पापा-मम्मी
मेरे पापा-मम्मी की 50वीं शादी की सालगिरह पर आए सभी मेहमानों
का मैं तहे दिल से स्वागत करती हूँ। अब हम ज्यादा देर ना करते हुए अपने कार्यक्रम की शुरुआत भगवान गणेश की स्तुति से करते हैं जिसे आपके सामने प्रस्तुत कर रही हैं
अब आगे बढ़ने से पहले हम पापा-मम्मी के जीवन पर एक नजर डालते है।
ये हमारी एक छोटी सी कोशिश है पापा-मम्मी के जीवन के कुछ महत्त्वपूर्ण लम्हों को आपके सामने प्रस्तुत करने की, बस आप सभी के साथ और होसलाफजाई की आवश्यकता है।
तो क्या सब आप सभी मेरे साथ चलने के लिए तैयार है?
तो चलिए शुरू करते हैं: –
मेरे दादाजी शहर में काम करते थे और मेरी दादीजी बहुत ही भोली थी इसलिए पापा और कमला बुआ दोनों की परवरिश घर से दूर हुई। कमला बुआ अपनी ननिहाल में रही तो पापा ने अपनी पढ़ाई घर से दूर अपने काकाजी के साथ रहकर की और उनके साथ काम सीखा।
दूसरी तरफ मम्मी छः भाई और भाभियों के बीच में सबसे लाड़ली थी क्योंकि दोनों मौसियाँ बड़ी थी और उनकी शादी हो चुकी थी। छः भाभियाँ और लाड़ली होने के कारण घर के काम-काज से मम्मी का दूर-दूर तक नाता ही नहीं
था। तो जब मम्मी 14 या15 साल की हुई तो मेरी मौसी जी ने उन्हें अपने पास बुलाया लिया ताकि शादी से पहले घर के कुछ काम-काज सीख सके।
तो चूंकि मेरी मौसी की शादी मेरे दादाजी के छोटे भाई के साथ ही हुई थी तो मम्मी शादी से पहले ही अपने होने वाले ससुराल ही आ गई थी। अब मम्मी ने घर का काम-काज तो सीखा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन मैंने हमारे
गाँव के शंकर दादाजी से सुना था कि पूरे गाँव में मम्मी का खेलना बदस्तूर जारी था।
वैसे मेरे पापा तो बाहर ही रहते थे लेकिन फिर भी गाँव तो आते ही होंगे, तो शायद पापा-मम्मी
भी साथ में खेलते हो और फिर शायद कुछ ऐसा हुआ हो
आ मेरे हमजोली आ, खेलें आँख मिचौली आ ……….
नैन लड़ जई हैं तो मनवा मा कसक ……….
जहाँ भी जाती हूँ वहीं चले आते हो
चोरी-चोरी मेरे ……….
मेरे होते कोई और ………… चाहे चले
छुरियाँ
शूकर करो कि पड़े नहीं है मेरी माँ के डंडे
………… ये पहले बताते बारात लेकर आते
अब ये हुआ था या नहीं ये तो पापा-मम्मी ही
अच्छी तरह से जानते होंगे, क्योंकि मेरे दादाजी ने मुझे एक बार बताया कि किसी कार्यक्रम
में वे मेरे नानाजी के साथ कुछ लोगों के साथ चौबारे में बैठे हुए थे और मेरी मम्मी
आकर मेरे दादाजी की गोद में बैठ गई तो मेरे दादाजी ने ऐसे ही कहा कि इसे तो मैं
मेरी बहु बनाऊँगा। दादाजी ने वैसे तो यह
बात यूँ ही कही थी लेकिन कहते हैं ना कि दिन में एक बार जबान पर सरस्वती जी
विराजमान होती है तो बाद में यह बात सच भी हो गई।
वैसे तो यह बात जब पापा-मम्मी दोनों ही
छोटे थे तब की हैं, लेकिन बात तो हुई थी और कहीं ना कहीं सबके जेहन में / जुबान पर
भी थी और शायद पापा-मम्मी को भी इस बारे में पता हो और उनके मन में भी कुछ अरमान जागे
हो और जैसा हमने पहला assume किया था वो हुआ होगा और और वे दोनों भी अपनी शादी होने
का इंतजार कर रहें हो..
जिसका
मुझे था इंतजार जसके लिए दिल था बेकरार वो घड़ी ……….
हम तुझको उठा कर ले जाएंगे डोली में बैठा
……….
बड़े अरमानों से रखा है सनम तेरी कसम
प्यार की दुनियाँ में ……….
शादी के बाद पापा और मम्मी इंदौर आ गए
और मम्मी पापा की ड़फली पर कदम से कदम मिला कर उनके साथ चलने लगी और इतना कि अपने
बाबुल के घर को ही भूल गई
डफली वाले डफली बजा ……….
मैं तो भूल चली बाबुल का देश पिया का घर
प्यारा लगे ……….
फिर इंदौर में ही एक-एक कर के हम चारों
का जन्म हुआ। इंदौर में पापा का व्यापार खूब अच्छा चल रहा था। घर में रुपये पैसों
की कोई कमी नहीं थी, जिंदगी
की गाड़ी बड़े मजे से चल रही थी।
मनु भाई मोटर चली पाम पाम पाम ……….
है ना बोलो-बोलो मम्मी बोलो-बोलो ……….
मम्मी मेरी अच्छी है खराब नहीं लेकिन मेरे
पापा का जवाब ……….
उठे सब के कदम देखो तर-रम-पम ……….
लेकिन कहते है ना कि खुशियों के साथ-साथ
दुख भी चलता हैं पापा को व्यापार में नुकसान हो गया और हमें इंदौर छोड़ कर जयपुर
आना पड़ा।
यहाँ
आने पर पता चला कि जिस मकान का पिछले छः महीने से किराया भर रहे थे वहाँ तो कोई और
ही किरायेदार रह रहा है। अब ट्रक में भरा हुआ समान और 4 छोटे-छोटे बच्चे
(विक्की तब केवल एक साल का था) कहाँ जाते। तब एक रिश्तेदार ने हमारी मदद की और एक
दूसरा मकान किराये पर दिलवाया।
उसकों
भी एडवांस किराया देना पड़ा,
अब पापा के पास में बहुत ही कम पैसे बचे थे। यहाँ आने के एक दो
सालों तक पापा का काम अच्छी तरह से नहीं जमा था। सारी जमा पूंजी खत्म सी हो गई थी।
हम चारों बच्चे नादान थे हमें कुछ समझता नहीं था। हमें इंदौर में पूरा ग्लास भर कर
दूध मिलता था, तो हमें तो दूध का
पूरा भरा हुआ ग्लास ही चाहिए था। लेकिन यहाँ तो 6 जनों के बीच में आधा
लीटर दूध! 4 ग्लास कैसे भरते? बस मम्मी ग्लास में
थोड़ा सा दूध डालती और बाकी का ग्लास पानी से भर देती।
लेकिन
मेरी मम्मी ने ऐसी घड़ी में भी पापा से शिकायत नहीं की। घर में मेहमानों की आवभगत
मानमनुहार में मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की तंगहाली के दिनों में भी सबका खुले
दिल से स्वागत किया। रात को बारह बजे भी कोई मेहमान आ गया तो उसे भूखा नहीं सोने
दिया यहाँ तक कि उनके कपड़े तक मम्मी ने अपने हाथों से धोकर दिए।
और
पापा ने भी मम्मी का पूरा साथ निभाया, पापा हमेशा सुबह का
खाना बनाने तथा अन्य काम करने में मम्मी की मदद करते थे। इस कारण काम पर देर से जा
पाते थे। Market में व्यापारी लोग
बोलते, उपाध्याय जी घर के
काम-धाम छोड़कर व्यापार पर ज्यादा ध्यान दो, लेकिन पापा जानते थे
घर में आठ से दस लोगों का काम अकेले करना कोई आसान काम थोड़े ही होता है और नौकर
रखने की हैसियत नहीं थी। इसलिए लोगों का कहा हंसी में टाल देते थे।
किस्मत की हवा कभी नरम कभी गरम ……….
जिंदगी हर कदम एक नई जंग है जीत जाएंगे
हम जीत जाएंगे हम ……….
हँसते-हँसते कट जाएं रस्ते जिंदगी यू ही
……….
यूँ ही कट जाएगा सफर साथ चलने से के
मंजिल आएगी नजर साथ चलने से ……….
पापा हर साल एक डेढ़ महीने के लिए टूर पर
जाते थे और हमेशा मेरी मम्मी के लिए वहाँ से दो साड़ियाँ लाते थे और मेरी मम्मी उन
दो साड़ियों को इतना संभाल कर रखती की अगले दो तीन सालों तक लगभग हर Function
या Party में मम्मी इन सँजोई हुई साड़ियों में ही
दिखाई देती, मम्मी ने पापा से कभी
कोई डिमांड नहीं की, लेकिन
हम तो बच्चे थे तो हमारी डिमांड तो जायज ही थी और पापा भी हर बार टूर से आते वक्त
बहुत सारी कहानियों की किताबे लाते थे।
बता दूँ क्या लाना तुम लौट के आ जाना ……….
सात
समुन्द्र पार से गुड़ियों के बाजार से ……….
