलह बार बोल कर आखिरी में
बोले एक-लो , दो-लो ,तीन लो ……..सोलह-लो।
हरिए गोबर गीली दाबो, मोतिया चौक पुराओ। मोतिया का दोय आंखा ल्याओ, निरणी गौर पूजाओं।
गौर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी
बाहर ऊबी थारी पूजण वाली।
पूजो ए पूजो बाईयां , काई काई मांगों
म्हे मांगा अन्न धन , लाछर लक्ष्मी।
जलहर जामी बाबुल मांगा, राता देई मायड़
कान कंवर सो बीरो मांगा , राई सी भौजाई।
ऊँट चढयो बहनोई मांगा , चूंदड़ वाली बहना
पूस पिछोकड़ फूफो मांगा ,मांडा पौवाण भुवा।
काले घोड़े काको मांगा , बिणजारी सी काकी
कजल्यो सो बहनोई मांगा , गौरा बाई बहना।
बड़े दुमाले भाई मांगा,चंद्रानी सी भाभी। भरयो पूरो परिवार मांगा, चुडला वाली मासी।
ओडो कोड़ो बीरा आंवला रे, राई चरण को राख। ईशरदास गहरा बधावना रे गोरल जायो छ पूत।
कानीराम घारो बीरा घुघरा रे, लाडल माथे मोर। गाजत बाजत बीरा बे गया रे गया बाई रोवा री पोल।
उठ बाई रोवा कर आरतो रे आया माय जाया वीर। भल आया भल आवना रे आयेडा री भगत कराए।
ताता सा मांडी घिव लापसी ये और उड़द की दाल।आओ वीरों थे जिमलयों ये,आंचल धोलांगा बाल।
आंचल रो गुण मानस्यां ये देस्यां महे अगड़ घड़ाय। अगड़ घड़ाओ वीरा भावजा रे हम ने नोसर हार।
बेल बढ़ाओ मेरे बाप की ये ज्यों माली ज्यों दूब। ज्यों कीड़ी ज्यों नाल।
इतरो तो दे म्हाने गोरा ये, इतरों सर्व सुहाग।भल मांगू पीहर सासरो ये भल मांगू सौ परिवार।
गौर ए गणगौर माता खोलए किवाड़ी।
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ।
ब्रह्मदास जी रा ईसरदास जी रोली रंग लाया ऐ।
ईसरदास जी रा कानीराम जी परण पधराया ऐ।
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ।
परण पधारया वाकी माया टीका काड़या ऐ।
रोली का वे टीका काड़या ऊपर चावल चेपया ऐ।
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ।
गौर थारो चोपडो माणक मोतिया छायो ऐ
माणक मोतिया छायो ऐ वो तो सच्चा मोती छायो ऐ।
(ब्रह्मदास जी की जगह दादा ससुर जी का,ईसरदास की जगह पति का और कानीराम जी की जगह पुत्र का नाम लेना चाहिए )
ओड़ो कोड़ो छ रावलो ये राई चन्दन को रोख।
ये कुण गौरा छै पातला ऐ कुणा माथ ऐ मोर।
ईसरदास जी गोरा छ पातला ऐ ब्रह्मा माथे मोर।
बाई थारो काई को रूसणो ये काई को सिंगार
बाई म्हारे सोना को रूसणों ऐ मोतिया रो सिंगार।
अब जाऊँ म्हारे बाप के ऐ ल्याउली नौसर हार।
चौसर हार गढ़ाए ,पाटे पुवाए गोरक सुधों मूंदडो ,
गोरा ईसरदास जी ब्रह्मदास जी जोगो मूंदडो ,
वाकी रानिया होए बाई बेटिया होए आठ गढ़ाए पाटे पुवाए गोरक सुधो मूंदडो।
गोरा चाँद ,सूरज ,महादेव पार्वती जोगो मूंदडो।
गोरा मालन , माली ,पोल्या -पोली जोगो मूंदडो मूंदड़ो ,
(अपने घर वालों के नाम लेने है )
बधावा
ये मोती समदरिया म नीपज ,
सोवगा ईसरदास र कान ,बधावो जी म्हारी गोर को।
ये मोती समदरिया म नीपज ,सोवगा कानीराम क कान,बधावो जी म्हारी गोर को।
महे था न बूझा म्हारी बहु ए गोरल दे,
थार छ मोत्या जोगो भाग ,बधावो जी म्हारी गोर को।
भाग छ बड़ा छ म्हारी सास का
जिना जाया छ अर्जन भीम , बधावो जी म्हारी गोर को।
भाग बड़ा जी म्हारी नन्दा का
खिलाया छ कान कंवर सा वीर ,बधावो जी म्हारी गोर को।
गोर ईश्रदास कानीराम दोनू सरीसा।बाई रोवा छे मोत्यां बिचली लाल,माली का रे मरुवा,अमर बधाओ
नीव हलती बेलड़ी जी ।
मालन फूलड़ा सा ल्याए, ईसरदास थारो कोटड्या जी। पालन फूलड़ा स ल्याए, कानीराम थारो आरती जी।
आरतडदात धाम सुपारी लागी डोंड़ा स जी । डोंड़ा राज कोट चिणाए, झीलो म्हारी चूनड़ी जी। गायां जाई छ ठाणम जी, बहुवां जाई छ साल, झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाया बाछड़ा जी, बहुवां जाया छ पूत,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां खाया खोपरा जी बहुवां खाइ छ सूट,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी ।
गायां क गल घूघरा जी बहुवां का गल हार,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गोरल जायो द पूत जी कुण खिलाएगी जी, खिलासी रोवा नणदं झाबर के पालण जी,
आंख मोड़ नाक मोड़ कड़ मोड़ घूमर घाल,रून्दल जी ।
बाड़ी म लाल किवाड़, झीली म्हारी चूनड़ी जी । आवगा ब्रह्मादासजी रा पूत पजोव थारी मन रत्नी जी ।
नीव ढलती बेलड़ी जी।
मालन फूलड़ा सा ल्याए, ईसरदास थारो कोटड्या जी।
नीव ढलती बेलड़ी जी।मालन फूलड़ा स ल्याए, कानीराम थारो आरती जी।
आरतडा में सुपारी लागी डोंडा जी।
डोंडा राज कोट चिणाए, झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाई छ ठाणम जी, बहुवां जाई छ साल,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाया बाछड़ा जी, बहुवां जाया छ पूत,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां खाया खोपरा जी बहुवां खाइ छ सूट,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां क गल घूघरा जी बहुवां कागल हार,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गोरल जायो द पूत जी कुण खिलाएगी जी,
खिलासी रोवां नणदं झाबर क पालण जी,
आंख मोड़ नाक मोड़ कड़ मोड़ घूमर घाल,
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव
लेद्दो ना ब्रह्मादास जी रा ईसरदास चूनड़ी जी।
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव,लेद्दो ना ब्रह्मादास जी रा कानीराम चुनडी जी।
फिरीया फिरीया देश परदेश
कित ए न पाई म्हारी मरवण चूनड़ी जी।
पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना रोवां की भावज चूनड़ी जी।पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना, सोवा की भावज चूनड़ी जी।
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव,लेद्दो ना सुसराजी रा (लड़कों के नाम)चूनड़ी जी।
फिरीया फिरीया देश परदेश
कित ए न पाई म्हारी मरवण चूनड़ी जी।
पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना(बहन बेटियों के नाम) की भावज चूनड़ी जी।
उभी म्हार गवरजा छांजइयां री छांवा
महादेव जी आया लेववां जी।
केदयो मोरी सैया, महादेव जी न जाय, बाई रा बापूजी घर नहीं जी। गया बाई रा बापू जी सोनीड़ा री हाट, बाई से गेणो मोलवं जी।
केदयो मोरी सैया महादेव जी न जाय, बाई रा काको जी घर नहीं जी। गया बाई रा मामोजी मोढ़ीड़ा री हाट, बाई री चूनड़ी मोलवं जी।
केदयो मोरी सैया महादेव जी न जाय, बाई रा बीरोजी घर नहीं जी। गया बाई रा बीरो जी मिणीहारां री हाट, बाई रो दायजो मोलवं जी।
उभी म्हारी गवरज्या छांजइयां री छांवा
महादेव जी आया लेववां जी।ना जाऊं मोरी सैंया इण जटाधारी र साथ का,दोरो धुणी से तापणो जी।
दोरो मोरी सैया इण जोगीड़ से साथ क दोरो धरण पर पोढ़णो जी। गेली म्हारी गवरजा असल गीवार र क धीव बिना धरती ना बस जी।
नीव ढलती बेलड़ी जी।
मालन फूलड़ा सा ल्याए, ईसरदास थारो कोटड्या जी।
नीव ढलती बेलड़ी जी।मालन फूलड़ा स ल्याए, कानीराम थारो आरती जी।
आरतडा में सुपारी लागी डोंडा जी।
डोंडा राज कोट चिणाए, झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाई छ ठाणम जी, बहुवां जाई छ साल,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाया बाछड़ा जी, बहुवां जाया छ पूत,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां खाया खोपरा जी बहुवां खाइ छ सूट,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां क गल घूघरा जी बहुवां कागल हार,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गोरल जायो द पूत जी कुण खिलाएगी जी,
खिलासी रोवां नणदं झाबर क पालण जी,
आंख मोड़ नाक मोड़ कड़ मोड़ घूमर घाल,
सैयां इंण नगरी मं फूलड़ा दोय बड़ा, सैया एक सुरज दूजो चांद बधावो म्हांरी गवरां रो ।
