मस्तक पर चक्र – Mastak Par Chakra
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवा तंत्र – अपरीक्षितकारकम – मस्तक पर चक्र – Mastak Par Chakra – Chakra On Head
सोनापुर नगर में चार ब्राह्मण पुत्र रहते थे: चक्रधर, स्वर्णसिद्धि, रजतसिद्धि और तांब्रसिद्धि। चारों बहुत निर्धन थे, लेकिन उनमें बहुत अच्छी मित्रता थी। निर्धनता में रहते हुए उन्होनें अनुभव कर लिया कि दुनियाँ में निर्धनता के साथ जीने से ज्यादा बुरा कुछ भी नहीं है। अपने स्वजन ही निर्धन से किनारा कर लेते है, उसे अनादर की दृष्टि से देखते है। बंधु-बंधव तो क्या स्वयं की पत्नी, पुत्र-पौत्र भी उससे मुख मोड़ लेते है।
मनुष्य लोक में धनहीन व्यक्ति चाहे कितना भी गुणी, वीर और सुदर्शन क्यों ना हो उसे यश और सुख नहीं मिलता। धनवान पुरुष यदि मूर्ख भी हो तो पंडित की तरह पूजा जाता है, कायर भी हो तो वीर की तरह सराहा जाता है, कुरुप भी हो तो उसे सुरूप की तरह ही सारे सुख प्राप्त हो जाते है। धन के बिना बंधु-बान्धवों के साथ रहने सो तो कहीं ज्यादा अच्छा है कि कंटीले जंगल में शेर-हाथियों के साथ रह लिया जाए।
धनोपार्जन ही हमारा लक्ष्य है
चारों ने आपस में मंत्रणा की कि बंधु-बान्धवों और समाज में सम्मान पाने के लिए विदेश में जाकर धन कमाया जाए। चारों ने अपनी जन्मभूमि को छोड़ने का निश्चय कर लिया। यह निश्चय करके उन्होंने अपना घर छोड़ा, बंधु-बान्धवों से विदा ली और विदेश जाने के लिए निकल पड़े।
चलते-चलते वे अवन्ती शिप्रा नदी के तट पर पँहुच गए। वहाँ उन्होंने शिप्रा नदी के शीतल जल में स्नान किया और महाकाल के मंदिर में जाकर महाकाल को प्रणाम करके अपनी आगे की यात्रा प्रारंभ की। अभी वे थोड़ी दूर ही पँहुचे थे कि उन्हें सामने से एक जटाधारी योगी आते दिखाई दिए। उन्होंने योगिराज को विधिवत प्रणाम किया और उनका परिचय पूछा,
🧖♂️ स्वर्णसिद्धि – महाराज, चेहरे से तो आप बड़े तेजस्वी दिखाई दे रहे है, कृपया हमें अपना परिचय देने कि कृपा करें।
🧔🏻 योगिराज – मेरा नाम भैरवानंद है और यहीं पास में ही मेरा आश्रम है। आप सभी मेरे साथ मेरे आश्रम में चलों, वहाँ भोजन करके कुछ देर विश्राम कर लेना।
चारों मित्र योगी भैरवानंद के साथ उनके आश्रम में आ गए। भैरवानंद ने उन्हें सम्मान सहित भोजन करवाया और फिर उनसे उनकी यात्रा का प्रयोजन पूछा,
🧔🏻 भैरवानंद – आप चारों किस प्रयोजन से यात्रा पर निकले है?
👳🏻 चक्रधर – महाराज, बंधु-बान्धवों और समाज में सम्मान पाने के लिए धन कमाने के लिए विदेश जा रहे है। धनोपार्जन ही हमारा लक्ष्य है। धनहीन जीवन से मृत्यु अच्छी होती है।
जो भाग्य में नहीं, वो मिलता नहीं
भैरवानंद ने उनके उद्देश्य की दृढ़ता को परखने के लिए कहा,
🧔🏻 भैरवानंद – लेकिन धन तो ईश्वर की कृपा से मिलता है। हो सकता है, तुम पर ईश्वर की कृपा ना हो।
🧖🏻♂️ रजतसिद्धि – हे देव, आप सही कह रहे है। लेकन केवल ईश्वर के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं मिलता, जब तक कि पुरुषार्थ नहीं किया जाए। साहसी पुरुष अपने पुरुषार्थ से दैव इच्छा को भी बदल सकते है।