मैं
यह तो नहीं कह सकती कि पापा-मम्मी में कभी तकरार नहीं हुई होगी लेकिन हमने अपने बचपन
में पापा-मम्मी को कभी आपस में झगड़ते नहीं देखा (हाँ आज तो दोनों थोड़ा-थोड़ा झगड़ते
हैं), दोनों ने एक दूसरे
का इतना साथ निभाया कि संपन्नता वाले दिनों में / जब खुशी थी तब तो घर में खुशियाँ
होती ही थी लेकिन तंगहाली में भी कभी घर से खुशियाँ नहीं गई। दोनों ने एक दूसरे का
पूरा साथ दिया।
आज भी पापा, मम्मी की इतनी चिंता करते है कि मम्मी
को थोड़ा सा भी कुछ हो जाता है तो उनका कहीं मन ही नहीं लगता और यही हाल मम्मी का
भी है। बस फैक इतना सा है कि पापा का दिल बहुत ही कोमल है और उनकी चिंता दिख जाती
है लेकिन मेरी मम्मी अंदर से बहुत strong है इसलिए उनकी चिंता हमें दिखाई नहीं देती।
अब मैं अपने पापा मम्मी को स्टेज पर बुलाना
चाहूँगी, पापा-मम्मी
क्या यही प्यार है, हाँ यही प्यार है,
दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं वक्त गुजरता नहीं ……….
स्टेज पर आने के बाद
ओ मेरी जोहरे जबी तू अभी तक है हंसी ……….
last
ये तो सच है कि भगवान है
लड़कों और लड़कियों का
ग्रुप डांस
·
लारा
लप्पा लारा लप्पा लाई कर जा
·
हाल कऐसा है जनाब का
·
मैं
सितारों का तराना …..पाँच रुपया बार आना
·
जाने
कहाँ मेरा जिगर गया जी
·
गोरे-गोरे
ओ बनके छोरे काभी मेरी गली
·
मेरे
पिया गए रंगों किया है वहाँ से टेलीफ़ून
·
कामाता
हूँ बहुत खुच पर कमाई डूब जाती है
funny डांस
·
बड़े
मियां दीवाने ऐसे ना बनों हसीना
·
cat कैट
माने बिल्ली rat रेट
माने चूहा
·
हम
थे वो थी और समा रंगीन जाना था जापान पँहुच गए चीन समझ गए ना
·
आके
सीधी लगी दिल पे
·
चील-चील
चिल्ला के कजरी सुनाए
·
मेरी भैंस को डंडा क्यूँ
मारा
·
सिकंदर
ने पोरस से की थी लड़ाई
·
जरूरत
है जरूरत है जरूरत है श्रीमती की
·
दिल का हाल सुने दिलवाला छोटी सी बात
·
हम
काले है तो क्या हुआ दिलवाले है
·
कजरारे-कजरारे
औरतों का डांस
·
अपलम
चपलम चपलाई
·
हँसता
हुआ नूरानी चेहरा
·
ऊई
माँ ऊई माँ ये क्या हो गया उनकी गली में
·
जानू-जानू
रे कहे खनके है तोर कंगना
·
रेशमी
सलवार कुर्ता जाली का
·
नवचारी
माची
·
खिले
है सखी आज फुलवा मन के
·
काँटों
से खींच के ये आँचल खोल के बंधन बाँधी पायल
·
बलियी
ओ बलिए चल चलिए
·
ढूंढो-ढूंढो
रे साजना ढूंढो रे सजना मेरे कान का बाला
हनी, गुनू, नेपू, दरशु, याशु – Medli
Full
Song
·
हनी,
गुनू,
नेपू,
दरशु,
याशु – हाय में का करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल
गया
·
शुभम – मेरे अँगने में तुम्हारा
·
शशि दुर्गा – बलम छोटो सो
·
शशि दुर्गा – हिवाड़े सु दूर मत जा, म्हारी तीतरी,
मेरी रानी मैं ल्याया तेरा लाल शरारा
विशाल मोनिका
·
इक
परदेशी मेरा दिल ले गया
·
आजकल
तेरे मेरे प्यार के चर्चे उड़े जब-जब जुलफ़े तेरी
·
कजरा
मोहब्बत वाला अँखियों में ऐसा डाला
·
उड़े
जब-जब जुलफ़े तेरी
·
बिंदिया
चमकेगी चूड़ी खनकेगी
·
अच्छा
जी मैं हारी चलो माँ जाओ ना देखि सबकी यारी
शशि विक्की
·
तेरे
हाथों में पहना के चूड़ियाँ
·
क्या
गजब करते हो जी
·
सैया
ले गई जिया तेरी पहली नजर
·
हौले-हौले
सजना धीरे-धीरे बालमा जरा होले-होले चलों बालमा
·
हम
आपकी आँखों में इस दिल को सजा दे तो
·
होय रे होय तेरे हाथ में मेरा हाथ
·
मेराबिंदिया
तेरी निन्दियाँ ना चुरा ले तो कहना
Other
·
कौन
दिशा में लेके चला से बटोहिया
·
बड़ी
मुश्किल है खोया मेरा दिल है कोई
·
आजा
संयम मधुर चाँदनी में हम
·
आधा
है चंद्रमा रात आधी रह ना जाये
·
बार-बार
देखो हजार बार देखो देखने की चीज है
·
आई
दिल मुझे बता दे तु किस पे आ ग्या है
·
शशि
·
लेके
पहला-पहला प्यार
·
बाबूजी
धीरे चलना प्यार में जरा संभलना
·
लाखों
हैं निगाह में जिंदगी की राह में
·
तौबा
ये मतवाली चाल झुक जाये फूलों
·
ये
लड़का हाय अल्लाह कैसा है दीवाना
·
एक
मैं और एक टू दोनों मिले इस तरह
·
गौरे
रंग पे ना इतना गुमान कर
·
मेरे
दिल की घड़ी करे टिक-टिक-टिक लो बजे रात के बारह
·
सैया
झूठों का बड़ा सरदार निकला
·
दो
बिचारे बिना सहारे देखो
·
हाल
कैसा है जनाब का क्या ख्याल है
·
बाबू
समझो इशारे
·
किस्मत
की हवा कभी गरम- कभी नरम **
·
झे
मेरी बीबी से बचाओ
·
डम-डम
डिगा-डिगा मौसम भीगा- भीगा
·
है
अपना दिल तो आवारा ना जाने किस पे आएगा
·
आसज
मिली एक लड़की जिसे देख तबीयत फड़की
·
जाने
तेरी नजरों ने क्या कर दिया
·
जा-जा
रे जा दीवाने जा
·
मुड़-मुड़
के ना देख मुड़-मुड़ के
·
मेरा
नाम चुन-चुन-चू, रात चाँदनी
·
एक
चतुर नार
·
मेरे
सामने वाली खिड़की
·
मेरे
पिया गए रंगून किया है वहाँ से
मैं
कई दिनों से सोच रही थी कि आज के इस शुभ अवसर पर मुझे भी अपने पापा-मम्मी को कोई Gift देना चाहिए, लेकिन मुझे कुछ समझ में
ही नहीं आ रहा था। उन्होंने मुझे जीवन और इतना प्यार दिया है कि मेरी इतनी हैसियत
ही नहीं है कि मैं उन्हें कुछ दे सकूँ, या उनके द्वारा दिए
गए प्यार और दुलार का ऋण चुका सकूँ।
आज
की इस भाग दौड़ की जिंदगी में हमारे पास अपने माता-पिता के लिए समय ही नहीं है, और उन्हें भी लगता
होगा कि हम उनसे दूर हो चुके हैं, लेकिन ऐसा नहीं हैं कि उनके साथ बिताए गए पलों
की यादें आज भी मेरे दिल की गहराइयों में बसी हुई है। कुछ बिल्कुल स्पष्ट तो कुछ
धुंधली सी!
आज
के दिन मैं अपनी यादों के उन पलों को वापस अपने मम्मी-पापा के साथ जीना चाहती हूँ, हाँ उन धुंधली हुई
यादों के कुछ पल थोड़े अलग भी हो सकते हैं लेकिन वो पल हैं…. मेरी यादों में मेरे
पापा-मम्मी के आपस के प्यार के और मुझसे प्यार के।
तुम्हें
और क्या दूं मैं दिल के सिवाय, तुमको हमारी उम्र लग जाये,
चलिए
मेरे जन्म से चलते है, हमारे घर में Orient Company का एक पंखा था और अभी
कुछ सालों पहले तक भी था,
उसे दिखाते हुए पापा कहते थे कि यह पंखा वो मेरे लिए ही लाए
थे। हालांकि मुझे खुद को कुछ याद नहीं है क्योंकि एक साल से छोटी बच्ची को क्या
याद होगा?
