बिल्ली का न्याय – Billi Ka Nyay
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – बिल्ली का न्याय – Billi Ka Nyay – The Justice of Cat
सुगंधी वन में एक विशाल बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक काकुष नामक कौआ रहता था। उसी पेड़ के तने के खोल में कपिंजल नामक तीतर भी रहता था। दोनों रोज सुबह भोजन की तलाश में बाहर जाते और शाम कर आकर साथ-साथ बैठ कर खूब सारी बातें करते। पूरे दिन वे कहाँ-कहाँ गए, क्या-क्या किया, इसके बारे में एक-दूसरे को बताते।
दोनों के दिन बड़े मजे में बीत रहे थे। एक बार कपिंजल तीतर के कुछ साथी उधर आए और उससे बोले, “हमने सुना है, यहाँ से कुछ दूर एक गाँव में धान के खेतों में नई-नई कोंपले उगी है। हम सब तो वहीं जा रहे है। हमारे साथ चलों।”
तीतर उनके साथ चला गया और कौआ भी अपने भोजन की तलाश में उड़ गया। शाम होने पर कौआ वापस आया तो उसने अपने मित्र कपिंजल का बहुत इंतजार किया। लेकिन बहुत रात बीतने पर भी वह नहीं आया, तो वह अपने घोंसले में जाकर सो गया।
इसी तरह कुछ दिन और निकल गए। कपिंजल वापस नहीं आया। कौवे ने सोचा कि शायद उसके मित्र के साथ कोई दुर्घटना हो गई है। इसलिए वह इतने दिनों बाद भी वापस लौटकर नहीं आया है। हो सकता है, कपिंजल किसी शिकारी के जाल में फँस गया हो, या किसी बिल्ली का शिकार बन गया हो। यह सोच कर वह बहुत दुखी हुआ।
कई दिन बीत गए, लेकिन तीतर नहीं आया। जब कई दिनों तक उस कोटर में कोई नहीं आया, तो उसी जंगल मे रहने वाला एक खरगोश शीघ्रगो उछलता-कूदता हुआ वहाँ आया और उसमें रहने लग गया। कौवे ने भी यह सोचकर उसे नहीं रोका कि शायद अब कपिंजल कभी वापस नहीं आएगा। उसने उससे कुछ नहीं कहा। खरगोश मजे से वहाँ रहने लगा।
ये तेरा घर या मेरा घर?
कुछ दिन ही बीते थे कि एक दिन अचानक कपिंजल तीतर वापस लौट आया। धान की नई-नई मुलायम कोंपले खाने से वह बहुत ही मोटा-ताजा और तंदुरुस्त हो गया था। जब वह अपनी खोल में गया तो उसने देखा वहाँ तो एक खरगोश जी बड़े मजे से आराम कर रहे है। अपने खोल में खरगोश को देखकर कपिंजल को बहुत गुस्सा आया। वह गुस्से से बोला,
🐦 कपिंजल तीतर – ये खोल मेरा है। पहले मैं यहाँ पर रहता था। तुम अभी इसे खाली करों।
खरगोश भी कम नहीं था, बोला,
🐇 शीघ्रगो खरगोश – तुम शायद भूल गए हो, घर के स्वामित्व का नियम मनुष्यों पर लागू होता है, जानवरों पर नहीं। जंगल का तो यहीं नियम होता है, यदि कोई स्थान चाहे वह तालाब हो, कुआं हो या कोई पेड़। इनमें रहने वाला कहीं चला जाए और कई दिनों तक वापस ना लौटे तो कोई भी उसमें बसेरा कर सकता है। अब इस खोल में मैं रह रहा हूँ, इसलिए अब यह मेरा है। तुम यहाँ से चुपचाप वापस चले जाओ।
दोनों खोल पर अपना अधिकार साबित करने के लिए आपस में लड़ने लगे। जब उनका झगड़ा बहुत बढ़ गया और कोई निर्णय नहीं निकला तो कपिंजल ने कहा,
🐦 कपिंजल तीतर – हम दोनों के इस तरह लड़ते रहने से कोई हल नहीं निकलेगा। क्यों न हम इसका फैसला किसी तीसरे से करवा लें। यहीं पेड़ पर मेरा मित्र कौआ रहता है, हम उससे इस बात का निर्णय करवा लेते है कि इस खोल पर किसका अधिकार है।
🐇 शीघ्रगो खरगोश – कौआ तो तुम्हारा मित्र है वह तो तुम्हारे पक्ष में ही अपना निर्णय सुनाएगा। मुझे यह मंजूर नहीं। हमें किसी अनजान से इस बात का निर्णय करवाना चाहिए, जो हमें ना जानता हो।
कोई तो चाहिए न्याय करने वाला
कपिंजल ने भी यह बात मान ली और पंच की तलाश में निकल पड़े।
उनके बीच चल रही लड़ाई और समझौते की बातचीत पास ही एक टीले पर बैठी बिल्लौरी नामक बिल्ली सुन रही थी। उसने मन-ही-मन सोचा, “यदि किसी तरह से मैं ही इनकी पंच बन जाऊँ तो मुझे तीतर और खरगोश दोनों का माँस खाने को मिल जाएगा। लेकिन किया क्या जाए? वह सोचने लगी, उसका कुटिल दिमाग तेजी से भागने लगा। तभी उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई।
बस फिर क्या था, उसने जल्दी से कहीं से एक माला का इंतजाम किया, अपने माथे पर चंदन का टीका लगाया और भाग कर नदी के किनारे सूरज की तरफ मुंह करके बैठ गई। जैसे ही उसने तीतर और खरगोश को आते हुए देखा, उसने अपनी आँखे बंद कर ली और राम-राम का जाप करने लगी। उन दोनों ने उसे देख लिया। उसे देखकर शीघ्रगो ने कहा
🐇 शीघ्रगो खरगोश – वह देखो, यह बिल्ली तो मुझे कोई तपस्वी दिखाई देती है। क्यों न हम इसी को अपना पंच बना ले?
