देर है पर अंधेर नहीं – Der He Par Andher Nahi
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – देर है पर अंधेर नहीं – Der He Par Andher Nahi
बहुत समय पहले की बात है गोरखपुर गांव में माधोसिंह नामक एक किसान अपनी पत्नी माधवी के साथ रहता था। माधोसिंह के पास खेत-खलिहान, अन्न-धन, दुधारू पशु आदि सब कुछ था, लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी। इस कारण वह और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे।
दोनों ने संतान प्राप्ति के लिए बहुत दान-धर्म किए, तीर्थ यात्राएं की, बहुत से देवताओं की पूजा की, जगह-जगह के देवी-देवता, भैंरू, भोमियाजी व जुझार के चौखट पर जाकर धोक लगाई पर संतान की प्राप्ति नहीं हुई।
यह तो पाप है
एक दिन किसान की पत्नी माधवी एक मंदिर में गई। वहां उसे एक तांत्रिक मिला। उसने लोगों से सुना कि वह बहुत ही सिद्ध तांत्रिक है। लोगों को उनकी इच्छाओं की पूर्ति के जो तरीके बताता है, उससे उनकी इच्छाएं पूरी होती है। यह सुनकर माधवी भी उसके पास गई और उसे अपनी तकलीफ बताते हुए बोली,
माधवी – ही तांत्रिक महाराज, मैंने सुना है आप लोगों का दुख दूर करते हो, मेरा भी दुख दूर कर दो।
तांत्रिक – क्या तकलीफ है तुम्हें?
माधवी – मेरी शादी को कई वर्ष हो गए है, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है।
तांत्रिक ने अपनी आँखे बंद करके ध्यान लगाया और उसे पुत्र प्राप्ति के लिए एक तरकीब बताते हुए कहा,
तांत्रिक – यदि तुम अमावस की रात को भैरव की पूजा करके अपने पशुओं के बाड़े में आग लगा दो, तो इस आग में तुम्हारे पशु तो जल कर मर जाएंगे। लेकिन ऐसा करने से तुम्हे संतान की प्राप्ति हो जाएगी।
माधवी ने घर आकर माधोसिंह को जाकर तांत्रिक के बारे में और संतान प्राप्ति के लिए उसके द्वारा बताये गए तरीके के बारें में बताया। माधोसिंह ने अपनी माधवी को पशुओं के बाड़े में आग लगाने से साफ मना कर दिया। उसने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा,
माधोसिंह – हम अपने एक स्वार्थ, एक संतान पाने के लिए इतने पशुओं की हत्या कैसे कर सकते है? यह तो एक घृणित कार्य है। ऐसे महापाप से संतान प्राप्त करने से तो नि:संतान रहना ही अच्छा है। ये पशु भी हमारी संतान की तरह ही है। हम अपने इन पशुओं को ही संतान की तरह प्यार देंगे, तो ये भी हमें वैसे ही प्यार करेंगे। इसलिए तांत्रिक की बात को भूल जाओं।
दिल है कि मानता नहीं
माधवी ने उस वक्त तो किसान की बात मान ली, लेकिन उसके दिमाग से तांत्रिक की बात निकल ही नहीं रही थी। वह हर समय बस उसी के बारे में सोचती रहती। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने निश्चय कर लियाआ की वह तांत्रिक द्वरा बताई गई विधि जरूर करेगी।
एक अमावस की रात माधोसिंह के सोने के बाद उसने तांत्रिक की बताई विधि से पूजा करके अपने पशुओं के बाड़े में आग लगा दी और झोंपड़ी में आकर सो गई। आग के कारण सारे पशु चीत्कार कर उठे और इधर से उधर भागने लगे। पशुओं के चीत्कार से माधोसिंह की नींद खुल गई वह भाग कर बाहर आया और आग बुझाने लगा।
उसने कुछ पशुओं को बचा लिया, लेकिन उस आग में माधोसिंह की सात गायें और सात बछड़े जलकर मर गए। माधोसिंह ने अपनी पत्नी माधवी से पूछा,
माधोसिंह – माधवी, क्या यह आग तुमने लगाई थी?