ये
बात मेरे अस्पताल से घर आने वाले दिन की भी हो सकती है या हो सकता है कि कुछ दिनों
बाद की हो। तो हुआ यूं कि जब मैं मम्मी के साथ अपने घर आई तो उस रात मच्छरों ने
काट-काट कर मुझे पूरा लाल कर दिया। बस अगले दिन की रात होने से पहले हमारे घर की
छत पर एक पंखा लग चुका था।
मुझे
याद है बचपन में एक बार मैं पापा-मम्मी, दुर्गा और शायद गोदी
में विशाल भी होगा मुझे ठीक से याद नहीं हैं। हम लोग टैक्सी से पुष्पा बुआ के घर
जा रहे थे। दुर्गा छोटी ही थी ढाई या तीन साल की, मैं बड़ी थी। हमें
सिखाया गया था कि किसी के घर में जाते हैं तो चप्पल बाहर ही खोल के जाते हैं। तो
उसने भी टैक्सी में चढ़ने से पहले अपनी चप्पल बाहर ही खोल दी। टैक्सी चल पड़ी और मेरी
नजर उसके पाँव पर पड़ी, मैंने पापा से कहा, “पापा दुर्गा ने
चप्पल सड़क पर ही उतार दी मैं लेकर आती हूँ।“ पापा रोकते या कुछ
कहते उससे पहले ही मैंने चलती टैक्सी से पाँव बाहर निकाल दिया। मेरा पाँव टैक्सी
के पहियें के नीचे आ गया,
टैक्सी वाले ने जल्दी से ब्रेक लगाए लेकिन तब तक तो मेरा पाँव
टैक्सी के साथ-साथ लगभग दो से तीन फीट तक घिसट चुका था, क्योंकि केवल मेरा
पाँव ही टैक्सी के बाहर था मैं तो टैक्सी के अंदर थी ना। खैर मेरे पैर में
प्लास्टर चढ़ गया। लेकिन चाहे कुछ भी हो जाये मुझे तो बस स्कूल जाना था, तो मेरी जिद पर पापा
रोज मुझे कंधे पर बैठा कर स्कूल छोड़ते और लाते।
मुझे
आज भी याद है हमारे स्कूल के दिनों में Sunday दे दिन मम्मी तो
सुबह से ही हमारे कपड़े धोने लग जाया करती और पापा सबसे पहले हम सबके जूतों की
पोलिश करते और फिर हम चारों को लाइन में बैठाकर हमारे नाखून काटते, हमारे नाखून
इतने छोटे हो जाते कि हमसे दो दिन तक सब्जी में हाथ भी ना डाला जाता। बस फिर दो
दिन तक सब्जी में बारीक चूरी हुई रोटी उनके हाथों से खाने का आनन्द उठाया जाता। आज
सोचती हूँ कि दो दिन बाद ही नाखून सही क्यों हो जाते थे पूरे छः दिन तक जलन होती
रहती तो कितना अच्छा होता।
मेहनत, ईमानदारी और हालातों
का सामना करने का गुण मुझे मेरे पापा-मम्मी से ही मिला है लेकिन फिर भी मैं उनके नाखून तक की भी
बराबरी नहीं कर सकती।
हमारे
गाँव रियाँ के रेलवे स्टेशन से हमारा घर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। जब भी
हम गर्मियों की छुट्टियों में अपने गाँव रियाँ जाते तो पापा चिलचिलाती धूप में
अपने दोनों हाथों में कपड़ों से भरी दो पेटियाँ और दोनों कंधों पर दोनों भाईयों को
बैठाकर पैदल ही रेलवे स्टेशन से घर तक आते, लेकिन उनके चेहरे पर
किसी प्रकार की शिकन, गुस्से या थकान का
नामों निशान ना होता।
एक
वो गाना है ना, “पतझड़ सावन बसंत बहार,एक बरस के मौसम चार मौसम चार मौसम चार
पाँचवाँ मौसम प्यार का इंतजार का…..
हमारे
घर में ये पाँचों मौसम तो थे लेकिन एक छठा मौसम और आता था, वो था हमारी पिटाई का।
पापा हमारी बड़ी से बड़ी शैतानी पर हमें कुछ भी नहीं कहते थे, डाँटते भी नहीं थे। लेकिन जिस दिन इस मौसम का आगमन होता। बस हममें
से किसी एक की गलती और बस हम पांचों की जम कर पिटाई (जिसमें हजारी भी शामिल होता था।)।
एक
बार हम पाँचों की पिटाई इस बात पर हुई थी कि घर से 50 रुपये का एक नोट
चोरी हो गया था।
पापा
को जब इस बात का पता चला तो एक बार कमरे में खुद के साथ हम सबको बंद कर लिया और
सबको एक ही रस्सी से बांध दिया, फिर शुरू हुई हमारी धुनाई। एक को जोर से चाँटा
पड़ता और पाँचों गिरते।
ये
तो याद नहीं है कि यह कांड किसने किया था, लेकिन जम कर हमारी
पिटाई करने के बाद में पापा ने हमें समझाया कि बात 50 रुपये की नहीं, ईमानदारी की है। भई
अब इतनी पिटाई खाने के बाद तो इसे भूला नहीं जा सकता, हैं ना।
एक
बार तो उन्होंने हम चारों को साइकिल से बांध दिया और जमकर धुनाई की।
जब
भी बंद कमरे में हमारी पिटाई होती, मम्मी के तो बीच में आने का सवाल ही नहीं होता था और बाई
(मेरी दादी) दरवाजे के बाहर खड़ी-खड़ी पापा को गालियाँ देती रहती बाईकावना छोड़ दे
मार देवेलों काईं, डाकी है काईं, ज लेवेलों काईं टाबरा की। दरवाजा खुलवाने के लिए
चिल्ला-चिल्ला कर घर में कोहराम मचा देती, लेकिन वो दरवाजा
हमारी अच्छी तरह से धुनाई हो चुकने के बाद ही खुलता था।
लेकिन
वो धुनाई हमें कुछ ही दिनों तक याद रहती थी, क्योंकि पापा के
प्यार से हम उस धुनाई को जल्दी ही भूल जाते थे और हमारी शरारतों का सिलसिला फिर से
शुरू हो जाता था। वैसे यह क्रम ज्यादा नहीं, बस कुछ सालों तक ही चला। मेरे 13-14 साल के होने के बाद
मुझे याद नहीं कि पापा ने हम पर हाथ उठाया हो।
मुझे
पता है कि हमारी पिटाई करने के बाद वे खुद कितना दुखी होते होंगे और हमें शायद
पहले से भी ज्यादा प्यार करते होंगे क्योंकि तभी तो कुछ ही दिनों में हम अपनी
पिटाई को भूल जाते थे और पापा के साथ प्यार और मनुहार फिर से चालू हो जाती। लेकिन
कहते हैं ना बुरा वक्त ज्यादा दिनों तक याद रहता है।
पापा
कभी हमारे साथ पापा की तरह से नहीं रहे बल्कि एक दोस्त की तरह ही रहे साथ में खाना, साथ में खेलना, और साथ में गाने
गाना। जी हाँ गाना, वह भी उस जमाने में
जब लोग गाना गाना बुरा मानते थे, पापा और मैं साथ में
काम करते हुए फिल्मी गाने गाते थे। साथ में ताश खेलते थे। लगभग हर Friday को movie दिखाने ले जाते। दीपावली के बाद गन्नों को छील कर
छोटे-छोटे टुकड़ों में काट-काट कर खिलाना, एक ही परात में तरबूज काट कर सब जनों का एक साथ खाना।
मेरा
मम्मी से ज्यादा पापा के साथ Attachment था। सुबह उठते ही अखबार
पहले पढ़ने की लड़ाई, फिर दोनों मिलकर अखबार में आने वाली पहेलियाँ बुझते, क्रॉस वर्ड
भरते।
मुझे
याद नहीं है कि पापा-मम्मी ने मुझ पर या दुर्गा पर लड़की होने के कारण कोई रोक-टोक
नहीं लगाई हो या याह कहा हो कि तुम लड़कियाँ हो और तुम्हें ये काम नहीं करना चाहिए
या केवल घर के काम ही करने चाहिए। उन्हें हम पर पूरा विश्वास था और हमने उनके
विश्वास को टूटने नहीं दिया।
कभी
हम दोनों बहनों को काम करने के लिए ज्यादा डांट-डपट नहीं करते थे, बल्कि मम्मी तो कहती
अभी तो खाने-खेलने दो शादी के बाद तो काम करना ही है, मैंने भी तो ससुराल
में ही सीखा है।
दरअसल
मेरी मम्मी भी अपने घर की लाड़ली थी छः-छः भाभियों की छोटी ननंद कोई काम करने ही
नहीं देती थी। इसलिए मम्मी को भी घर का काम ज्यादा नहीं आता था। लेकिन grasping पावर बहुत अच्छी थी।
मुश्किल से 1 साल ही स्कूल गई होगी, लेकिन 20 तक पहाड़े, अक्षर ज्ञान यहाँ तक
कि ABCD जो कि मम्मी ने खुद भी नहीं पढ़ी थी, वो भी मम्मी ने ही मुझे
सिखाई थी। इसीलिए मम्मी हर काम में भी जल्दी ही निपुण हो गई।
