दो सिर वाला जुलाहा – Do Sir Wala Julaha
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – दो सिर वाला जुलाहा – Do Sir Wala Julaha – The Weaver with Two Heads
महेन्द्रपुर नगर में एक मन्थरक नामक जुलाहा अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी पत्नी का नाम विद्यावती था। वह कपड़ा बुन कर अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। काफी समय से बुनाई का काम करते-करते उसके कपड़ा बुनने के सारे उपकरण टूट गए। नए उपकरण बनाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी। इसलिए वह लकड़ी काटने के लिए अपनी कुल्हाड़ी लेकर समुन्द्र तट पर स्थित एक जंगल में गया।
अपने उपकरणों के लिए उचित लकड़ी वाले पेड़ को तलाशते-तलाशते वह समुन्द्र के किनारे पँहुच गया। वहाँ उसे एक पेड़ दिखाई दिया। उसे देखकर उसने मन में सोचा, “इस वृक्ष की लकड़ी बड़ी मजबूत है, इससे बने उपकरण कई दिनों तक खराब नहीं होंगे।” यह सोचकर वह उस वृक्ष के पास गया।
मेरा घरौंदा मत तोड़ों
उस वृक्ष पर एक देवता का वास था। उसने उस वृक्ष के तने को काटने के लिए अपनी कुल्हाड़ी उठाई ही थी कि उस वृक्ष की शाखा पर बैठे हुए देवता ने कहा,
🧞 देवता – हे लकड़हारे, मैं इस वृक्ष पर समुन्द्र की ठंडी-ठंडी, तन और मन दोनों को शीतल करने वाली हवा का आनंद लेते हुए कई वर्षों से रह रहा हूँ। इस वृक्ष को काटकर तुम मेरा आश्रय मत छिनो। दूसरों के सुख को छीनने वाला स्वयं भी कभी सुखी नहीं रह सकता। इसलिए इस वृक्ष को मत काटों। तुम कोई दूसरा वृक्ष काट लो।
🧖🏻♂️ मन्थरक – हे देव, मैं लकड़हारा नहीं जुलाहा हूँ। मेरे कपड़ा बुनने के औजार टूट गए है, उन्हीं को पुन: बनाने के लिए मैं लकड़ी लेने इस वन में आया हूँ। पूरे जंगल में घूमने के बाद मुझे इस वृक्ष की लकड़ी मेरे उपकरणों के लिए सही लगी है।
मैं किसी का सुख छीनना नहीं चाहता, लेकिन यदि मैं इस वृक्ष को नहीं काटूँगा तो कपड़ा बुनने के औजार नहीं बनेंगे, जिससे मैं कपड़ा नहीं बुन पाऊँगा और मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे। इसलिए मैं इसे काटने के लिए विवश हूँ। आप ही किसी दूसरे वृक्ष पर चले जाइए।
क्या मांगु वरदान में?
🧞 देवता – मन्थरक, मैं तुम्हारे उत्तर से सहमत हूँ। लेकिन मैं इस वृक्ष पर कई वर्षों से रह रहा हूँ, इसलिए मुझे इस वृक्ष से बहुत लगाव है। यदि तुम इस वृक्ष को नहीं काटोगे तो मैं तुम्हें एक वरदान देने का वचन देता हूँ। तुम मुझसे जो भी माँगोगे, वो मैं तुम्हें दे दूँगा।
🧖🏻♂️ मन्थरक – हे देव, यदि ऐसी बात है तो ठीक है। लेकिन मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं आपसे क्या मांगु, इसलिए यदि आप मुझे थोड़ा समय दें तो मैं अपने घर जाकर अपनी पत्नी और अपने मित्र से सलाह करके आपसे वर माँगूँगा।
🧞 देवता – ठीक है मन्थरक, जाओं मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा।
देवता से आज्ञा लेकर मन्थरक अपने गाँव आ गया। सबसे पहले वह अपने मित्र जटाशंकर नाई के पास गया और उससे कहा,
🧖🏻♂️ मन्थरक – मित्र, एक देवता ने मुझे एक वरदान देने का वचन दिया है। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उससे क्या मांगु। इसलिए मैं तुमसे पूछने आया हूँ कि देवता से क्या माँगा जाए?
