बाप भागी या आप भागी – Baap Bhagi Ya Aap Bhagi
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – बाप भागी या आप भागी – Baap Bhagi Ya Aap Bhagi
प्रातपगढ़ राज्य में राजा चरणसिंह राज्य करते थे। उनका राज्य बहुत ही समृद्ध राज्यों में गिना जाता था। सभी राजा चरणसिंह के न्याय और कार्यों की बहुत प्रशंसा करते थे कि उन्हीं की वजह से राज्य में इतनी समृद्धि है। सबसे अपनी तारीफ सुनते-सुनते राजा चरणसिंह को अपने आप पर अभिमान हो गया कि “उनके राज्य में सबको जो भी मिलता है वह उनकी वजह से ही मिलता है।”
बाप भागी या आप भागी
राजा के चार पुपुत्रियाँ थी, चंद्रलता, चंद्रप्रभा, चंद्रलेखा और चन्द्रमुखी। चारों ही राजकुमारियाँ बहुत ही सुंदर और सर्वगुण सम्पन्न थी। जब वे शादी लायक हो गई तो राजा ने उनसे एक-एक कर पूछा, “उनको इतना सब कुछ किसकी वजह से मिला है? तुम बाप भागी हो या आप भागी?”
चंद्रलता ने कहा, “पिताजी, मुझे तो जो कुछ भी मिला है, वह आपके कारण ही मिला है। इसलिए मैं तो आप भागी नहीं, बाप भागी हूँ।
चंद्रप्रभा ने कहा, “पिताजी, मुझे जो इतना सुख मिला है, वह आपके प्रताप से ही मिला है। इसलिए मैं तो आप भागी नहीं, बाप भागी हूँ।
चंद्रलेखाआपके भाग्य के कारण ही मिला है। इसलिए मैं तो आप भागी नहीं, बाप भागी हूँ।
लेकिन चन्द्रमुखी ने कहा, “पिताजी इस संसार में हर मनुष्य को वहीं मिलता है, जो उसके भाग्य में लिखा हुआ होता है। मैंने आपके घर में जन्म लिया है, यह मेरे किसी जन्म के पुण्य कर्मों का प्रताप ही है। इसलिए मैं तो बाप भागी नहीं, आप भागी हूँ।”
उसकी बात सुनकर राजा चरणसिंह के अभिमान को ठेस पहुँची। उसने अपने मंत्रियों को बुलाया और अपनी तीनों पुत्रियों के लिए अच्छे से अच्छे सम्पन्न राज्य का राजकुमार चुन कर लाने के लिए कहा और तीनों पुत्रियों का विवाह सम्पन्न राज्यों के राजकुमारों के साथ करवा दिया
जब छोटी पुत्री चन्द्रमुखी के विवाह की बारी आई तो उसने अपने महामंत्री से कहा, “अगली पूर्णिमा के दिन जो भी राज्य के प्रवेश द्वार से सबसे पहले प्रवेश करे चन्द्रमुखी का विवाह उसी से करवा दिया जाएगा।”
ये कैसा भाग्य है मेरा?
पूर्णिमा वाले दिन स्वयं महामंत्री प्रवेश द्वार खुलने से पहले ही वहाँ चले गए और अपने सामने प्रवेश द्वार खुलवाया। जैसे ही प्रवेश द्वार खुला उसमें से एक काले कुत्ते ने नगर में प्रवेश किया। महामंत्री ने राजा चरणसिंह को संदेश पँहुचाया कि “प्रवेश द्वार से तो सबसे पहले एक काले कुत्ते ने प्रवेश किया है।”
राजा चरणसिंह ने कहा, “उसी काले कुत्ते से राजकुमारी चंद्रमुखी का विवाह करवा दो।”
मंत्री ने राजकुमारी चंद्रमुखी का विवाह उस काले कुत्ते के साथ करवा दिया। राजकुमारी चंद्रमुखी ने अपने पिता का आशीर्वाद लिया और अपने पति के साथ उस नगर को छोड़ दिया। उस काले कुत्ते के साथ वह एक जंगल में पहुँच गई। वह विश्राम के लिए एक पेड़ के नीचे रूक गई और अपने पति को अपने आँचल से बाँध लिया और सो गई।
तभी उस पेड़ के नीचे रहने वाले साँप ने उस कुत्ते को डस लिया। कुत्ता दर्द के कारण जोर से चिल्लाया तो राजकुमारी चंद्रमुखी की नींद खुल गई। उसने साँप को वहाँ से जाते हुए देखा तो सारी बात संमझ गई। थोड़ी देर में ही वह कुत्ता मर गया। राजकुमारी शिव जी की अनन्य भक्त थी।
राजकुमारी ने शिवजी की प्रार्थना करते हुए कहा, “भगवान, मेरा विवाह इस कुत्ते से हुआ तो भी मैंने अपने भाग्य को स्वीकार करते हुए इसे ही अपना पति मान लिया। अब साँप के काटने से इनकी मृत्यु हो गई है तो भी मैं समझती हूँ कि शायद मेरे भाग्य में ये ही लिखा होगा। लेकिन अब मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ और कहाँ जाऊँ? कृपया मेरा मार्ग दर्शन कीजिए।”
बड़े भाग वाली!