मेरे
पापा इतने दयालु है कि व किसी और का दुख दर्द देख ही नहीं सकते। यदि कोई अपनी
समस्या लेकर पापा के पास मदद मांगने के लिए आ जाता तो खुद के पास पैसे ना होने पर
वे किसी और से पैसे लेकर उसकी मदद कर देते थे। कभी वे पैसे आ भी जाते और कभी नहीं
भी। लेकिन पापा ने उस इंसान से कभी अपना रिश्ता खराब नहीं किया।
कई
लोग ऐसे भी है जिनकी पापा ने अपनी हैसियत से ज्यादा मदद की लेकिन उन्होंने उन्हें
धोखा दिया लेकिन फिर भी पापा ने अपने रिश्तों पर कभी आंच ना आने दी और मम्मी ने भी
इसमें पूरा साथ दिया। उनका मानना है कि पानी में लाठी मारने से पानी अलग नहीं हो
जाता।
अपने
माता-पिता की सेवा के बारे में बात करूँ तो मेरे पापा ने अपने माता-पिता की इतनी
सेवा की है कि लोग उन्हें उपाध्याय परिवार का श्रवण कुमार कह कर पुकारते हैं। हाँ
मम्मी का भी उसमें पूरा साथ था।
किस्से तो इतने हैं कि पूरी रात बीत
जाएगी लेकिन मेरी मीठी यादें खत्म ही नहीं होंगी।
इसलिए
अंत मैं मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी कि मैं भगवान की बहुत शुक्रगुजार हूँ जो
उन्होनें मुझे इतना प्यार करने वाले और दिल के इतने सच्चे मम्मी पापा दिए।
Thank
You for listening me
मेरे पापा-मम्मी की 50वीं शादी की सालगिरह पर आए सभी मेहमानों का मैं तहे दिल से स्वागत करती हूँ। अब हम ज्यादा देर ना करते हुए अपने कार्यक्रम की शुरुआत भगवान गणेश की स्तुति से करते हैं जिसे आपके सामने प्रस्तुत कर रही हैं
अब आगे बढ़ने से पहले हम पापा-मम्मी के जीवन पर एक नजर डालते है।
ये हमारी एक छोटी सी कोशिश है पापा-मम्मी
मेरे दादाजी शहर में काम करते थे और मेरी दादीजी बहुत ही भोली थी इसलिए पापा और कमला बुआ दोनों की परवरिश घर से दूर हुई। कमला बुआ अपनी ननिहाल में रही तो पापा ने अपनी पढ़ाई घर से दूर अपने काकाजी के साथ रहकर की और उनके साथ काम सीखा।
दूसरी तरफ मम्मी छः भाई और भाभियों के बीच में सबसे लाड़ली थी क्योंकि दोनों मौसियाँ बड़ी थी और उनकी शादी हो चुकी थी। छः भाभियाँ और लाड़ली होने के कारण घर के काम-काज से मम्मी का दूर-दूर तक नाता ही नहीं था। तो जब मम्मी 14 या 15 साल की हुई तो मेरी मौसी जी ने उन्हें अपने पास बुलाया लिया ताकि शादी से पहले घर के कुछ काम-काज सीख सके।
तो चूंकि मेरी मौसी की शादी मेरे दादाजी के छोटे भाई के साथ ही हुई थी तो मम्मी अपने होने वाले ससुराल ही आ गई। अब मम्मी ने घर का काम-काज तो सीखा या नहीं ये तो पता नहीं लेकिन पूरे गाँव में मम्मी का खेलना बदस्तूर जारी रहा। वैसे मेरे पापा तो बाहर ही रहते थे लेकिन फिर भी गाँव तो आते ही होंगे तो शायद वे दोनों भी साथ में खेलते होंगे
आ मेरे हमजोली आ, खेलें आँख मिचौली आ ……….
फिर शायद कुछ ऐसा हुआ हो
जहाँ भी जाती हूँ वहीं चले आते हो चोरी-चोरी मेरे ……….
तू सोलह बारस की मैं सत्रह बरस का मिल ना जाए नैना ……….
फिर
शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है ……….
खैर उस जमाने में ऐसा नहीं होता था। मेरे दादाजी ने मुझे एक बार बताया कि एक बार वे मेरे नानाजी के साथ कुछ लोगों के साथ चौबारे में बैठे हुए थे और मेरी मम्मी आकर मेरे दादाजी की गोद में बैठ गई तो मेरे दादाजी ने ऐसे ही कहा कि इसे तो मैं मेरी बहु बनाऊँगा और दादाजी ने वैसे तो यह बात यूँ ही कही थी लेकिन कहते हैं ना कि दिन में एक बार जबान पर सरस्वती जी विराजमान होती है तो बाद में यह बात सच भी हो गई।
वैसे तो यह बात जब पापा-मम्मी दोनों ही छोटे थे तब की हैं लेकिन बात हुई थी तो कहीं ना कहीं सबके जेहन में भी थी और शायद पापा-मम्मी को भी इस बारे में पता हो और उनके मन में भी ऐसा ही कुछ होने का इंतजार हो, जो कि दोनों की शादी वाले दिन पूरा हो गया।
जिसका मुझे था इंतजार जसके लिए दिल था बेकरार वो घड़ी ……….
दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है दुल्हन का भी दिल दीवाना लगता है ……….
मिल गए मिल गए आज मेरे सनम आज मेरे जमीं
बड़े अरमानों से रखा है सनम तेरी कसम प्यार की दुनियाँ में
शादी के बाद पापा और मम्मी इंदौर आ गए और मम्मी पापा की ड़फली पर कदम से कदम मिला कर उनके साथ चलने लगी।
डफली वाले डफली बजा ……….
इतना की अपने बाबुल के घर को ही भूल गई
मैं तो भूल चली बाबुल का देश पिया का घर प्यारा लगे
फिर एक-एक कर के हम चारों का जन्म हुआ। इंदौर में पापा का व्यापार खूब अच्छा चल रहा था। घर में रुपये पैसों की कोई कमी नहीं थी। उस जमाने में किसी के घर में एक साइकिल होती थी तो उसे भी रईसों में गिना जाता था। तो हमारे घर में तो फोन स्कूटर सब थे, जिंदगी की गाड़ी मजे से चल रही थी।
मनु भाई मोटर चली
लेकिन कहते है ना कि खुशियों के साथ-साथ दुख भी चलता हैं पापा को व्यापार में नुकसान हो गया और हमें इंदौर छोड़ कर जयपुर आना पड़ा और स्थितियाँ ऐसी बनी की पापा के पास हमारे लिए दूध खरीदने तक के पैसे नहीं थे
मेरे पापा हम बच्चों के साथ एकदम दोस्तों की तरह रहे साथ में खाना, साथ में खेलना और साथ में गाने गाना। जिंदगी में कठिनाइयों के बावजूद भी हम छोटी-छोटी खुशियाँ मनाते रहे मम्मी ने भी कठिनाई के समय बिना किसी शिकायत के पापा का पूरा साथ दिया
पहले हम इंदौर रहते थे, जहाँ पर पापा के पास धन-दौलत की कमी नहीं थी, लेकिन किसी कारणवश व्यापार में नुकसान हो गया और हमें जयपुर आना पड़ा।
यहाँ आने पर पता चल कि जिस मकान का पिछले छः महीने से किराया भर रहे थे वहाँ तो कोई और ही किरायेदार रह रहा है। अब ट्रक में भरा हुआ समान और 4 छोटे-छोटे बच्चे (विक्की तब केवल एक साल का था) कहाँ जाते। तब एक रिश्तेदार ने हमारी मदद की और एक दूसरा मकान किराये पर दिलवाया।
उसकों भी एडवांस किराया देना पड़ा, अब पास में बहुत ही कम पैसे बचे थे। यहाँ आने के साल भर तक पापा का काम न अच्छी तरह से नहीं जमा थे। सारी जमा पूंजी खत्म सी हो गई थी। हम चारों बच्चे नादान थे हमें कुछ समझता नहीं था। हमें इंदौर में पूरा गिलास भर कर दूध मिलता था, तो हमें तो दूध का पूरा भरा हुआ दूध ही चाहिए था। लेकिन यहाँ तो 6 जनों के बीच में आधा लीटर दूध! 4 ग्लास कैसे भरते? बस मम्मी ग्लास में थोड़ा सा दूध डालती और बाकी का ग्लास पानी से भर देती।
लेकिन मेरी मम्मी ने ऐसी घड़ी में भी पापा से शिकायत नहीं की। घर में मेहमानों की आवभगत मानमनुहार में मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की तंगहाली के दिनों में भी सबका खुले दिल से स्वागत किया। रात को बारह बजे भी कोई मेहमान आ गया तो उसे भूखा नहीं सोने दिया यहाँ तक कि उनके कपड़े तक मम्मी ने अपने हाथों से धोकर दिए।
