वानरराज का बदला – Wanarraj Ka Badla
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – वानरराज का बदला – Wanarraj Ka Badla – Vanararaj’s Revenge
सोमपुर नगर में राजा चन्द्र राज करते थे। उनके पुत्रों को बंदरों से खेलने का बहुत शौक था। इसलिए उन्होनें बंदरों के एक दल को अपने महल में आश्रय दे रखा था। उन बंदरों का सरदार बहुत हो चतुर, बुद्धिमान, दूरदर्शी और नीति शास्त्र में प्रवीण था। वह अपने दल के बंदरों को नीति शास्त्र की कई बाते बताता रहता था। सभी बंदर उसका बहुत मान करते थे। राज्य के पुत्र भी उसका बहुत सम्मान करते थे।
राजा के महल में राजपुत्रों की सवारी के लिए बहुत सारे मेढ़े भी एक थे। उनमें से एक मेढ़ा बहुत ही लोभी और चटोरा था। अपनी जीभ के लोभवश वह रोज चुपके से रसोई में घुस जाता था और वहाँ रखा खाने का सामान खाने लगता था। रसोइये, जो भी लकड़ी का, कांसे का या लोहे का जो भी बर्तन या सामान हाथ में आता उससे मार कर मेढ़े को वहाँ से भगा देते।
भविष्य की आहट
लेकिन वह मेढ़ा बड़ा ढीठ था वह मार खाकर भी अपने चटोरेपन के कारण अपनी करनी से बाज नहीं आता था। रोज-रोज की यह कलह देख कर वानर राज को चिंता होने लगी।
उसने सोचा, “रोज-रोज की इस कलह से एक दिन सारे बंदरों का नाश हो जाएगा। इस मेढ़े की करतूतों से परेशान होकर कभी किसी रसोइये के हाथ में जलती लकड़ी आ गई और उसने उसी जलती लकड़ी से इस मेढ़े पर प्रहार कर दिया तो यह जलने लगेगा। आग से जलते हुए यह अस्तबल की तरफ भागेगा, जिससे फूस से भरा अस्तबल भी जलने लगेगा।”
“अस्तबल में आग लगने से कई घोड़े जल जाएंगे। यह तो सभी वैद्यों को ज्ञात है कि बंदरों की चर्बी से घोड़ों के जलने के घाव जल्दी ठीक होते है। इसलिए उनके घावों के लिए बहुत सारे बंदरों की चर्बी की आवश्यकता होगी। जिस कारण बहुत सारे बंदर मारे जाएंगे।”
उसने सभी बंदरों के बुलाया और उन्हें आगाह करते हुए कहा,
🐒 वानरराज – इस मेढ़े की करतूतों के कारण बंदरों का सर्वनाश हो सकता है। इसलिए हमें जितनी जल्दी हो सके, इस राजमहल का त्याग करके वन में चले जाना चाहिए।
🐵 बंदर – लगता है वृद्ध होने के कारण तुम्हारी बुद्धि भी कमजोर हो गई है। तुम्हारे पास कुछ काम ना होने के कारण तुम्हारा दिमाग ऊलजलूल बातें सोचता रहता है। यह तो सिर्फ तुम्हारी कल्पना ही है, भला एक मेंढ़े के कारण इतने सारे बंदरों का नाश हो सकता है।
🐵 बंदर – हाँ-हाँ, तुम्हारी कोरी कल्पनाओं से डरकर हम दूसरी जगह पर क्यों जाएँ? हमें यहाँ पर राजपुत्रों का प्यार और मीठे-मीठे रसीले फल खाने को मिलते है। हम इतने आराम को छोड़कर वन में भटकने के लिए नहीं जाएंगे।
🐒 वानरराज – (दुखी होकर) थोड़े से आराम और भोजन के लोभ के कारण तुम लोगों की बुद्धि पर पर्दा पड़ गया है। यह सुख तुम सब को बहुत मंहगा पड़ेगा। मैं अपनी आँखों के सामने अपने कुल का सर्वनाश होते हुए नहीं देख सकता। इसलिए मैं तो आज ही वन जा रहा हूँ।
हो गया सत्यानाश
