ब्राह्मण का सपना – Brahmin Ka Sapna
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – ब्राह्मण का सपना – Brahmin Ka Sapna – The Dream of Brahmin
नाम गाँव में चिंतामणि नाम का एक कंजूस ब्राह्मण रहता था। वह गाँव के लोगों से भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करता था। एक दिन उसे भिक्षा में बहुत सारा सत्तू मिला। उसने उसमें से थोडा सा सत्तू खाया और बचे हुए सत्तू को एक मटके में भर कर एक खूंटी पर टांग दिया और उसके नीचे ही खाट लगाकर लेट गया। उसने मटके को देखते हुए वह कल्पनाओं की दुनियां में पंहुच गया और कल्पना करने लगा।
ख्वाब है या हकीकत!
वह कल्पना करने लगा कि अब से मैं भिक्षा में रोज सत्तू ही लिया करूँगा और रोज थोडा-थोडा सत्तू बचाकर इस मटके में रख दिया करूँगा। एक दिन यह मटका सत्तू से पूरा भर जाएगा। फिर जब गाँव में अकाल पड़ेगा तो मैं इस सत्तू को महंगे दामों में बेच दूंगा। सत्तू बेचने से जो भी पैसे आएँगे, उनसे में पांच बकरियां खरीद लूँगा और उनका दूध बेच कर पैसा कमाऊंगा।
बकरियों के बच्चे होंगे और जब मेरे पास दस बकरियां हो जायेगी तो मैं कुछ बकरियां बेच कर एक गाय खरीद लूँगा। गाय का दूध बेचकर मैं बहुत सारे रुपये कमा लूँगा। उन रुपयों से मैं कुछ भैंसे खरीद लूँगा और उनके दूध से भी पैसा कमाकर, सस्ते दामों में कुछ घोड़े भी खरीद लूँगा।
घोड़ों को अच्छी कीमत पर बेच कर खूब सारा सोना खरीद लूँगा। जब सोने के दाम बढ़ जायेंगे तो मैं उसे बेचकर एक बड़ा सा घर बनवाऊंगा। ध्रीरे-धीरे मेरे पास घर, खूब सारी बकरियां, गाये, भैंसे और घोड़े हो जायेंगें। मैं गाँव का सबसे रईस व्यक्ति बन जाऊँगा। मेरी संपत्ति देख कर बहुत से लोग अपनी कन्याओं का विवाह मुझसे करवाना चाहेंगे।
एक दिन ऐसा भी होगा!
मैं उन्हें अपना रौब दिखाते हुए मना कर दूँगा। फिर मैं नगर के सबसे धनी व्यक्ति की सुन्दर सी कन्या से विवाह कर लूँगा। विवाह के बाद वह कन्या मेरा बहुत ख्याल रखेगी और मेरा हर कहना मानेगी।
विवाह के कुछ समय बाद मेरा एक पुत्र होगा, जिसका नाम में सोमशर्मा रखूँगा। मेरा पुत्र सोमशर्मा बहुत ही चंचल होगा। मैं मेरे बच्चे की चंचलता का खूब आनंद लूँगा। जब वो अपने पैरों पर चलने लगेगा तो मैं उसके साथ खूब खेलूँगा।
जब भी वह मुझे परेशान करने लगेगा, तो मैं अपनी पत्नि से उसको रखने के लिए कहूँगा। वह मेरा कहना नहीं मानेगी तो मैं गुस्से से अपनी पत्नी को बोलूँगा, “तुम एक बच्चे का भी ठीक से ख्याल नहीं रख सकती।”
एक दिन मेरा पुत्र चलते-चलते गिरने वाला होगा। यह देख कर मैं अपनी पत्नी को उसे संभालने के लिए बोलूँगा। लेकिन काम में व्यस्त होने के कारण वो मेरे बात नहीं सुनेगी। तब मैं गुस्से से उठ कर उसके पास जाऊँगा और उसे पैर से एक ठोकर मारूंगा।
इतना सोचते-सोचते चिंतामणि ने नींद मैं ही अपना पाँव उठाया और जोर से लात मारी। उसकी लात सीधी सत्तू वाली मटकी पर लगी और मटकी फूट गयी। सारा सत्तू चिंतामणि पर गिर गया। वह सत्तू से भूत बन गया और उसका सपना भी चकनाचूर हो गया |
सीख
- केवल सपने देखने से ही सफलता नहीं मिलती उसके लिए कर्म भी करना पड़ता है।
- ख्याली पुलाव पकाने वाले भूखे ही रह जाते है।
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पिछली कहानी – अपने मित्रों की जगह अपनी पत्नी की मूर्खता भरी सलाह मानने वाले जुलाहे की कहानी “दो सिर वाला जुलाहा”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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