रामनवमी
रामनवमी पर क्या करें: अगस्त्य संहिता के मुताबिक
रामनवमी पर कमल, केतकी, नागकेसर और चंपा के फूलों से श्रीराम की पूजा करें। लोहा, पत्थर या लकड़ी से बनी श्रीराम की मूर्ति का दान कर सकते हैं। पवित्र नदी के जल से स्नान और जरूरतमंदों को दान करना चाहिए।
इस दिन मौन व्रत करना चाहिए। रामनवमी पर अतिगंड नाम का योग बने तो उसमें श्रीराम की पूजा से बहुत पुण्य मिलता है। ये योग इस साल बन रहा है।
श्रीराम नवमी आज:राम दरबार के साथ ही रामायण की भी करनी चाहिए पूजा, इस ग्रंथ का पाठ और राम नाम का जप करें
आज (30 मार्च) श्रीराम नवमी और चैत्र नवरात्रि की अंतिम दिन है। इस पर्व पर देवी दुर्गा के साथ ही श्रीराम और हनुमान जी की पूजा खासतौर पर की जाती है। त्रेतायुग में इसी तिथि पर श्रीराम प्रकट हुए थे। श्रीराम के प्रकट उत्सव पर रामायण की भी पूजा करनी चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक, अगर घर में रामायण ग्रंथ नहीं है तो श्रीराम नवमी पर इस ग्रंथ को खरीदना चाहिए और घर के मंदिर में राम दरबार के साथ इसे भी रखना चाहिए औऱ पूजा करनी चाहिए। इसके बाद नियमित रूप से इस ग्रंथ का पाठ करना चाहिए। रामायण में बताई गई अच्छी बातों को जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए, ऐसा करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा और परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।
श्रीराम नवमी पर कर सकते हैं ये शुभ काम
चैत्र नवरात्रि की अंतिम तिथि पर देवी दुर्गा और श्रीराम के मंदिर में दर्शन-पूजन करना चाहिए। घर के आसपास कोई पौराणिक मंदिर हो तो वहां दर्शन जरूर करें। अगर मंदिर दर्शन करने नहीं जा पा रहे हैं तो घर के मंदिर में ही भगवान के दर्शन और पूजन करें।
देवी दुर्गा को लाल चुनरी, लाल चूड़ियां, कुमकुम आदि सुहाग की चीजें चढ़ाएं। लाल फूलों से श्रृंगार करें। धूप-दीप जलाकर देवी मंत्र का जप करें।
श्रीराम के साथ लक्ष्मण, सीता, हनुमान जी, भरत और शत्रुघ्न की भी पूजा जरूर करें। इन देवी-देवताओँ का अभिषेक करें। वस्त्र और हार-फूल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर पूजा करें। राम नाम का जप करें।
किसी मंदिर में पूजन सामग्री जैसे घी, तेल, कुमकुम, चंदन, अबीर, गुलाल, हार-फूल आदि शुभ चीजें भेंट करें।
जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। नवमी तिथि पर छोटी कन्याओं को भी भोजन कराना चाहिए। भोजन कराने के बाद धन, अनाज, जूते-चप्पल का दान करना चाहिए।
किसी मंदिर में रामायण, सुंदरकांड या हनुमान चालीसा की किताबें दान करनी चाहिए। इनके साथ ही मंदिर के शिखर पर लगाने के लिए नए झंडे का दान भी कर सकते हैं।
गुरुवार ये पर्व होने से इस दिन गुरु ग्रह की विशेष पूजा करेंगे तो कुंडली के गुरु ग्रह से संबंधित दोष शांत हो सकते हैं।
पुत्रकामेष्टि यज्ञ से हुआ श्रीराम जन्म
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, राजा दशरथ जब बहुत बूढ़े हो गए तो संतान न होने के कारण चिंतित रहने लगे। ब्राह्मणों ने उन्हें पुत्रकामेष्टि यज्ञ की सलाह दी। महर्षि वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने ऋषि श्रृंग को इस यज्ञ के लिए बुलाया।
यज्ञ पूरा होने के बाद अग्नि देव प्रकट हुए। उन्होंने खीर से भरा सोने का घड़ा दशरथ को दिया और रानियों को खीर खिलाने को कहा। दशरथ ने ऐसा ही किया। एक साल बाद चैत्र शुक्ल नवमी पर पुनर्वसु नक्षत्र में कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया। पुष्य नक्षत्र में कैकई ने भरत और सुमित्रा से जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए।