सैयां सुरज उग्यां कुल मं चांदणो, सैया चन्द्रमां री निमल रात बधावो म्हारी गवरां रो ।
सैया इंण नगरी मं फूलड़ा दोय बड़ा, सैया एक सासु जी। दूजी माय बधावो म्हारी गवारां रो ।
सैया मावड़ती रो जायो ल्याव चूनड़ी, सैया सासूजी र जायो रो।सवाग बधावो म्हांरी गवारां रो ।
सैया इंण नगरी मं फूलड़ा दोय बड़ा, सैया एक घोड़ी। दूजी गाय बधावो म्हारी गवरां रो । सैया घोली रो जायो घोलो हल बाव, सैयां घोड़ी रो। जायो ढाब राज बधावो म्हांरी गवरां रो ।
सैया पीवरीयर खेत मं चावल घणा, सैयां सासरीय र खेत में।
जवार बधावो म्हांरी गवरां रो । सैया आंवती तो जावती चावल जीम स्यां । सैयां नित उठ जीमां रे जवार, बधावो म्हांरी गवरां रो।
मारी चंद्र गौरजा भलाई नादान गरजा रतनारा खंभा दिख दूर स्यूं। महान आव अचंभों लोहडी र महलां राजन क्यूँ गया।
उड़ जाई ये तीतली दिवलो निमाई रे लोहड़ी शोक रो। म्हारी पायल बाज महला चढ़ती रा बाजे घुघरा । झुक जाईए बादली छैया कर देई ए नाजुक जीवन।
छः छल्ला छः मुंदड़ी जी छल्ला भरी परात। एक छल्ला कारण कोई छोड्या मांयर बाप। महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवर्जा।
महलां महलों में फिरु जी कोई खूंटी टंगीयो कोट। में म्हारा मारु जी री लाडली कोई नितरा देव नोट जी । महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान।
महेंदी भरीयो बाटको जी ढोला, लिख लिख मांडू हाथ। लिखणी पढ़नो छोड़दयो कोई, निरखो गोरी रा हाथ जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान
चन्दा थार चान्दण जी कोई, डागल घाली खाट।गया न राजन बावड़ कोई, रातयू जऊ बाट जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गरजा,
मांय रंगायो पोमचो की कोई, नान्ही बंधण बंधाय। राजन केव गोरी ओढल्यो कोई, सासू सेख्या खाय जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
घी बरताऊं टोकना जी कोई, पापड तलू पचास।
बेटो परन्यो लाडलो जी कोई माता करें मिजाज। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
चार खुणां री बावड़ी जी ढोला, ज्यां में उछल नीर। म्हे म्हांरा राजन व्हायस्यां कोई, सगी नणंद रा बीर जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
महे कोमल पांखूड़ी जी ढोला, थे गुलाब रा फूल। म्हास्यूं निभा कर चाल ज्यो जी कोई बचन न जाया भूल की। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
कच्ची सुपारी कच्च कच्ची जी दोला, काचा म्हारा बोल। म्हे परदेशी पावणा जी कोई, हंस कर घुंघट खोल जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
आलो भरीयो खोपरो जी कोई, खिड़की भरी बिदाम। गोरी चाली बाप के जी कोई राजन करे सलाम जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
रतन जड़ायो पोल में जी कोई घड़ियों ना खोल्यों जाए। आप सारीसा सायबा जी कोई, घड़िया न छोड़या जाय जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
म्हें दिपक री ज्योति सायबा, थे दिपक रो तेल। प्रेम री जोत जगास्यां कोई, कर हिदूय रो मोल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
साड़ी भारी पोत की जो ढोला, तारां जड़ी है बेल। घड़ी दोय महलां में पेरस्या कोई, खुशी होय सी छैल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा,
रतनांरा थंम्बा दिख दूर स्यूं-पातलीया इशर जी।
गलीयां मं आव गौरा झूमती । म्हान आव अचम्भो लाहेड़ी र महलां दिवलो क्यूं जग। उड़ जाई ए तीतली दिवलो निभाई ए लोहड़ी शोक रो।
चंद्र गवरजा म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
गढ़ स्यूं गौरां उतरी जी, हाथ कमल रो फूल म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं ।पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
हाथां मेहन्दी राचणी जी चूड़ला से सरब सुहाग। कानां मं कुन्डल पेरल्यो जी, कोई झूटणा री अजब बाहार जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झंगती।
माथा में मैमद पेरल्यो जी, रखड़ी की अजब बहार । भंवर बिजली खिंवस जी, नैन निंबू की फांक जी। म्हांरी रूप गवरज्या सुवरण री कलियां आव झूमती ।
होटा बिड़ला रच रया जी, दांत दाडु का बीज । जिभइल्या अमृत बस जी, कोई, नाक सुवा की चोंच जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या, भलाई नादान गवरज्या ,रतना रा खंभा दिख दूर स्यूं। पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
मूंगफली सी आंगली जी, बेलन की सी बांह। पसवाड़ा पासा भवर, कोई पेट गवां की लोथ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं।
पीन्डी तो रत्नालियांस जी जांघ दिवल को थम्ब जी। एडी सुरग सुपारीयां जी कोई, फाबो सठवा सूंठ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झुंमती ।
मारी चंद्र गौरजा भलाई नादान गरजा रतनारा खंभा दिख दूर स्यूं। महान आव अचंभों लोहडी र महलां राजन क्यूँ गया।
उड़ जाई ये तीतली दिवलो निमाई रे लोहड़ी शोक रो। म्हारी पायल बाज महला चढ़ती रा बाजे घुघरा । झुक जाईए बादली छैया कर देई ए नाजुक जीवन।
छः छल्ला छः मुंदड़ी जी छल्ला भरी परात। एक छल्ला कारण कोई छोड्या मांयर बाप। महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवर्जा।
महलां महलों में फिरु जी कोई खूंटी टंगीयो कोट। में म्हारा मारु जी री लाडली कोई नितरा देव नोट जी । महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान।
महेंदी भरीयो बाटको जी ढोला, लिख लिख मांडू हाथ। लिखणी पढ़नो छोड़दयो कोई, निरखो गोरी रा हाथ जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान
चन्दा थार चान्दण जी कोई, डागल घाली खाट।गया न राजन बावड़ कोई, रातयू जऊ बाट जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गरजा,
मांय रंगायो पोमचो की कोई, नान्ही बंधण बंधाय। राजन केव गोरी ओढल्यो कोई, सासू सेख्या खाय जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
घी बरताऊं टोकना जी कोई, पापड तलू पचास।
बेटो परन्यो लाडलो जी कोई माता करें मिजाज। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
चार खुणां री बावड़ी जी ढोला, ज्यां में उछल नीर। म्हे म्हांरा राजन व्हायस्यां कोई, सगी नणंद रा बीर जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
महे कोमल पांखूड़ी जी ढोला, थे गुलाब रा फूल। म्हास्यूं निभा कर चाल ज्यो जी कोई बचन न जाया भूल की। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
कच्ची सुपारी कच्च कच्ची जी दोला, काचा म्हारा बोल। म्हे परदेशी पावणा जी कोई, हंस कर घुंघट खोल जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
आलो भरीयो खोपरो जी कोई, खिड़की भरी बिदाम। गोरी चाली बाप के जी कोई राजन करे सलाम जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
रतन जड़ायो पोल में जी कोई घड़ियों ना खोल्यों जाए। आप सारीसा सायबा जी कोई, घड़िया न छोड़या जाय जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
म्हें दिपक री ज्योति सायबा, थे दिपक रो तेल। प्रेम री जोत जगास्यां कोई, कर हिदूय रो मोल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
साड़ी भारी पोत की जो ढोला, तारां जड़ी है बेल। घड़ी दोय महलां में पेरस्या कोई, खुशी होय सी छैल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा,
रतनांरा थंम्बा दिख दूर स्यूं-पातलीया इशर जी।
गलीयां मं आव गौरा झूमती । म्हान आव अचम्भो लाहेड़ी र महलां दिवलो क्यूं जग। उड़ जाई ए तीतली दिवलो निभाई ए लोहड़ी शोक रो।
पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
