चिमटी में चावल, चम्मच में दूध – Chimti Men Chawal, Chammach Me Dudh
गणेश जी की कथाएँ – चिमटी में चावल, चम्मच में दूध – Chimti Men Chawal, Chammach Me Dudh
चिमटी में चावल, चम्मच में दूध की खीर बना दों
एक बार गणेशजी भगवान बालक रूप धारण कर पृथ्वी पर निकले। वे एक चम्मच में दूध और चिमटी में चावल लेकर घूमने लगे, “कोई माई खीर बना दो, कोई माई खीर बना दो।” पर चिमटी में चावल और चम्मच में दूध की खीर कौन बनाता।
एक झोंपड़ी के बाहर एक बुढिया माई बैठी हुई थी। वह बहुत देर से उस बालक को घूमते देख रही थी। उसे उस पर दया आ गई। उसने मन में सोचा, “इस बालक ने हट पकड़ रखी है। चूल्हे पर चढ़ाते ही दूध तो छीज जाएगा और चावल जल जाएंगे। लेकिन इसका हट तो दूर हो जाएगा।”
यह सोचकर वह उससे बोली, “बेटा तेरा नाम क्या हैं? ला मैं तेरी खीर बना दूँ।”
बालक ने कहा, “माई, मेरा नाम गणेश हैं।”माई, नहा-धोकर भगवान गणेशजी का नाम लेकर बड़े से बर्तन में खीर चढ़ाना और जैसे-जैसे उफने अलग बर्तन में निकालती जाना।“
बालक गणेश दूध और चावल माई को देकर चला गया। बुढ़िया माई ने सोचा, “चिमटी में चावल और चम्मच में दूध के लिए बड़ा सा बर्तन किस काम का!” लेकिन बालक का मन रखने के लिए उसने नहा धोकर गणेशजी का नाम लेकर अपने घर के सबसे बड़े बर्तन में दूध और चावल चढ़ा दिए।
और चमत्कार हो गया
बर्तन में खीर बढ़ने लगी और दूध में उफान आने लगा। देखते ही देखते घर के सारे छोटे बड़े बर्तन भर गए। उसने मन में सोचा, “आज तक लोगों के यहाँ ही खाती आई हूँ, कभी लोगों को नहीं खिलाया। आज घर में बढ़िया खीर-खांड का भोजन बना है। मैं गणेश के साथ-साथ पूरी नगरी को भी जिमा देती हूँ।“
यह सोच कर उसने अपनी बहु से कहा, “बहु, मैं गणेश को बुलाने जा रही हूँ और साथ में पूरी नगरी को भी न्योत आऊँगी।” इतना कहकर बूढ़ी माई चली गई।
पीछे से बहु ने देखा कि आज कितने वर्षों के बाद तो घर में खीर-खांड के भोजन देखे है और सासु माँ है कि सारी नगरी को न्योतने चली गई। पता नहीं सारी नगरी के खाने के बाद खीर बचेगी भी या नहीं! यह सोचकर उसने कटोरी भर कर खीर निकाली और कहा, “हे गणेश जी महाराज, भोग लाग जो”, और खीर पी ली।
नगरी का जीमण
बूढ़ी माई गणेश को ढूँढने के साथ-साथ नारी को भी न्यूत रही थी। नगर के लोग आपस में बातें करने लगे। एक ने कहा, “कल तक तो इस बूढ़ी डोकरी के पास खुद के खाने तक के लिए नहीं था और आज पूरी नगरी को न्यूत रही है।
दूसरे ने कहा, “कोई बात नहीं, जाकर तो देखते है, खीर नहीं मिली तो पानी का लोटा ही गिरा कर आयेंगे।”
बुढ़िया माई को गणेश कहीं नहीं मिला तो वह घर आ गई। नगरी के लोग जीमने आने लगे। लोगों ने इतनी स्वादिष्ट खीर कभी नहीं खाई थी। वे डोकरी से खीर की तारीफ करके पूछते, “डोकरी माई, कल तक तो तुम्हारे पास खुच नहीं था तो आज पूरे गाँव को खीर कैसे खिला रही हो?”
डोकरी माई भोली थी उसने सबको सारी बात बात दी और सबसे कहती रही, “एक ब्राह्मण का लड़का है। कंधे पर जनेऊ और कमर पर धोती पहन रखी है। कहीं मिले तो यहाँ भेज देना।“ पूरी नगरी खीर का भोजन कर गई, लेकिन खीर खत्म नहीं हुई।
सबके खाने के बाद डोकरी माई को भी भूख लग रही थी। बूढ़ी माई दरवाजे पर बैठ कर गणेश जी का इंतजार करने लगी। गणेश जी को डोकरी माई के सत की परीक्षा लेनी थी, इसलिए वे उसकी भूख बढ़ाते जा रहे थे। बहुत देर हो गई, लेकिन गणेश जी फिर भी नहीं आए। बूढ़ी माई से भूख सहन नहीं हुई तो अंदर जाकर खीर खाकर बाहर आई।
डोकरी माई का सत
बाहर आटे ही उसने देखा कि सामने से गणेशजी अपने कपड़ों पर से धूल झाड़ते हुए आ रहे है। बूढ़ी माई ने उसे देखते ही कहा। “अरे बेटा, कहाँ चले गए थे, मैंने कितना ढुँढवाया मिले ही नहीं। हम सबने तो खीर खा ली। तू भी खा ले।”
गणेश जी – “तूने भी खाली क्या डोकरी माई।”
बूढ़ी माई – “हाँ मैंने भी खा ली।”
गणेश जी – मैं तो तेरा सत देख रहा था, डोकरी माई। मैंने तो खीर कबकी खाली।”
बूढ़ी माई – (आश्चर्य से बोलती है) कब? ”
गणेश जी – तेरी बहु ने सबसे पहले कटोरी भर कर मुझे भोग लगाकर खीर खा ली थी। मैं तो गणेश हूँ, श्रद्धा और प्रेम का भूखा हूँ। इसलिए मेरे तो सबसे पहले ही भोग लग गया था।”
बूढ़ी माई – लेकिन खीर तो बहुत बची हुई है, इसका क्या करूँ?”