और पापा ने भी मम्मी का पूरा साथ निभाया, पापा हमेशा सुबह का खाना बनाने तथा अन्य काम करने में मम्मी की मदद करते थे। इस कारण काम पर देर से जा पाते थे। Market में व्यापारी लोग बोलते, उपाध्याय जी घर के काम-धाम छोड़कर व्यापार पर ज्यादा ध्यान दो, लेकिन पापा जानते थे घर में आठ से दस लोगों का काम अकेले करना कोई आसान काम थोड़े ही होता है और नौकर रखने की हैसियत नहीं थी। इसलिए लोगों का कहा हंसी में टाल देते थे।
जिंदगी हर कदम एक नई जंग है जीत जाएंगे हम जीत जाएंगे हम
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
हँसते-हँसते कट जाएं रस्ते जिंदगी यू ही
यूँ ही कट जाएगा सफर साथ चलने से के मंजिल आएगी नजर साथ चलने से
पापा हर साल एक डेढ़ महीने के लिए टूर पर जाते थे और हमेशा मेरी मम्मी के लिए वहाँ से दो साड़ियाँ लाते थे और मेरी मम्मी उन दो साड़ियों को इतने संभाल कर रखती की वर्षों तक लगभग हर Function या Party में मम्मी इन सँजोई हुई साड़ियों में ही दिखाई देती, मम्मी ने पापा से कभी कोई डिमांड नहीं की, लेकिन हम तो बच्चे थे तो हमारी डिमांड तो जायज ही थी।
बता दूँ क्या लाना तुम लौट के आ जाना
सात समुन्द्र पार से गुड़ियों के बाजार से
और पापा हर बार टूर से आते वक्त बहुत सारी कहानियों की किताबे लाते थे।
पापा-मम्मी की जोड़ी पर मैं यह नहीं कहती कि पापा मम्मी में कभी तकरार नहीं हुई होगी लेकिन हमने बचपन में पापा-मम्मी को कभी झगड़ते नहीं देखा, दोनों ने एक दूसरे का इतना साथ निभाया कि जब खुशी थी तब तो घर में खुशियाँ होती ही थी लेकिन तंगहाली में भी कभी घर से खुशियाँ नहीं गई। दोनों ने एक दूसरे का पूरा साथ दिया।
आज के जमाने में जहाँ
आज भी पापा, मम्मी की इतनी चिंता करते है कि मम्मी को थोड़ा सा भी कुछ हो जाता है तो उनका कहीं मन ही नहीं लगता और मम्मी का भी यही हाल है। बस इतना सा है कि पापा का ह्रदय बहुत ही कोमल है और उनकी चिंता दिख जाती है लेकिन मम्मी अंदर से बहुत strong है इसलिए उनकी चिंता हमें दिखाई नहीं देती
क्या यही प्यार है हाँ यही प्यार है दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं वक्त गुजरता नहीं
तेरा साथ है कितना प्यारा
पापा मम्मी को बुलाना चाहूँगी
ओ मेरी जोहरे जबी टू अब तक है हंसी
पापा के दिल की कोमलता की बात करूँ तो उनका दिल इतना कोमल
इस दौरान की कुछ खट्टी मीठी यादें, पापा मम्मी के साथ गुजारे हुए कुछ लम्हे जो हमारे जेहन में आज भी चित्रित हैं
जैसे मेरे जन्म के समय पंखा लाना
सामूहिक जूता पोलिश, नेल कटिंग, सामूहिक पिटाई, दीपावली के बाद गन्नों को छील कर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट-काट कर खिलाना, एक ही परात में तरबूज काट कर सब जनों का एक साथ खाना, कोसों दूर तक अपने कंधे पर बैठाकर ले जाना।
जब कोई बात बिगड़ जाये
यूँ ही कट जायेगा सफर साथ चलने से कि मंजिल आएगी नजर
लड़कों और लड़कियों का ग्रुप डांस
लारा लप्पा लारा लप्पा लाई कर जा
खंभे जैसी खड़ी है
मैं सितारों का तराना …..पाँच रुपया बार आना
तौबा ये मतवाली चाल झुक जाये फूलों
ये लड़का हाय अल्लाह कैसा है दीवाना
जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी
एक मैं और एक टू दोनों मिले इस तरह
गौरे रंग पे ना इतना गुमान कर
मेरे दिल की घड़ी करे टिक-टिक-टिक लो बजे रात के बारह
लड़कियों का ग्रुप डांस
अपलम चपलम चपलाई
हँसता हुआ नूरानी चेहरा
सैया झूठों का बड़ा सरदार निकला
funny डांस
बड़े मियां दीवाने ऐसे ना बनों हसीना
दो बिचारे बिना सहारे देखो
हाल कैसा है जनाब का क्या ख्याल है
आके सीधी लगी दिल पे
cat कैट माने बिल्ली rat रेट माने चूहा
बाबू समझो इशारे
हम थे वो थी और समा रंगीन
किस्मत की हवा कभी गरम- कभी नरम **
जरूरत है जरूरत है जरूरत है श्रीमती की
कमाता हूँ बहुत पर कमाई डूब जाती है
हम काले है तो क्या हुआ दिलवाले है
सिकंदर ने पोरस से की थी लड़ाई
चील-चील चिल्ला के कजरी सुनाए
मेरी भैंस को डंडा क्यूँ मारा
मुझे मेरी बीबी से बचाओ
डम-डम डिगा-डिगा मौसम भीगा- भीगा
है अपना दिल तो आवारा ना जाने किस पे आएगा
कजरारे-कजरारे
एक चतुर नार
मेरे सामने वाली खिड़की
मेरा कजरा तेरी निन्दियाँ ना चुरा ले तो कहना मेरे पिया गए रंगून किया है वहाँ से
l
हनी, गुनू, नेपू, दरशु, याशु
है में का करूँ राम मुझे बुड्ढा मिल गया
शशि दुर्गा
इक परदेशी मेरा दिल ले गया
आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे उड़े जब-जब जुलफ़े तेरी
कजरा मोहब्बत वाला अँखियों में ऐसा डाला
रेशमी सलवार कुर्ता जाली का
ये पर्दा हटा दो जरा मुखड़ा दिखा दो हम
तेरे हाथों में पहना के चूड़ियाँ
क्या गजब करते हो जी
बिंदिया चमकेगी चूड़ी खनकेगी
कौन दिशा में लेके चला से बटोहिया
सैया ले गई जिया तेरी पहली नजर
बड़ी मुश्किल है खोया मेरा दिल है कोई
आजा संयम मधुर चाँदनी में हम
आधा है चंद्रमा रात आधी रह ना जाये
अच्छा जी मैं हारी चलो माँ जाओ ना देखि सबकी यारी
हौले-हौले सजना धीरे-धीरे बालमा जरा होले-होले चलों बालमा
बार-बार देखो हजार बार देखो देखने की चीज है
आई दिल मुझे बता दे तु किस पे आ ग्या है
हम आपकी आँखों में इस दिल को सजा दे तो
शशि
ऊई माँ ऊई माँ ये क्या हो गया उनकी गली में
ढूंढो-ढूंढो रे साजना ढूंढो रे सजना मेरे कान का बाला
लेके पहला-पहला प्यार
काँटों से खींच के ये आँचल खोल के बंधन बाँधी पायल
बाबूजी धीरे चलना प्यार में जरा संभलना
लाखों हैं निगाह में जिंदगी की राह में
आज उनसे पहली मुलाकात होगी फिर
मैं कई दिनों से सोच रही थी कि आज के इस शुभ अवसर पर मुझे भी अपने पापा-मम्मी को कोई Gift देना चाहिए, लेकिन मेरी इतनी हैसियत ही नहीं है कि मैं उन्हें कुछ दे सकूँ, या उनके द्वारा दिए गए प्यार और दुलार का ऋण चुका सकूँ।
मैं अपने जिंदगी की दौड़ में इतनी व्यस्त हो गई हूँ कि कई-कई दिनों तक पापा-मम्मी को फोन भी नहीं करती, लेकिन उनका प्यार मेरे प्रति कभी कम नहीं होता। दस से पंद्रह दिन भी नहीं होते कि पापा का फोन आ जाता है, की क्या बात है? ज्यादा बात नहीं होती मुश्किल से एक या दो मिनट और उन्हें तसल्ली हो जाती है।
कभी-कभी मुझे लगता भी है कि क्या मैं अपने पापा-मम्मी के लिए रोज दो मिनट भी नहीं निकाल सकती, लेकिन बस मुझसे बात हो ही नहीं पाती, मैं ज्यादा बात कर ही नहीं पाती।
दिन तक आज की इस भाग दौड़ की जिंदगी में हमारे पास अपने माता-पिता के लिए समय ही नहीं है, और उन्हें लगता होगा कि वो हमारे दिलों से दूर हो चुके हैं।
लेकिन ऐसा नहीं हैं कि वो मेरे दिल से दूर हो गए हैं, उनके साथ बिताए गए पलों की यादें आज भी मेरे दिल की गहराइयों में बसी हुई है। कुछ बिल्कुल स्पष्ट तो कुछ धुंधली सी!
