भय का भूत – Bhay Ka Bhoot
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – भय का भूत – Bhay Ka Bhoot – Ghost of Fear
माधोपुर नगर में राजा भद्रसेन राज्य करता था। उसकी एक अत्यंत हो रूपवती बेटी थी, जिसका नाम रत्नवती था। उसकी सुंदरता पर मोहित होकर एक राक्षस उसे हरना चाहता था। इसलिए राजा भद्रसेन ने उसके महल के चारों तरफ पहरा लगा दिया था। पहरे के बावजूद भी राजकुमारी रत्नवती हर समय डर के मारे कांपती रहती थी।
एक रात को वह राक्षस पहरेदारों को चकमा देकर रत्नवती के कमरें में घुस गया और एक कोने में छुप गया। उसने राजकुमारी रत्नवती अपनी सखी से यह कहते हुए सुना, “देख ना सखी, यह दुष्ट विकाल मुझे हर समय परेशान करता रहता है। मुझे इससे बचाने का कोई उपाय कर।”
कौन है इतना डरावना?
राजकुमारी के मुख से यह सुनकर उस राक्षस ने सोचा, “लगता है कोई विकाल नाम का दूसरा राक्षस भी राजकुमारी को हरना चाहता है, जिससे राजकुमारी इतना डर रही है। मुझे राजकुमारी को हरने से पहले उस राक्षस के बारें में पता लगा लेना चाहिए कि वह कैसा दिखता है और कितना बलशाली है। कहीं मुझे ही कोई खतरा ना हो जाए।”
यह सोच कर वह घोड़े का रूप धारण करके अस्तबल में जाकर छुप गया। उसी रात एक चोर घोड़े चोरी करने के लिए अस्तबल में आया। उसने अस्तबल के एक-एक घोड़े को जांच-परख के देखा। फिर वह उस अश्वरूपी राक्षस के पास आया और उसे भी जाँचा। उसे वह घोड़ा सुंदर और बलशाली लगा, इसलिए उसने उसी को चोरी करने के लिए चुन लिया।
उसने उसे ले जाने के लिए उसके मुंह मे लगाम और पीठ पर काठी लगाई और उसकी पीठ पर बैठ गया। राक्षस ने सोचा, “लगता है यहीं विकाल राक्षस है। इसने मुझे पहचान लिया है और अब यह मुझे मारना चाहता है। इसीलिए मेरी पीठ पर चढ़ बैठा है।” वह यह सोच ही रहा था कि चोर ने उसकी लगाम पकड़ कर उसे चाबुक से मारा।
चाबुक लगते ही वह भागने लगा। कुछ दूर जाने पर चोर ने घोड़े को रोकने के लिए उसकी लगाम खींची, लेकिन अश्वरूपी राक्षस डर के मारे रुका ही नहीं, बल्कि उसने अपना वेग और बढ़ा लिया। घोड़े को अपने नियंत्रण से बाहर होते और इतनी तीव्र गति से भागते देख कर चोर डर गया।
भय का भूत!
वह सोचने लगा, “एक साधारण घोड़ा इतनी तीव्र गति से नहीं दौड़ सकता है। हो ना हो यह कोई राक्षस है जो मुझे मार कर खाना चाहता है। यह मुझे किसी दूर निर्जन स्थान पर ले जाकर मार कर खा जाएगा। उससे पहले ही मुझे इससे बचने का कोई उपाय ढूंढ लेना चाहिए।” वह अभी यह सोच ही रहा था कि उसे सामने एक बहुत विशाल बरगद का वृक्ष दिखाई दिया।
वह संभल कर बैठ गया और जैसे ही घोडा उस वृक्ष के नीचे से गुजरा, उसने उछलकर उस वृक्ष की एक शाखा को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। चोर शाखा से लटक गया और अश्वरूपी राक्षस आगे निकल गया। चोर जल्द से शाखा पर चढ़कर पत्तों के बीच छुप के बैठ गया और राहत की साँस ली।
उधर अश्वरूपी राक्षस भी अपने सर पर मंडराती मौत के हटने से खुश हो गया।
उसी वृक्ष पर उस राक्षस का दोस्त एक बंदर रहता था। उसने अश्वरूपी राक्षस को पहचान लिया और एक मनुष्य से डरकर भागते देखा तो कहा, “अरे मित्र, तुम एक साधारण से मनुष्य से डरकर क्यों भाग रहे हो, मनुष्य तो तुम्हारा भोजन है। तुम तो इसे एक क्षण में मारकर खा सकते हो।”
भागों आफत आई
उसकी बात सुनकर राक्षस रूक गया और अपने असली रूप में आ गया। चोर ने भी उस बन्दर की बात सुन ली, उसे बंदर पर बहुत क्रोध आया, लेकिन बंदर तो एक ऊँची शाखा पर बैठा हुआ था। तभी उसने देखा कि उस बंदर की पूँछ उसके मुख के सामने लटक रही थी। क्रोधवश चोर को और कुछ ना सुझा, उसने बंदर की पूँछ को पकड़ा और अपने दांतों से उसे चबाना शुरू कर दिया।
दर्द के मारे बंदर तिलमिला गया, लेकिन राक्षस के सामने उस चोर की शक्ति को कम बताने के लिए मुँह भींचकर चुपचाप बैठा रहा। लेकिन दर्द की पीड़ा उसके चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रही थी।
यह देख कर राक्षस ने कहा, “मित्र, मुँह से चाहे तुम कुछ भी कहो, लेकिन तुम्हारे चेहरे की छाया साफ बता रही है कि तुम विकाल राक्षस के पंजे में फँस चुके हो। यदि मैं यहाँ और रुका तो कहीं तुम्हारी आफत मेरे सर ही ना आ जाए इसलिए यहाँ से भाग जाने में ही भलाई है।”
इतना कहकर वह वहाँ से सर पर पैर रखकर भाग गया।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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