श्रीराम की सीख:अपने साथियों के गुणों को पहचानें और उन पर भरोसा करें, किसी साथी का आत्मविश्वास कमजोर हो तो उसे प्रेरित करें
गुरुवार को राम जी का प्रकट उत्सव मनाया जाएगा। श्रीराम के जीवन की कई ऐसी घटनाएं हैं, जिनमें जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र छिपे हैं। इन घटनाओं के संदेशों को जीवन में उतार लिया जाए तो कई परेशानियां खत्म हो सकती हैं। जानिए एक ऐसी घटना, जिसमें श्रीराम ने संदेश दिया है कि हमें अपने साथियों के गुणों को पहचानना चाहिए और उन्हें प्रेरित करना चाहिए।
हनुमान जी ने श्रीराम को बताया कि देवी सीता समुद्र पार लंका में कैद हैं। इसके बार श्रीराम वानर सेना के साथ दक्षिण दिशा में समुद्र किनारे पहुंच गए। पूरी वानर सेना के साथ समुद्र पार करना बहुत मुश्किल काम था।
श्रीराम ने समुद्र देवता से प्रार्थना की कि उन्हें वानर सेना के समुद्र पार करने के लिए रास्ता दिया जाए। समुद्र देव ने श्रीराम से कहा कि आपकी सेना में नल-नील दो भाई हैं। वे विश्वकर्मा के पुत्र हैं। इन्हें ऋषियों ने शाप दिया था कि ये जो चीजें पानी में फेंकेंगे, वह डूबेगी नहीं। आप इनकी मदद से समुद्र पर सेतु बांध सकते हैं। सेतु की मदद से पूरी सेना आसानी से लंका पहुंच जाएगी।
समुद्र देव की सलाह के बाद श्रीराम ने नल-नील को समुद्र पर सेतु बांधने की जिम्मेदारी सौंप दी। सभी वानरों के सहयोग से नल-नील ने समुद्र पर पत्थरों से सेतु बनाना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद सभी वानरों के साथ श्रीराम लंका पहुंच गए।
जब श्रीराम वानर सेना के साथ लंका पहुंचे तो उन्होंने हनुमान जी को नहीं अंगद को दूत बनाकर रावण की सभा में भेजा। अंगद को लंका के दरबार में दूत बनाकर भेजने से रावण को समझ आ गया था कि श्रीराम की सेना में हनुमान ही नहीं, बल्कि अंगद जैसे भी और भी शक्तिशाली वानर हैं।
लंका आने पहले अंगद का आत्मविश्वास कमजोर था, क्योंकि अंगद ने सीता की खोज में लंका आने से मना कर दिया था। इसके बाद हनुमान जी ने लंका पहुंचकर सीता की खोज की थी। राम जी ने अंगद को रावण के दरबार में दूत बनाकर भेजा, उसे प्रेरित किया, जिससे उसका आत्मविश्वास भी जाग गया।
श्रीराम की सीख
इस किस्से में श्रीराम ने नल-नील और अंगद पर अपना भरोसा दिखाया है। श्रीराम संदेश दे रहे हैं कि हमें अपने साथियों के गुणों और कमजोरियों के बारे में मालूम होना चाहिए। अगर किसी का आत्मविश्वास कमजोर हो रहा हो तो उसका मनोबल बढ़ाना चाहिए, उसे प्रेरित करना चाहिए। तभी बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।
श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता की सीख:दोस्त एक भरोसा और एक सहारा होता है, बुरे समय में सच्चा मित्र ही साथ देता है और मुसीबतों से बचाता है
30 मार्च को भगवान श्रीराम का प्रकट उत्सव मनाया जाएगा। श्रीराम से जुड़े प्रसंगों में जीवन को सुखी और सफल बनाने के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को समझ लिया जाए और इनके अनुसार काम किए जाए तो हमारी सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जानिए श्रीराम और सुग्रीव से जुड़ा प्रसंग, जिसमें मित्रता से जुड़े संदेश बताए गए हैं…
श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास के लिए निकल गए थे। ये तीनों पंचवटी में रह रहे थे। उस समय रावण ने छल से सीता का हरण कर लिया। श्रीराम और लक्ष्मण देवी सीता की खोज कर रहे थे, तब इनकी भेंट हनुमान जी से हुई।
