धोबी और समझदार गधा – Dhobi Our Samjhdaar Gadha
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – धोबी और समझदार गधा – Dhobi Our Samjhdaar Gadha – The Washerman and Wise Donkey
सोनपुर गाँव में एक माधव नाम का एक धोबी रहता था। उसके पास एक गधा था। माधव अपने गधे को बहुत प्यार करता था। वह उसकी बहुत देखभाल भी करता था। माधव गाँव के लोगों के गंदे कपड़े गधे पर लाद कर नदी पर ले जाता। वहाँ कपड़े धो और सुखाकर वापस गधे पर डालकर वापस दे आता। ऐसा ही करते हुए काफी समय बीत गया।
समय के साथ गधा बूढ़ा हो गया। बढ़ती उम्र के साथ ही वह कमजोर हो गया। अब वह पहले की तरह ज्यादा बोझ नहीं उठा सकता था। एक बार दोपहर में माधव अपने गधे पर कपड़े लाद कर धोबी घाट पर जा रहा था। धूप बहुत तेज थी। तेज धूप और गर्मी से दोनों ही परेशान हो रहे थे। गधे पर तो कपड़ों का बोझ और था, इसलिए उसकी हालत तो और भी ज्यादा खराब हो रही थी।
ये क्या हो गया?
उसे चलने में भी परेशानी हो रही थी। फिर भी काम पूरा करने के लिए वह किसी तरह धीरे-धीरे चलते हुए आगे बढ़ रहा था। वे घाट पर जा ही रहे थे कि एक गहरे गड्ढे के पास गधे का पैर लड़खड़ाया और वह गड्ढे में गिर गया। अपने गधे को गड्ढे में गिरा देख कर माधव घबरा गया। वह गधे को बाहर निकालने की कोशिश करने लगा। बूढ़ा गधा भी अपनी पूरी ताकत लगा कर बाहर निकलने का प्रयत्न कर रहा था।
दोनों अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे. लेकिन वे दोनों नाकाम रहे। तब धोबी गाँव के लोगों को सहायता के लिए बुलाकर लाया। गाँव के लोगों ने भी गधे को निकालने को बहुत कोशिश की लेकिन वे सब भी गधे को गड्ढे से बाहर नहीं निकाल पाए।
अंत में थक हार कर गाँव वालों ने धोबी से कहा, “तुम्हारा गधा तो वैसे भी बहुत बूढ़ा हो गया है। अब यह वैसे भी ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रहेगा। इस गड्ढे में पड़ा-पड़ा यह भूख प्यास से तड़प-तड़प कर मर जाएगा। तुम भी कितने दिन इसकी सेवा कर पाओगे। इसलिए समझदारी इसी में है कि इसे यहीं इस गढ्डे में मिट्टी डालकर दफना दिया जाए।“
गधे की समझदारी
धोबी अपने गधे से बहुत प्यार करता था। उसने उसे दफनाने के लिए मना कर दिया। लेकिन गाँव वालों के बहुत समझाने के बाद वह बड़े दुखी मन से राजी हो गया। गाँव वालों ने फावड़े और कुदाली की मदद से गड्ढे में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। अपने ऊपर मिट्टी गिरते देख कर पहले तो गधे को कुछ समझ में नहीं आया वह चिल्लाने लगा।
थोड़ी देर में उसे समझ में आ गया कि सब लोग उसे दफनाने की तैयारी कर रहे है, वह बहुत दुखी हुआ, उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे। उसने चिल्लाना बंद कर दिया और चुपचाप खड़ा हो गया। उसे इस तरह देख कर धोबी का भी कलेजा मुँह को आ रहा था, लेकिन इसके सिवा कोई और चारा भी नहीं था।
तभी गाँव वालों ने देखा कि जैसे ही गधे पर मिट्टी डलती है, वह उसे अपनी त्वचा को हिलाकर नीचे गिरा देता और फिर अपने पैरों से उस मिट्टी की दबाकर उसके ऊपर चढ़ जाता। ऐसा करने से वह दब नहीं रहा था। बल्कि जैसे-जैसे मिट्टी डल रही थी, वह ऊपर आता जा रहा था। गधे की चतुराई देखकर उनका उत्साह बढ़ गया।
अब वे प्रसन्नता से दुगुने उत्साह से उस पर मिट्टी डालने लगे। वे मिट्टी डालते और गधा उस मिट्टी को अपने पैरों से दबाकर उसके ऊपर चढ़ जाता। ऐसा लगातार करने पर गधा काफी ऊपर आ गया। पर्याप्त ऊंचाई पर आने के बाद गधे ने अपनी पूरी ताकत लगाकर छलांग लागाई और गड्ढे से बाहर आ गया।
धोबी ने खुश होकर उसे गले से लगा लिया। दोनों की आँखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी, लेकिन ये आँसू दुख के नहीं खुशी के थे।
सीख
मुश्किल से मुश्किल संकट को भी अपनी बुद्धि के प्रयोग से दूर किया जा सकता है ।
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तो दोस्तों, “कैसी लगी ये रीत, कहानी के साथ-साथ मिली सीख”? आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा।
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