घर का भेदी – Ghar Ka Bhedi
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – घर का भेदी – Ghar Ka Bhedi – The House Piercing
देवी नगर में देवशक्ति नाम का राजा राज्य करता था। उसका एक रूपेश्वर नामक सुन्दर पुत्र था। एक बार सोते समय एक साँप रूपेश्वर के पेट में चला गया। रूपेश्वर जो भी खाता, साँप उसे खा लेता। साँप को बैठे बिठाए स्वादिष्ट भोजन मिलने लगा। इसलिए उसने रूपेश्वर के पेट को ही बिल मानकर उसमें अपना डेरा जमा लिया।
सारा भोजन पेट में बैठे साँप द्वारा खा लिए जाने के कारण और उसकी विषैली सांस से रूपेश्वर का शरीर कमजोर होने लगा, उसके चेहरे का सारा तेज चला गया। उसे इस तरह निस्तेज होते देख राजा देवशक्ति ने कई वैद्यों से उसका इलाज करवाया। उसने दूर-दूर से कई प्रसिद्ध वैद्यों को राजकुमार रूपेश्वर के इलाज के लिए बुलाया। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
राजकुमार रूपेश्वर दोनों दिन कमजोर होता गया। यह देख राजा देवशक्ति बहुत ही परेशान और चिंतित रहने लगा। अपने पिता को अपने कारण चिंतित देख राजकुमार अपने राज्य से बहुत दूर त्रिलोकपुर राज्य में चला गया। वह वहाँ के शिवमंदिर में भिखारी की तरह रहने लगा।
कर्मों का फल
त्रिलोकपुर राज्य के राजा बलि की सौदामिनी और सुलोचना नामक दो सुंदर बेटियाँ थी। राजा की दोनों बेटियाँ रोज सुबह अपने पिता को प्रणाम करने आती थी। दोनों राजा को प्रणाम करके बोलती थी,
👸🏽 सौदामिनी – महाराज की जय हो, आपकी ही कृपा से संसार में सारे सुख है।
👸🏻 सुलोचना – प्रणाम पिताजी, ईश्वर आपको अपने कर्मों का फल दे।
जहाँ सौदामिनी की बात सुनकर राजा बलि बहुत खुश होता तो सुलोचना की बात सुनकर उसे बहुत क्रोध आता। एक बार क्रोध में उसने अपने मंत्री सुदेश को बुलाया और उससे कहा,
🤴🏻 बलि – सुदेश, सुलोचना हमेशा कर्मों के फल की बात करते हुए कटु वचन बोलती है। मैं चाहता हूँ कि तुम इसका विवाह किसी गरीब परदेसी के साथ करवा दो, जिससे इसे अपने कर्मों का फल मिले।
राजा के आदेश पर सुदेश ने एक गरीब परदेशी की खोज प्रारंभ कर दी। इसी खोज में वह उसी शिव मंदिर में पँहुच गया, जहाँ रूपेश्वर भिखारी की तरह रहता था। वह उसे राजा के पास ले गया। राजा ने अपनी पुत्री सुलोचना का विवाह रूपेश्वर के साथ करके उसे बिना कुछ दिए विदा कर दिया।
चलों कहीं और चलें
सुलोचना रूपेश्वर के साथ उसी मंदिर में आ गई और उसे अपना पति मान कर उसकी सेवा करने लगी। कुछ दिनों बाद उसने अपने पति से कहा,
👸🏻 सुलोचना – प्रियवर, अपने ही देश में मैं कोई कार्य नहीं कर सकती और इस मंदिर में भिखारियों की तरह रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। क्यों ना हम किसी दूसरे नगर में चले जाए, जहाँ कुछ काम करके हम दोनों अपना निर्वाह कर लेंगे।
रूपेश्वर ने उसकी बात मान ली। सुलोचना ने उसी रात जाने की पूरी तैयारी कर ली और अगले दिन प्रात:काल ही दोनों ने अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी। थोड़ी दूर जाने पर राजकुमार रूपेश्वर थक जाता है तो वे एक तालाब के किनारे विश्राम करने के लिए रुक जाते है। राजकुमार रूपेश्वर को एक पेड़ के नीचे बैठा कर सुलोचना ने कहा,
👸🏻 सुलोचना – प्रियवर, मैं भोजन की व्यवस्था करने के लिए पास के गाँव से सामान लेने के लिए जा रहीं हूँ। जब तक आप यहीं रुकना और अपने सामान की रखवाली करना।
इतना कहकर सुलोचना सौदा लेने के लिए चली गई। उसके जाने के बाद रूपेश्वर को नींद आने लगी। वह उसी पेड़ की जड़ों में अपना सिर रखकर सो गया। उस पेड़ के नीचे बने बिल में एक साँप रहता था।
रूपेश्वर के गहरी नींद में सो जाने के बाद, उसके पेट में रहने वाला साँप हवा खाने के लिए निकल कर बाहर आ गया। उसकी फुफकार की आवाज सुनकर बिल में रहने वाला साँप भी बाहर आ गया। दोनों एक दूसरे के सामने अपने फन फैलाकर बैठ गए और आपस में बातचीत करने लगे।
इतने में ही सुलोचना सौदा लेकर वापस आ गई। उसने देखा कि उसका पति पेड़ के नीचे सोया हुआ है और दो साँप उसके पति के सर पर फन फैलाए बैठे हुए है। वह बहुत डर गई कि कहीं कोई साँप उसके पति को डस ना लें। उसने अपना सामान नीचे रखा और धीरे-धीरे पेड़ के पीछे पहुँची। तभी उसके कानों में दोनों सांपों की बातचीत पड़ी। वह पेड़ के पीछे छुप कर उनकी बात सुनने लगी।
और भेद खुल गया
🐍 बिल वाला साँप – तुम कौन हो? यहाँ कहाँ से आए हो?
