गणेश जी और तिल के दाने – Ganesh Ji Aur Til Ke Daane
गणेश जी की कथाएँ – गणेश जी और तिल के दाने – Ganesh Ji Aur Til Ke Daane
एक बार गणेश जी महाराज एक सेठ के तिल के खेतों से निकल रहे थे। तिलों को देखकर गणेश जी को तिल खाने की इच्छा हो गई। उन्होंने कुछ दाने तोड़ कर खा लिए। तिल खाते ही गणेश जी को एहसास हुआ, “अरे ये तो बहुत भारी पाप हो गया। किसी से बिना पूछे उसकी वस्तु लेना तो चोरी होती है। मुझसे तो चोरी हो गई। अब इस चोरी का पाप अपने सर पर से उतरना पड़ेगा।”
गणेश जी बनें नौकर
उन्होंने ध्यान लगा कर देखा की उन्होंने तिल के बारह दाने खाए थे। गणेश जी ने सोचा, “इन बारह दानों के पाप उतारने के लिए मुझे इस खेत के मालिक के पास बारह वर्ष तक नौकरी करनी पड़ेगी। यह सोच के वह उस खेत के मालिक सेठ की दुकान पर गए और बोलें,
गणेश जी – सेठजी,सेठजी मुझे चाकर रख लो।
सेठजी का धंधा उस समय कुछ अच्छा नहीं चल रहा था इसलिए वे बोले,
सेठजी – मेरी दुकान पर तो अभी कोई काम नहीं है। काम धंधा भी अच्छा नहीं चल रहा है। इसलिए अभी मैं कोई नौकर नहीं रख सकता।
गणेश जी – मैं आपसे कोई पैसा नहीं लूँगा। बस आप मुझे दो समय का खाना और साल के दो जोड़ी कपड़े दे दिया करना।
सेठजी ने सोचा, “अरे वाह इतना सस्ता नौकर कहाँ मिलेगा। दुकान पर काम नहीं है तो क्या इसे घर पर रख लेता हूँ। सेठानी के कामों में हाथ बटा दिया करेगा।
सेठजी – ठीक है। तेरा नाम क्या है?
गणेश जी – मेरा नाम गणेशिया है।
सेठजी गणेशिया को अपने घर ले गए। गणेश जी नौकर बन कर सेठजी के घर में काम करने लगे।
गणेशिया ने यह क्या किया?
एक दिन गणेशिया ने देखा कि सेठानी पाखाने के बाद चूल्हे की राख से हाथ साफ कर रही है। तो उसने जाकर सेठानी का हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया और राख नीचे गिरवा दी। फिर मिट्टी से हाथ धुलवाये। सेठानी ने जाकर सेठ जी से शिकायत की,
सेठानी – देखों ना सेठजी, गणेशिया ने क्या किया?
सेठजी – क्या?
सेठानी – गणेशिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मरोड़ दिया.
सेठजी – क्यों रे गणेशिया, तूने सेठानी का हाथ क्यों मरोड़ा?
गणेशिया – सेठानी जी चूल्हे की राख से पाखाने के हाथ धो रही थी। चूल्हे की राख में लक्ष्मी जी का वायस होता है। इससे से हाथ धोने से रिद्धि-सिद्धि चली जाती है। इसलिए मैंने हाथ मरोड़ कर राख नीचे गिराई और मिट्टी से सेठानी जी के हाथ धुलवाये।
सेठजी – अरे सेठानी, गणेशिया बात तो बिल्कुल सही कह रहा है। आगे से पाखाने के हाथ चूल्हे की राख से नहीं, मिट्टी से धोया करना।
ये कैसा नौकर है?
कुछ दिनों बाद सेठानी ने सेठजी से तीर्थाटन पर जाने की इच्छा जताई। सेठजी तैयार हो गए। उन्होंने अपने साथ गणेशिया को भी ले लिया। हरिद्वार में गंगा तट पर पँहुचने पर सेठजी ने गणेशिया से कहा,
सेठजी – गणेशिया, मैं आगे जाकर आदमियों के साथ गंगा स्नान कर रहा हूँ। तू सेठानी जी का ध्यान रखना।
सेठानी किनारे पर बैठ कर लोटे से पानी डालकर स्नान करने लगी। यह देखकर गणेशिया सेठानी को पकड़कर थोड़ा आगे ले गया और गंगाजी में तीन डुबकियाँ लगवा दी।
घर पँहुच कर सेठनी ने सेठजी से गणेशिया की शिकायत की।
सेठानी – सेठजी आपने यह कैसा नौकर रखा है। यह गणेशिया मेरा हाथ पकड़कर आदमियों के बीच में ले जाकर नहला दिया।
सेठजी – क्यों रे गणेशिया, तूने ऐसा क्यों किया?
