चार मूर्ख पंडित – Chaar Murkh Pandit
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – चार मूर्ख पंडित – Chaar Murkh Pandit – Four Foolish Pundits
काशीपुर नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे: लक्ष्मीदास, रामदास, बद्रीदास और गोपीदास। चारों बहुत अच्छे मित्र थे। चारों एक साथ विद्या ग्रहण करने के लिए कान्यकुब्ज गए। वहाँ अपने गुरु की देखरेख में 12 वर्षों तक निरंतर पढ़ाई करने के बाद उन्होनें सभी शास्त्रों को कंठस्थ कर लिया। उन्होंने शास्त्रों का तो पूर्ण अध्ययन कर लिया था लेकिन व्यवहारिक बुद्धि उनमें बिल्कुल नहीं थी।
खैर विद्या पूर्ण होने पर उन्होंने अपने गुरु से आज्ञा ली और अपने पोथी-पत्रों को लेकर अपने घर को निकाल पड़े। चलते-चलते वे एक दोराहे पर पँहुच गए। अब उनकी समझ में नहीं आया कि कौनसे रास्ते पर जाया जाए, इसलिए चारों वहीं बैठ गए। तभी वहाँ से एक वैश्य (महाजन) की अर्थी निकली, जिसके साथ बहुत से महाजन भी जा रहे थे। रामदास ने उन्हें रोककर उनसे पूछा,
🧖🏻♂️ रामदास – आप लोग कौन है और कहाँ जा रहे है?
👳🏾 एक महाजन – हम महाजन है, हमारा एक साथी मर गया है, इसलिए उसके दाह संस्कार के लिए श्मशान जा रहे है।
ज्ञानियों का ज्ञान
महाजन नाम सुनकर उन्हें कुछ याद आया, उन्होंने अपनी पोथी खोली और पन्ने पलट कर देखा तो एक जगह लिखा हुआ था, “महाजनो येन गतः स पन्थाः” (अर्थात् महानपुरूष जिस पथ पर जाते है, उसका अनुसरण करना चाहिए। या महापरूषों द्वारा दिखाए गए पथ पर चलना चाहिए।)
उन्होंने उसका अर्थ लगाया, “जिस मार्ग से महाजन जाए, उसी मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।” बस फिर क्या था, पुस्तक में लिखे को ब्रह्म-वाक्य मानने वाले चारों पंडित महाजनों के पीछे़-पीछे़ चल पड़े। थोड़ी देर में वे उनके साथ श्मशान पर पँहुच गए। श्मशान के द्वार के पास उन्होंने एक गधे को खड़े देखा। चार पैरों वाले विचित्र प्राणी को देखकर वे अचंभित रह गए। लक्ष्मीदास ने कहा,
🙍🏻♂️ लक्ष्मीदास – यह चार पैरों वाला विचित्र प्राणी कौन है?
🙍🏽♂️ बद्रीदास – ठहरों, अभी पोथी में देख कर बताता हूँ।
दरअसल 12 वर्षों तक गुरु के आश्रम में रहते हुए वे केवल किताबों के अध्ययन में ही लगे रहे, कभी भी आश्रम की चारदीवारी से बाहर ही नहीं निकले, इसलिए उन्हें पुस्तकों के अतिरिक्त संसार की किसी भी वस्तु का ज्ञान नहीं था। अब जब भी वे कुछ नया देखते लगते अपने पोथी-पत्रों को उधेड़ने।
तो भाई उन्होंने फिर से अपनी पोथी खोली और पढ़ने लगे,
🙍🏽♂️ बद्रीदास – “राजद्वारे श्मशाने च यसतिष्ठती स बान्धव:।” (अर्थात् जो व्यक्ति न्यायालय में मुकदमा होने पर या श्मशान में आपके साथ खड़ा रहे अर्थात् संकट के समय में जो साथ दे, वहीं आपका मित्र, भाई या रिश्तेदार है।)
उन मूर्खों ने इस श्लोक के अर्थ का अनर्थ करते हुए अर्थ निकाला, “राजद्वार और श्मशान पर जो खड़ा हो, वह भाई होता है।” बस फिर क्या था, चारों किताबी कीड़ों ने गधे को अपना भाई मान लिया। कोई उसके गले लगने लगा तो कोई उसके पैर धोने लगा। अभी उनका यह कार्यक्रम चल ही रहा कि एक ऊँट तेजी से भागता हुआ उधर से निकला। उसे देखकर फिर उनकी बुद्धि चकरा गई,
🧟♂️ गोपीदास – अब ये कौन आ गया, जो इतनी तेज गति से चल रहा है?
