बैल और गीदड़ – Bail Aur Geedad
पंचतंत्र की कहानियाँ – दूसरा तंत्र – मित्रसंप्राप्ति – बैल और गीदड़ – Bail Aur Geedad – The Ox and The Jackal
एक स्थान पर तीक्ष्णविषाण नाम का एक लंबा-चौड़ा बैल रहता था। अपनी ताकत के अभिमान में उसने अपने साथियों को छोड़ दिया और जंगल में आ गया। वहाँ वह नदी के किनारे उगी हरी-हरी घास खाता और अपने लंबे-लंबे सींगों से नदी के किनारे की जमीन खोदता। वह एक मतवाले हाथी की तरह बेखौफ होकर पूरे जंगल में विचरण करता रहता।
उसी जंगल में प्रलोभक नाम का एक गीदड़ अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ नदी पर पानी पीने आया और पानी पीकर वे दोनों वहीं नदी के किनारे बैठ गए। थोड़ी देर में तीक्ष्णविषाण भी मतवाली चाल चलता हुआ नदी पर आया।
उसके मांसल कंधों पर लटकते हुए माँस को देखकर गीदड़ी ने गीदड़ से कहा,
🦊 गीदड़ी – स्वामी, उस बिल को देखिए, उसके शरीर पर माँस की दो-दो लोथ लटक रही है। ये एक क्षण या एक पहर में कभी भी टूटकर जमीन पर गिर सकते है। तुम अभी इसके पीछे-पीछे जाओं और जब भी यह जमीन पर गिर जाए तो उसे उठाकर ले आना।
🐺 प्रलोभन – प्रिये, ये कभी गिरेंगे भी या नहीं, इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। तू मुझे व्यर्थ की मेहनत करने के लिए मत कहो। इस रास्ते से बहुत से चूहे इस नदी पर पानी पीने के लिए आते है। हम उन चूहों को खाकर बड़े मजे से अपनी जिंदगी निकाल लेंगे।
🦊 गीदड़ी – मैं यह नहीं जानती थी कि तुम इतने कायर और आलसी हो। जो थोड़े से में संतुष्ट हो जाता है, वे कभी ज्यादा प्राप्त नहीं कर सकते। जो उत्साह, पराक्रम और नीति से कार्य करता है वहाँ लक्ष्मी जरूर आती है। जो उद्यम ना करके भाग्य के भरोसे बैठे रहते है, वो जो पास में होता है उसे भी गँवा देते है। इसलिए प्राणी को उद्यम करते रहना चाहिए।
🐺 प्रलोभन – अगर तेरे कहने पर मैं इस बैल के पीछे जाऊँगा तो यहाँ पर कोई दूसरा गीदड़ आ जाएगा, जो इस जगह पर और तुम पर अपना अधिकार कर लेगा। अनिश्चित वस्तु को पाने के लिए निश्चित वस्तु का परित्याग नहीं करना चाहिए। जब हमें यहाँ आराम से चूहों का भोजन मिल रहा है तो हम व्यर्थ का प्रयत्न क्यों करें।
🦊 गीदड़ी – मैं इतने दिनों से केवल चूहों का भोजन कर-कर कर ऊब गई हूँ। बैल के ये मांस पिंड अब कभी भी गिर सकते है। इसलिए अब हमें इसका पीछा करना ही चाहिए।
गीदड़ के बहुत समझाने पर भी जब गीदड़ी नहीं मानी तो उसने बैल के पीछे जाना स्वीकार कर लिया।
🐺 प्रलोभन – ठीक है, मैं बैल के पीछे जाने के लिए तैयार हूँ लेकिन तुम्हें भी मेरे साथ चलना पड़ेगा।
तभी से दोनों गीदड़ और गीदड़ी बैल के पीछे घूमने लगे। बैल जहाँ-जहाँ जाता वे भी उसके पीछे-पीछे जाते। उनकी नजरे सदा उसके माँस-पिंडों पर ही लगी रहती। उन्हे लगता कि माँस-पिंड अब गिरा के तब गिरा। लेकिन पंद्रह वर्ष बीत गए लेकिन वे माँस पिंड नहीं गिरे।
आखिर थक हार के एक दिन गीदड़ ने गीदड़ी से कहा,
🐺 प्रलोभन – प्रिये, हमें इन माँस-पिंडों के लोभ में इस बैल के पीछे घूमते हुए इतने वर्ष हो गए है, लेकिन यह नहीं गिरा। मुझे लगता है यह माँस-पिंड कभी गिरेंगे ही नहीं। इसलिए हमें इनका लोभ छोड़कर अपनी राह पर चले जाना चाहिए। इसके कारण हमें अपना वह घर भी छोड़ना पड़ा जहाँ हमें बिना अधिक श्रम के आराम से भोजन मिल जाता था।
उस दिन से उन्होनें उस बैल के पीछे घूमना छोड़ दिया।
सीख
जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भागता है वह निश्चित भी खो बैठता है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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