🧔🏻 भैरवानंद – भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता। यदि तुम लोगों के भाग्य में धन होगा तो तुम्हारे देश में ही मिल जाएगा, नहीं तो विदेश में भी नहीं मिलेगा।
🙍🏽♂️तांब्रसिद्धि – यह सच है कि भाग्य बड़ा बलवान होता है। लेकिन अवसर मिलने पर साहसी पुरुष उसका लाभ उठा कर दुष्प्राप्य और मनचाहा धन प्राप्त कर सकते है। पुरुषार्थ किए बिना सुख नहीं मिलता है। बरसात के पानी के भरोसे बैठने वाले प्यासे मर जाते है। लेकिन पुरुषार्थी पुरुष अपनी मेहनत से कुआं खोद कर पाताल से भी पानी निकाल लाते है।
“हमारा निश्चय अडिग है। अब या तो हम धन कमा कर अपने देश लौटेंगे या फिर मृत्यु का वरण करेंगे। इसलिए आप हमें भाग्य का डर दिखाकर निरुत्साहित ना करें, यदि हो सके तो इस काम में हमारा पथ प्रदर्शन कीजिए।”
उम्मीद की रोशनी
🧖♂️ स्वर्णसिद्धि – हॉँ, हमने आपके शिष्यों से आज ही सुना है कि आप बहुत सारी सिद्धियों के स्वामी है। कृपया धन कमाने में हमारी मदद कीजिए।
भैरवानंद उनका दृढ़ निश्चय देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उनकी मदद करने के लिए अपनी सिद्धि से चार दीपक उपस्थित किए और एक-एक दीपक उन चारों को देते हुए कहा,
🧔🏻 भैरवानंद – तुम चारों इन दीपकों को लेकर हिमालय की ओर जाओं। जहाँ पर भी किसी का दीपक गिर जाए, उस जगह को खोदना। वहाँ पर तुम्हें जो भी धन मिले, उसे लेकर तुम सब वापस अपने घर लौट जाना।
चारों अपने-अपने हाथों में दीपक लेकर निकल पड़े। बहुत आगे जाने पर तांब्रसिद्धि के हाथ का दीपक गिर गया। उन्होंने उस स्थान को खोदा तो उन्हे वहाँ तांबे की खान मिली। उसे देख कर उसने कहा,
🙍🏽♂️ तांब्रसिद्धि – अरे वाह, इतना सारा तांबा, इससे हमारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। हम सब मिल कर खूब सारा तांबा निकाल कर अपने साथ ले कर अपने देश लौट जाते है।
👳🏻 चक्रधर – अरे मूर्ख, तांबे से हम बहुत अमीर नहीं बन पाएंगे। अभी हमारे हाथों के दीपक नहीं गिरे है, इसलिए हमें और आगे चलना चाहिए।
🙍🏽♂️ तांब्रसिद्धि – लेकिन उन योगी जी ने तो हमने यहीं से लौटने के लिए कहा था, इसलिए मैं तो यहीं से तांबा लेकर लौट जाऊँगा। तुम लोगों को आगे जाना हो तो जाओं।
उसने खान में से बहुत सारा तांबा निकाला और उसे लेकर लौट गया।
थोड़ा और चाहिए
बाकी तीनों मित्र आगे बढ़ चले। थोड़ा आगे जाने पर रजतसिद्धि का दीपक गिर गया। उन्होंने वहाँ खोदा तो उन्हें वहाँ चाँदी की खान मिली। उसने प्रसन्न होकर कहा,
🧖🏻♂️ रजतसिद्धि – वाह, अब हमें चाँदी की खान मिल गई है। यहाँ से बहुत सारी चाँदी अपने साथ ले लेते है। इससे हम बहुत धनवान हो जाएंगे। इतना धन हमारे लिए पर्याप्त होगा, अब हमें यहीं से लौट चलना चाहिए।
👳🏻 चक्रधर – अरे मित्र, अभी हमारे हाथों के दीपक नहीं गिरे है, इसलिए हमें और आगे चलना चाहिए। पहले तांबे की खान मिली थी। अब चाँदी की खान मिली है। यदि हम और आगे जाएंगे तो हो सकता है, हमें सोने की खान मिल जाए।
🧖🏻♂️ रजतसिद्धि – नहीं, मेरे लिए तो यहीं पर्याप्त है। मैं आगे नहीं जाऊँगा।
👳🏻 चक्रधर – तुम्हें यहाँ रुकना है तो रुकों, मैं तो आगे जाऊँगा। तुम भी मेरे साथ चलोगे ना स्वर्णसिद्धि?