हनुमान जी ने श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता कराई। श्रीराम और सुग्रीव की पहली मुलाकात थी। श्रीराम ने सुग्रीव से पूछा कि आप यहां जंगल में क्यों रह रहे हैं? मैं तो मेरी पत्नी सीता को खोज में जंगल-जंगल भटक रहा हूं, लेकिन लेकिन आप तो राजा हैं, आपको को अपने राज्य में रहना चाहिए।
सुग्रीव ने श्रीराम से कहा कि मेरा बड़ा भाई बालि ही मेरा शत्रु हो गया है। वह बहुत शक्तिशाली है और उसकी वजह से ही मैं जंगल में छिपकर रह रहा हूं। दरअसल, एक बार एक राक्षस हमारे गांव आया था। बालि उसे मारने गया तो मैं भी पीछे-पीछे चला गया। राक्षस एक गुफा में चला गया तो बालि भी गुफा में चला गया। मैं गुफा के बाहर ही रुक गया। एक दिन गुफा से बाहर रक्त बहकर आने लगा, मैं डर गया और मुझे लगा कि मेरा भाई बालि मारा गया है। मैं अपने राज्य लौट आया तो यहां के लोगों ने मुझे राजा बना दिया। कुछ समय बाद मेरा भाई बालि राज्य में लौट आया। बालि ने मुझे राजा बना देखा तो वह मुझे ही शत्रु समझने लगा और अब वह मुझे मारना चाहता है।
श्रीराम ने सुग्रीव की बातें सुनीं और कहा कि मैं आपकी बालि से रक्षा करूंगा।
पहले तो सुग्रीव को श्रीराम की शक्तियों पर भरोसा नहीं हुआ, क्योंकि बालि तो बहुत शक्तिशाली था। राम समझ गए कि सुग्रीव को मेरी शक्तियों पर भरोसा नहीं हो रहा है।
श्रीराम ने सुग्रीव से कहा कि सुग्रीव, अब मैं तुम्हारा मित्र हूं। विपत्ति के समय मित्र ही साथ खड़ा रहता है, मित्र ही मदद करता है।
मित्र शब्द सुनते ही सुग्रीव को श्रीराम की बातों भरोसा हो गया। श्रीराम ने बालि को मारने की योजना बनाई। योजना के अनुसार सुग्रीव ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा। जब दोनों भाई को युद्ध हो रहा था, तब श्रीराम ने बालि को बाण से मार दिया था।
श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता की सीख
इस प्रसंग में श्रीराम ने सुग्रीव को संदेश दिया है कि मित्र ही दूसरे मित्र की रक्षा करता है। सच्चे मित्र हमेशा साथ खड़े रहते हैं और बुरे समय में मदद करते हैं। इसलिए किसी को मित्र बनाते समय व्यक्ति के गुणों को परखना चाहिए। ऐसे लोगों से मित्रता नहीं करनी चाहिए, जो हमारे सामने तो अच्छा बोलते हैं और पीठ पीछे हमारे काम बिगाड़ने की कोशिश करते हैं।
श्रीराम प्रकटोत्सव 30 मार्च को:श्रीराम की सीख – हालात कैसे भी हों, हमें सकारात्मकता, धैर्य और शांति के साथ काम करना चाहिए
गुरुवार, 30 अप्रैल को श्रीराम का प्रकट उत्सव मनाया जाएगा। श्रीराम की पूजा करें और उनके जीवन से सीख लेंगे तो हमारे जीवन में भी शांति आ सकती है। जानिए श्रीराम से जुड़ा एक ऐसा प्रसंग, जिसमें धैर्य और सकारात्मकता का संदेश मिलता है।
रामायण में राजा दशरथ ने घोषणा कर दी थी कि श्रीराम का राज्याभिषेक होगा। इस बात से अयोध्या में सभी खुश थे, लेकिन राज्याभिषेक से ठीक पहले सारी परिस्थितियां ही बदल गईं।
राज्याभिषेक से पहले मंथरा ने कैकयी को अपनी बातों में फंसा लिया। मंथरा की बातों में कैकयी ऐसी उलझी कि उन्होंने राजा दशरथ से भरत के लिए राजपाठ और राम के लिए वनवास मांग लिया। दशरथ ने कैकयी को दो वचन दिए थे, इस कारण वे कैकयी की ये दो बातें मानने के लिए मजबूर हो गए।
दशरथ ने श्रीराम को बुलवाया और ये बातें बताईं। श्रीराम ने अपने पिता की बातें ध्यान से सुनीं और धैर्य बनाए रखा। पिता के दो वचनों को पूरा करने के लिए श्रीराम वनवास जाने के लिए तैयार हो गए।
