मार्ग का साथी – Marg Ka Sathi
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – मार्ग का साथी – Marg Ka Sathi – The Companion of the Way
ब्रह्मपुरी नगर में ब्रहमदत्त नामक एक ब्राह्मण अपनी माँ के साथ रहता था। वह लोगों के यहाँ पूजा-पाठ करके अपना और अपनी माँ का भरण-पोषण करता था। एक बार उसे पूजा करने किसी दूसरे नगर जाना था। उसकी माँ ने एक पोटली में पूजा का समान और रास्ते के लिए भोजन रख दिया और कहा,
👵🏿 माँ – बेटा, मैंने तुम्हारे लिए रास्ते का सारा सामान रख दिया है, पर मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है।
🧖🏻♂️ ब्रहमदत्त – चिंता, किस बात की चिंता माँ?
कोई हमसफर साथ ले लों
👵🏿 माँ – पुत्र, तुम पहली बार किसी दूसरे नगर जा रहे हो। अनजान मार्ग पर अकेले नहीं जाना चाहिए, इसलिए तुम किसी को अपने साथ ले जाओं।
🧖🏻♂️ ब्रहमदत्त – नहीं माँ, मैंने पता कर लिया है, इस मार्ग में कोई डरने वाली बात नहीं हैं। मैं अकेला आराम से चल जाऊँगा तुम चिंता मत करों।
लेकिन ब्रहमदत्त की माँ को उसकी बहुत चिंता हो रही थी। इसलिए वह नदी किनारे से एक केकड़ा पकड़ कर ले आई। जब वह यात्रा के लिए निकलने लगा तो वह केकड़ा उसे देते हुए बोली,
👵🏿 माँ – बेटा, तुम किसी साथी को साथ नहीं ले जाना चाहते तो कोई बात नहीं। लेकिन मेरी तसल्ली के लिए इस केकड़े को साथ ले जाओं। एक से दो भले होते है। हो सकता है, समय पड़ने पर यह तुम्हारे कुछ काम आ जाए।
माँ की बात का मान रखते हुए ब्रहमदत्त ने वह केकड़ा ले लिया और उसे कपूर की डिबियाँ में रख कर अपनी पोटली में डाल लिया। माँ का आशीर्वाद लेकर उसने अपनी यात्रा प्रारंभ की।
साथी का कमाल
चलते-चलते सुबह से दोपहर हो गई। सूर्य अपने पूरे तेज से चमक रहा था। भयंकर गर्मी पड़ रही थी और उसे भूख भी लग रही थी। रास्ते में एक बड़े वृक्ष को देखकर वह वहीं रुक गया। वृक्ष की ठंडी छाया में बैठकर उसे गर्मी से राहत मिली। उसने भोजन किया और उसी वृक्ष के नीचे लेट गया।
थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गई। उस वृक्ष के नीचे बने बिल में एक साँप रहता था। उसके सो जाने के बाद वह साँप अपने बिल में से बाहर निकला। जैसे ही वह ब्रहमदत्त के निकट आया, उसे कपूर की गंध आने लगी। कपूर की गंध साँपों को प्रिय होती है।
वह ब्रहमदत्त को छोड़कर गंध की टोह में उसकी पोटली में अपना मुँह डाल और कपूर की डिबिया को अपने मुँह में पकड़ा बाहर निकाल लिया। वह उसे खाने की कोशिश करने लगा। इसी दौरान कपूर की डिबिया खुल गई। डिबिया के खुलते ही उसमें रखा केकड़ा बाहर आ गया।
केकड़े को देखकर साँप ने उसे पकड़ना चाहा, लेकिन केकड़े ने झट से उसकी गर्दन दबोच ली और अपने तीखे पंजों से उसकी गर्दन काट कर उसे मार दिया।
तभी ब्रहमदत्त की नींद खुल गई। उसने कपूर की खुली डिबिया और उसके पास मरे हुए साँप को देखा। केकड़ा ने अब भी साँप की गर्दन को दबोच रखा था। यह देख कर वह समझ गया कि “आज इस केकड़े ने ही इस साँप को मारकर उसकी जान बचाई है।”
उसने सोचा, “अगर मैं माँ की आज्ञा नहीं मानकर इस केकड़े को अपने साथ नहीं लाता, तो आज यह साँप मुझे मार देता। आज माँ और इस केकड़े के कारण ही मेरी जान बची है।” उसने केकड़े को उठाकर कपूर की डिबिया में डालकर फिर से अपनी पोटली में रख लिया और अपनी आगे की यात्रा पर निकल पड़ा।
सीख
मार्ग में साथी कोई भी हो वह सहायक ही होता है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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