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By Pushpanjali
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March 15, 2023
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चंद्र गवरजा म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
गढ़ स्यूं गौरां उतरी जी, हाथ कमल रो फूल म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं ।पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
हाथां मेहन्दी राचणी जी चूड़ला से सरब सुहाग। कानां मं कुन्डल पेरल्यो जी, कोई झूटणा री अजब बाहार जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झंगती।
माथा में मैमद पेरल्यो जी, रखड़ी की अजब बहार । भंवर बिजली खिंवस जी, नैन निंबू की फांक जी। म्हांरी रूप गवरज्या सुवरण री कलियां आव झूमती ।
होटा बिड़ला रच रया जी, दांत दाडु का बीज । जिभइल्या अमृत बस जी, कोई, नाक सुवा की चोंच जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या, भलाई नादान गवरज्या ,रतना रा खंभा दिख दूर स्यूं। पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
मूंगफली सी आंगली जी, बेलन की सी बांह। पसवाड़ा पासा भवर, कोई पेट गवां की लोथ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं।
पीन्डी तो रत्नालियांस जी जांघ दिवल को थम्ब जी। एडी सुरग सुपारीयां जी कोई, फाबो सठवा सूंठ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झुंमती ।
जी म्हारी चंद्र गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से।
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By Pushpanjali
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February 15, 2022
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गढ़ से गोरल उतरी से जी, हाथ कमल का फूल। हाथा मेहंदी रच रही जी, चुडला रो सर्व सुहाग। जी म्हारी चंद्र गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
माथा ने मेमद पैरल्यो से जी रखड़ी री लग री बहार। कानों में कुंडल पैरल्यो से जी झूठना रो सर्व सुहाग।ये म्हारी रूप गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
शीश बनयों रत्ना लियास जी चोटी बासुकी नाग।भंवरा बिजली खिवसे जी,नैन नींबू की फांक।ये म्हारी रूप गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
होठन बिडलो रच रहयो जी, डांड दाडू की बिज। जिभाद्दलयां ईमरत बरसे कोई,नाक सुवा की चोंच।ये म्हारी रूप गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
मूंगफली सी आंगलिस जी,बेलन बेली जाय।पसवाड़ा पासा ढलत कोई,पेट गिवां को लोथ।ये म्हारी रूप गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
पिंडी तो रत्ना लियास जी,जांघ दिवल को थंब। एड़ी सुरंग सुपारियांस कोई,फाबी सधवां सुंथ।ये म्हारी रूप गौरजा रतनारा खंभा दिखे दूर से। पातलीय ईशर गलियां में आवे गोरा झूमती।
तर्ज,मिसरी सी मीठी बता
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
माथा मैमाद्द काना कुंडल होठां लाली सजी रहवे।पूछा चुडलो कड़ियां साड़ी, सर पर चुनर सजी रहवे।गोरा म्हाने आशीर्वाद थे दिजयो,थारा दोन्युं हाथ फिराई।गोरा महे थाने पूजा माता,सोलह दिन घर बैठाए।गोरा म्हारी आशा पूरी कर दो थारा सदा करा गुणगान।
महे तो थांसु गोरा मांगा थासो सुहाग दिज्यों मां।अमर रहवे या जोड़ी म्हारी एसो आशीष दिज्यो मां।गोरा म्हारा सुसरा दशरथ जी सा। दोदोजी विष्णु समान।गोरा म्हारी सासु हो राजरानी म्हारो लाड घनों ही लड़ाए।गोरा म्हारा राम सरीखा स्वामी म्हारो मनडो रहे हर्साय।गोरा म्हारे घर आंगन में उषा,हर पल खुशी लहराए।
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ बनी तो म्हारी गौरा लाडली।
बराती शिवजी गजब का लाया, देवता सभी रूप में आया। उल्टे बेल बेठ कर आया, बनी तो मारी गोरा लाडली। बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ बनी तो मारी गोरा लाडली।
भूत यह भारी उधम मचाया, डाकनीया भी संग में लाया।जोगणिया गेरा नाच दिखाया, बनी म्हारी गोरा लाडली। बनो तो मारो शंकर भोलेनाथ,बनी तो मारी गोरा लाडली।
यह बाजा शंखनाद है बाजा, बिच्छू सांप गला में डालया। गांव का देख देख सरपाया, बनी तो म्हारी गौरा लाडली। बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ, बनी तो मारी गोरा लाडली।
जोगी सभी रूप बन आया।भूत प्रेत योनि संग आया। संग गोरैया आकर अलख जगाया, बनी तो मारी गोरा लाडली।बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ, बनी तो मारी गोरा लाडली।
हिमांचल ब्याह रचाया भारी। परण रही पार्वती मां प्यारी। शिवजी आया है वरराजा, बनी तो म्हारी गौरा लाडली। बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ,बनी तो मारी गोरा लाडली।
सासु मूर्छित में पड़ जाए। ब्राह्मण चवरी छोड़ भाग जावे। भोला शिव तोरण पर आए, बनी तो म्हारी गोरा लाडली। बनो तो म्हारो शंकर भोलेनाथ बनी तो म्हारी गोरा लाडली।
तर्ज,भगत में हार गया
एकदीना शिव शंकर गोरा चौपड़ खेले साथ।गोरा ने बाजी मारी,हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने दाव लगाई,सिर गंगा।वो भी हारे और हार गए शिव जट्टा।हाथ जोड़कर गोरा बोली,स्वामी होश सम्हाल।।🌺🌺🌺🌺🌺🌺गोरा ने बाजी मारी,हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने दाव लगाया एक डमरू।वो भी हार गए और हारे सब डमरू।हाथ जोड़कर गोरा बोली,स्वामी होश सम्हाल।।🌺🌺🌺🌺🌺🌺गोरा ने बाजी मारी,हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने दाव लगाया सिलबट्टा।वो भी हार गए और हारे भंग लोटा।हाथ जोड़कर गोरा बोली,स्वामी होश सम्हाल।।🌺🌺🌺🌺🌺🌺गोरा ने बाजी मारी,हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने दाव लगाया नंदी को।वो भी हार गए और हारे भूतों को।हाथ जोड़कर गोरा बोली,स्वामी होश सम्हाल।।🌺🌺🌺🌺🌺🌺गोरा ने बाजी मारी,हार गए भोलेनाथ।
एक बार शिवशंकर गौरा खेलें पता डार,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने लगा दिया अपना चंदा,
वो भी हारे और हार गए जट गंगा,
हाथ जोड़कर गौरा बोली स्वामी होश संभाल,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
शिवशंकर ने लगा दिया सिलबट्टा,
वो भी हारे और हार गए भंग लोटा,
हाथ जोड़ कर गौरा बोली स्वामी होश संभाल,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने लगा दिया अपना डमरू,
वो भी हारे और हार गए पग घुँघरू,
हाथ जोड़कर गौरा बोली स्वामी होश संभाल,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
शिव शंकर ने लगा दिया अपना झोला,
वो भी हारे और हार गए सर्पमाला,
हाथ जोड़ फिर भोले बोले तू जीती हम हारे,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
एक बार शिवशंकर गौरा खेलें पता डार,
गौरा ने बाज़ी मारी हार गए भोलेनाथ।
तर्ज,मिसरी सी मीठी बता
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
माथा मैमाद्द काना कुंडल होठां लाली सजी रहवे।पूछा चुडलो कड़ियां साड़ी, सर पर चुनर सजी रहवे।गोरा म्हाने आशीर्वाद थे दिजयो,थारा दोन्युं हाथ फिराई।गोरा महे थाने पूजा माता,सोलह दिन घर बैठाए।गोरा म्हारी आशा पूरी कर दो थारा सदा करा गुणगान।
महे तो थांसु गोरा मांगा थासो सुहाग दिज्यों मां।अमर रहवे या जोड़ी म्हारी एसो आशीष दिज्यो मां।गोरा म्हारा सुसरा दशरथ जी सा। दोदोजी विष्णु समान।गोरा म्हारी सासु हो राजरानी म्हारो लाड घनों ही लड़ाए।गोरा म्हारा राम सरीखा स्वामी म्हारो मनडो रहे हर्साय।गोरा म्हारे घर आंगन में उषा,हर पल खुशी लहराए।
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