गणेश जी – “माई, इसे घर के चारों कोनों में गाढ़ दे। तेरे घर में अन्न धन के भंडार भर जायेंगे।”
बुढ़िया ने बची ही खीर अपनी झोंपड़ी के चारों कोनों में गाड़ दी। बुढिया माई की झोपडी की जगह महल बन गया और महल में अन्न धन के भंडार भर गये।
हे गणेश जी भगवान, जैसा बुढिया माई को दिया, वैसा सबको देना। सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखना।
हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कहनी और सुननी चाहिए।
लपसी-तपसी की कहानी
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – गणेश जी और बुढ़िया की समझदारी
तो दोस्तों, कैसी लगी गणेश जी की कहानी? बताना जरूर!
अगली कहानी – भगवान गणेश और सेठजी की भक्ति
विनायक जी की कहानी – एक बार गणेश जी छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचें में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो। वहाँ पर एक बुढ़िया माई बैठी थी, उसने कहा ला मैं बना देती हूं । वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तो गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटी सी भगोनी मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ाओ। बुढ़िया माई ने गणेश जी का मन रखने के लिए बड़ा बर्तन चढ़ा दिया।
वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाले थे वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा “दादी मां में नहा-धोकर आता हूं। जब खीर तैयार हो गई तो बुढिया माई के पोते-पोती खीर खाने के लिए रोने लगे। बुढ़िया ने कहा गणेश जी महाराज तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी। बुढ़िया की पड़ोसन ऊपर छतपर से देख रही थी तो बुढ़िया ने सोचा यह चुगली कर देगी, इसलिये एक कटोरा भर कर उसे भी पकड़ा दिया।
बेटे की बहू ने भी चुपके से एक कटोरी खीर ले जाकर खाई और कटोरा चक्की के नीचे छुपा दिया। अभी भी गणेश जी नहाकर नहीं आए थे और बुड़िया को भी भूख लग रही थी। तो वह भी एक कटोरी मे खीर डालकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी महाराज आपके भोग लगे, यह कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।
बुढिया माई ने कहा – आजा रे गणेश खीर खा ले में तो तेरा ही इंतजार कर रही थी। तब गणेश जी ने कहा- दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली। बुढ़िया ने कहा – कब खाई। गणेश जी ने कहा – जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी, जब तेरी पड़ोसन ने खाई तब खाई थी ,और जब तेरी बहू ने खाई तब भी खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया।
बुढ़िया ने कहा – बेटा तेरी सारी बात सच है। लेकिन बहू बिचारी तो सुबह से काम में लग रही है तो फिर उसने खीर कब खाई।
गणेश जी महाराज ने कहा चक्की के नीचे देख झूठा कटोरा पड़ा है। तूने तो मेरे भोग तो लगाया वह तो बिना भोग के ही खा गई। बुढ़िया ने कहा बेटा घर की बात है घर में ही रहने दो। अब बताओ बची हुई खीर का क्या करूं गणेश जी ने कहा नगरी को जीमा दो। बुढ़िया माई ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन खाली नही हुआ।
जब राजा को यह बात पता चली तो राजा ने बुड़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर कहां से आया ऐसा बर्तन तो राज महल में होना चाहिए। बुढ़िया ने कहा राजा जी इस बर्तन को आप ले लो। राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू, कंछले, हो गए और दुर्गंध आने लगी। यह देखकर राजा ने बुढ़िया से कहा, बुढ़िया बर्तन वापस ले जा,जा तुझे हमने दिया।
बुढ़िया ने कहा – राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है। बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया लेते ही सुगंधित खीर हो गई। घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा – बची हुई खीर का क्या करें। गणेश जी ने कहा बची हुई खीर को झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो। उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी की जगह पर महल हो गया।
सुबह बहू ने फावड़ा लेकर पूरे घर को खोद दिया तो कुछ भी नहीं मिला बहू ने कहा – सासूजी थारो गणेश जी तो झूठों है।
सास ने कहा बहू मारो गणेश झूटों तो नहीं है। ला मैं देखूं । वह सुई लेकर खोजने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए। बहू ने कहा “सासू जी गणेश जी तो साचों ही हैं। सास ने कहा “गणेश जी तो भावनाओं का भूखा है।
हे गजानंद गणेश जी महाराज जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना, विनायक जी की कहानी कहने वाले, हुंकार भरने वाले और आसपास के सभी सुनने वाले सब को देना।
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।