ब्राह्मण और साँप – Brahman Aur Sanp
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – काकोलूकीयम – ब्राह्मण और साँप – Brahman Aur Sanp – The Brahmin and The Snake
जामनगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण, अपने पुत्र देविदत्त के साथ एक झोंपड़ी में रहता था। उसके पास कुछ जमीन थी, लेकिन वह भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करता था। पर्याप्त भिक्षा ना मिलने पर उसने अपनी जमीन पर खेती करना शुरू कर दिया।
लेकिन हर बार किसी ना किसी कारण से उसकी फसल खराब हो जाती और उसे उसकी मेहनत का फल नहीं मिल पाता था। एक बार गर्मी के दिनों में हरिदत्त अपने खेत पर एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ था। तभी उसे पेड़ की जड़ों में एक बिल दिखाई दिया। उसने उस बिल में देखा तो उसके अंदर एक काला साँप अपना फन फैलाए बैठा हुआ था।
देवता की कृपा
उसने मन ही मन सोचा, “हो ना हो, ये ही मेरे खेत के देवता है। मैंने आज तक कभी इनकी पूजा नहीं की। शायद इसीलिए हर बार मेरी खेती खराब हो जाती है। लेकिन अब से मैं इनकी पूजा किया करूँगा। यह सोच कर वह उठा और नगर में गया। उसने वहाँ किसी से दूध मांगा और उसे एक मिट्टी के पात्र में डालकर वापस वहाँ आया। उसने दूध का पात्र बिल के पास रखा और हाथ जोड़कर बोला,
👳🏾 हरिदत्त – हे क्षेत्रपाल, आज तक मुझे आपके बारे में मालूम नहीं था। इसलिए मैं आपकी पूजा नहीं कर पाया। कृपा कर मेरे इस अपराध को क्षमा कर दीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कर दीजिए। आज के बाद मैं सदा इसी तरह आपकी सेवा और पूजा किया करूँगा।
इस तरह प्रार्थना करके वह उस दूध के बर्तन को वहीं छोड़कर अपने घर चला गया। दूसरे दिन प्रात:काल वह जब अपने खेत पर आया तो सबसे पहले उसी पेड़ के पास गया। वहन उसने देखा कि दूध के पात्र में दूध नहीं बल्कि एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई थी। उसने वह स्वर्णमुद्रा उठाकर अपने पास रख ली। उस दिन भी उसने उसी प्रकार सर्प की पूजा की और बिल के पास दूध का पात्र रखकर घर चला गया।
अगले दिन सुबह उसने फिर वहाँ जाकर देखा तो उसे उस पात्र में फिर एक स्वर्णमुद्रा मिली। अब वह रोज साँप की पूजा करता और उसके बिल के पास दूध का पात्र रखकर घर आ जाता। अगले दिन उसको उस पात्र में स्वर्णमुद्रा मिल जाया करती। इस तरह कुछ ही दिनों में वह समृद्ध हो गया।
एक बार उसे किसी कार्यवश कुछ दिनों के लिए पास के गाँव में जाना था। उसका नित्यकर्म ना टूटे इसलिए उसने अपने पुत्र देविदत्त को बुलाया और कहा,
👳🏾 हरिदत्त – बेटा, मुझे किसी काम से कुछ दिनों के लिए पास के गॉंव में जाना है। मैं रोज अपने खेत के पेड़ के नीचे बने बिल में रहने वाले क्षेत्रपाल की पूजा करता हूँ और वहाँ एक पात्र में दूध रखकर आता हूँ। मेरा यह नित्यकर्म टूटना नहीं चाहिए। इसलिए जब तक मैं लौट कर ना आऊँ, तुम यह कार्य करोगे।
👨🏼🦰 देविदत्त –आप निश्चिंत होकर जाइए पिताजी, मैं आपका यह नित्यकर्म टूटने नहीं दूँगा।
👳🏾 हरिदत्त – मुझे तुमसे यहीं आशा थी बेटा।
इतना कहकर हरिदत्त चला गया। उसके जाने के बाद देविदत्त दूध का पात्र लेकर खेत में गया और बिल के पास रखकर वापस चला आया। दूसरे दिन जब वह दूध रखने के लिए वहाँ गया तो उसने देखा कि दूध वाले पात्र में एक स्वर्णमुद्रा रखी हुई है। उसने वह स्वर्णमुद्रा उठा ली और दूध का पात्र रखकर वापस चला आया।
एक बार में ही अमीर बन जाऊँ!