आज के दिन मैं अपनी यादों के उन पलों को वापस अपने मम्मी-पापा के साथ जीना चाहती हूँ, हाँ उन धुंधली हुई यादों के कुछ पल थोड़े अलग भी हो सकते हैं लेकिन वो पल हैं…. मेरी यादों में मेरे पापा-मम्मी के आपस के प्यार के और मुझसे प्यार के।
(इसमें बैकग्राउंड म्यूजिक तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवाय….., मेरे घर आई इक नानही pरी गुड़िया रानी, बिटिया रानी परियों की नगरी से एक दिन, O Natkhat Nanhi Ladli तुझे देखे तेरा चंदा मामा , सात समुन्द्र पार से गुड़ियों के बाजार से)
चलिए मेरे जन्म से चलते है, हमारे घर में Orient Company का एक पंखा था, उसे दिखाते हुए पापा कहते थे कि यह पंखा वो मेरे लिए ही लाए थे। हालांकि मुझे खुद को याद नहीं है क्योंकि एक साल से छोटी बच्ची को क्या याद होगा और शायद समय भी सही नहीं हो।
ये बात मेरे अस्पताल से घर आने वाले दिन की भी हो सकती है या हो सकता है कि कुछ दिनों बाद की हो। तो हुआ यूं कि जब मैं मम्मी के साथ घर आई तो उस रात मच्छरों ने काट-काट कर मुझे पूरा लाल कर दिया। बस उसी दिन हमारे घर की छत पर एक पंखा लग चुका था।
मुझे याद है बचपन में एक बार मैं पापा-मम्मी, दुर्गा और शायद गोदी में विशाल भी होगा मुझे ठीक से याद नहीं हैं। टैक्सी से पुष्पा बुआ के घर जा रहे थे। दुर्गा छोटी ही थी डेढ़ या दो साल की, मैं बड़ी थी। तो हमें सिखाया गया था कि किसी के घर में जाते हैं तो चप्पल बाहर ही खोल के जाते हैं तो उसने भी टैक्सी में छड़ने से पहले अपनी चप्पल बाहर ही खोल दी। टैक्सी चली मेरी नजर उसके पाँव पर पड़ी और मैंने पापा से कहा पापा दुर्गा ने चप्पल सड़क पर ही उतार दी मैं लेकर आती हूँ। पाप रोकते या कुछ कहते उससे पहले ही मैंने चलती टैक्सी से पाँव बाहर निकाल दिया। मेरा पाँव टैक्सी के पहियें के नीचे आ गया, टैक्सी वाले ने जल्दी से ब्रेक लगाए लेकिन तब तक तो मेरा पाँव टैक्सी के साथ-साथ लगभग दो से तीन फिट घिसट चुका था, क्योंकि केवल मेरा पाँव ही टैक्सी के बाहर था मैं तो टैक्सी के अंदर थी। खैर मेरे पैर में प्लास्टर चढ़ गया। लेकिन चाहे कुछ भी हो जाये मुझे तो बस स्कूल जाना था, तो मेरी जिद पर पापा रोज मुझे कंधे पर बैठा कर स्कूल छोड़ते और लाते।
सर जो तेरा चकराये या दिल
मुझे आज भी याद है हमारे स्कूल के दिनों के Sunday जब मम्मी तो सुबह से ही हमारे कपड़े धोने लग जाया करती और पापा सबसे पहले हम सबके जूतों की पोलिश करते और फिर हम चारों को लाइन में बैठाकर हमारे नाखून काटते और हमारे नाखून इतने छोटे हो जाते कि हमसे दो दिन तक सब्जी में हाथ भी ना डाला जाता। बस फिर दो दिन तक सब्जी में बारीक चूरी हुई रोटी उनके हाथों से खाने का आनन्द उठाया जाता। आज सोचती हूँ कि दो दिन बाद ही नाखून सही क्यों हो जाते थे पूरे छः दिन तक जलन होती रहती तो कितना अच्छा होता।
मेहनत, ईमानदारी और हालातों का सामना करने का गुण मुझे मेरे पापा-मम्मी से ही मिला है लेकिन फिर भी मैं उनके नाखून तक की भी बराबरी नहीं कर सकती।
हमारे गाँव रियाँ के रेलवे स्टेशन से हमारा घर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है। जब भी हम गर्मियों की छुट्टियों में अपने गाँव रियाँ जाते तो पापा चिलचिलाती धूप में अपने दोनों हाथों में कपड़ों से भरी दो पेटियाँ और दोनों कंधों पर दोनों भाईयों को बैठाकर पैदल ही रेलवे स्टेशन से घर तक आते लेकिन उनके चेहरे पर किसी प्रकार की शिकन, गुस्से या थकान का नामों निशान ना होता।
एक बरस के मौसम चार पाँचवाँ मौसम background
वैसे तो एक साल में चार ही मौसम आते हैं लेकिन हमारे घर में पाँच मौसम आते थे, पाँचवाँ मयाऑउसम था हमारी पिटाई का। पापा हमारी बड़ी से बड़ी शैतानी पर हमें कुछ भी नहीं कहते लेकिन जिस दिन इस मौसम का आगमन होता। बस हममें से किसी एक की गलती और बस हम पांचों की जम कर पिटाई।
एक बार हम पाँचों की पिटाई इस बात पर हुई थी कि घर से 50 रुपये का एक नोट चोरी हो गया था।
पापा को जब इस बात का पता चला तो एक बार कमरे में खुद को हम सबको बंद कर लिया और सबको एक ही रस्सी से बांध दिया फिर शुरू हुई हमारी धुनाई। एक को जोर से चाँटा पड़ता और पाँचों गिरते।
ये तो याद नहीं है कि यह कांड किसने किया था, लेकिन जम कर हमारी पिटाई करने के बाद में पापा ने हमें समझाया कि बात 50 रुपये की नहीं, ईमानदारी की है। भई अब इतनी पिटाई खाने के बाद तो इसे भूला नहीं जा सकता हैं ना।
एक बार तो उन्होंने हम चारों को साइकिल से बांध दिया और जमकर धुनाई की।
जब भी बंद कमरे में हमारी पिटाई होती, मम्मी के तो बीच में आने का सवाल ही नहीं होता था और बाई (मेरी दादी) दरवाजे के बाहर खड़ी-खड़ी पापा को गलियाँ देती रहती बाईकावना छोड़ दे मार देवेलों काईं। दरवाजा खुलवाने के लिए चिल्ला-चिल्ला कर घर में कोहराम मचा देती, लेकिन वो दरवाजा हमारी अच्छी तरह से धुनाई हो चुकने के बाद ही खुलता था।
लेकिन वो धुनाई हमें कुछ ही दिनों तक याद रहती थी, क्योंकि पापा के प्यार से हम उस धुनाई को जल्दी ही भूल जाते थे। और हमारी शरारतों का सिलसिला फिर से शुरू हो जाता था। और यह क्रम ज्यादा नहीं कुछ सालों तक ही चला। मेरे 12-13 साल के होने के बाद मुझे याद नहीं कि पापा ने हम पर हाथ उठाया हो। कोई पिटाई याद नहीं है। शायद यह हमारी जरूरतों को पूरा ना कर पाने की उनकी frastation थी।
मुझे पता है कि हमारी पिटाई करने के बाद वे खुद कितना दुखी होते होंगे और हमें शायद पहले से भी ज्यादा प्यार करते होंगे क्योंकि तभी तो कुछ ही दिनों में हम अपनी पिटाई को भूल जाते थे और पाप के साथ प्यार और मनुहार फिर से चालू हो जाती। लेकिन कहते हैं ना बुरा वक्त ज्यादा दिनों तक याद रहता है।
पापा कभी हमारे साथ पापा की तरह से नहीं रहे बल्कि एक दोस्त की तरह ही रहे साथ में खाना, साथ में खेलना, और साथ में गाने गाना। जी हाँ गाना, वह भी उस जमाने में जब लोग गाना गाना बुरा मानते थे, पापा और मैं साथ में काम करते हुए फिल्मी गाने गाते थे।
कभी पापा-मम्मी ने मुझ पर या दुर्गा पर कोई रोक-टोक नहीं लगाई कि तुम लड़कियां हो और तुम्हें ये काम नहीं करना चाहिए या केवल घर के काम ही करने चाहिए। उन्हें हम पर पूरा विश्वास था और हमें भी इस बात का फक्र है कि हमने उनके विश्वास को टूटने नहीं दिया।
मुझे याद है जब हम बस से या ट्रेन से अपने कहीं जाते थे, तो यदि रास्ते में किसी की बेटी की विदाई हो रही होती थी तो मेरे पापा भी रो पढ़ते थे। ऐसा इंसान जो दूसरों की बेटी की विदाई को सहन नहीं कर सकता था उसने अपनी खुद की दो बेटियों की विदाई कैसे की होगी?
पापा मैं छोटी से बड़ी क्यूँ हो गई
कहते है बेटी शादी के बाद पराई हो जाती है लेकिन वो तो बेटी और माता-पिता को ही पता होता है कि बेटी की शादी के बाद उनका रिश्ता और प्यार और भी ज्यादा गहरा हो जाता है, शायद दूरी के कारण और अपनी इच्छाओं का दमन करने के कारण क्योंकि अब वे अपनी मर्जी से आपस में मिल भी नहीं सकते!