उस समय दशरथ ने कैकयी से कहा था कि तुम राम को वनवास जाने से रोक लो। राम ने कभी भी धैर्य नहीं खोया है। वह हर काम शांति से करता है। अगर तुम ये सोच रही हो कि वनवास भेजकर राम को कोई सजा दे रही हो तो ये सोच ही गलत है। राम कभी विचलित नहीं होता है।
दशरथ में कैकयी को बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं मानीं। जिस समय श्रीराम का राज्याभिषेक होना था, उसी समय वे खुशी-खुशी वनवास चले गए।
श्रीराम की सीख
इस प्रसंग में श्रीराम संदेश दिया है कि हमारे जीवन में हालात कभी बदल सकते हैं। इसलिए हमें हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। अचानक परेशानियां आ जाएं, तब भी हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए। शांति से हालात को समझें और जिस काम में सभी का भला होता है, वह काम करना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति बड़ी-बड़ी समस्याओं को भी आसानी से हल कर लेता है।
अंगद और रावण के किस्से की सीख:हिंसा किए बिना भी अपनी कार्य शैली और व्यक्तित्व से दूसरों को हराया जा सकता है
किसी को हराने के लिए जरूरी नहीं है कि हर बार हिंसा की जाए, अपनी कार्य शैली और व्यक्तित्व से भी शत्रु को पराजित किया जा सकता है। रामायण की घटना है। सीता हरण के बाद श्रीराम वानर सेना के लंका पहुंच गए थे। युद्ध शुरू होने वाला था, उससे ठीक पहले श्रीराम ने अंगद को दूत बनाकर रावण के पास भेजा। श्रीराम युद्ध टालने की एक और कोशिश करना चाहते थे।
अंगद लंका दरबार में पहुंचे तो वहां रावण का वैभव देखकर भी अंगद के मन में कोई डर नहीं था। अंगद और रावण की बात शुरू हुई। रावण ऊंचा बोलता तो अंगद भी ऊंची आवाज में जवाब दे रहे थे।
रावण खुद को शक्तिशाली बता रहा था और अंगद का मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहा था। अंगद ने सोचा कि मैं दूत बनकर आया हूं तो मुझे यहां हिंसा नहीं करनी है। कुछ देर सोचने के बाद अंगद ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और तेजी से जमीन पर दे मारे, रावण का दरबार हिल गया। दरबार में बैठे हुए कुछ लोग सिंहासन से नीचे गिर गए। रावण का सिंहासन भी डगमगा गया।
इसके बाद अंगद ने जमीन पर अपना पैर तेजी से रखा और कहा कि यहां बैठे किसी भी व्यक्ति ने मेरा पैर हटा दिया तो राम जी लौट जाएंगे और मैं सीता जी को हार जाऊंगा।
रावण के बड़े-बड़े योद्धाओं ने अंगद का पैर हटाने की कोशिश की, लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। अंत रावण खुद अंगद का पैर हटाने के लिए नीचे झुका तो अंगद ने कहा कि मेरे पैर मत छूओ, श्रीराम के पैरों में गिरोगे तो तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
प्रसंग की सीख
इस प्रसंग में अंगद ने संदेश दिया है कि हमें किसी को पराजित करने के लिए हर बार हिंसा करने की जरूरत नहीं है। हम अपनी कार्य शैली और व्यक्तित्व से भी दूसरों की पराजित कर सकते हैं।
श्रीराम का प्रकट उत्सव आज:रामायण के 5 किस्सों की 5 सीख ध्यान रखेंगे जीवन में सुख-शांति और सफलता बनी रहेगी
आज (30 मार्च) राम नवमी है। त्रेतायुग में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां श्रीराम रूप में अवतार लिया था। श्रीरामचरित मानस के प्रसंगों में जीवन को सुखी, शांत और सफल बनाने के सूत्र बताए गए हैं। जो लोग इस ग्रंथ का पाठ करते हैं और इसके सूत्रों को अपनाते हैं, उनकी सभी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। जानिए रामायण के खास किस्से और उनकी सीख…