तर्ज, छोटी छोटी गैया – ganesh ji ka Bhajan
नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
कठे रहवे गोरा म्हारी कठे तो गणेश।और कठे तो रहवे म्हारो भोलियो महेश।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
मिंदर में रहवेली गोरा सिंहासन गणेश। कैलाशां पे रहवेलो भोलियाे महेश।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
काई ओढ़े गवरा काई तो गणेश।काई ओढेला म्हारा भोलिया महेश।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
चुनरी ओढ़े गौरा पितांबर गणेश। बागांबरी ओढ़े म्हारो भोलियो महेश।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
काई जीमे गवरा काई तो गणेश।काई जिमेला मारो भोलियों महेश।।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
घेवर जीमे गौरा मोदक गणेश। आक धतूरा जीमे मारो भोलियों महेश।।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
काई देवे गौरा काई गणेश।काई तो देवे म्हारो भोलियो गणेश।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
शक्ति देवे गौरा भक्ति दे गणेश।बुढ़ापा सुधारे मारो भोलियों महेश।।नाच रही गबरा देखे हैं गणेश, डमरु बजावे मारो भोलियों महेश।।
banora
म्हे थांन जोशी रा बेटा बिनवां, म्हारी गवरां से लगन लिखायाओ। जोशी जी रा छावा, आज म्हारो गवर बनोरो निसरयो ।
म्हे यांन मोढ़ी रा बेटा बीनवां, म्हारी गवरां से चूनड़ी रंग ल्याओ। मोदी जी रा छावा, आज म्हांरो गवर बनोरो निसरयो।
म्हे थांन कुम्हारां रा बेटा बिनवां, म्हांरी गवरां से कुंभ कलस घड़ ल्याया ओ। कुम्हारां रा छावा, आज म्हारो गवर बनोरो निसरयो ।
म्हे यांन खाती रा बेटा बिनवां, म्हारी गवरां रो बाजोटो घड़ ल्याया ओ । खाती जी रा छावा आज म्हारो, गवर बनोरो निसरयो।
म्हे थांन दरजी रा बेटा बिनवां, म्हारी गवरां रो घाघरो सिड र ल्याया ओ
दरजी रा छावा आज म्हारो गवर बनोरो निसरयो।
म्हे थांन सोनी रा बेटा बिनवां, म्हारी गवरां रो गेणो घड़ ल्याया ओ। सोनी जी रो छावा आज म्हारो गवर बनोरो निसरयो ।
नोट: सभी घर वालों का नाम लेव
म्हारी गवरां री चूनड़ ली मोलाया ओ
म्हांरी गवरां री मेन्दोली मोलाया ओ . जीरो छावा।
म्हांरी गवरां री जान जिमाया ओ म्हांरी गवरां रा सेवरा दिराया ओ.. जीरो छावा।
म्हांरी गवारां सिखड़ली दराया ओ आज म्हांरो गवर बनोरो निसरयो।
अतो गेरा गेरा बिरमां दास जी रा छावा बालम रसिया गेरो जी फूल गुलाब रो।
अतो हीरा हीरा सूदरां बाई रा बीरा बालम रसिया,गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हे तो आई न गणगोरयां घुड़ला फेरां बालम रसिया।। गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हे तो मोत्यां री लड़ धड़ स्यू घुड़ला फेरा बालम रसिया।गेरो जी फूल गुलाब रो ।
म्हे तो सोना री सांकल स्यू घुड़ला फेरा बालम रसिया ।गेरो जी फूल गुलाब रो।
थे तो आई न गणगौरया बेगा आवो बालम रसिया ।गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हारो कागजीया स्यू जीव क्यू जलावो बालम रसिया ।गेरो जी फूल गुलाब रो
म्हे तो घणां ई उडीक्या अब घर आवो बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो।
थांरी एडी र घमड़क धरती धूज बालम रसिया।
गेरो जी फूल गुलाब रो
थे तो राज गढ़ री गलीयां धीमां चालो बालम रसिया।गेरो जी फूल गुलाब रो।
थांरी बोलतां री चलगत प्यारी लाग बालम रसिया । गेरो जी फूल गुलाब रो ।
यांरी बोलतां बत्तीसी प्यारी लाग बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हारी हथेली फरूक रूपीया ल्यावो बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो ।
म्हारी जीभड़ली फरूक मीठो ल्यावो बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो ।
म्हारी आंगली फरूक बींटी ल्यावो बालम रसिया।गेरो जी ‘फूल गुलाब ‘रो।
थे तो कोड़ी री मिठाई ओडी, ल्यावो बालम रसिया ।गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हान भासी जितरी खांस्या, ओर लुटास्यां, बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हार माथा मं मेमद ल्यावो बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हांर गल में हारज ल्यावो बालम रसिया। गेरो जी फूल गुलाब रो।
म्हे तो पेर सिधारा गणगोरयां बालम रसिया । गेरो जी फूल गुलाब रो।
थांन सारो ही शहर सराव बालम रसिया।
गेरो जी फूल गुलाब रो
नोट : (सभी बाप, बेटा और बेहना का नाम लेव)
आठ कपट री इंडूणी म्हारी गवरल गई रे तलाब राठौरा गैरो जी फूल गुलाब रो।
ओठी- सात सहेल्यां रे झूलर म्हांरी गवरल गई रे तलाब राठौर गैरो जी फूल गुलाब रो।गैरो जी फूल गुलाब रो ।गैरो जी फूल गुलाब से ।
ओठी – आधो जी माटो झब-झब म्हारो भीज सो सिंणगार राठौर
ओठी-सांतूई छल-छल बांवड़ी, म्हारी गवरल रही रे तलाब राठौर ओठी – पाल चढ़ता राजवी म्हारो भरीयो माट ऊँचाई राठौर गैरो जी फूल गुलाब रो
गोरा फोड़ घड़ो कर ठीकरी कोई होयज्या ओ म्हार लार राठौर गैरो जी फूल गुलाब रो।
ओटी बालू रे गुल थारी जीभ न कोई बालू यार ओठीड़ा से साथ रा,गैरो जी फूल गुलाब रो।
ओठी – जाय केवूंली म्हार बाप न थांन हुक्का मं विष देव राठौर गैरो जी फूल गुलाब रो ।ओठी-जाय केंवूली म्हारी मायड़ न थांन भोजनीयां विष देव राठौर,गैरो जी फूल गुलाब रो ।
म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशरजी के पचरंग पगडी,
चूंदड़ गवरजा की लाल, ईशर को रंग केशरिया । म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशर जी बांधी किलंगी, गवरजा के बांध्यो बोर, ईशर को रंग केशरिया । म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशर जी के कंठा में मोती, झुमका गवरजा के कान, ईशर को रंग केशरिया ।म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशरजी के हाथ में छल्ला, हथफूल गवरजा के हाथ, ईशर को रंग केशरिया।म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशर जी के मोती की घड़ियां।गजरा गवरजा के हाथ, ईशर को रंग केशरिया।म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशरजी के कमर मे पट्टो, गवरल को तगड़ी में मोर, ईशर को रंग केशरिया।म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
म्हारा रे ईशरजी के पगा मोजड़ी, गवरल पेरी रमजोल, ईशर को रंग केशरिया।म्हारी गवरल फुल गुलाब, ईशर को रंग केसरिया,
तर्ज,मोरिया आच्छो बोलयो
गवरजा ईशर हठीलो उभो बाग में (३)। हो थांने झालो देय बुलाय गवरजा, ईशर हठीलो उडिके बाग में।
गवरजा रबड़ी से प्यालो लीने हाथ में (३)हो लीनी जळ भर झारी साथ गवरजा, गढ़ा है कोटां सूं हेठे उत्तरी।
गवरजा ईशर हठीलो उभो बाग में (३)। हो थांने झालो देय बुलाय गवरजा, ईशर हठीलो उडिके बाग में।
गवरजा रबड़ी से प्यालो देदे वीरने (३) हे प्यारी चाल चाल हमारोडो देश गवरजा,थाँ विन जिवड़ो उदास रे।
गवरजा ईशर हठीलो उभो बाग में (३)। हो थांने झालो देय बुलाय गवरजा, ईशर हठीलो उडिके बाग में।
ईशर गवरल तो पूजे घर घर तीजण्यों (३) । थाने, तीज्यों पीछे देवोंला भोलाय कंवरजी
दिन दस रेवा म्होरे घर पावणा।
गवरजा ईशर हठीलो उभो बाग में (३)। हो थांने झालो देय बुलाय गवरजा, ईशर हठीलो उडिके बाग में।
पातलिया भला तो पधारया म्होरे पावणा (३)। थरी साल्यों २ करे मनवार ये दोहजी,
भला तो पधार्या म्होरे पावणा ।।
गवरजा ईशर हठीलो उभो बाग में (३)। हो थांने झालो देय बुलाय गवरजा, ईशर हठीलो उडिके बाग में।
(तर्ज : पलकें ही पलकें)
पलके ही पलके बिछाऐंगे, जिस दिन ईशर गवरजा घर पे आएंगे, हम तो हैं मैया तेरे जन्मों से दीवाने रे-2 मीठे-मीठे गीत सुनाएँगे। जिस दिन ईशर गवरजा घर आऐंगे पलकें ही.