🐍 पेट वाला साँप – मेरा नाम फणेश्वर है। मैं इस राजकुमार के पेट में रहता हूँ। जब यह सो जाता है तो मैं हवा खाने के लिए बाहर निकल जाता हूँ और इसके उठने से पहले वापस इसके पेट में चला जाता हूँ, और तुम?
🐍 बिल वाला साँप – मेरा नाम नागमणि है मैं इसी बिल में रहता हूँ और इस पेड़ के नीचे रखे स्वर्णकलश की रक्षा करता हूँ। लेकिन तुम तो बहुत ही दुष्ट हो जो इस सुंदर से राजकुमार का जीवन नष्ट कर रहे हो? तुम इसका शरीर छोड़कर कहीं और क्यों नहीं चले जाते।
🐍 फणेश्वर – तुम कौन से कम हो, तुम भी तो इस बिल में रखे स्वर्णकलश को अपने जहर से दूषित कर रहे हो। रही मेरी बात तो मैं इसका शरीर छोड़कर कहीं और क्यों जाऊँ? इसके द्वारा खाए भोजन से मेरा पेट भर जाता है। मैं तो यहाँ बड़े मजे में हूँ। कितने ही वैद्यों ने इसका इलाज किया, लेकिन कोई भी मुझे मुझे इसके पेट में से कोई नहीं निकाल पाया।
🐍 नागमणि – तो तुम क्या समझते हो, कि तुम्हें इस राजकुमार के पेट से निकालने की दवा किसी को भी मालूम नहीं है। मैं जानता हूँ, यदि कोई इसे राई को पानी में उबालकर बनाई हुई कांजी इसे पिला दे, तो उसे पीकर तुम मर जाओगे।
🐍 फणेश्वर – तो तुम कौन से अमर होकर आए हो। यदि कोई तुम्हारे ऊपर गरम-गरम तेल डाल दे, तो तुम उसी समय मर जाओगे।
खुशियों के दिन आ गए
इस तरह बातों ही बातों में दोनों ने एक-दूसरे के भेद खोल दिए, जो सुलोचना ने पेड़ के पीछे खड़े-खड़े सुन लिए। वह बिना आवाज करते हुए धीरे-धीरे पीछे गई। इसके बाद वह जल्दी से दुबारा गाँव में गई और वहाँ से राई और बहुत सारा तेल लेकर वापस आ गई। उसके पैरों की आहट सुनकर फणेश्वर जल्दी से रूपेश्वर के पेट में घुस गया और नागमणि अपने बिल में चला गया।
सुलोचना को दोनों का भेद मालूम हो गया था। उसने जल्दी से एक बर्तन में राई की कांजी बना कर अपने पति को पिला दी, जिससे उसके पेट में रहने वाले साँप ने भी पी ली। उसका दम घुटने लगा वह जल्दी से रूपेश्वर के पेट से बाहर निकला। लेकिन राई की कांजी पी लेने के कारण मर गया।
रूपेश्वर यह देख कर आश्चर्य चकित रह गया। उसने कुछ बोलना चाहा, लेकिन सुलोचना ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा। फिर उसने एक बर्तन में खूब सारा तेल गरम किया और बिल में उंडेल दिया। गरम तेल के कारण नागमणि भी मर गया। उसके मरने के बाद सुलोचना ने रूपेश्वर को सारी बात बता दी।
दोनों ने मिलकर बिल में से स्वर्णकलश निकाल लिया। इतना सारा धन पाकर उनकी गरीबी दूर हो गई। साँप के पेट में से निकल जाने के कुछ दिनों बाद ही रूपेश्वर कुछ ही दिनों में एकदम निरोग हो गया। तब उसने सुलोचना को अपने बारे में सब बताया। इसके बाद वह सुलोचना को लेकर अपने नगर आ गया।
अपने पुत्र को अपने सामने पाकर राजा देवशक्ति बहुत खुश हुए। उन्होंने बड़ी धूमधाम से दोनों का स्वागत किया। सुलोचना अपने पति के साथ खुशी-खुशी राजमहल के सुख भोगने लगी।
सीख
- मित्रों को एक-दूसरे के रहस्य दूसरों के सामने प्रकट नहीं करने चाहिए। इससे हानि उठानी पड़ सकती है।
- धैर्य और हिम्मत से बड़ी से बड़ी विपत्ति का सामना किया जा सकता है।
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पिछली कहानी – दो मित्रों में विवाद से ब्राह्मण के हित की कहानी “ब्राह्मण, चोर और राक्षस“
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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