🙍🏻♂️ लक्ष्मीदास – इसका जवाब भी पुस्तक में ही मिलेगा।
तो फिर वे लग गए अपनी पोथी से माथा-पच्ची करनें। उन्होंने अपनी पुस्तक में श्लोक पढ़ा,
🙍🏻♂️ लक्ष्मीदास – “धर्मस्य त्वरिता गति:” (अर्थात् धर्म की गति (चाल) बहुत तेज होती है।)
बस क्या था, उन्होंने अर्थ निकाला, “तेज गति से चलने वाला धर्म होता है।” उन्होनें मान लिया कि यह तेज गति से जाने वाला और कोई नहीं धर्म ही है। तभी उनमें से एक को एक श्लोक याद आया, “इष्टं धर्मेण योजयेत्।” (अर्थात् जो वस्तु प्रिय हो उसका धर्म से समायोजन के लेना चाहिए।)
तो प्यारे पंडितों ने अर्थ निकाला, “इष्ट (प्रिय) को धर्म से जोड़ लेना चाहिए।” तो अब वे सोचने कि उनका इष्ट (प्रिय) कौन है?
🧖🏻♂️ रामदास – यहाँ अपना प्रिय कौन है?
🙍🏻♂️ लक्ष्मीदास – अरे मूर्ख, (गधे की तरफ इशारा करते हुए) यह तो रहा।
🧟♂️ गोपीदास – हाँ, पुस्तक के अनुसार यह हमारा भाई है, इसलिए यहीं हमारा प्रिय है।
बस गधा बन गया उनका इष्ट और ऊँट हो गया धर्म! बस चारों लग गए दोनों का समायोजन करवाने। एक ने कहीं से रस्सी ढूँढी। फिर चारों ने मिलकर बड़ी मुश्किलों से दोनों को पकड़ा और रस्सी से आपस में बांध दिया। अब बेचारे गधे की तो आफत आ गई। वह रस्सी से बंधा ऊँट के साथ घिसटने लगा।
वह गधा एक धोबी का था। किसी ने जाकर धोबी को इस घटना की सूचना दे दी। धोबी ने उठाया एक बड़ा सा लट्ठ और चारों के पीछे भागा। धोबी को लट्ठ लेकर अपनी ओर आते देख कर चारों अपनी जान बचा के वहाँ से भाग छूटे।
सर्वनाश से तो आधा भला!
अभी वे भागते हुए कुछ दूर ही गए थे कि उनके रास्ते में एक नदी आ गई। लो आ गई एक और मुसीबत, अब इस नदी के पार कैसे जाया जाए? चारों नदी के किनारे बैठ कर सोच-विचार में डूब गए। तभी उन्हें उन्हें नदी में बहकर आता हुआ फलाश का पत्ता दिखा। अब ज्ञान कहाँ से मिलेगा, पुस्तक से ही ना। तो गोपीदास ने जल्दी से अपनी पोथी निकाली और पढ़ा,
🧟♂️ गोपीदास – “आगमिष्यति यत्पत्रं तदस्मांस्तारयिष्यति।” (अर्थात् आने वाला पत्ता ही पार उतारेगा।)
अब किताब भी कभी गलत हो सकती है। उसने आव देखा ना ताव, उस पत्ते पर कूद पड़ा। वह पत्ते सहित नदी में डूबने लगा। उसे डूबते देख बाकी तीनों घबरा गए। इतनी देर में गोपीदास पूरा डूब गया। केवल उसकी शिखा ही नदी के बाहर दिखाई दे रही थी। लक्ष्मीदास ने झपट कर उसकी शिखा को पकड़ लिया। अब तीनों मिलकर लगे खींचने, लेकिन बहुत जोर लगाने पर भी केवल उसका चेहरा ही बाहर आ पाया।
अब तो उनकी शक्ति भी जवाब देने लगी। अब क्या किया जाए, उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तो भई, डूबते को तिनके का सहारा, पुस्तक! रामदास ने जल्दी-जल्दी किताब निकाली और पन्ने पलटने लगा। उसने पढ़ा,
🧖🏻♂️ रामदास – “सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पंडितः।” (अर्थात् जहाँ सर्वनाश हो रहा हो, वहाँ आधे का त्याग कर के आधे को बचा लेने वाला ही पंडित (बुद्धिमान) है।)
इस बार तो उन्होनें बिल्कुल सही अर्थ निकाल लिया। बस फिर क्या था, उन्होंने पूरे आदमी को बचाने की जगह आधे आदमी को बचाना ही ठीक समझा। रामदास ने अपने झोले से चाकू निकाला और गोपीदास की गर्दन काट दी। गोपीदास का सिर उनके हाथ में आ गया और बाकी शरीर पानी में डूब गया।
चलों खाना खाते है!