इसी बात पर एक किस्सा है, मेरी शादी के बाद गर्मियों में जब मैं घर आई तो घर में मेरा फेवरेट आम का रस बनाया गया, बाद में मुझे मेरे भाई-बहन से पता लगा कि इस बार गर्मियों में अमरस पहली बार बना है, मैंने कारण पूछा तो बताया कि पापा ने कहा था कि मुन्नी के ससुराल से आने पर ही आमरस बनेगा। घर में और भी बच्चे थे और आम्रस मेरे पापा को भी बहुत पसंद था, लेकिन उनका पसंदीदा खाना भी मेरे बिना उनके गले से नीचे नहीं उतर सका। इतना प्यार.. जिसे शब्दों से बयां कर पाना नामुमकिन है।
अब आते हैं पापा-मम्मी की जोड़ी पर मैं यह नहीं कहती कि पापा मम्मी में कभी तकरार नहीं हुई होगी लेकिन हमने बचपन में पापा-मम्मी को कभी झगड़ते नहीं देखा, दोनों ने एक दूसरे का इतना साथ निभाया कि जब खुशी थी तब तो घर में खुशियाँ होती ही थी लेकिन तंगहाली में भी कभी घर से खुशियाँ नहीं गई।
इस बात पर भी एक किस्सा याद आ गया इसलिए पहले किस्सा जयपुर आने से पहले हम इंदौर रहते थे, जहाँ पर पापा के पास धन-दौलत की कमी नहीं थी, लेकिन किसी कारणवश व्यापार में नुकसान हो गया और हमें जयपुर आना पड़ा।
यहाँ आने पर पता चल कि जिस मकान का पिछले छः महीने से किराया भर रहे थे वहाँ तो कोई और ही किरायेदार रह रहा है। अब ट्रक में भरा हुआ समान और 4 छोटे-छोटे बच्चे (विक्की तब केवल एक साल का था) कहाँ जाते। तब एक रिश्तेदार ने हमारी मदद की और एक दूसरा मकान किराये पर दिलवाया।
उसकों भी एडवांस किराया देना पड़ा, अब पास में बहुत ही कम पैसे बचे थे। यहाँ आने के साल भर तक पापा का काम न अच्छी तरह से नहीं जमा थे। सारी जमा पूंजी खत्म सी हो गई थी। हम चारों बच्चे नादान थे हमें कुछ समझता नहीं था। हमें इंदौर में पूरा गिलास भर कर दूध मिलता था, तो हमें तो दूध का पूरा भरा हुआ दूध ही चाहिए था। लेकिन यहाँ तो 6 जनों के बीच में आधा लीटर दूध! 4 ग्लास कैसे भरते? बस मम्मी ग्लास में थोड़ा सा दूध डालती और बाकी का ग्लास पानी से भर देती।
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
लेकिन मेरी मम्मी ने ऐसी घड़ी में भी पापा से शिकायत नहीं की। घर में मेहमानों की आवभगत मानमनुहार में मम्मी ने कभी कोई कमी नहीं की तंगहाली के दिनों में भी सबका खुले दिल से स्वागत किया। रात को बारह बजे भी कोई मेहमान आ गया तो उसे भूखा नहीं सोने दिया यहाँ तक कि उनके कपड़े तक मम्मी ने अपने हाथों से धोकर दिए।
और पापा ने भी मम्मी का पूरा साथ निभाया, पापा हमेशा सुबह का खाना बनाने तथा अन्य काम करने में मम्मी की मदद करते थे। इस कारण काम पर देर से जा पाते थे। Market में व्यापारी लोग बोलते, उपाध्याय जी घर के काम-धाम छोड़कर व्यापार पर ज्यादा ध्यान दो, लेकिन पापा जानते थे घर में आठ से दस लोगों का काम अकेले करना कोई आसान काम थोड़े ही होता है और नौकर रखने की हैसियत नहीं थी। इसलिए लोगों का कहा हंसी में टाल देते थे।
इतना होने पर भी पापा-मम्मी दोनों ही कभी हम दोनों बहनों को काम करने के लिए ज्यादा डांट-डपट नहीं करते थे, बल्कि मम्मी तो कहती अभी तो खाने-खेलने दो शादी के बाद तो काम करना ही है, मैंने भी तो ससुराल में ही सीखा है।
दरअसल मेरी मम्मी भी अपने घर की लाड़ली थी छः-छः भाभियों की छोटी ननंद कोई काम करने ही नहीं देती थी। इसलिए मम्मी को भी घर का काम ज्यादा नहीं आता था। लेकिन दिमाग बहुत तेज था, शायद 1 साल ही स्कूल गई होगी लेकिन 20 तक पहाड़े, अक्षर ज्ञान यहाँ तक कि abcd जो कि मम्मी ने खुद ने भी नहीं पढ़ी थी वो भी मम्मी ने ही मुझे सिखाई थी। और इसीलिए काम में भी जल्दी ही निपुण हो गई।
मेरे पापा इतने दयालु है कि व किसी और का दुख दर्द देख ही नहीं सकते। यदि कोई अपनी समस्या लेकर पापा के पास मदद मांगने के लिए आ जाता तो खुद के पास पैसे ना होने पर वे किसी और से पैसे लेकर उसकी मदद कर देते थे। काभई वे पैसे आ भी जाते और कभी नहीं भी। लेकिन पापा ने उस इंसान से कभी अपना रिश्ता खराब नहीं किया।
कई लोग ऐसे भी है जिनकी पापा ने अपनी हैसियत से ज्यादा मदद की लेकिन उन्होंने उन्हें धोखा दिया लेकिन फिर भी पापा ने रिश्तों पर कभी आंच ना आने दी। और मम्मी ने भी इसमें पूरा साथ दिया। उनका मानना है कि पानी में लाठी मारने से पानी अलग नहीं हो जाता।
अपने माता-पिता की सेवा के बारे में बात करूँ तो मेरे पापा ने अपने माता-पिता की इतनी सेवा की है कि लोग उन्हें उपाध्याय परिवार का श्रवण कुमार कह कर पुकारते हैं। हाँ मम्मी का भी उसमें पूरा साथ था।
एक सच्चे जिकन साथी एक-दूसरे
मम्मी और पापा दोनों ने ही हमें भरपूर प्यार दिया, लेकिन लेकिन मैं बिल्कुल अपने पापा मम्मी की तरह बनना चाहती हूँ
मैं चाहती हूँ कि मैं मेरी मम्मी जैसी बनूँ लेकिन शायद मुझमें इतना धैर्य ही नहीं है कि मैं वैसी बन सकूँ।
मैं भगवान की बहुत शुक्रगुजार हूँ जो उन्होनें मुझे इतना प्यार करने वाले और दिल के इतने सच्चे मम्मी पापा दिए।
किस्से तो इतने हैं कि पूरी रात बीत जाएगी लेकिन मेरी मीठी यादें खत्म ही नहीं होंगी।
और जैसे कि जैसे अच्छे दिन नहीं रहे थे तो बुरे भी नहीं रहे समय लगा लेकिन धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आ ही गई।
Thank You
मैं भी ऐसी ही हूँ मैं कई -कई दिनों तक पापा-मम्मी से बात नहीं करती, लेकिन उनका प्यार मेरे प्रति कभी कम नहीं होता। दस से पंद्रह दिन भी नहीं होते कि पापा का फोन आ जाता है, की क्या बात है? ज्यादा बात नहीं होती मुश्किल से एक या दो मिनट और उन्हें तसल्ली हो जाती है।
कभी-काभई मुझे लगता भी है कि क्या मैं अपने माता-पिता के लिए रोज दो मिनट भी नहीं निकाल सकती।
आज के इस शुभ अवसर पर मुझे भी अपने पापा-मम्मी को कोई Gift देना चाहिए, लेकिन मेरी इतनी हैसियत ही नहीं है कि मैं उन्हें कुछ दे सकूँ, या उनके द्वारा दिए गए प्यार और दुलार का ऋण चुका सकूँ।
आज की इस भाग दौड़ की जिंदगी में हमारे पास अपने माता-पिता के लिए समय ही नहीं है, और उन्हें लगता होगा कि वो हमारे दिलों से दूर हो चुके हैं।
लेकिन ऐसा नहीं हैं हमारी यादों में वो हमेशा हमारे साथ हैं। बस मैं आज उन्हीं मीठी यादों व पलों को याद करना चाहती हूँ जो मेरे मम्मी-पापा से जुड़ी हुई है।
(इसमें बैकग्राउंड म्यूजिक तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवाय….., गुड़िया रानी, बिटिया रानी परियों की नागरी से एक दिन, O Natkhat Nanhi Ladli तुझे देखे तेरा चंदा मामा , सात समुन्द्र पार से गुड़ियों के बाजार से)
चलिए मेरे जन्म से चलते है, हमारे घर में Orient Company का एक पंखा था, उसे दिखाते हुए पापा कहते थे कि यह पंखा वो मेरे लिए ही लाए थे। हालांकि मुझे खुद को याद नहीं है क्योंकि एक साल से छोटी बच्ची को क्या याद होगा और शायद समय भी सही नहीं हो।
तो किस्सा यूँ बना कि जब मैं मम्मी के साथ घर आई तो पहले ही दिन मेरे गाल लाल हो गए, ना-ना गलत मतलब मत निकालिए। दरअसल मुझे मच्छरों ने इतना काटा कि मेरे गाल लाल हो गए बस अगले दिन ही हमारे घर की छत पर एक पंखा टंग चुका था।
मुझे याद है बचपन में मेरे पाँव में चोट लग गई थी तो पापा मुझे कंधे पर बैठा कर स्कूल छोड़ने जाते थे, क्योंकि चाहे कुछ भी हो जाये स्कूल से छुट्टी लेना मुझे स्वीकार नहीं था।
सर जो तेरा चकराये या दिल
मुझे आज भी याद है हमारे स्कूल के दिनों के Sunday जब मम्मी तो सुबह से ही हमारे कपड़े धोने लग जाया करती और पापा हम सबके जूतों की इतनी पोलिश करते कि चाहो तो उनमें देख कर पूरा शृंगार कर लो। फिर बारी आती हमारे नाखूनों को काटने की सबको लाइन में बैठाकर पापा हमारे नाखून काटते और इतनी तन्मयता से काटते कि हमसे दो दिन तक सब्जी में हाथ भी ना डाला जाता। बस फिर दो दिन तक सब्जी में बारीक चूरी हुई रोटी उनके हाथों से खाने का आनन्द उठाया जाता। आज सोचती हूँ कि दो दिन बाद ही नाखून सही क्यों हो जाते पूरे छः दिन तक जलन होती रहती तो कितना अच्छा होता।
मेहनत, ईमानदारी और हालातों का सामना करने का गुण मुझे मेरे पापा-मम्मी से ही मिला है लेकिन फिर भी मैं उनके नाखून तक की भी बराबरी नहीं कर सकती।
जब भी हम अपने गाँव रियाँ जाते रेलवे स्टेशन से हमारा घर लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर था। पापा के दोनों हाथों में कपड़ों से भरी दो पेटियाँ और दोनों कंधों पर दोनों भाई, छोटे जो थे इतना पैदल चल नहीं सकते थे और उस जमाने में साधन तो थे नहीं।
एक बार पाँचवें मौसम में हमारी पिटाई इस बात पर हुई थी कि घर से 50 रुपये का एक नोट चोरी हो गया था, ये तो याद नहीं है कि यह कांड किसने किया था, लेकिन जाम कर अपना हाथ साफ करने के बाद में पापा ने हमें समझाया कि बात 50 रुपये की नहीं, ईमानदारी की है। भई अब इतनी पिटाई खाने के बाद तो इसे भूला तो नहीं जा सकता ना।
पापा मैं छोटी से बड़ी क्यूँ हो गई
कहते है बेटी शादी के बाद पराई हो जाती है लेकिन वो तो बेटी और माता-पिता को ही पता होता है कि बेटी की शादी के बाद रिश्ता और प्यार और गहरा हो जाता है, शायद दूरी के कारण!