घर का कोना-कोना, मैने फूलों से सजाया,
बन्दरवार लगाई घी का दीप जलाया। प्रेम जनों को बुलाऐंगे, जिस दिन ईशर गवरजा घर पे आएँगे। पलके ही
गंगा जल की झारी मैया के चरण पखारूं।
भोग लगाऊँ लाड़ लड़ाऊँ, आरती उतारूं, खुशबु ही खुशबु उड़ाएँगे। जिस दिन ईशर गवरजा घर पे आऐंगे। पलके ही
अब तो लगन एक ही गवरल, प्रेम सुधा बरसादो, इन प्यारी प्यारी सखियों को अपने रंग रंगालो, वर का वरदान दिलाऐंगे,
जिस दिन ईशर गवरजा घर पे आऐंगे। पलके ही..
ब्रहमा जी के कंवर लाड़ली हेमाजल जी की प्यारी। घुड़लो घुमावे घुमर घाले, सखियाँ नाचे सारी, नैना से नैना मिलाएँगे, जिस दिन ईशर गवरजा घर पे आऐंगे। पलके ही
तर्ज,मिसरी सी मीठी बता
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
माथा मैमाद्द काना कुंडल होठां लाली सजी रहवे।पूछा चुडलो कड़ियां साड़ी, सर पर चुनर सजी रहवे।गोरा म्हाने आशीर्वाद थे दिजयो,थारा दोन्युं हाथ फिराई।गोरा महे थाने पूजा माता,सोलह दिन घर बैठाए।गोरा म्हारी आशा पूरी कर दो थारा सदा करा गुणगान।
महे तो थांसु गोरा मांगा थासो सुहाग दिज्यों मां।अमर रहवे या जोड़ी म्हारी एसो आशीष दिज्यो मां।गोरा म्हारा सुसरा दशरथ जी सा। दोदोजी विष्णु समान।गोरा म्हारी सासु हो राजरानी म्हारो लाड घनों ही लड़ाए।गोरा म्हारा राम सरीखा स्वामी म्हारो मनडो रहे हर्साय।गोरा म्हारे घर आंगन में उषा,हर पल खुशी लहराए।
गौरा म्हारी है मतवाली ईशर कामन गारा सा।रूप सजीलो थारो प्यारो सबके मनडे भाओ सा।गोरा थारी नथली प्यारी प्यारी थारे गल मोतियन री माल।गोरा थारे पांव घुघरिया बाजे,म्हारो मनडो लियो चुराए।
तर्ज,बनी थारो चांद सरिसो मुखड़ा
मिसरी सु मीठी गवरा म्हारी, देवे सबने आशीष मां। सखियां सारी फीकी लागे एसो रूप सजीलो सा।गौरा थारो चांद सरिसो मुखड़ो
सगला रो मन हरषाय। गौरा जरा धीमे-धीमे चालो ईसरजी साग आय।
फुलो से भी प्यारी लागो हिवडो खुश हो जावे सा खूब निरखा पल-पल थाने थे तो सुहाग बांटो सागौरा थारी आख्या जादूगारी म्हारो तो मन बहकाय। गौरा थारा केश है कामनगारा म्हारो तो मन उलझाय।
गौरा थारो चांद सरिसो मुखड़ो
सगला रो मन हरषाय। गौरा जरा धीमे-धीमे चालो ईसरजी साग आय।
गौरा थारी जद पायलडी बाजे म्हारो तो मन हरखाय। गौरा थारो रुप है जादूगारो थाने देख ईसर मुसकाय।गौरा थारो चांद सरिसो मुखड़ो
सगला रो मन हरषाय। गौरा जरा धीमे-धीमे चालो ईसरजी साग आय।
थारा घोड़लिया सिणगार ओ ब्रह्मादासजी रा ईसरदास,आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो।
थारा घोड़लिया सिणगारो ओ हेमाजल जी रा छावा,आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो।
गोर ईसरदास घाल झाझा बैठगा, बहु गोरल लाग धार पांव, ओ रोवा दे बाई,आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो। थारा घोड़लिया सिणगारी ओ ब्रह्मादासजी रा ईसरदास,आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो।
कानीराम घाल झाझा बैठणा, बहु लाडल लाग थार पांव, ओ रोयां दे बाई आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो।थारा घोड़लिया सिणगारी ओ ब्रह्मादासजी रा ईसरदास,आज म्हारो गोरविन्दारो निसर्यो।
मिसरी सु मीठी गवरा म्हारी, देवे सबने आशीष मां। सखियां सारी फीकी लागे एसो रूप सजीलो सा।गौरा थारो चांद सरिसो मुखड़ो
सगला रो मन हरषाय। गौरा जरा धीमे-धीमे चालो ईसरजी साग आय।
नीव हलती बेलड़ी जी ।
मालन फूलड़ा सा ल्याए, ईसरदास थारो कोटड्या जी। पालन फूलड़ा स ल्याए, कानीराम थारो आरती जी।
आरतडदात धाम सुपारी लागी डोंड़ा स जी । डोंड़ा राज कोट चिणाए, झीलो म्हारी चूनड़ी जी। गायां जाई छ ठाणम जी, बहुवां जाई छ साल, झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाया बाछड़ा जी, बहुवां जाया छ पूत,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां खाया खोपरा जी बहुवां खाइ छ सूट,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी ।
गायां क गल घूघरा जी बहुवां का गल हार,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गोरल जायो द पूत जी कुण खिलाएगी जी, खिलासी रोवा नणदं झाबर के पालण जी,
आंख मोड़ नाक मोड़ कड़ मोड़ घूमर घाल,रून्दल जी ।
बाड़ी म लाल किवाड़, झीली म्हारी चूनड़ी जी । आवगा ब्रह्मादासजी रा पूत पजोव थारी मन रत्नी जी ।
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव
लेद्दो ना ब्रह्मादास जी रा ईसरदास चूनड़ी जी।
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव,लेद्दो ना ब्रह्मादास जी रा कानीराम चुनडी जी।
फिरीया फिरीया देश परदेश
कित ए न पाई म्हारी मरवण चूनड़ी जी।
पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना रोवां की भावज चूनड़ी जी।पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना, सोवा की भावज चूनड़ी जी।
लाड़ बहुँवां न चुनडल्यारो चाव,लेद्दो ना सुसराजी रा (लड़कों के नाम)चूनड़ी जी।
फिरीया फिरीया देश परदेश
कित ए न पाई म्हारी मरवण चूनड़ी जी।
पाई पाई बड़ा सजनियाँ री पोल
ओढो ना(बहन बेटियों के नाम) की भावज चूनड़ी जी।.