गणेशिया – तीर्थों पर जाकर भी कोई किनारे पर बैठ कर लोटे से स्नान करता है? तीर्थों पर तो जल में डुबकी लगाकर स्नान करने से पाप कटते है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
सेठजी ने सहमति से सिर हिलाते हुए कहा,
सेठजी – अरी सेठानी, गणेशिया तो बिल्कुल सही कह रहा है। तीर्थों के जल में डुबकी लगाने से ही स्नान का फल मिलता है।
गणेशिया ने चुनरी फाड़ दी!
कुछ दिनों में तीर्थ यात्रा पूरी करके तीनों वापस लौट आए। कुछ दिनों बाद सेठजी ने घर पर हवन का आयोजन करवाया। पूरी तैयारी होने पर सेठजी ने कहा,
सेठजी – जा रे गणेशिया, तेरी सेठानी तैयार हो गई होगी, उसे बुला ला।
गणेशिया सेठानी को बुलाने उनके कमरे में गया तो देखा कि सेठानी ने काले रंग के कपड़े पहन रखे थे, तो उसने सेठानी की चुनरी फाड़ दी।
सेठानी जोर से चिल्लाई। सेठजी भाग कर अंदर आए तो सेठानी ने कहा,
सेठानी – देखों ना सेठजी, आपके लाडले गणेशिया ने आज क्या किया? मेरी चुनरी फाड़ दी।
सेठजी – (गुस्से से) आज तो तुमने अच्छा नहीं किया। ऐसा भी कोई करता है, भला!
गणेशिया – सेठजी आप ही देखिए, सेठानी के काले रंग के कपड़े पहन रखे है। हवन या पूजा पाठ में भी कोई काले रंग के कपड़ पहनते है। हवन या पूजा पाठ में तो लाल-पीले-गुलाबी ऐसे रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
सेठजी – तेरी तो यह बात भी सही है, गणेशिया, सेठानी जल्दी से कोई लाल रंग का जोड़ा पहन कर आओ, हवन के लिए देर हो रही है।
मेरी पूजा कर लो!
गणेश जी को सेठजी के यहाँ काम करते हुए 12 वर्ष होने वाले थे। एक दिन सेठजी ने घर में पूजा का आयोजन किया। जब वे पूजा की तैयारी करने लगे तो देखा कि वे गणेश जी की मूर्ति तो लाना भूल ही गए है। उन्होंने गणेशिया से कहा,
सेठजी – गणेशिया, भाग कर बाजार जा और गणेश जी की मूर्ति ले आ।
गणेशिया – गणेश जी की मूर्ति की क्या आवश्यकता है। मैं भी तो गणेश ही हूँ। मेरी ही पूजा कर लो।
इतना कहकर गणेशिया गणेश जी के आसान पर बैठ गया। यह देखकर सेठजी को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उसे बुरा-भला कहते हुए हाथ पकड़ कर आसान से उतारना चाहा, तो गणेश जी अपने असली रूप में प्रकट हो गए। अपने सामने गणेश जी को साक्षात अपने सामने देख कर सेठ-सेठानी भाव विभोर हो गए। उन्होंने गणेश जी की वंदना की।
गणेशिया के असली रूप को जानने के बाद सेठ-सेठानी को उन्हें नौकर रख के काम करवाने पर ग्लानि होने लगी, सेठ ने हाथ जोड़कर कहा,
सेठजी – हे भगवान, हमने आपको नौकर रख कर आपसे इतना काम करवाया और बुरा-भला कहा। हमारा ये पाप कैसे उतरेगा?
गणेश जी – तुम किसी बात की चिंता मत करों, तुम्हें इस बात का कोई पाप नहीं लगेगा। बल्कि मैं तो अपना पाप उतारने के लिए तुम्हारे यहाँ नौकर बन कर रहा।
सेठजी – कौन सा पाप?
गणेश जी – बारह वर्ष पहले मैंने तुम्हारे खेतों से काले तिल के बारह दाने तोड़कर खा लिए थे। उसी का पाप उतारने के लिए मैं तुम्हारे घर पर बारह वर्षों तक नौकर बन कर रहा। मेरे प्रताप से तुम्हारे घर हमेशा रिद्धि-सिद्धि का वास रहेगा। अन्न-धन के भंडार भरे रहेंगे।
इतना कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए।
हे गणेश जी महाराज जैसी कृपा पाने सेठ-सेठानी पर की वैसी कृपा सब पर करना। सबको रिद्धि-सिद्धि का वरदान देना। कहानी कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
“बोलों गणेश जी महाराज की जय! पार्वती के लाल की जय!”
हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कहनी और सुननी चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – भगवान गणेश और सेठजी की भक्ति
तो दोस्तों, कैसी लगी गणेश जी की कहानी? बताना जरूर!
अगली कहानी – गणेश जी और देवरानी-जेठानी
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।