तीन कुल्हाड़ियाँ – Teen Kulhadiyan
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – तीन कुल्हाड़ियाँ – Teen Kulhadiyan – Three Axes
नगर में सत्यशील नामक एक लकड़हारा रहता था। वह बहुत गरीब, लेकिन ईमानदार था। वह रोज सुबह अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल में जाता और सूखी लकड़ियाँ काटकर लाता। फिर उन्हें बाजार में बेच देता। इतनी मेहनत के बाद भी वह इतना ही कमा पाता था कि वह अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके।
बचत के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था। संपत्ति के नाम पर भी उसके पास एक छोटी-सी टूटी झोंपड़ी और कुल्हाड़ी बस यहीं था। लेकिन इतना गरीब होने पर भी वह अपने जीवन से संतुष्ट था।
अब मैं क्या करूँ?
एक दिन वह रोजाना की तरह अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल में लकड़ियाँ काटने गया। वहाँ एक तालाब के किनारे एक सूखा पेड़ था। वह उस पर चढ़कर उसकी टहनियाँ काटने लगा। तभी उसकी कुल्हाड़ी उसके हाथ से छूटकर तालाब में जा गिरी।
कुल्हाड़ी गिरते ही लकड़हारा भी तालाब में कूद गया। वह बहुत देर तक तालाब में अपनी कुल्हाड़ी ढूँढता रहा। लेकिन उसे अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। थक हार कर वह तालाब के किनारे बैठ गया और भगवान को याद करके रोने लगा।
उसे रोता देख कर उस तालाब में रहने वाले जल के देवता बाहर आए और उससे बोले,
🧞 देवता – बेटा, तुम कौन हो और यहाँ बैठ कर क्यों रो रहे हो?
🧖🏻♂️ सत्यशील – मैं एक लकड़हारा हूँ। मेरा नाम सत्यशील है। मैं इस सूखे पेड़ से लकड़ियाँ काट रहा था कि मेरी कुल्हाड़ी इस तालाब में गिर गई। मैंने उसे ढूँढने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहा।
🧞 देवता – तो तुम दूसरी कुल्हाड़ी खरीद लो।
🧖🏻♂️ सत्यशील – हे देव, मैं बहुत गरीब हूँ, मेरे पास तो इतने पैसे भी नहीं है कि नई कुल्हाड़ी खरीद सकूँ। वह कुल्हाड़ी ही मेरी जीविका का एक मात्र सहारा थी। अब बिना कुल्हाड़ी के मैं अपनी पत्नी और बच्चों का पालन पोषण कैसे करूँगा। आप तो जल के देवता हो, कृपया मेरी कुल्हाड़ी ढूँढ कर ला दीजिए।
देवता का जाल
सत्यशील के विनती करने पर देवता ने तालाब के पानी में डुबकी लगाई। जब वह पानी से बाहर आए तो उनके हाथ में एक चाँदी की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने सत्यशील को कुल्हाड़ी देते हुए कहा,
🧞 देवता – ये लो तुम्हारी कुल्हाड़ी!
🧖🏻♂️ सत्यशील – नहीं देव, यह तो चाँदी की कुल्हाड़ी है। यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।
देवता ने फिर से पानी में गोता लगाया। इस बार उनके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने सत्यशील से कहा,
🧞 देवता – ये वाली कुल्हाड़ी तो जरूर तुम्हारी ही होगी?
🧖🏻♂️ सत्यशील – हे देव, यह कुल्हाड़ी तो सोने की है। मुझ जैसे गरीब के पास सोने की कुल्हाड़ी कैसे हो सकती है? यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है।
सत्यशील का इनकार सुनकर जल के देवता फिर से तालाब में गए। इस बार उनके हाथों में चमचमाती हुई रत्नजड़ित कुल्हाड़ी थी। उन्होंने सत्यशील को कुल्हाड़ी दिखाते हुए पूछा,
🧞 देवता – क्या यह कुल्हाड़ी तुम्हारी है?