व ढलती बेलड़ी जी।
मालन फूलड़ा सा ल्याए, ईसरदास थारो कोटड्या जी।
नीव ढलती बेलड़ी जी।मालन फूलड़ा स ल्याए, कानीराम थारो आरती जी।
आरतडा में सुपारी लागी डोंडा जी।
डोंडा राज कोट चिणाए, झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाई छ ठाणम जी, बहुवां जाई छ साल,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां जाया बाछड़ा जी, बहुवां जाया छ पूत,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां खाया खोपरा जी बहुवां खाइ छ सूट,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गायां क गल घूघरा जी बहुवां कागल हार,
झीलो म्हारी चूनड़ी जी।
गोरल जायो द पूत जी कुण खिलाएगी जी,
खिलासी रोवां नणदं झाबर क पालण जी,
आंख मोड़ नाक मोड़ कड़ मोड़ घूमर घाल,
मारी चंद्र गौरजा भलाई नादान गरजा रतनारा खंभा दिख दूर स्यूं। महान आव अचंभों लोहडी र महलां राजन क्यूँ गया।
उड़ जाई ये तीतली दिवलो निमाई रे लोहड़ी शोक रो। म्हारी पायल बाज महला चढ़ती रा बाजे घुघरा । झुक जाईए बादली छैया कर देई ए नाजुक जीवन।
छः छल्ला छः मुंदड़ी जी छल्ला भरी परात। एक छल्ला कारण कोई छोड्या मांयर बाप। महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवर्जा।
महलां महलों में फिरु जी कोई खूंटी टंगीयो कोट। में म्हारा मारु जी री लाडली कोई नितरा देव नोट जी । महारी चंद्र गवरजा भलाई नादान।
महेंदी भरीयो बाटको जी ढोला, लिख लिख मांडू हाथ। लिखणी पढ़नो छोड़दयो कोई, निरखो गोरी रा हाथ जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान
चन्दा थार चान्दण जी कोई, डागल घाली खाट।गया न राजन बावड़ कोई, रातयू जऊ बाट जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गरजा,
मांय रंगायो पोमचो की कोई, नान्ही बंधण बंधाय। राजन केव गोरी ओढल्यो कोई, सासू सेख्या खाय जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
घी बरताऊं टोकना जी कोई, पापड तलू पचास।
बेटो परन्यो लाडलो जी कोई माता करें मिजाज। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
चार खुणां री बावड़ी जी ढोला, ज्यां में उछल नीर। म्हे म्हांरा राजन व्हायस्यां कोई, सगी नणंद रा बीर जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
महे कोमल पांखूड़ी जी ढोला, थे गुलाब रा फूल। म्हास्यूं निभा कर चाल ज्यो जी कोई बचन न जाया भूल की। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
कच्ची सुपारी कच्च कच्ची जी दोला, काचा म्हारा बोल। म्हे परदेशी पावणा जी कोई, हंस कर घुंघट खोल जी। म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
आलो भरीयो खोपरो जी कोई, खिड़की भरी बिदाम। गोरी चाली बाप के जी कोई राजन करे सलाम जी।म्हारी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
रतन जड़ायो पोल में जी कोई घड़ियों ना खोल्यों जाए। आप सारीसा सायबा जी कोई, घड़िया न छोड़या जाय जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा
म्हें दिपक री ज्योति सायबा, थे दिपक रो तेल। प्रेम री जोत जगास्यां कोई, कर हिदूय रो मोल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा।
साड़ी भारी पोत की जो ढोला, तारां जड़ी है बेल। घड़ी दोय महलां में पेरस्या कोई, खुशी होय सी छैल जी। म्हांरी चंद्र गवरजा भलाई नादान गवरजा,
रतनांरा थंम्बा दिख दूर स्यूं-पातलीया इशर जी।
गलीयां मं आव गौरा झूमती । म्हान आव अचम्भो लाहेड़ी र महलां दिवलो क्यूं जग। उड़ जाई ए तीतली दिवलो निभाई ए लोहड़ी शोक रो।
पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
Post author
By Pushpanjali
Post date
March 15, 2023
No Commentson Pataliya ishar ji galiya me aawe gora jhumti,पातलिया इशरजी गलीयां मं आव गौरां झूमती,gangor geet
चंद्र गवरजा म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
गढ़ स्यूं गौरां उतरी जी, हाथ कमल रो फूल म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं ।पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
हाथां मेहन्दी राचणी जी चूड़ला से सरब सुहाग। कानां मं कुन्डल पेरल्यो जी, कोई झूटणा री अजब बाहार जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झंगती।
चंद्र गवरजा म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झूमती ।
गढ़ स्यूं गौरां उतरी जी, हाथ कमल रो फूल म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं ।पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
हाथां मेहन्दी राचणी जी चूड़ला से सरब सुहाग। कानां मं कुन्डल पेरल्यो जी, कोई झूटणा री अजब बाहार जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झंगती।
माथा में मैमद पेरल्यो जी, रखड़ी की अजब बहार । भंवर बिजली खिंवस जी, नैन निंबू की फांक जी। म्हांरी रूप गवरज्या सुवरण री कलियां आव झूमती ।
होटा बिड़ला रच रया जी, दांत दाडु का बीज । जिभइल्या अमृत बस जी, कोई, नाक सुवा की चोंच जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या, भलाई नादान गवरज्या ,रतना रा खंभा दिख दूर स्यूं। पातलिया इशरजी, गलीयां में आव गौरां झूमती।
मूंगफली सी आंगली जी, बेलन की सी बांह। पसवाड़ा पासा भवर, कोई पेट गवां की लोथ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा खंभा दिख दूर स्यूं।
पीन्डी तो रत्नालियांस जी जांघ दिवल को थम्ब जी। एडी सुरग सुपारीयां जी कोई, फाबो सठवा सूंठ जी। म्हांरी चंद्र गवरज्या रतनां रा थंम्बा दिख दूर स्यूं । पातलिया इशरजी, गलीयां मं आव गौरां झुंमती ।
इशर दास बीरो चूनड़ी रंगाई बाई सूदरा र दाय नहीं आई
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By Pushpanjali
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March 10, 2023
No Commentson Ishardas biro chundi rangayi Bai sudra ke daay nahi aayi, इशर दास बीरो चूनड़ी रंगाई बाई सूदरा र दाय नहीं आई,gangor geet
इशर दास बीरो चूनड़ी रंगाई बाई सूदरा र दाय नहीं आई रे नील घर ओज्यूं रंग दे म्हांरी चूनड़ीयां ।
अल्ला रंग दे मेरा पल्ला रंग दे। म्हारा माथे पे मोरीया छपाई रे नीलधर, ओज्यू रंग दे मेरी चूनडीयां ।
नोट : भाई बहन का नाम लेव
कन्हैया लाल बीरो चूनड़ी रंगाई बाई रोवा र दाय नहीं आई रे। नीलधर ओज्यूं रंग दे मेरी चूनड़ीया । अल्ला रंग दे मेरा पल्ला रंग दे। म्हारा माथे पे मोरीया छपाई रे नीलधर । ओज्यू रंग दे मेरी चूनडीयां।
इशर दस जीन सोव पीली पागड़ी ए मांय
इशर दस जीन सोव पीली पागड़ी ए मांय। गौरां बाई न चूनड़ ली रो कोड ।
रंगा दो जामन चूनड़ी ए माय।
चूनड़ी रा अल्ला पल्ला घुघरा ए मांय। बीच में सुरज खांडो चांद।रंगा दो जामन चूनड़ी ए माय।इशर दस जीन सोव पीली पागड़ीए मांय। गौरां बाई न चूनड़ ली रो कोड ।
कानीराम बीरा न सोव धोला धोतीया ए माय।
बहू लाड़लड़ी न चूनड़ ली रो कोड़, रंगा दे जामन चूनड़ी ए माय ।इशर दस जीन सोव पीली पागड़ीए मांय। गौरां बाई न चूनड़ ली रो कोड । (भाई भाभी का नाम लेव)
ईश्वर दास जी के सोहे पीली पागड़ी ये मां, गोरा बाई ने चुनडली रो कोड़,रंगाई दो जामन चुनडी।
चुनडी रे चारु पल्ला घुघरा ये मां, बीच में सूरज और चांद,रंगाई दो जामन चुनडी। ईश्वर दास जी के सोहे पीली पागड़ी ये मां, गोरा बाई ने चुनडली रो कोड़,रंगाई दो जामन चुनडी।
ईश्वर दास जी के सोहे पीली पागड़ी ये मां, गोरा बाई ने चुनडली रो कोड़,रंगाई दो जामन चुनडी।
चुनडी रे चारु पल्ला चिर कढ़ाए दे मां।घुघरी घलाद्यो दादर मोर,रंगाई दो जामन चुनडी। ईश्वर दास जी के सोहे पीली पागड़ी ये मां, गोरा बाई ने चुनडली रो कोड़,रंगाई दो जामन चुनडी।
ईश्वर दास जी के सोहे पीली पागड़ी ये मां, गोरा बाई ने चुनडली रो कोड़,रंगाई दो जामन चुनडी।
पेलो हिंडोलो मंडल ओ बीरा दूजो कोई गढ़ गुजरात। अंगवो गड़ा ओ बीरा चोथो कोई ब्रह्मा जी री पोल।
हिंडू बाई सूदरा तीजणी ए, हिंडाब थारो ईशरदास बीर। हिंड बाई रोवा तीजणी ए, हिन्डाव थारो कन्हैया लाल बीर।
होलस झोटो देई म्हारा बीरा रे दिख से चीर
फाट तो फाटण देई म्हारी बई ए, जुग जिव थारो कान्ह कंवर सो चीर ।
