जिज्ञासु बनों – Jigyasu Bano
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – जिज्ञासु बनों – Jigyasu Bano – Be Curious
एक गाँव में त्रिलोक चन्द्र नामक एक बहुत ही ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। वह लोगों के घर पर जाकर पाठ-पूजा करवाकर अपना गुजारा करता था। एक बार उसे पूजा करने पास के गाँव में जाना पड़ा। रास्ते में एक जंगल था, वह जंगली जानवरों के डर से जल्दी से जल्दी उस जंगल से निकल जाना चाहता था। इसलिए वह बहुत तेज-तेज चल रहा था।
कंधे पर यमराज
उसी जंगल मे एक वृक्ष पर चण्डकर्मा नामक राक्षस भी रहता था। ब्राह्मण इस बात से अनजान उसी पेड़ के नीचे से गुजरा। यह देख कर चण्डकर्मा कूद कर उसके कंधों पर सवार हो गया। राक्षस को अपने कंधों पर बैठा देखकर उसकी घिग्गी बंध गई। वह डर से कांपने लगा। उसे यूँ घबराता देख कर चण्डकर्मा बोला,
👹 चण्डकर्मा – डरों मत, यहाँ से थोड़ी दूर पर ही एक सरोवर है। मुझे वहाँ स्नान करके हमारे देवता की पूजा करनी है। मुझे वहाँ ले चलों।”
ब्राह्मण डरते-डरते चलने लगा। थोड़ी देर में उसने अपने डर को काबू में किया और राक्षस से पूछा,
🧓 त्रिलोक चन्द्र – तुम्हारा नाम क्या है?
👹 चण्डकर्मा – मेरा नाम चण्डकर्मा है।
🧓 त्रिलोक चन्द्र – क्या तुम इसी जंगल में रहते हो?
👹 चण्डकर्मा – हाँ, मैं इसी बरगद के पेड़ पर रहता हूँ।
🧓 त्रिलोक चन्द्र – क्या तुम रोज सरोवर पर स्नान-ध्यान करने जाते हो?
👹 चण्डकर्मा – हाँ, बिना स्नान-ध्यान किए मैं भोजन नहीं करता।
कैसे बचाऊँ प्राण?
ब्राह्मण चण्डकर्मा से प्रश्न पूछता जा रहा था और साथ ही उस राक्षस से छुटकारा पाने का उपाय भी सोचता जा रहा था। तभी उसकी नजर उस राक्षस के पैरों की तरफ गई, उसके पैर बहुत ही नरम और सुकोमल थे। यह देख कर ब्राह्मण ने उस राक्षस से पूछा,
🧓 त्रिलोक चन्द्र – तुम्हारे पैर तो कमल की पंखुड़ियों के समान सुकोमल है। तुम तो राक्षस हो तुम्हारे पैर इतने कोमल और मुलायम कैसे?
👹 चण्डकर्मा – मैंने एक व्रत ले रखा है कि मैं अपने गीले पैरों से जमीन का स्पर्श नहीं करूँगा। जमीन पर पैर नहीं रखने के कारण मेरे पैर इतने मुलायम है।
बातें करते-करते वे दोनों सरोवर के किनारे पँहुच गए। वहाँ पँहुचने पर चण्डकर्मा ने कहा,
👹 चण्डकर्मा – जब तक मैं स्नान और देवपूजा करके ना आऊँ, जब तक तुम यहीं रुकना। कहीं मत जाना।
इतना कहकर चण्डकर्मा सरोवर में स्नान करने चला गया। उसके जाने के बाद त्रिलोक चन्द्र सोचने लगा, “स्नान और पूजा करने के बाद यह निश्चय ही मुझे खा जाएगा। मैं यहाँ से भागूँगा तो भी यह मुझे पकड़ कर खा लेगा। इससे बचने के लिए क्या करूँ?”
अज्ञात को ज्ञात करने का फल
वह अभी यह सोच ही रहा था कि उसे राक्षस के व्रत का ध्यान में आया। यह विचार आते ही वह प्रसन्नता से भर गया।
उसने सोचा, “इस राक्षस के सरोवर से निकलने से पहले ही यहाँ से भाग जाता हूँ। सरोवर मे जाने से इसके पैर गीले हो गए है। अपने व्रत के कारण यह अपने गीले पैर सरोवर के बाहर जमीन पर नहीं रखेगा और सरोवर से निकल ही नहीं पाएगा। यदि यह किसी तरह अपने पैर सूखा भी लेगा, तब तक तो मैं यहाँ से बहुत दूर निकाल जाऊँगा।”
इतना सोचते ही वह वहाँ से भागने लगा। उसे भागते देखकर चण्डकर्मा चिल्लाते हुए उसकी तरफ लपका,
👹 चण्डकर्मा – ए दुष्ट ब्राह्मण, कहाँ भाग रहे हो? रुको!
लेकिन ब्राह्मण ने तो पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, वह तो सरपट भागता रहा। अपने व्रत के टूटने के डर से चण्डकर्मा ने भी अपने पैर जमीन पर नहीं रखे और वहीं खड़ा-खड़ा ब्राह्मण को भागते देखता रहा।
सीख
- अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए हमें सदा जिज्ञासु बने रहना चाहिए।
- प्रश्न पूछते रहने से अज्ञात भी ज्ञात हो जाता है।
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