स्वर्णसिद्धि ने अपनी सहमति दे दी। रजतसिद्धि से विदा लेकर दोनों आगे बढ़ गए। रजतसिद्धि वहीं चाँदी निकालने लगा, लेकिन थकान के कारण वह ज्यादा चाँदी नहीं निकाल पाया। फिर भी पर्याप्त मात्रा में चाँदी लेकर वह वापस लौट गया।
दोनों मित्र दीपक लेकर बहुत दूर आ गए तभी स्वर्णसिद्धि के हाथ से दीपक गिर गया। उसने वहाँ पर खोदा तो सोने की खान मिली। यह देख वह खुशी से उछल पड़ा और बोला,
🧖♂️ स्वर्णसिद्धि – मित्र अब हमें सोने की खान मिल गई है, सोना बहुत कीमती होता है। इससे हम बहुत अमीर बन जाएंगे। खान में से बहुत सारा सोना निकाल कर वापस लौट चलते है।
लालच का कोई अंत नहीं
👳🏻 चक्रधर – तुम भी अन्य दो की तरह मूर्ख लगते हो! पहले हमें तांबे की खान मिली, फिर चाँदी की और अब सोने की खान मिली है। आगे निसन्देह हीरे-जवाहरात की खान होगी। एक हीरा भी बेशकीमती होता है। हीरों से हम इतने अमीर हो जाएंगे कि हमारी कई पीढ़ियों को काम नहीं करना पड़ेगा। इसलिए हमें आगे चलना चाहिए।
🧖♂️ स्वर्णसिद्धि – नहीं मैं तो अब आगे नहीं जाऊँगा इतनी लंबी यात्रा करके में थक चुका हूँ। मैं तो यहीं से बहुत सारा सोना लेकर लौट जाऊँगा। मेरी सलाह है, तुम भी आगे मत जाओं। देखों हमारे पैरों में छाले पड़ गए है और काँटों से पैर जख्मी भी हो गए है। इसलिए अब तुम भी मेरे साथ यहीं से सोना लेकर लौट चलों।
लेकिन चक्रधर नहीं माना और स्वर्णसिद्धि को वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया।
स्वर्णसिद्धि ने अपनी ताकत के अनुसार खान में से थोड़ा बहुत सोना निकाला और पीठ लाद कर ले जाने लगा। लेकिन इतना चलने के बाद उसमें इतनी शक्ति नहीं रही कि वह ज्यादा भार के साथ चल सके। थोड़ी दूर जाने पर ही उससे सोने का बोझ उठा कर चला ही नहीं गया, इसलिए उसने आधा सोना वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गया।
मिल गया खजाना?
उधर चक्रधर अपने हाथ में दीपक लेकर आगे बढ़ने लगा। आगे का रास्ता बहुत विकट था। बर्फीली जमीन पर चलना कठिन हो रहा था, तो बर्फीली हवाएं उसका रास्ता रोक रही थी। फिर भी हीरे-जवाहरात के लोभ में वह भूखा-प्यासा आगे बढ़ता रहा। बहुत दूर जाने पर उसे एक लहूलुहान व्यक्ति मिला। उसके मस्तक पर एक चक्र घूम रहा था। वह जल्दी से उसके पास गया और पूछा,
👳🏻 चक्रधर – तुम कौन हो? तुम्हारे मस्तक पर यह चक्र क्यों घूम रहा है? मुझे बहुत प्यास लगी है, यहाँ आस-पास पीने का पानी मिलेगा?
उसके इतना कहते ही वह चक्र उस युवक के मस्तक से उतर कर उसके मस्तक पर घूमने लगा। उसे बहुत पीड़ा होने लगी। उसने कराहते हुए कहा,
👳🏻 चक्रधर – ये क्या हुआ? यह चक्र तुम्हारे मस्तक को छोड़कर मेरे मस्तक पर क्यों आ गया?
🧟♂️ युवक – मेरे मस्तक पर भी यह चक्र इसी तरह लगा था।
👳🏻 चक्रधर – अब यह चक्र मेरे मस्तक से कब हटेगा। इससे मुझे बहुत तकलीफ हो रही है।
🧟♂️ – जब तुम्हारे जैसे ही कोई व्यक्ति धन के लालच में यहाँ आएगा और तुमसे बात करेगा तब यह चक्र तुम्हारे मस्तक से उसके मस्तक पर चला जाएगा।
👳🏻 चक्रधर – इसमें कितना समय लगेगा?
🧟♂️ युवक – अभी कौन-सा राजा राज कर रहा है।?
👳🏻 चक्रधर – वीणा वत्सराज
🧟♂️ युवक – मुझे समय का कुछ ज्ञान नहीं है। लेकिन मैं तो राजा राम के जमाने में धन के लालच में यहाँ आया था। मैंने भी तुम्हारी तरह यहाँ मस्तक पर चक्र धारण किए मनुष्य से यहीं प्रश्न किए थे, जो तुमने मुझसे किए थे और उसके मस्तक का चक्र मेरे मस्तक पर आकर घूमने लगा। ।
👳🏻 चक्रधर – तुम्हें तो यहाँ कई साल हो गए हैं, तुम इतने दिनों तक बिना भोजन पानी के जीवित कैसे रहे?
🧟♂️ युवक – जिस किसी के भी मस्तक पर यह चक्र घूमता है, उसे भूख-प्यास, नींद आदि नहीं सताती। वह ना तो कभी बूढ़ा होता है और ना ही मरता है। बस अनंत काल तक इस चक्र के घूमने का कष्ट सहता रहता है।
इतना कहकर वह मनुष्य वहाँ से चला गया और चक्रधर अपने लोभ के कारण चक्र का कष्ट भोगने के लिए वहीं रह गया।
सीख
ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए।
~~~~~~~~~~~~~~~~ ****************~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – वफादार नेवले और बिना विचारे काम करने वाली ब्राह्मणी की कहानी “ब्राह्मणी और नेवला”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – अपनी विद्या से शेर को जीवित करने वाले मूर्ख ब्राह्मणों की कहानी “शेर जी उठा“
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का मुझे इंतजार रहेगा, जिससे मैं अपनी कहानियों में और सुधार कर सकूँ।