माधवी – नहीं, मैं तो अंदर सो रही थी।
माधोसिंह ने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन उसे पूरा विश्वास था कि यह आग माधवी ने ही लगाई थी।
आग वाली घटना के ठीक एक वर्ष पश्चात माधवी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई। अब तो माधोसिंह को पूरा यकीन हो गया कि उसके पशुओं के बाड़े में आग माधवी ने ही लगाई थी। उसने माधवी को तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उसके मन में एक विचार कौंधने लगा। उसने सोचा, “जिस जघन्य अपराध को करने से माधवी को सजा मिलनी चाहिए थी, ईश्वर ने उसे पुत्र प्रदान कर दिया। सच में भगवान के घर में तो अंधेर ही अंधेर है।”
ऊपर तो अंधेर नगरी है
इसलिए जब भी कोई परिचित या रिश्तेदार उसके पास पुत्र की बधाई और शुभकामना लेकर आता, वह सब से कहता,
माधोसिंह – अरे भाई, ऊपर तो सब अंधेर ही अंधेर है।
अगले कुछ सालों में माधवी ने एक के बाद एक सात पुत्रों को जन्म दिया। हर पुत्र के लिए बधाई देने आने वालों को माधोसिंह एक ही बात कहता,
माधोसिंह – अरे भार, ऊपर तो सब अंधेर ही अंधेर है।
कोई भी उसकी बात समझ ही नहीं पाता। सब सोचते इसे तो अपने पुत्रों के जन्म पर खुश होकर भगवान को धन्यवाद देना चाहिए, लेकिन यह तो भगवान के घर में अंधेर बता रहा है। लगता है इतने दिनों बाद मिली खुशी के कारण इसका दिमाग सरक गया है।
धीरे-धीरे समय बीतने लगा। उसके सभी पुत्र जवान हो गए और योग्य कन्याओं से उनका विवाह भी हो गया। कुछ समय बाद ही उसके बड़े पुत्र की मृत्यु हो गई। उसे और उसकी पत्नी को अपने पुत्र की मृत्यु पर बहुत दुख हुआ।
देर है पर अंधेर नहीं
तब माधोसिंह के मन में विचार आया, “लगता है, भगवान ने उसकी पत्नी को उसके पापों का दंड देना शुरू कर दिया है।“
अब जो भी उसे उसके पुत्र की मृत्यु पर शोक प्रकट करने के लिए आता, वह सबसे कहता,
माधोसिंह – ऊपर देर है पर अंधेर नहीं है।
लोग उसकी तरफ आश्चर्य से देखते। कुछ ही दिनों में उसके सातों पुत्र एक-एक कर मर गए। पीछे रह गई उनकी विधवा पत्नियाँ। माधोसिंह तो अपने खेतों में काम करने चला जाता, लेकिन माधवी दिन-भर अपने पुत्रों की विधवा पत्नियों को देख-देख कर दुखी होती रहती और रोती रहती।
यह देख कर माधोसिंह को भगवान का न्याय समझ में आ गया। उसने सोचा, “भगवान तो बिल्कुल सही न्याय करटे है। यदि भगवान माधोसिंह को पुत्र नहीं देते तो उसे ज्यादा दुख नहीं होता। लेकिन पुत्र होने के बाद उनका मर जाना और उनकी पत्नियों को सामने देख कर तिल-तिल करके मारना ज्यादा बड़ी सजा है। उसने भी तो पशुओं को तप्ती आग में जलाकर उन्हें अपार कष्ट दिया था। तो उसकी सजा भी तो बड़ी ही होगी।
इसलिए अब जो भी कोई उसके पुत्र की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आने वालों को यहीं कहता,
माधोसिंह – ऊपर देर तो है लेकिन अंधेर नहीं है।
लोग इस बार भी उसकी बात समझ नहीं पाते और सोचते अपने पुत्रों की अकाल मृत्यु से माधोसिंह पागल हो गया है। इसलिए ऊल-जलूल बातें कर रहा है। उसके आखिरी पुत्र की मृत्यु पर जब एक बुजुर्ग व्यक्ति कुछ लोगों के साथ उसको सांत्वना देने आया तो उसने उससे भी यहीं कहा,
माधोसिंह – ऊपर देर तो है लेकिन अंधेर नहीं है।
जैसा करेंगे, वैसा भरेंगे
तब उस बुजुर्ग ने इसका कारण पूछा,
बुजुर्ग – जब हम तुम्हें तुम्हारे पुत्रों के जन्म की बधाई देने आते थे, तब तो तुम कहते थे, “ऊपर अंधेर ही अंधेर है” और अब जब हम तुम्हारे पुत्रों की मृत्यु पर शोक प्रकट करने आ रही है तो तुम कह रहे हो, “ऊपर देर है लेकिन अंधेर नहीं है”। तुम्हारी इन बातों के पीछे क्या रहस्य है?
तब माधोसिंहने उनको अपने नि:सन्तान होने और तांत्रिक द्वारा संतान प्राप्ति के बताए तरीके से लेकर, पत्नी द्वारा बाड़े को जलाकर पशुओं की हत्या करने के बारे में बताते हुए कहा,
माधोसिंह – जब इतना जघन्य अपराध करने पर भी भगवान ने मेरी पत्नी को पुत्र प्रदान किए तो मुझे लगा, भगवान के घर में न्याय नहीं है। इसलिए मैं कहता था कि “ऊपर अंधेर ही अंधेर है”। लेकिन जब एक-एक मेरे पुत्र मृत्यु को प्राप्त होने लगे, तब मेरी समझ में आने लगा कि भगवान तो न्याय कर रहे थे।
भगवान ने पहले मेरी पत्नी को पुत्रों के मोह में बाँधा और जब वह पूरी तरह से अपने पुत्रों के मोह में बंध गई तब उन्होनें एक-एक कर के हमारे पुत्रों को अपने पास बुला कर, उसे दु:ख देना शुरू कर दिया। अपने पुत्रों की मृत्यु से मेरी पत्नी को अपार दु:ख हो रहा है और अब उनकी विधवाओं को देख-देख कर वह जीवन भर दु:खी होती रहेगी।
इसलिए मैंने यह कहना शुरू कर दिया कि “ऊपर देर तो है लेकिन अंधेर नहीं है”। जो भी पाप करेगा उसे अपने पाप कर्मों का फल देर-सवेर भुगतना ही पड़ेगा।
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तो दोस्तों, कैसी लगी कहानी देर है पर अंधेर नहीं! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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