होल् स झोटो देई म्हारा बीरा, रे फाटलो दिखण्यां रो चीर। फाट तो फाटण देई म्हारी बई ए, जुग जिव थारो कान्ह कंवर सो बीर।
नोट : भाई का नाम लेव।
होलस झोटो देई म्हारा बीरा, रे टूटलो नव स रो हार।टूट तो टूटण देई म्हारी बाई ए, जुग जिव थारो कान्ह कंवर सो बीर।
गणगौर का टीकी गीत (Gangaur Ka Tiki Geet)
अम्बो तो जाम्बा टीकी ,पाना तो पल्ला टीकी
हरो नगीनों टीकी सोना की
या टीकी गौरा बाई ने सोवे
ईशरदास जी बैठ घडावे टीकी
अम्बो तो जाम्बा
bhanon v jwaiyon ka naam lenve
गणगौर का थारो चोपडो गीत (Gangaur Ke Geet Lyrics)
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ
ब्रह्मदास जी रा ईसरदास जी रोली रंग लाया ऐ
ईसरदास जी रा कानीराम जी परण पधराया ऐ
परण पधारया वाकी माया टीका काड़या ऐ
रोली का वे टीका काड़या ऊपर चावल चेपया ऐ
गौर थारो चोपडो माणक मोतिया छायो ऐ
माणक मोतिया छायो ऐ वो तो सच्चा मोती छायो ऐ।
गारा की गणगौर गीत (Gara Ki Gangaur Geet)
गारा की गणगौर कुआ पर क्यों रे खड़ी है।
सिर पर लम्बे-लम्बे केश, गले में फूलों की माला पड़ी रे।। गारा की गणगौर…
चल्यो जा रे मूरख अज्ञान, तुझे मेरी क्या पड़ी रे।
म्हारा ईशरजी म्हारे साथ, कुआ पर यूं रे खड़ी रे।। गारा की गणगौर…
माथा ने भांवर सुहाय, तो रखड़ी जड़ाव की रे।
कान में झालज सुहाय, तो झुमकी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर…
मुखड़ा ने भेसर सुहाय, तो मोतीड़ा जड़ाव का रे।
हिवड़ा पे हांसज सुहाय, तो दुलड़ी जड़ाव की रे।। गारा की गणगौर…
तन पे सालू रंगीलो, तो अंगिया जड़ाव की रे।
हाथों में चुड़ला पहना, तो गजरा जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर…
पावों में पायल पहनी, तो घुंघरू जड़ाव का रे।
उंगली में बिछिया सुहाय, तो अनवट जड़ाव का रे।। गारा की गणगौर…
पूजा शुरू करते समय
1) किवाड़ी खुलवाने का गीत — Gangaur ka Geet Kiwadi khulvane ka
गौर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी
बाहर ऊबी थारी पूजण वाली।
पूजो ए पूजो बाईयां , काई काई मांगों
म्हे मांगा अन्न धन , लाछर लक्ष्मी।
जलहर जामी बाबुल मांगा, राता देई मायड़
कान कंवर सो बीरो मांगा , राई सी भौजाई।
ऊँट चढयो बहनोई मांगा , चूंदड़ वाली बहना
पूस उड़ावन फूफो मांगा , चूड़ला वाली भुवा।
काले घोड़े काको मांगा , बिणजारी सी काकी
कजल्यो सो बहनोई मांगा , गौरा बाई बहना।
भल मांगू पीहर सासरो ये भल मांगू सौ परिवार ये
गौर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी।
गीत ( 2 )
ऊँचो , चवरो , चोकुंटो , जल जमना रो नीर मंगाय।
जठ ईशर जी सांपज ,बाई गवरा गवर पूजाय।
गवर पूजावंता यूं केब ,सायब आ जोड़ी अबछाल राख
अबछल पीवर सासरो , ए बाई ,अब छल सो परिवार ,
ऊँचो चवरो चोकुंटो जल जमना रो नीर मंगाय।
( अपने घर वालो के नाम लेते जाएँ )
गणगौर के गीत हिंडा के
Gangaur ke Geet Hinda ke
चम्पा री डाली , हिन्डो माण्डयो , रेशम री गज डोर।
जी ओ म्हे हिन्डो माण्डयो।
म्हारे हिंडोल इशरदास जी पधारया , ले बाई गवरा ने साथ।
जी ओ म्हे हिन्डो माण्डयो।
होले से झोटो दिया ओ पातलीया डरप लो नाजूक जीव।
जी ओ म्हे हिंडो मण्डियों।
चम्पल री डाली हिंडो मांडियो ,रेशम री गज डोर।
जी ओ म्हे हिंडो मंड्यो।
( बेटी जवाई के नाम लेते जाएँ )
********************
गणगौर के गीत चूनड़ी के
Gangaur ke Geet Chundi ke
गीत ( 1 )
ईशरदास जी बीरो चूनड़ी रंगाई
बाई रोवां के दाय नहीं आई रे
नीलगर ओज्यूँ रंग दे म्हारी चुनड़ी
अल्ला रंग दे पल्ला रंग दे।
म्हारे माथे पे मोरिया छपाई दे नीलगर।
( भाई बहन का नाम लेना हैं।
ईशरदास जी की जगह भाई का नाम
और रोवा की जगह बहन का नाम )
गीत ( 2 )
चमकण घाघरो चमकण चीर ,
बोलबाई रोवां कुण थारा बीर
बड़ो बड़ो म्हारो ईशरदास बीर
बांसयुं छोटो कानीराम बीर
चुनरी ओढावे म्हारो ईशरदास बीर
माय स्यु मिलावे म्हारो छोटो कानीराम बीर।
चमकण लागे घाघरा चमकण चीर …
( भाई का बहन का नाम लेते हैं )
गणगौर का गीत चोपड़ा का
Gangaur ka Geet Chopada ka~~~~~
गौर थारो चोपडो माणक मोती छायो ऐ
माणक मोती छायो ऐ यो तो सच्चा मोती धायो ऐ
ब्रह्मदास जी रा ईसरदास जी रोली रंग लाया ऐ
ईसरदास जी रा कानीराम जी परण पधराया ऐ
परण पधारया वाकी माया टीका काड़या ऐ
रोली का वे टीका काड़या ऊपर चावल चेपया ऐ
गौर थारो चोपडो माणक मोतिया छायो ऐ
माणक मोतिया छायो ऐ वो तो सच्चा मोती छायो ऐ।
(ब्रह्मदास जी की जगह दादा ससुर जी का ,
ईसरदास की जगह पति का और
कानीराम जी की जगह पुत्र का नाम लेना चाहिए )
जंवारा – गणगौर गीत
म्हारा हरिया जंवारा ओ राज लंबा-तिखा सरस बदृया
म्हारा लुणीया जंवारा हो लांबा-तिखा सरस बदृया…
ये तो सुरजीरा बाया हो राज, रेणा दे जी सिंच लिया
ये तो इसरजीरा बाया ओ राज, गोरा दे जी सिंच लिया
ये तो सासु बहुरा सिंच्या ओ राज, गहुडा पिला पड रह्या
बाईसा तो गड सिंच्या ओ राज, लांबा-तिखा सरस बदृया
म्हारो दूध भरो कटोरो ओ राज, बाई रोवा पीव लिया
म्हारो गेना भरीयो डाबो ओ राज, बाई सोवा पेर लिया
म्हारी पचरंगी चुंदडी ओ राज, बाई गोरां ओढ लिया
म्हारा हरिया जंवारा …
पाटो धो – गणगौर गीत 6
पाटो धोये पाटो धो , भायां को बहन पाटो धो, पाटा ऊपर पीलो पान , महे जाश्या बीरा की
जान,
जान जाश्या पाँ खास्या, बीरा ने परंणाशयां
थाली में खाजा, म्हारो बीरो राजा थाली में पताशा बीरो करे तमाशा
चूडो धो ये चूडो धो, भायां को बहन चूडो धो, पाटा ऊपर पीलो पान,
म्हे जाश्या बीरा को जान,
जान जाश्या पान खाश्या, बीरा ने परंणाशयां
थाली में खाजा, म्हारो बीरो राजा थाली में पताशा बीरो करे तमाशा
एल खेल – गणगौर गीत 7
एल खेल नदी बेव ओ पाणी कठ जासी रे,
आधो जासी अल्या गल्या आधो इसर न्हासी रे,
इसरजी न्हाया धोया गोरा बाई न्हासी रे,
गोराबाई क बेटो हुयो भुवा बधाई ल्यासी रे,
अरदा ताणों परदा ताणों बांदरबाल बंधाओ रे,
सार केरी सुई ल्याओ पाट करा बांगा रे,
आवो रे भतीजा थांकी भुवा ल्याई बागा रे,
भुवाक भरोसे जी भतीजा रेग्या नागा रे,
पावडिया – गणगौर गीत 8
पग दे पावडिया, ईसरदास जी चढया, लैर बाई रोवां, देवो ना सभी देव आशीष जी
पग दे पावडिया, कानीराभ चढया, लैर बाई रोवां, देवो ना सभी देव आशीष जी
गणगौर माता की कहानी
Gangaur Ki Kahani
Gangaur Ki Kahani
राजा के बोये जौ – चना, माली ने बोई दूब, राजा का जौ – चना बढ़ता जाय माली की दूब घटती जाये। एक दिन माली बगीचे की घास में जाकर कम्बल ओढ़ कर छुप गया। छोरिया जब दूब लेने आई, दूब तोड़ कर जाने लगी तो माली ने उनसे उनके हार, डोरे खोस लिए छोरिया बोली, क्यों तो हार खोसे, क्यों डोरे खोसे, जब सोलह दिन की गणगौर पूरी हो जायेगी तब हम पूजा का सामान दे जायेंगे।
सोलह दिन पुरे हुए तो छोरिया आई पूजा का सामान देने और उसकी माँ से बोली तेरा बेटा कहा गया। माँ बोली वो तो गाय चराने गयो हैं, छोरिया ने कहा यह पूजा का सामान कहाँ रखे तो माँ ने कहा, ओबरी गली में रख दो। बेटो आयो गाय चराकर, और माँ से बोल्यो छोरिया आई थी, माँ बोली आई थी, पूजा का सामान लाई थी।
हाँ बेटा लाई थी ओबरी गली में रख्यो हैं। ओबरी ने एक लात मारी, दो लात मारी पर ओबरी नहिं खुली बेटे ने माँ को आवाज लगाई और बोल्यो माँ ओबरी तो नही खुले तो माँ बोली बेटा ओबरी नही खुले तो पराई जाई को कैसे ढाबेगा [ रखेगा ], माँ पराई जाई तो ढाब लूँगा पर ओबरी नही खुले माँ ने आकर गणगौर माता के नाम का रोली, मोली, काजल का छीटा लगाया और ओबरी खुल गई। ओबरी में ईशर गणगौर बैठे, हीरे मोती ज्वारात के भंडार भरिये पड़े।
हे गणगौर माता ! जैसे माली के बेटे को ठुठी वैसे सबको ठुठना, कहता ने, सुणता ने, हुंकारा भरता ने, म्हारा सारा परिवार को खुश रखना।
एक दिन पहले सिंजारा
गणगौर समापन के एक दिन पहले यानी चैत्र शुक्ल दितीय पर सिंजारे का पर्व आता है . इस दिन घर में घेवर , खीर खाई जाती है . जिन कन्यायो की सगाई हो चुकी है , उनके ससुराल पक्ष से मिठाई , वस्त्र और गहने अपनी होने वाली बहु के लिए भेजे जाते है . जिन महिलाओ की शादी हो चुकी है उनके पीहर वाले उनके ससुराल में सिंजारा भेजते है .