हालात कैसे भी हों, हमें सकारात्मक रहना चाहिए। श्रीराम का राज्याभिषेक होने वाला था। पूरी अयोध्या इस बात से बहुत खुश थी। राज्याभिषेक से ठीक पहले मंथरा की बातों में फंसने से कैकयी की बुद्धि भ्रमित हो गई। कैकयी ने राजा दशरथ से अपने दो वर मांग लिए। पहला, राम को वनवास और दूसरा भरत को राज्य। इन दो वरों की वजह से खुशियां दुख में बदल गईं। अयोध्या के सभी लोग दुखी थे, लेकिन श्रीराम ने पिता के वचनों को पूरा करने के लिए खुशी-खुशी वनवास जाना स्वीकार कर लिया।
श्रीराम ने संदेश दिया है कि हमें हर परिस्थिति में सकारात्मक और शांत रहना चाहिए। वनवास जाने की बात पर भी श्रीराम विचलित नहीं हुए, उन्होंने इसमें भी सकारात्मकता देखी। हमें भी विपरीत समय में विचलित नहीं होना चाहिए और सकारात्मकता के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए।
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2400 साल से हर सदी में राम की एक कहानी:दुनिया में 400 से ज्यादा रामायण; अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने भी लिखवाई थीं रामकथाएं
आज राम नवमी है। भारतीय साहित्य के इतिहास में राम कथा 2400 सालों से पढ़ी, सुनी और लिखी जा रही है। इन 2400 सालों में हर शताब्दी में कोई एक रामकथा लिखी गई है। भारत के अलावा 9 देश और हैं जहां रामायण को किसी ना किसी रूप में पढ़ा और सुना जाता है। अकबर, जहांगीर और शाहजहां जैसे मुगल शासकों ने भी वाल्मीकि रामायण को उर्दू में ट्रांसलेट कराया था।
रामकथा पर कई विद्वानों ने रिसर्च की है, लेकिन सबसे डिटेल रिसर्च करने वालों में फादर प्रो. कामिल बुल्के का नाम आगे है। 1935 में बेल्जियम से भारत आए मिशनरी कामिल बुल्के तुलसीदास की रामचरितमानस से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने रामकथा पर ही PhD कर डाली।
प्रो. बुल्के ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में लिखी गई रामकथा पर रिसर्च की, उनकी इसी रिसर्च थीसिस पर ‘रामकथा’ नाम से किताब भी पब्लिश की गई।
इसी किताब में दुनिया की उन तमाम रामकथाओं का जिक्र है। दुनिया में 400 रामकथाएं हैं। करीब 3,000 से ज्यादा ग्रंथों में राम का जिक्र है। रामनवमी पर प्रो. बुल्के की इसी रिसर्च से रामकथा की पूरी कहानी…
वाल्मीकि रामायण पहली, लेकिन राम का जिक्र उससे भी 100 साल पहले
साधारणतः ये माना जाता है कि राम के जीवन पर सबसे पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण है। कुछ हद तक यह सच भी है, लेकिन ऐसा नहीं है कि राम का पहली बार उल्लेख वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ में किया था। वेदों में राम का नाम एक-दो स्थानों पर मिलता है।
ऋग्वेद में एक स्थान पर राम के नाम का उल्लेख मिलता है, ये तो स्पष्ट नहीं है कि ये रामायण वाले ही राम हैं, लेकिन ऋग्वेद में राम नाम के एक प्रतापी और धर्मात्मा राजा का उल्लेख है।
रामकथा का सबसे पहला उल्लेख ‘दशरथ जातक कथा’ में मिलता है। जो ईसा से 400 साल (अब से 2400 साल) पहले लिखी गई थी। इसके बाद ईसा से 300 साल पूर्व का काल वाल्मीकि रामायण का मिलता है।
वाल्मीकि रामायण को सबसे ज्यादा प्रामाणिक इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि वाल्मीकि भगवान राम के समकालीन ही थे और सीता ने उनके आश्रम में ही लव-कुश को जन्म दिया था। लव-कुश ने ही राम को दरबार में वाल्मीकि की लिखी रामायण सुनाई थी।
