ब्राह्मण और तीन ठग – Brahman Aur Teen Thag
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – काकोलूकीयम – ब्राह्मण और तीन ठग – Brahman Aur Teen Thag –
यदि किसी गलत बात को कई व्यक्तियों द्वारा बार-बार दोहराया जाए तो वह गलत बात भी सच लगने लगती है। यही हुआ बहुत ही विद्वान मित्रशर्मा के साथ! कौन है ये मित्रशर्मा? आइए जानते पंचतंत्र की कहानी ब्राह्मण और तीन ठग में
आज तो बड़ी अच्छी दक्षिणा मिली है
गोकुलपुर नामक गाँव में मित्रशर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत ही विद्वान और शास्त्रों का ज्ञाता था। उस गाँव के ही नहीं आसपास के गाँव के लोग भी उसको अपने यहाँ पूजा-पाठ के लिए बुलाते और खूब दान-दक्षिणा देते।
इसी दान-दक्षिणा से उनका घर चलता था। एक बार पास ही के गाँव में एक यजमान ने उन्हें अपने घर पूजा करने के लिए बुलाया। मित्रशर्मा ने वहाँ जाकर पूजा की। यजमान ने उन की पूजा से खुश होकर उन्हें एक बहित ही ह्रष्ट-पुष्ट बकरा दक्षिणा में दिया।
रात होने को थी और मित्रशर्मा अंधेरा होने से पहले अपने घर पँहुचना चाहते थे। इसलिए उन्होंने बकरे को अपने कंधों पर डाल और अपने गाँव की तरफ रवाना हो गया। गाँव के रास्ते में तीन ठग खड़े किसी को ठगने की योजना बना रहे थे। तभी उन्होंने मित्रशर्मा को अपने कंधे पर बकरा उठा कर लाते हुए देखा। मोठे-ताजे बकरे को देख कर उनके मुंह में पानी आ गया।
आज तो इसी बकरे की दावत करनी है
🦹 पहला ठग – देखो मित्रों, वह ब्राह्मण अपने कंधे पर कितने मोटे ताजे बकरे को लिये जा रहा है। बकरे को देख कर मेरे तो मुंह मे पानी आ रहा है।
🦹🏻 दूसरा ठग – तुम ठीक कह रहे हो मित्र, बकरे को देख कर लार तो मेरी भी टपक रही है। क्यों ना आज इस बकरे की ही दावत उड़ाई जाए।
🦹🏾 तीसरा ठग – हाँ मित्रों, तुम सही कह रहे हो, भूख के मारे मेरे भी पेट में चूहे उछल-कूद कर रहे है। बाकी काम बाद में क्यों ना पहले इस बकरे की दावत का मजा ले लिया जाए।
बन गई योजना
तीनों मिलकर ब्राह्मण से बकरे को हथियाने की योजना बनाते है। वे तीनों थोड़ी-थोड़ी दूर पर जाकर खड़े हो जाते है। जैसे ही मित्रशर्मा पहले ठग के पास पँहुचता है,
🦹 पहला ठग – राम-राम, ब्राह्मण देवता।
👳🏾 मित्र शर्मा – राम-राम
🦹 पहला ठग – ब्राह्मण देवता आप इतने ज्ञानी होते हुए भी यह कैसा अनर्थ कर रहे हो?
👳🏾 मित्रशर्मा – क्यों, क्या हुआ?
🦹 पहला ठग – सब कुछ जानते हुए भी आप मुझसे पुछ रहे हो। आपने इस कुत्ते को अपने कंधों पर क्यों उठा रखा है?
👳🏾 मित्रशर्मा – यजमान, तुमहारी दृष्टि को कोई धोखा हुआ है। यह कुत्ता नहीं बकरा है।
🦹 पहला ठग – मुझे लगता है दृष्टि तो आपकी खराब हो गई है जो एक कुत्ते को बकरा समझ कर कंधे पर उठा कर ले जा रहे हो। पर मुझे क्या मेरा तो धर्म था आपको अधर्म से रोकना। लेकिन यदि आपको कुत्ते को कंधे पर बैठाकर ले ही जाना है तो आपकी मर्जी।
इतना कहकर पहला ठग वहाँ से चल गया। मित्रशर्मा ने भी अपनी राह पकड़ ली।
हे राम ये क्या?
अभी वह कुछ दूर ही गया था कि उसे दूसरा ठग मिल गया। दूसरा ठग मित्रशर्मा की तरफ देखकर हँसने लगा। उसे अपने ऊपर हँसते देख मित्रशर्मा ने उससे पुछा,
👳🏾 मित्रशर्मा – तुम मुझ पर हँस क्यों रहे हो?