राजस्थान मे बहुत से त्योहार मनाये जाते है लेकिन चैत्र मास त्योहारो का आखरी मास माना जाता है । नवरात्रों के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता याने की माँ पार्वती की पूजा की जाती है | पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पती ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की | शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा | पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की | पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गयी । बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां मन इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है | सुहागिन स्त्री पती की लम्बी आयु के लिए पूजा करती है |गणगौर की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है | | सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बाड़ी बगीचे में जाती है दूब व फूल लेकर आती है | दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है | थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदी सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है |
आठ वे दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते है | उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है | उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालन,आदि की छोटी छोटी मूर्तिया बनाती है | जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर व जहा विसर्जित की जाती है वह स्थान ससुराल माना जाता है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है | आज यानी की चैत्र मास की तीज सुदी को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है | दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है | यानी की विसर्जित किया जाता है | विसर्जन का स्थान गाँव का कुआ ,जोहड़ तालाब होता है | कुछ स्त्री जो शादी शुदा होती है वो अगर इस व्रत की पालना करने से निवर्ती होना चाहती है वो इसका अजूणा करती है (उधापन करती है ) जिसमें सोलह सुहागन स्त्री को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में जगह जगह सवारी निकाली जाती है जिस मे ईशर दास जीव गणगौर माता की आदम कद मूर्तीया होती है | उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर ,प्रसिद्ध है |
राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर | अर्थ है की सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है | इस पोस्ट की बाबत जो जानकारी मिली है वो राजस्थानी भाषा के ब्लॉग आपणी भाषा-आपणी बात से मिली है | चित्र गूगल से लिए गए है ( किसी को आपत्ती हो तो बताये हटा दिए जायेंगे
राजस्थान मे बहुत से त्योहार मनाये जाते है लेकिन चैत्र मास त्योहारो का आखरी मास माना जाता है । नवरात्रों के तीसरे दिन यानी की चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता याने की माँ पार्वती की पूजा की जाती है | पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है।प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पती ( वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की | शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा | पार्वती ने उन्हें वर रूप में पाने की इच्छा जाहिर की | पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और उनसे शादी हो गयी । बस उसी दिन से कुंवारी लड़कियां मन इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है | सुहागिन स्त्री पती की लम्बी आयु के लिए पूजा करती है |गणगौर की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है | | सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बाड़ी बगीचे में जाती है दूब व फूल लेकर आती है | दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है | थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदी सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है |
आठ वे दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते है | उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है | उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालन,आदि की छोटी छोटी मूर्तिया बनाती है | जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर व जहा विसर्जित की जाती है वह स्थान ससुराल माना जाता है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है | आज यानी की चैत्र मास की तीज सुदी को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है | दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है | यानी की विसर्जित किया जाता है | विसर्जन का स्थान गाँव का कुआ ,जोहड़ तालाब होता है | कुछ स्त्री जो शादी शुदा होती है वो अगर इस व्रत की पालना करने से निवर्ती होना चाहती है वो इसका अजूणा करती है (उधापन करती है ) जिसमें सोलह सुहागन स्त्री को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में जगह जगह सवारी निकाली जाती है जिस मे ईशर दास जीव गणगौर माता की आदम कद मूर्तीया होती है | उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर ,प्रसिद्ध है |
राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर | अर्थ है की सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है | इस पोस्ट की बाबत जो जानकारी मिली है वो राजस्थानी भाषा के ब्लॉग आपणी भाषा-आपणी बात से मिली है | चित्र गूगल से लिए गए है ( किसी को आपत्ती हो तो बताये हटा दिए जायेंगे
धुलंडी के दिन से चल रहे बाला गणगौर पूजन अनुष्ठान के तहत शीतला अष्टमी से दांतणिया देने व घुड़ला घुमाने की शुरुआत होगी। शाम को बालिकाएं घरों के पास िस्थत मंदिरों, बगीचीयों, हवेलियों, सार्वजनिक जल स्टैंड की चौकियों पर अबीर, गुलाल से विभिन्न प्रकार के मांडणे चित्रित करेंगी। इस दौरान पारंपरिक गणगौरी का गायन होगा। वहीं देर शाम से रात तक बालिकाएं मिट्टी से बने घुडले में बालू मिट्टी भरकर उस पर दीपक प्रज्जवलित कर रखेगी व गली-मोहल्ले में िस्थत मकानों पर पहुंचेगी। इस दौरान घुडला के पारंपरिक गीतों का गायन होगा।
bhaskar
गणगौर तीज कल:मिट्टी से बनाते हैं भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति पति की लंबी उम्र के लिए होता है ये व्रत
24 मार्च को गणगौर पर्व मनेगा। ये त्योहार चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है।
इसमें कन्याएं और शादीशुदा महिलाएं मिट्टी के शिवजी यानी गण और माता पार्वती यानी की गौर बनाकर पूजन करती हैं। गणगौर के समाप्ति पर त्योहार धूम धाम से मनाया जाता है और झांकियां भी निकलती हैं।
सोलह दिन तक महिलाएं सुबह जल्दी उठकर बगीचे में जाती हैं, दूब और फूल चुन कर लाती हैं। दूब लेकर घर आती है उस दूब से मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता दूध के छीटें देती हैं। वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं।
दूसरे दिन शाम को उनका विसर्जन कर देती हैं। जहां पूजा की जाती है उस जगह को गणगौर का पीहर और जहां विसर्जन होता है उस जगह को ससुराल माना जाता है।
अविवाहित कन्या करती हैं अच्छे वर की कामना
गणगौर एक ऐसा पर्व है जिसे, हर महिला करती है। इसमें कुवारी कन्या से लेकर, शादीशुदा तक सब भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि शादी के बाद पहला गणगौर पूजन मायके में किया जाता है।
इस पूजन का महत्व अविवाहि त कन्या के लिए, अच्छे वर की कामना को लेकर रहता है जबकि, शादीशुदा महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए ये व्रत करती है। इसमें अविवाहित कन्या पूरी तरह से तैयार होकर और शादीशुदा सोलह श्रृंगार करके पूरे सोलह दिन विधि-विधान से पूजन करती हैं।
देवी पार्वती की विशेष पूजा
गणगौर पर देवी पार्वती की भी विशेष पूजा करने का विधान है। तीज यानी तृतीया तिथि की स्वामी गौरी हैं। इसलिए देवी पार्वती की पूजा सौभाग्य सामग्री से करें। सौलह श्रृंगार चढ़ाएं। देवी पार्वती को कुमकुम, हल्दी और मेंहदी खासतौर से चढ़ानी चाहिए। इसके साथ ही अन्य सुगंधित सामग्री भी चढ़ाएं।