इसी बात पर एक किस्सा है, मेरी शादी के बाद गर्मियों में जब मैं घर आई तो पापा-मम्मी नए मेरा फेवरेट आम का रस बनाया, बाद में मुझे मेरे भाई-बहन से पता लगा कि इस बार गर्मियों में अमरस पहली बार बना है, मैंने कारण पूछा तो बताया कि पापा ने कहा था कि मुन्नी के ससुराल से आने पर ही आमरस बनेगा।
अब आते हैं पापा-मम्मी की जोड़ी पर मैं यह नहीं कहती कि पापा मम्मी में कभी तकरार नहीं हुई होगी लेकिन हमने बचपन में पापा-मम्मी को कभी झगड़ते नहीं देखा, दोनों ने एक दूसरे का इतना साथ निभाया कि जब खुशी थी तब तो घर में खुशियाँ होती ही थी लेकिन तंगहाली में भी कभी घर से खुशियाँ नहीं गई।
इस बात पर भी एक किस्सा याद आ गया इसलिए पहले किस्सा जयपुर आने से पहले हम इंदौर रहते थे, जहाँ पर पापा के पास धन-दौलत की कमी नहीं थी, लेकिन किसी कारणवश व्यापार में नुकसान हो गया और हमें जयपुर आना पड़ा।
यहाँ आने पर पता चल कि जिस मकान का पिछले छः महीने से किराया भर रहे थे वहाँ तो कोई और ही किरायेदार रह रहा है। अब तृक में भरा हुआ समान और 4 छोटे-छोटे बच्चे (विक्की तब केवल एक साल का था) कहाँ जाते। तब एक रिश्तेदार ने हमारी मदद की और एक दूसरा मकान किराये पर दिलवाया।
उसकों भी एडवांस किराया देना पड़ा, अब पास में बहुत ही कम पैसे बचे थे। यहाँ आने के साल भर तक पापा का काम न अच्छी तरह से नहीं जमा थे। सारी जमा पूंजी खत्म सी हो गई थी। हम चारों बच्चे नादान थे हमें कुछ समझता नहीं था। हमें इंदौर में पूरा गिलास भर कर दूध मिलता था, तो हमें तो दूध का पूरा भरा हुआ दूध ही चाहिए था। लेकिन यहाँ तो 6 जनों के बीच में आधा लीटर दूध! 4 ग्लास कैसे भरते? बस मम्मी ग्लास में थोड़ा सा दूध डालती और बाकी का ग्लास पानी से भर देती।
तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
लेकिन मेरी मम्मी ने ऐसी घड़ी में भी पापा से शिकायत नहीं की। घर में मेहमानों की आवभगत मानमनुहार में मम्मी ने काभई कमी नहीं की तंगहाली के दिनों में भी सबका खुले दिल से स्वागत किया। रात को बारह बजे भी कोई मेहमान आ गया तो उसे भूखा नहीं सोने दिया।
और पापा ने भी मम्मी का पूरा साथ निभाया, पापा हमेशा सुबह का खाना बनाने तथा अन्य काम करने में मम्मी की मदद करते थे। इस कारण काम पर देर से जा पाते थे। Market में व्यापारी लोग बोलते, उपाध्याय जी घर के काम-धाम छोड़कर व्यापार पर ज्यादा ध्यान दो, लेकिन पापा जानते थे घर में आठ से दस लोगों का काम अकेले करना कोई आसान काम थोड़े ही होता है और नौकर रखने की हैसियत नहीं थी।
इसलिए लोगों का कहा हंसी में टाल देते थे। इतना होने पर भी पापा-मम्मी दोनों ही कभी हम दोनों बहनों को काम करने के लिए ज्यादा डांट-डपट नहीं करते थे, बल्कि मम्मी तो कहती अभी तो खाने-खेलने दो शादी के बाद तो काम करना ही है, मैंने भी तो ससुराल में ही सीखा है।
दरअसल मेरी मम्मी भी अपने घर की लाड़ली थी छः-छः भाभियों की छोटी ननंद कोई काम करने ही नहीं देती थी। इसलिए मम्मी को भी घर का काम ज्यादा नहीं आता था। लेकिन दिमाग बहुत तेज था, शायद 1 साल ही स्कूल गई होगी लेकिन 20 तक पहाड़े, अक्षर ज्ञान यहाँ तक कि abcd जो कि मम्मी ने खुद ने भी नहीं पढ़ी थी वो भी मम्मी ने ही मुझे सिखाई थी। और इसीलिए काम में भी जल्दी ही निपुण हो गई।
पापा कभी हमारे साथ पापा की तरह से नहीं रहे बल्कि एक दोस्त की तरह रहे साथ में खाना, साथ में खेलना, और साथ में गाने गाना। जी हाँ गाना, वह भी उस जमाने में जब लोग गाना गाना बुरा मानते थे, पापा और मैं साथ में काम करते हुए फिल्मी गाने गाते थे।
जैसे सारे मौसम साल में एक-एक बार आते हैं उसी प्रकार हमारे घर में एक पाँचवाँ मौसम भी हर साल आता था। अब आप सोच रहें होंगे सातवाँ मौसम कौनसा? कहीं वो गाने वाला तो नहीं। नहीं-नहीं वो नहीं पिटाई का! जी हाँ पिटाई का, पूरे साल पापा हमारे साथ बड़े प्यार से खेलते-खिलाते हुए रहते थे और साल में एक बार कमरे में बंद करके हमारी जम के पिटाई होती थी। गलती किसी की भी हो उस मौसम में हम सभी की धुनाई होती थी। एक बार तो उन्होंने हम चारों को साइकिल से बांध दिया और जमकर धुनाई हुई।
पाँचों को एक साथ बांध देते एक जने को चाँटा पड़ता और पांचों गिरते। बाई (मेरी दादी) दरवाजे के बाहर खड़ी-खड़ी पापा को गलियाँ देती रहती बाईकावना छोड़ दे मार देवेलों काईं।
एक बरस के मौसम चार पाँचवाँ मौसम background
केवल गाने ही नहीं पापा जब भजन गाते थे तब भी में परे भजनों में पापा के साथ बैठती थी। मेरा एक फेवरेट भजन था, “चामड़ा की पुतली भजन कर ले”।
मुझे तो मैं सुनती
किस्से तो इतने हैं कि पूरी रात बीत जाएगी लेकिन मेरी मीठी यादें खत्म ही नहीं होंगी।
और जैसे कि जैसे अच्छे दिन नहीं रहे थे तो बुरे भी नहीं रहे समय लगा लेकिन धीरे-धीरे गाड़ी पटरी पर आ ही गई।
मैं चाहती हूँ कि मैं मेरी मम्मी जैसी बनूँ लेकिन शायद मुझमें इतना धैर्य ही नहीं है कि मैं वैसी बन सकूँ।
मैं भगवान की बहुत शुक्रगुजार हूँ जो उन्होनें मुझे इतना प्यार करने वाले और दिल के इतने सच्चे मम्मी पापा दिए।
Thank You
मैं भी ऐसी ही हूँ मैं कई -कई दिनों तक पापा-मम्मी से बात नहीं करती, लेकिन उनका प्यार मेरे प्रति कभी कम नहीं होता। दस से पंद्रह दिन भी नहीं होते कि पापा का फोन आ जाता है, की क्या बात है? ज्यादा बात नहीं होती मुश्किल से एक या दो मिनट और उन्हें तसल्ली हो जाती है।
कभी-काभई मुझे लगता भी है कि क्या मैं अपने माता-पिता के लिए रोज दो मिनट भी नहीं निकाल सकती।