जब वह यह प्रार्थना कर रही थी तब शिव-पार्वती विहार के लिए वहीं से गुजर रहे थे। उन्होंने जब राजकुमारी चंद्रमुखी को यह कहते हुए सुना तो वे उसके समक्ष आ गए और उससे बोले, “तुम्हारे मुझमें इतने विश्वास देखकर मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ। मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूँ। तुम जो भी चाहती हो मुझसे माँग लो।”
राजकुमारी चंद्रमुखी ने कहा, “हे भगवन्, मुझे मेरे लिए कुछ नहीं मांगना। आप मेरे लिए जो भी करेंगे, वह मेरे लिए अच्छा ही होगा। इसलिए आप जो भी मुझे देंगे, मैं उसे सहर्ष स्वीकार कर लूँगी।”
उसके इस जवाब से भगवान शिव और पार्वती बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने कहा, “हम तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न है, इसलिए हम तुम्हारे पति को जीवन दान और मनुष्य रूप प्रदान करते है। इसके साथ ही इस जंगल को एक सम्पन्न राज्य में बदल देंगे, जिस पर तुम अपने पति के साथ राज्य करना।”
तब राजकुमारी ने कहा, “हे देव, आप तो मेरे पति को जीवनदान और मनुष्य रूप दे देंगे। लेकिन जब मेरे पिता या पिता के राज्य के लोग मुझे एक मनुष्य के साथ रहते हुए देखेंगे तो वे सब मुझे पतिता समझेंगे। वे समझेंगे कि मैंने अपने पति को छोड़कर किसी और का दामन थाम लिया है। इसलिए जब आप इन्हें मनुष्य रूप प्रदान करे तो इनके दाएं पैर की एक अंगुली कुत्ते के पंजे के समान ही रहने दे। जिससे मैं अपने पतिव्रता होने का प्रमाण दे सकूँ।”
भगवान शिव ने ऐसा ही करते हुए उस कुत्ते को मनुष्य रूप प्रदान करते हुए जीवन दान दे दिया और उस जंगल को एक बहुत ही सुंदर और सम्पन्न राज्य में परिवर्तित कर दिया। कुछ ही दिनों में उस नगर के बारें में जानकर लोग उस नगर में रहने आने लगे। राजकुमारी ओर उसका पति राजा-रानी बनकर उस राज्य की प्रजा का पालन बहुत ही अच्छे ढंग से करने लगे।
ये कैसे हो सकता है?
धीरे-धीरे उस नगर की संपन्नता और न्याय की प्रसिद्धि चारों और फैलने लगी। उस नगर की संपन्नता और सुशासन की बात राजा चरणसिंह के कानों में भी पड़ी। उनके मन में भी उस नगर के राजा और उनके शासन को देखने की इच्छा हुई। इसलिए वे अपने मंत्रियों के साथ वेश बदलकर उस नगर में पँहुचे।
नगर की सुंदरता और सम्पन्नता को देखकर वे आश्चर्य चकित रह गए। राजा के न्याय को देखने के लिए वे राजदरबार गए तो उन्होंने रानी के रूप में अपनी पुत्री को सिंहासन पर बैठे देखा। राजा बहुत ही कुशलता और बुद्धिमानी से प्रजा के मसलों का निपटारा कर रहे थे और कोई भी फैसला लेने से पहले वह अपनी रानी से भी सलाह मशविरा करते थे।
राजा चरणसिंह दरबार की कार्यवाही समाप्त होने तक वहीं प्रतीक्षा करते रहे। दरबार की कार्यवाही समाप्त होने पर वे रानी अर्थात अपनी पुत्री के पास गए और बोले, “आखिर तुमने अपना भाग्य बदलने के लिए गलत रास्ते को अपनाया है। तुमने उस काले कुत्ते को छोड़ कर एक बड़े राजा से विवाह कर लिया।”
राजकुमारी चंद्रमुखी ने कहा, “नहीं पिताजी, ऐसा नहीं है, यह वहीं है, जिससे आपने मेरा विवाह किया था।
राजा चरणसिंह ने कहा, “लेकिन मैंने तो तुम्हारा विवाह एक काले कुत्ते के साथ करवाया था?
तब राजकुमारी चंद्रमुखी ने राजा चरणसिंह को शिवजी द्वारा अपने पति को जीवनदान और मनुष्य रूप देने के बारे में बताया। लेकिन राजा को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। तब राजकुमारी चंद्रमुखी ने अपने पति से अपने दाएं पैर की जुती खोलने के लिए कहा। जब उसके पति ने दाएं पैर की जूती खोली तो उसकी एक उंगली कुत्ते के पंजे के समान थी।
यह देख कर राजा चरणसिंह को राजकुमारी चंद्रमुखी की बात का विश्वास हो गया। उन्हें अपनी गलती का एहसास हो गया और उनका अभिमान चूर-चूर हो गया। वे बहुत राजकुमारी चंद्रमुखी के साथ किए गए अपने व्यवहार से शर्मिंदा हुए। उन्होंनें उससे अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी।
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तो दोस्तों, कैसी लगी कहानी बाप भागी या आप भागी! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
पिछली कहानी – अपने दोस्त पर आँख बंद करके विश्वास करने वाले राजकुमार की कहानी – कर्मों का फल
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