🧖🏻♂️ सत्यशील – हे भगवन्, यह तो किसी राजा-महाराजा की कुल्हाड़ी लगती है। यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की और बिल्कुल साधारण सी है।
ईमानदारी का फल
देवता ने फिर से पानी में गोता लगाया। इस बार उनके हाथों में सत्यशील की लोहे वाली कुल्हाड़ी थी। उसे देखते ही सत्यशील खुशी से चिल्ला उठा,
🧖🏻♂️ सत्यशील – हाँ भगवन्, यहीं है मेरी कुल्हाड़ी। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
🧞 देवता – सत्यशील, मैं तुम्हारे सामने एक के बाद एक कीमती कुल्हाड़ी लाता गया, लेकिन तुमने अपना ईमान नहीं खोया। मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए मैं तुम्हारी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ-साथ में ये तीनों कुल्हाड़ियाँ भी तुम्हें देता हूँ।
इतना कह कर देवता ने अपना हाथ लहराया और उनके हाथों में चाँदी, सोने और रत्नजड़ित कुल्हाड़ियाँ आ गई। देवता ने वे तीनों कुल्हाड़ियाँ भी सत्यशील को दे दी। सत्यशील चारों कुल्हाड़ियाँ लेकर घर आ गया और अपनी पत्नी को कुल्हाड़ियाँ देते हुए सारी बात बताई।
सत्यशील ने उन कुल्हाड़ियों को बेच कर लकड़ियों की दुकान डाल ली। उसकी ईमानदारी के कारण उसकी दुकान में दिन दूना और रात चौगुना मुनाफा होने लगा। अब उसकी गरीबी दूर हो चुकी थी।
मुझे भी अमीर बनना है!
उसके पड़ोस में एक छेदीलाल नाम का लकड़ी का व्यापारी रहता था। उसके पास किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। लेकिन वह बहुत लालची और बेईमान था। उसे सत्यशील की तरक्की देखकर बहुत जलन और आश्चर्य हुआ। वह उसके पास गया और उसकी अमीरी का राज पूछा। सत्यशील सीधा-सादा था। उसने छेदीलाल को पूरी बात बता दी।
छेदीलाल ने निश्चय कर लिया कि अब वह भी उस तालाब पर जाएगा और सत्यशील के जैसे ही अमीर बनेगा। अगले दिन सुबह वह एक लोहे की कुल्हाड़ी लेकर उसी तालाब पर पँहुच गया। उसने लकड़ी काटने का अभिनय करते हुए अपनी कुल्हाड़ी जानबूझकर तालाब में फेंक दी और तालाब के किनारे बैठ कर रोने लगा।
उसे रोते देखकर जल के देवता उसके सामने प्रकट हो गए और उससे रोने का कारण पूछा। छेदीलाल रोना बंद करके जल्दी से खड़ा हो गया और बोला,
💆♂️ छेदीलाल – मेरी कुल्हाड़ी इस तालाब में गिर गई है, मुझे मेरी कुल्हाड़ी वापस ला दो।
देवता ने पानी में गोता लगाया और रत्नजड़ित हीरों की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आए। उन्होंने छेदीलाल से पूछा,
🧞 देवता – क्या ये कुल्हाड़ी तुम्हारी है?
उनके हाथों में रत्नजड़ित हीरों की कुल्हाड़ी देखकर उसके मन में लालच आ गया और वह झट से बोला,
💆♂️ छेदीलाल – हाँ-हाँ, ये ही है मेरी कुल्हाड़ी, जल्दी से इसे मुझे दे दीजिए।
🧞 देवता – मैं जानता हूँ, यह तुम्हारी कुल्हाड़ी नहीं है। तुम एक लालची और बेईमान व्यक्ति हो। अब तुम्हें तुम्हारी लोहे की कुल्हाड़ी भी नहीं मिलेगी।
इतना कहकर नदी के देवता तालाब में चले गए। अपने लालच और बेईमानी के कारण छेदीलाल अपनी लोहे की कुल्हाड़ी खोकर, हाथ मलता हुआ अपने घर आ गया।
तो देखा दोस्तों, सत्यशील को उसकी संतोष और ईमानदारी के कारण सोने चाँदी और हीरे की कुल्हाड़ियाँ भी मिल गई। वहीं छेदीलाल को अपने लालच और बेईमानी के कारण अपनी कुल्हाड़ी से भी हाथ धोना पड़ा।
सीख
- हमें सदा संतोषी और ईमानदार रहना चाहिए।
- लालच और बेईमान व्यक्ति को उसका फल जरूर भुगतना पड़ता है।
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