भगवान गणेश और सेठजी की भक्ति – Bhagwan Ganesh Aur Sethji Ki Bhakti
गणेश जी की कथाएँ – भगवान गणेश और सेठजी की भक्ति – Bhagwan Ganesh Aur Sethji Ki Bhakti
सेठजी की भक्ति
एक गावं था, जिसमे एक सेठजी अपनी पत्नी और परिवार के साथ रहते थे। सेठजी का गाँव के पास के एक शहर में बहुत बड़ा व्यापार था। सेठजी भगवान गणेश जी पर बहुत विश्वास करते थे। वह रोज नदी पर नहा कर श्रद्धा से गणेश जी की पूजा करते और उन्हें लड्डुओं का भोग लगाते थे, उसके बाद ही खुद भोजन करते थे।
इस कारण सेठ जी के घर में अन्न धन के भंडार सदैव ही भरे रहते थे। उनके जीवन में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। लेकिन यह बात सेठानी को अच्छी नही लगती थी। वो बिल्कुल भी धार्मिक नहीं थी और ईश्वर में विश्वास भी नही रखती थी।
एक बार सेठानी ने सोचा, “मेरे पति गणेश जी को इतना मानते है, रोज गणेश जी की पूजा करके भोग लगाते है। भला इससे भी कुछ होता है। आज देखती हूँ कि वो कैसे गणेश जी की पूजा करते है।” अगले दिन जब सेठ जी नदी पर नहाने जाते है, तब सेठानी गणेश जी की मूर्ति को कपडे से ढक कर बगीचे में एक पेड़ के नीचे जमीन में दबा देती है।
भगवान रुष्ट क्यों हो गए?
जब सेठ जी नदी पर से नहा कर घर आकर मंदिर में जाते है और देखते है कि गणेश जी की मूर्ति तो मंदिर में है ही नही। सेठ जी सेठानी से पूछते है,
सेठजी – गणेश जी की मूर्ति मंदिर में नहीं है, कहाँ गयी।
सेठानी – मुझे नहीं मालूम।
सेठजी गणेश जी की मूर्ति को घर में बहुत ढूंढते है, लेकिन उन्हें मूर्ति नहीं मिलती। वे गणेश जी की पूजा करके भोग नहीं लगा पाते। वे बहुत दुखी होकर गणेश जी से प्रार्थना करते है,
सेठजी – हे, गणेश जी महाराज, मुझसे ऐसी क्या भूल हो गई जो आप मुझसे रुष्ट होकर चले गए। अब जब तक आप मिल नहीं जाते तब तक मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा। हे प्रभु, आप मुझ पर अपनी कृपया दृष्टि बरसाइए और मुझे दर्शन दीजिए।
सेठजी मंदिर में ही हाथ जोड़ कर और आँखे बंद करके बैठ जाते हैं। पूरा दिन निकल जाता है, सेठजी बिना अन्न-जल ग्रहण किए मंदिर में बैठे रहते है। सेठजी की भक्ति से गणेश जी प्रसन्न हो जाते है।
रात को सेठजी एक स्वप्न देखते है, “गणेश जी भगवान एक छोटे से चूहे के साथ खेल रहें है। वे चूहे को खाने के लिए एक लड्डू देते हैं। चूहा लड्डू लेकर सेठजी के बगीचे में जाता है और एक पेड़ के नीचे जमीन को खड़कर लड्डू उसमें दबा देता है।”
सेठजी के नींद खुल जाती है। वे उसी वक्त अपने बगीचे में जाते है, वहाँ उन्हें वैसा ही एक पेड़ दिखाई देता है, जैसा उन्होनें सपने में देखा था। सेठजी उसी पेड़ के नीचे जमीन खोदने लगते है। थोड़ी ही देर में गणेश जी को कपड़े में लिपटी हुई गणेश जी की मूर्ति मिल जाति है।
सेठानी को मिली सद्बुद्धि
सेठजी मूर्ति को लेकर मंदिर में आ जाते है और यथास्थान पर गणेश जी को विराजमान करते है। सुबह उठने पर जब सेठानी मंदिर में गणेश जी की मूर्ति देखती है तो सेठजी से पूछती है,
सेठानी – आपकों गणेश जी की मूर्ति कहाँ मिली?
सेठजी – स्वयं गणेश जी ने रात को मुझे सपने में अपनी मूर्ति का पता बताया था।
सेठजी सेठानी को सारा वृतांत बात देते है। यह सुनकर सेठानी को बहुत आश्चर्य होता है और उनके मन में भी गणेश जी के प्रति भक्ति और श्रद्धा के भाव जागृत हो जाते है। सेठानी सेठजी से अपना अपराध बताते हुए कहती है,
सेठानी – हे नाथ, मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया जो मैंने गणेशजी और आपकी भक्ति पर शक किया। मैं गणेश जी और आप से अपने इस अपराध की क्षमा मांगती हूँ। आज से मैं भी आपके साथ पूरे तन-मन से गणेश जी की पूजा, आराधना और सेवा करूँगी और उनको भोग लगाने के बाद ही अन्न ग्रहण करूँगी।
यह सुनकर सेठजी बहुत प्रसन्न होते है और अपनी पत्नि को सद्बुद्धि देने के लिए गणेश जी को धन्यवाद देते है। उसके बाद उनके घर में कभी धन-धान की कमी नहीं होती।
हे गणेशजी महाराज, जैसे सेठ और सेठानी पर अपनी कृपा बरसाई वैसी सब पर बरसाना। सभी की मनोकामना पूरी करना। कहानी कहने, सुनने और हुंकारा भरने वाले सब पर अपनी कृपा करना और उनकी मनोकामना पूरी करना।
“बोलों गणेशजी महाराज की जय! माता गिरिजा के लाल की जय!”
हर व्रत-उपवास की कथा-कहानी कहने के बाद लपसी-तपसी की कहानी कहनी और सुननी चाहिए।
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