🦹🏻 दूसरा ठग – हँसु नहीं तो क्या करूँ ब्राह्मण देव, आप काम ही ऐसा कर रहे है?
👳🏾 मित्र शर्मा – (आश्चर्य से) क्या?
🦹🏻 दूसरा ठग – इतने उच्च कुल के होते हुए भी आप इस नीच जानवर कुत्ते को अपने कंधों पर उठा कर ले जा रहे हो।
👳🏾 मित्रशर्मा – (गुस्से से) तुम्हारी मति मारी गई है जो तुम्हें बकरा भी कुत्ता दिखाई दे रहा है।
🦹🏻 दूसरा ठग हँसते हुए – मुझे तो लगता है मति तो आपकी मारी गई है जो एक कुत्ते को बकरा समझ कर कंधे पर ढो रहे हो। (अपने कंधे उचकाकर) लेकिन मुझे क्या, आप जानों।
इतना कहकर दूसरा ठग भी वहाँ से चल गया। मित्रशर्मा भी अपनी राह पर चल दिये, लेकिन अब उनकी चाल थोड़ी धीमी पड़ गई। वे चलते-चलते सोच रहे थे कि रास्ते में मिले दोनों व्यक्ति इस बकरे को कुत्ता क्यों बता रहे थे? कहीं यह सच में कुत्ता तो नहीं?
फिर अगले ही पल उन्होंने अपने सिर को झटक कर अपनी इस सोच को विराम दिया। “नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। मेरा यजमान मुझे दान में कुत्ता थोड़े ही देगा।”
इतना भी नहीं पता!
थोड़ी दूर जाने पर मित्रशर्मा को तीसरा ठग मिला। उसने मित्रशर्मा की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और आगे चलने लगा। उसे ऐसे मुस्कुराते हुए देखकर मित्रशर्मा ने सोचा कहीं मेरे मेरे कंधों पर सच में कुत्ता ही तो नहीं है? इस व्यक्ति से पूछ कर तसल्ली कर लेता हूँ। मित्रशर्मा कुछ कहते उससे पहले ही तीसरे ठग ने कहा,
🦹🏾 तीसरा ठग – आप इतने ज्ञानी है, मैं कुछ कहना तो नहीं चाहता था, लेकिन मुझसे रहा नहीं गया। मुझे समझ में नहीं आ रहा आप इतने ज्ञानी पंडित होते हुए भी एक अपवित्र जानवर कुत्ते को अपने कंधों पर लेकर जा रहे है। कुत्ते के तो छु जाने मात्र से फिर से स्नान करना पड़ता है।
👳🏾 मित्रशर्मा – यह कुत्ता नहीं बकरा है।
🦹🏾 तीसरा ठग – क्यों मजाक कर रहे हो ब्राह्मण देवता। क्या मुझे कुत्ते और बकरे में अंतर नहीं पता। आपके गाँव में किसी ने आपको इस तरह कुत्ते को अपने कंधे पर ले जाते हुए देख लिया तो आपकी कीर्ति को अपकीर्ति में बदलने में देर नहीं लगेगी। मेरी मानों तो इसे यहीं उतार दो और स्नान करके अपने गाँव में चले जाओ।
इतना कहकर वह भी आगे बढ़ गया।
चाल काम कर गई
उसके जाने के बाद मित्रशर्मा वहीं खड़े-खड़े सोचने लगे, तीन लोग एक ही बात कह रहे है। एक व्यक्ति तो गलत हो सकता है, लेकिन तीन-तीन लोग गलत नहीं हो सकते। लगता है आज मेरी ही दृष्टि में कोई खोट आ गया है, जो मुझे ये कुत्ता बकरा दिखाई दे रहा है। उसे पूरा विश्वास हो गया कि यह बकरा नहीं कुत्ता ही है।
उसने सोचा, “मैं भी कितना मूर्ख हूँ, नाहक ही इस कुत्ते को इतनी दूर से अपने कंधों पर लाद कर ला रहा हूँ।” इतना सोच कर उसने बकरे को कुत्ते को वहीं उतार दिया और अपने रास्ते पर आगे बढ़ गया।
मित्रशर्मा के जाते ही तीनों ठग जल्दी से वहाँ आ गए और बकरे को उठा कर ले गए। तीनों ने बकरे को मारकर पकाया और मजे से उसकी दावत उड़ाई।
सीख
हमें कभी किसी की बातों में आकर अपना निर्णय नहीं बदलना चाहिए। अपने ऊपर पूरा विश्वास रखना चाहिए।
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