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ऋग्वेद में सीता को माना है कृषि की देवी, घास से मूर्ति बनाने का विधान
ऋग्वेद में अकेले राम नहीं, सीता का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद ने सीता को कृषि की देवी माना है। बेहतर कृषि उत्पादन और भूमि के दोहन के लिए सीता की स्तुतियां भी मिलती हैं। ऋग्वेद के 10वें मंडल में ये सूक्त है जो कृषि के देवताओं की प्रार्थना के लिए लिखा गया है।
वायु, इंद्र आदि के साथ सीता की भी स्तुति की गई है। ‘काठक ग्राह्यसूत्र’ में भी उत्तम कृषि के लिए यज्ञ विधि दी गई है जिसमें सीता के नाम का उल्लेख मिलता है। साथ ही विधान भी बताया गया है कि खस आदि सुगंधित घास से सीता देवी की मूर्ति यज्ञ के लिए बनाई जाती है।
अध्यात्म रामायण में राम के साथ वनवास पर जाने के लिए सीता का अजीब तर्क
13वीं-14वीं सदी के ‘अध्यात्म रामायण’ और ‘उदार-राघव’ इन दो ग्रंथों में राम के वनवास वाले प्रसंग में राम और सीता का संवाद है, जिसमें सीता राम के साथ वनवास पर जाने के लिए अजीब तर्क दे रही हैं।
प्रसंग है कि राम को 14 वर्ष का वनवास हो गया। सीता साथ जाने की जिद पर अड़ी थीं। राम सीता को अयोध्या में ही रोकने के लिए अपने तर्क दे रहे थे। जब सीता को लगा कि राम नहीं मानेंगे और उन्हें अयोध्या में ही छोड़कर अकेले जंगल चले जाएंगे तो सीता ने राम से कहा कि आज तक मैंने जितनी रामकथाएं सुनी हैं, उन सब में सीता राम के ही साथ वनवास पर जाती हैं तो आप मुझे यहां क्यों छोड़कर जा रहे हैं। सीता के इस तर्क के बाद राम मान गए और सीता उनके साथ वनवास पर चल दीं।
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आनंद रामायण में सीता ने हनुमान को कंगन बेचकर फल खरीदने के लिए कहा
हनुमान का लंका में जाकर सीता से मिलना, अशोक वाटिका उजाड़ना और लंका को जलाने वाला प्रसंग तो लगभग सभी को पता है, लेकिन कुछ रामकथाओं में इसमें भी बहुत अंतर मिलता है।
जैसे 14वी शताब्दी में लिखी गई ‘आनंद रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि जब सीता से अशोक वाटिका में मिलने के बाद हनुमान को भूख लगी तो सीता ने अपने हाथ के कंगन उतारकर हनुमान को दिए और कहा कि लंका की दुकानों में ये कंगन बेचकर फल खरीद लो और अपनी भूख मिटा लो।
सीता के पास दो आम रखे थे सीता ने वो भी हनुमान को दे दिए। हनुमान के पूछने पर सीता ने बताया कि ये फल इसी अशोक वाटिका के हैं, तब हनुमान ने सीता से कहा कि वे इसी वाटिका से फल लेकर खाएंगे।
रंगनाथ रामायण में हनुमान ने विभीषण के लिए बनाई थी नई लंका
‘सेरीराम रामायण’ सहित कुछ रामायणों में एक प्रसंग मिलता है कि रावण ने विभीषण को समुद्र में फेंक दिया था। वह एक मगर की पीठ पर चढ़ गया, बाद में हनुमान ने उसे बचाया और राम से मिलवाया। विभीषण के साथ रावण का एक भाई इंद्रजीत भी था और एक बेटा चैत्रकुमार भी राम की शरण में आ गया था। राम ने विभीषण को युद्ध के पहले ही लंका का अगला राजा घोषित कर दिया था।
‘रंगनाथ रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि विभीषण के राज्याभिषेक के लिए हनुमान ने एक बालूरेत की लंका बनाई थी। जिसे हनुमत्लंका (सिकतोद्भव लंका) के नाम से जाना गया। कुछ ग्रंथों में ये भी उल्लेख मिलता है कि अशोक वाटिका में सीता की पहरेदारी करने वाली राक्षसी त्रिजटा विभीषण की ही बेटी थी।
हनुमान ने राम को बताया था कि विभीषण से हमें मित्रता कर लेनी चाहिए, क्योंकि उसकी बेटी त्रिजटा सीता के प्रति मातृवत यानी माता के समान भाव रखती है।