अब वे तीन रह गए। चलते-चलते वे एक गाँव में पँहुचे। जब गाँव के लोगों को यह ज्ञात हुआ कि वे तीनों ब्राह्मण है और बहुत पढे-लिखे ज्ञानी पंडित है, तो उन्होनें उनका स्वागत किया। फिर भोजन के लिए तीन गृहस्थ उन्हें अपने घर लेकर गए।
रामदास को उसके जजमान ने सेवइयाँ परोसी, लंबे-लंबे लच्छों वाली सेवइयों को देखकर उसने सोचा, “पता नहीं इसने मुझे यह क्या परोस दिया है? यह दीर्घ तन्तु वाली वस्तु खाने योग्य भी है या नही?” यह सोच कर उसने अपनी पोथी उठाई और लगा पन्ने पलटने।
उसने पढ़ा, “दीर्घसूत्री विनश्यति” (अर्थात् प्रत्येक कार्य में अनावश्यक विलम्ब करने वाला नष्ट हो जाता है।) लेकिन फिर अर्थ का अनर्थ! उसने अर्थ लगाया, “दीर्घ तन्तु वाली वस्तु नष्ट हो जाती है।” उसने सेवइयाँ खाने से मना करते हुए कहा,
🧖🏻♂️ रामदास – मैं यह दीर्घ तन्तु वाली वस्तु नहीं खाऊँगा। दीर्घ तन्तु वाली वस्तु नष्ट हो जाती है, इसे खाकर मैं भी नष्ट हो जाऊँगा।
लक्षमीदास जिस घर में गया वहाँ उसे रोटी परोसी गई। गोल-गोल फैली हुई रोटी को देखकर उसको पुस्तक में लिखा हुआ एक श्लोक याद आ गया, “अतिविस्तारविस्तीर्णं तद्भवेन्न चिरायुषम्” (अर्थात् कोई कितना भी बड़ा और विस्तृत क्यों ना हो, तो भी उसकी आयु लंबी नहीं होती। या कोई वस्तु या प्राणी कितना भी बड़ा या महान क्यों ना हो उसका अंत निश्चित है।)
लेकिन लक्षमीदास ने इसका अर्थ निकाला, “बहुत बड़ी और फैली हुई वस्तु आयु को कम करती है।” बस फिर क्या था उसने भी रोटी खाने से इनकार कर दिया और कहा,
🙍🏻♂️ लक्षमीदास – मैं यह नहीं खा सकता, इस फैली हुई वस्तु को खाने से मेरी आयु कम हो जाएगी।
बद्रीदास को छेद वाले बड़े परोसे गए। उसे भी छिद्र देखकर एक श्लोक याद आ गया, “छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति” (अर्थात् छेदों में अनेक अनर्थ होते है। अर्थात् बुरे समय में, विपत्तियों और संकटों की संख्या बढ़ जाती है, या भेद खुलने से बहुत अनर्थ हो जाते है।) लेकिन भाई उसने अर्थ लगाया कि “छिद्र वाली वस्तु से बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता है।” उसने भी यह कहते हुए बड़ा खाने से मना कर दिया कि,
🙍🏽♂️ बद्रीदास – नहीं-नहीं मैं यह छेद वाली वस्तु नहीं खा सकता, इसे खाने से मेरे साथ बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा।
तीनों के यजमान उनकी बातें सुनकर उनके ज्ञान और बुद्धि पर दबी हुई हँसी हँस रहे थे।
इस प्रकार तीनों ने ही खाना नहीं खाया और अपनी परोसी हुई थाली पर से भूखे ही उठ गए। अगले दिन तीनों ही अपने घर की तरफ भूखे ही रवाना हो गए। पूरे गाँव में उनकी इस बुद्धिमता की खबर फैल गई थी। सब उन्हें देखकर उनकी मूर्खता भरी बातों पर हँस रहे थे, और यह देख कर वे मूर्ख समझ रहे थे कि लोग उनके ज्ञान की प्रशंसा करते हुए आपस में बातें कर रहें हैं
सीख
- केवल पुस्तकीय ज्ञान से ही कुछ नहीं होता, उसे व्यवहार में लाने की बुद्धि भी होनी चाहिए।
- बुद्धि के बिना जग हँसाई की सिवा कुछ नहीं मिलता।
- केवल तोते की तरह रट्टा मारने से कुछ नहीं होता। अध्ययन करते समय किसी भी विषय के सही भावार्थ को भी समझना चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – अपनी विद्या से शेर को जीवित करने वाले मूर्ख ब्राह्मणों की कहानी “शेर जी उठा“
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – अपनी ज्यादा बुद्धि पर अभिमान वाली मछलियों की कहानी “दो मछलियाँ और मेंढक”
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।