अगले दिन जब वह फिर दूध रखने गया, तो उसे उस दिन भी दूध के पत्र में एक स्वर्णमुद्रा रखी मिली। यह देखकर उसने सोचा, “लगता है इस बिल में रहने वाले सर्प के पास बिल में स्वर्णमुद्राओं का भण्डार है। रोज-रोज एक मुद्रा लेने से तो अच्छा है कि इस साँप को मार दिया जाए और बिल को खोदकर सारी स्वर्णमुद्राएं एक साथ निकाल ली जाए।”
यह सोच कर वह घर गया और वहाँ से एक लाठी और एक कुदाली लेकर वापस आ गया। उसने दूध का पात्र बिल के पास रखा और वहीं छुप गया। थोड़ी देर बाद सर्प बिल से निकलकर दूध पीने लगा, तो उसने लाठी से उसके फन पर प्रहार कर दिया। लेकिन साँप बच गया। इस प्रहार से वह क्रुद्ध हो गया और अपना फन फैलाकर जोर-जोर से फुफकारने लगा। साँप को क्रोधित देखकर देविदत्त घबरा गया उसके हाथ से लाठी छूट गई। वह हाथ जोड़कर साँप से माफी मांगने लगा।
👨🏼🦰 देविदत्त – मुझे क्षमा कर दीजिए क्षेत्रपाल जी, मैं लालच में आ गया था। अब मैं ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा। रोज एक के बजाए दो पात्रों में दूध भरकर आपको दूँगा।
लेकिन क्रोधित साँप फुफकारते हुए उस पर झपटा और अपने विषैले दाँतों से उसको काट लिया। विष के प्रभाव से देविदत्त की तत्काल मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का समाचार सुनकर उसके रिश्तेदार खेत में आए। उन्होनें सोचा हरिदत्त तो ना जाने कब आएगा। उसके आने तक उसके पुत्र के शव को ऐसे नहीं रखा जा सकता। यह सोचकर उन्होंने खेत से लकड़ियाँ इकट्ठी करके चिता बनाई और उसे उसी खेत में जला दिया।
देविदत्त की चिता जल ही रही थी कि हरिदत्त वापस आ गया। अपने खेत में जलती हुई चिता को देखकर उसने अपने रिश्तेदारों से इसके बारें में पूछा तब उन्होनें उसके पुत्र की मृत्यु की सारी घटना बात दी। अपने स्वजनों से अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर बहुत दुखी हुआ और ठंडी सांस भरते हुए बोला,
👳🏾 हरिदत्त – मेरे पुत्र को अपने कर्मों का फल का ही फल मिला है। जो व्यक्ति अपनी शरण में आए जीवों पर दया नहीं करता, उसके बने बनाए काम भी उसी प्रकार बिगड़ जाते जिस प्रकार पद्मसर में रहने वाले हंसों के।
👫🏿 स्वजन – वह कैसे?
तब हरिदत्त ने सोने के हंसों व सुनहरे पक्षी की कहानी “हंस और सुनहरा पक्षी” सुनाई।
👳🏾 हरिदत्त – इसलिए कहता हूँ, जो अपनी शरण में आए जीव पर दया नहीं करता, वह स्वयं भी नष्ट हो जाता है। इस सब में मेरे पुत्र का ही दोष था, उस साँप का नहीं।
मुझे क्षमा कर दो!
इतना कहकर हरिदत्त दूध का पात्र लेकर सांप के बिल के पास गया। वहाँ जाकर उसने अपने हाथ जोड़े और ऊंची आवाज में विनती करने लगा,
👳🏾 हरिदत्त – हे क्षेत्रपाल, आपको आहत करने वाला मैं नहीं मेरा पुत्र था। उसे उसकी गलती का दंड मिल गया है। अब आप सब कुछ भूल जाओं मैं पहले के समान ही तुम्हारी पूजा करूँगा और तुम्हारे लिए दूध का पात्र लाया करूँगा और आप भी उसी तरह मुझे धन-धान्य से समृद्ध करते रहना।
उसकी बात सुनकर साँप ने अपने बिल में से थोड़ा स मुँह बाहर निकाला और बोला,
🐍 साँप – हे ब्राह्मण, अब तुम मेरे पास पूजा, सेवा या प्रेम भाव से नहीं, बल्कि लोभवश आए हो। तेरे पुत्र ने जवानी के जोश में मुझ पर प्रहार किया, जिसके कारण मैंने उसे डस लिया और वह मर गया। तुम अपने बेटे की चिता की आग ठंडी होने से पहले ही यहाँ मेरे पास धन के लालच में आ गए जबकि मैनें तुम्हारे पुत्र की हत्या की है।
👳🏾 हरिदत्त – लेकिन इसमें आपका नहीं मेरे पुत्र का दोष था।
🐍 साँप – लोभ के कारण अभी तुम्हें मेरा दोष दिखाई नहीं दे रहा है। लेकिन अब तुम्हारा और मेरा प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि तुमने अपने पुत्र की चिता को देखा है और मैंने अपने टूटे हुए फन को। तू लोभवश अपने पुत्र की मृत्यु के दु:ख को भूल सकता है, लेकिन मैं अपने ऊपर हुए लाठी के प्रहार के कष्ट को कभी नहीं भूल सकता। लेकिन एक अंतिम बार मैं तुम्हें कुछ दे रहा हूँ।
इतना कहकर साँप अपने बिल के अंदर जाकर वापस आया और उसे एक बहुत बड़ा और मूल्यवान हीरा देते हुए कहा,
🐍 साँप – ये मूल्यवान हीरा रख लो। इसके बाद तुम कभी मेरे पास वापस मत आना, क्योंकि तुम्हें स्वर्णमुद्राएं देने के कारण ही मुझ पर प्रहार हुआ था और अब मैं नहीं चाहता कि भविष्य में मेरे साथ फिर से ऐसा हो।
सीख
- ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। ज्यादा के लालच में हम जो मिल रहा है उसे भी खो देते है।
- एक बार टूटी हुई प्रीत दुबारा नहीं जुड़ती। “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय। टूटे से फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।”
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – चींटियों का विरोध करने वाले सांप की कहानी – साँप और चींटियाँ
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – सोने के हंसों व सुनहरे पक्षी की कहानी “हंस और सुनहरा पक्षी”
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।