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उर्दू-फारसी में भी रामकथा, अकबर-जहांगीर और शाहजहां ने लिखवाई
रामकथा सिर्फ संस्कृत या हिंदी ही नहीं, उर्दू और फारसी में भी लिखी गई है। 1584 से 1589 के बीच अकबर ने अल बदायूनी से वाल्मीकि रामायण का उर्दू अनुवाद कराया था। जहांगीर के शासन काल में तुलसीदास के समकालीन गिरिधरदास ने वाल्मीकि रामायण का अनुवाद फारसी में किया था।
इसी काल में मुल्ला मसीही ने ‘रामायण मसीही’ भी लिखी थी। शाहजहां के समय ‘रामायण फैजी’ लिखी गई। 17वीं शताब्दी में ‘तर्जुमा-ए-रामायण’ भी लिखी गई। ये सभी वाल्मीकि रामायण के ही उर्दू ट्रांसलेशन थे।
16वीं शताब्दी से अभी तक कई विदेशियों ने लिखी राम की कहानी
16वीं शताब्दी के बाद से भारत में कई ऐसे विदेशी भारत आए जिन्होंने रामकथा पर रिसर्च की और अपने हिसाब से उसे नए सिरे से लिखा।
1609 में जे. फेनिचियो नाम के मिशनरी ने लिब्रो डा सैटा नाम की किताब लिखी। इसमें विष्णु के दशावतार और रामकथा की पूरी डिटेल थी। ये वाल्मीकि रामायण पर आधारित थी।
17वीं शताब्दी में ए. रोजेरियुस नाम के डच पादरी 11 साल भारत में रहे थे। 1651 में उनकी किताब द ओपन दोरे में रामकथा थी। ये भी वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित थी। इसमें राम के अवतार से उनके रावण वध के बाद अयोध्या लौटने तक की कहानी थी।
1658 में श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ इलाकों में छह साल तक रहे पी. बलडेयुस ने डच भाषा में लिखी किताब आफगोडेरैय डर ओस्ट इण्डिशे हाइडेनन में राम जन्म से लेकर उनके स्वर्गारोहण तक की कहानी है। इसमें सीता की अग्निपरीक्षा का भी जिक्र है।
18वीं शताब्दी में एम. सोनेरा नाम के एक फ्रेंच यात्री ने बोयाज ओस इण्ड ओरियंटल नाम की किताब लिखी थी, जिसमें एक छोटी राम कथा है। इस कथा के मुताबिक राम 15 साल की उम्र में अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ वनवास पर गए थे।
ऐसे ही 16वीं से 19वीं शताब्दी के बीच करीब 15 अलग-अलग यात्रियों ने भारत घूमने के बाद अपनी किताबों में राम कथा का जिक्र किया है। इनमें से ज्यादातर वाल्मीकि रामायण से ही प्रेरित हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी, पुर्तगाली और डच भाषा की किताबों में राम का जिक्र मिलता है।
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कौन थे फादर कामिल बुल्के
फादर कामिल बुल्के 1 सितंबर 1909 को बेल्जियम में पैदा हुए। वहीं सिविल इंजीनियरिंग में BSc करने के बाद 1935 में भारत आए। कुछ समय वे दार्जिलिंग में रहे। यहां उन्होंने तुलसीदास की रामचरितमानस के बारे में सुना। रामचरितमानस से उन्हें काफी लगाव हुआ और इसी पर उन्होंने पढ़ाई शुरू की। 1941 में वे पादरी हो गए। उन्हें सबसे ज्यादा लगाव हिंदी साहित्य और तुलसीदास से था। 1945 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से उन्होंने हिंदी साहित्य की डिग्री ली। यहीं से रामकथा में डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
प्रो. बुल्के की लिखी हिंदी-अंग्रेजी डिक्शनरी को सभी जगह मान्यता मिली। रामकथा पर उनकी रिसर्च को ही किताब के रूप में पब्लिश किया गया जिसका नाम था रामकथा का विकास। हिंदी भाषा के विकास और रामकथा पर रिसर्च के चलते 1974 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। 17 अगस्त 1982 को प्रो. बुल्के का निधन हो गया।