🐦 कपिंजल तीतर – बिल्ली तो तुम्हारी और मेरी दोनों की ही दुश्मन है, कहीं वह हम दोनों को ही नुकसान ना पँहुचा दे। हमें कोई और पंच ढूंढ लेना चाहिए।
🐇 शीघ्रगो खरगोश – कितनी मुश्किल से तो हमें कोई ऐसा मिला है, जो हम दोनों को ही नहीं जानता है। हम ऐसा करते है कि हम उससे बहुत दूर रहकर बात करेंगे। यदि वह हमें नुकसान पँहुचाने की कोशिश करेगी तो हम भाग जाएंगे।
कपिंजल ने उसकी बात मान ली और दोनों बिल्ली से थोड़ी दूरी बनाते हुए उसके पास गए।
हमें न्याय चाहिए
🐦 कपिंजल तीतर – बिल्ली मौसी, हम दोनों के बीच में झगड़ा हो गया है। तुम हमारी पंच बनकर हमारे झगड़े का निपटारा कर दो। जिसका पक्ष धर्म के विरुद्ध होगा, तुम उसको खा लेना।
🐱 बिल्लौरी बिल्ली – (एक हाथ अपने गालों पर रखते हुए) राम-राम! मेरे सामने ऐसी बात मत कहो। मैंने हिंसा का मार्ग छोड़ दिया है। मैं तो बस भगवान भजन में ही अपना ध्यान लगाती हूँ। मैं तुम्हारे झगड़े का निपटारा भी कर दूँगी और तुममे से किसी को भी नहीं खाऊँगी।
बिल्ली की बात सुनकर दोनों बहुत खुश हुए और कहा,
🐇 शीघ्रगो खरगोश – तो फिर जल्दी से हमारे झगड़े का निपटारा कर दो
🐱 बिल्लौरी बिल्ली – ठीक है बेटा, अपने झगड़े के बारे में बताओ।
🐦 कपिंजल तीतर – मौसी, मैं कुछ दिनों के लिए अपने खोल को छोड़कर कहीं चला गया था। पीछे से इस खरगोश ने मेरे खोल पर अपना अधिकार कर लिया।
🐱 बिल्लौरी बिल्ली – (कान पर हाथ लगाकर ऊंची आवाज में) क्या कहा, फिर से कहों मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया
🐇 शीघ्रगो खरगोश – ये कह रहा है कि मैंने धर्म-विरुद्ध इसके खोल पर अधिकार है।
लो, हो गया बिल्ली का न्याय!
🐱 बिल्लौरी बिल्ली – (बीच में ही बात काटते हुए) – क्या कहा बेटा मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया। दरअसल वृद्ध होने के कारण मेरे कान जरा कमजोर हो गए है। मुझे तुम्हारी बात ठीक ढंग से सुनाई नहीं दे रही है, तुम थोड़ा पास आ कर अपनी बात कहो।
उसकी बात सुनकर दोनों अपने झगड़े का निपटारा करवाने के उत्साह में बिल्ली से असुरक्षा की बात भूल गए और उसके पास चले गए। बिल्ली ने यह मौका नहीं गंवाया। उसने एक ही झटके मैं दोनों को अपने दोनों पंजों में दबोच लिया और मार कर खा गई।
सीख
- धूर्त को न्यायाधीश बनाने पर न्याय नहीं मिलता।
- दो जनों की लड़ाई में तीसरा बाजी मार जाता है।
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पिछली कहानी – हाथी और खरगोश की कहानी “बड़े नाम की महिमा”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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