घमंडी का सिर नीचा – Ghamandi Ka Sir Nicha
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – घमंडी का सिर नीचा – Ghamandi Ka Sir Nicha
उज्जैनी नगर में उज्जवल नामक एक बढ़ई रहता था। वह बहुत गरीब था। जहाँ दूसरे बढ़इयों के बड़े-बड़े मकान थे, उसके पास अपनी एक टूटी झोंपड़ी भी नहीं थी। बड़े-बड़े बढ़इयों के कारण कोई उसे काम भी नहीं देता था।
गरीबी से तंग आकर एक दिन उसने सोचा, “इस नगर में तो मुझे कोई काम नहीं मिलता है, हो सकता है किसी दूसरे नगर में मुझे कोई काम मिल जाए।” यह सोचकर उसने उस नगर को छोड़कर दूसरे नगर में जाने का निश्चय किया।
मेरी तो चल पड़ी
अगले ही दिन उसने कुछ खाने-पीने का सामान अपने साथ लिया और अपनी यात्रा पर निकल पड़ा। रास्ते में एक घना जंगल था। उसमें से गुजरते हुए उसने देखा एक ऊँटनी प्रसव वेदना से तड़प रही थी। वह वहीं रूक गया। थोड़ी देर में उस ऊँटनी ने एक बच्चे को जन्म दिया। उज्जवल उस ऊँटनी और उसके बच्चे को लेकर वापस अपने घर आ गया।
ऊँटनी को अपने घर के बाहर खूँटे से बांध कर वह कुल्हाड़ी लेकर वापस वन में गया। वहाँ उसने वृक्षों की हरे-हरे पत्तों से भरी वृक्ष की शाखाएं काटी और घर लाकर ऊंटनी को खिला दी। अब वह रोज इसी तरह ऊँटनी और उसके बच्चे की देखभाल करने लगा। उसने उस रोज हरे-हरे पत्ते खाकर कुछ ही दिनों में ऊँटनी बिल्कुल स्वस्थ और हृष्ट-पृष्ट हो गई।
ऊँटनी के दूध से उसका गुजारा आराम से होने लगा। कहीं वह खो ना जाए, इस डर से उज्जवल ने उसके गले में एक घंटा बांध दिया। जब कभी भी वह इधर-उधर हो जाता, घंटे की आवाज से सुनकर वह उसे वापस ले आता। उसने उस बच्चे का नाम घटोष्ट्र रख दिया। समय बीतने के साथ घटोष्ट्र भी जवान हो गया।
अब तो उज्ज्वल के दिन आराम से कटने लगे थे। इस बीच उसने शादी कर ली और उसके बच्चे भी हो गए। ऊँटनी का दूध उसके बच्चों के काम आ जाता था और घटोष्ट्र से वह भार ढोने का काम करवा कर कमाई कर लेता। ऊँट-ऊँटनी से अपना गुजारा चलता देख उसने अपने नगर के एक धनिक से कुछ उधार लिया और गुर्जर देश में जाकर एक ऊंटनी और ले आया।
कुछ ही वर्षों में उसके पास अनेक ऊँट-ऊँटनियाँ हो गई। उसका व्यापार चमक गया, उसके घर में दूध-दही की नदियाँ बहने लगी। उसने धनिक का उधार भी चुका दिया और अपने ऊँटों की देखभाल के लिए एक रखवाला भी रख लिया।
मुझ सा ना कोई दूजा
सब कुछ अच्छा चल रहा था। उज्ज्वल का घंटोष्ट्र पर विशेष स्नेह था। उज्ज्वल के स्नेह और अपने गले में घंटा बंधे होने के कारण वह अपने को दूसरों से विशेष समझने लगा। रखवाला जब सब ऊँटों को लेकर वन में पत्ते खिलाने के लिए ले जाता तो वह सबको अकेला छोड़ थोड़ी दूर जाकर अकेले अलग भोजन करता। उसके घंटे की आवाज सुनकर रखवाला उसे वापस ले आता।
उसके साथियों ने उसे बहुत समझाया कि वह जंगल में ऐसे अकेले ना रहा करे। उसके घंटे की आवाज सुनकर कोई भी जंगली जानवर उस तक पँहुच सकता है और उसे अकेला देख कर उस पर आक्रमण कर सकता है। या फिर वह इस घंटे को उतार दे, जिससे उसका पता किसी को ना लग सके। लेकिन घंटे की वजह से ही तो वह सब ऊँटों में अलग और विशेष दिखता था। उसने ना तो वह घंटा उतारा और ना ही जंगल में अकेले जाना छोड़ा।
एक दिन जब सभी ऊंट वन में पत्ते खाकर और तालाब से पानी पीने के बाद वापस नगर को ओर लौट रहे थे, तब घंटोष्ट्र रखवालों की नजर बचाकर उन सब को छोड़ कर जंगल की सैर करने को अकेला चल दिया।
वह जंगल में दूर तक चला आया। उसके घंटे की आवाज जंगल में दूर दूर तक जा रही थी। जंगल में रहने वाले एक शेर ने जब घंटे की आवाज सुनी तो उसने आवाज का पीछा किया। आवाज का पीछा करते-करते वह घंटोष्ट्र तक पँहुच गया। उसे देख कर शेर उस पर झपट पड़ा ओर मार कर खा गया।
सीख
सज्जनों के बात ना मानने वाला और अपने आपकों दूसरों से विशेष समझ कर अभिमान करने वाला मारा जाता है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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