💇🏻 जटाशंकर– यदि ऐसा ही है तो तुम उनसे राज्य माँग लो। तुम राजा बन जाना और मुझे अपना मंत्री बना लेना। इससे हम दोनों ही सुख से रहेंगे।
🧖🏻♂️ मन्थरक – तुम सही कह रहे हो मित्र, लेकिन एक बार घर जाकर मैं अपनी पत्नी की भी सलाह ले लेता हूँ।
💇🏻 जटाशंकर – स्त्री से सलाह लेना नीति सम्मत नहीं होता। स्त्रियाँ स्वभाव से ही स्वार्थी और ईर्ष्यालु होती है, उनकी बुद्धि अपने स्वार्थ पूर्ति से ज्यादा नहीं सोचती और न ही वे किसी दूसरे का भला होते हुए देख सकती है। इसलिए मेरी तो यही राय है कि तुम्हें अपनी पत्नी से सलाह नहीं लेनी चाहिए। बुद्धिमानी तो बस इसी में है कि स्त्रियों के खाने-पीने, कपड़े व गहनों की उचित व्यवस्था कर दी जाए। वे उसी से खुश हो जाती है।
🧖🏻♂️ मन्थरक – तुम सही कह रहे हो मित्र, लेकिन वह मेरी अर्धांगिनी है, मेरी हर चीज पर उसका आधा हक है। मैं उससे सलाह मशविरा किए बिना वरदान नहीं मांग सकता।
विनाश काले विपरीत बुद्धि
इतना कहकर वह अपने घर आ गया और अपनी पत्नी से कहा,
🧖🏻♂️ मन्थरक – प्रिये, आज जंगल में मुझे एक दैव मिला है, जो मुझे एक वरदान देना चाहता है। मैंने मेरे मित्र नाई ने मुझे सलाह दी है कि देवता से राज्य मांग लिया जाए। मैं राजा बन जाऊँगा और वह मंत्री। पर मैं तुम्हारी राय भी जानना चाहता हूँ, तुम ही बताओं कि क्या चीज माँगी जाए।
🤷🏻♀️ विद्यावती – तुम्हारा मित्र तो मूर्ख और स्वार्थी है। वह तुम्हारे वरदान से अपनी स्वार्थपूर्ति भी करना चाहता है। राज और शासन का कार्य बहुत कष्टप्रद होता है। राज्याभिषेक होते ही राजा को राज काज से ही अवकाश नहीं मिल पाता है। एक के बाद एक विपत्ति आती रहती है।
शत्रु ही नहीं सगे-संबंधी भी राजा के प्राणों के दुश्मन हो जाते है। रावण, राजा नल, पांडव यहाँ तक कि राजा राम को भी राज्य से कोई सुख नहीं मिल पाया था। इसलिए ऐसे राज्य का क्या लाभ, जिससे कोई सुख ही नहीं मिले।
🧖🏻♂️ मन्थरक – तुम बिल्कुल सही कह रही हो। राजमुकुट तो सच में काँटों का ताज होता है। लेकिन फिर तुम्हीं बताओं कि देवता से आखिर माँगा क्या जाए?
🤷🏻♀️ विद्यावती – तुम अपने दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते आए हो उससे हमारा खर्चा आसानी से निकल जाता था। यदि तुम देवता से दो हाथ और एक सिर और मांग लो, तो तुम्हारे दो सिर और चार हाथ हो जाएंगे। इससे तुम दुगुना कपड़ा बुन सकोगे। इससे हमारा खर्च भी चल जाएगा और जो बचत होगी उससे हम अपनी सुख सुविधा के साधन खरीदेंगे। जिससे हम सुख पूर्वक रहेंगे और समाज में तुम्हारा मान भी बढ़ जाएगा।
🧖🏻♂️ मन्थरक – हाँ, तुम बिल्कुल सही कह रही हो। मैं वैसा ही करूँगा जैसा तुमने कहा है। मैं अभी देवता के पास जाता हूँ और यहीं वरदान माँग लेता हूँ।
इतना कहकर मन्थरक उसी वृक्ष के पास गया और देवता से कहा,
🧖🏻♂️ मन्थरक – हे देव, यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते है तो मुझे एक सिर और दो हाथ और देकर मुझे दो सिर और चार हाथ वाला बना दीजिए।
🧞 देवता – तथास्तु!
देवता के इतना कहते ही मन्थरक का मनोरथ पूरा हो गया। उसके एक सिर और दो हाथ और निकल आए। यह देखकर वह खुशी-खुशी अपने गाँव की तरफ लौट चला। लेकिन यह क्या जैसे ही वह गाँव में पँहुचा, गाँव वाले डरकर राक्षस आया- राक्षस आया कहकर उससे दूर भागने लगे।
तभी कुछ साहसी युवकों ने अपनी लाठियाँ उठाई और उस पर टूट पड़े। यह देखकर दूसरे गाँव वाले उसे पत्थरों से मारने लगे। उन्होंने लाठियों और पत्थरों से इतना मारा कि मन्थरक घायल होकर जमीन पर गिर पड़ा और मर गया।
सीख
यदि स्वयं की बुद्धि काम ना करे तो मित्र की सही सलाह मान लेनी चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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