इतना कहकर वानरराज राजमहल छोड़कर वन में चला गया। उसके जाने के कुछ दिनों बाद ही वही बात हो गई जिसकी चेतावनी वानरराज ने सभी वानरों को दी थी। एक दिन मेढ़ा रोजाना की तरह रसोई में गया तो रसोइये ने अपने हाथ में जलती हुई लकड़ी ले रखी थी। मेंढ़े को देखते ही उसने उसी जलती लकड़ी से उस पर प्रहार कर दिया।
जलती हुई लकड़ी से मेढ़े के बालों ने आग पकड़ ली। वह मिमियाता हुआ अस्तबल की तरफ भागा। अस्तबल में जमीन पर जगह-जगह घास-फूस बिखरा हुआ था। वह अपनी आग को बुझाने के लिए जमीन पर लोटने लगा, जिससे वहाँ पड़े घास-फूस में आग पकड़ ली। हवा के वेग से जल्द ही वह आग पूरे अस्तबल में फैल गई।
जब तक राजा के सेवक आग बुझाते तब तक कई घोड़े आग में जलकर मर गए, कुछ की आँखे फूट गई, कुछ घोड़ों अधजली हालत में अपने बंधन तुड़वा कर भाग गए, और कई घोड़ों के शरीर पर जलने के घाव हो गए। अपने घोड़ों की यह हालत देख राजा बहुत दुखी हुआ। उसने पशुचिकित्सा में कुशल वैद्यों को बुलाया और कहा,
🤴🏻 राजा – अस्तबल में आग लगने से हमारे की घोड़े घायल हो गए है। कृपया आप कोई ऐसा उपचार कीजिए जिससे उनके घाव शीघ्र ठीक हो जाए।
👨🏽⚕️ पशुचिकित्सक – महाराज, जलने के घावों को शीघ्र ठीक करने के लिए बंदरों की चर्बी एक रामबाण औषधि है। यदि आप बंदरों का इंतजाम कर दे, तों हम उनकी चर्बी से लेप बनाकर घोड़ों के घावों पर लगा देंगे, जिससे उनके घाव बहुत जल्दी भर जाएंगे।
उनकी बात सुन कर राजा ने अपने सैनिकों को बंदरों को मारकर लाने का आदेश दे दिया। राजा की आज्ञानुसार सैनिकों ने सभी बंदरों को पकड़-पकड़ कर मार दिया। वैद्यों ने उनकी चर्बी से घोड़ों का उपचार किया।
मैं बदला लूँगा
सभी बंदरों के मारे जाने का समाचार वानरराज तक भी पँहुचा। अपने वंश के सर्वनाश का समाचार सुन वह बहुत दुखी हुआ। उसे राजा चन्द्र पर बड़ा क्रोध आया। उसने राजा चन्द्र से अपने वंश के नाश का बदला लेने का प्रण कर लिया। लेकिन वह अकेला तो उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। इसी चिंता में वह एक वन से दूसरे वन में भटकने लगा।
एक बार वह इसी तरह एक वन में भटक रहा था, तो उसे प्यास लगी। वह पानी की तलाश करता हुआ एक तालाब तक पँहुचा। वहाँ पँहुच कर उसने देखा कि उस तालाब के किनारे की जमीन पर मनुष्यों, और जानवरों के आने के निशान तो थे, लेकिन जाने के निशान नहीं थे। यह देखकर उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ और उसका माथा ठनका।
उसने सोचा, “इन पदचिन्हों को देखकर तो ऐसा लगता है कि जो भी यहाँ आया है, वह वापिस नहीं जा पाया है। इसका मतलब इस तालाब में कोई दुष्ट जलचर रहता है, जो यहाँ आने वाले सभी मनुष्यों और जानवरों को मार कर खा जाता है। लेकिन इसका पता कैसे लगाया जाए?”
वाह क्या बात है!
वह विचार करने लगा, तभी उसे एक उपाय सूझा।
उसने एक लंबी लकड़ी ली और तालाब के किनारे एक पेड़ पर चढ़ गया। उसने लकड़ी सहायता से तालब में से एक कमल नाल निकाल ली। फिर उसने उस कमल नाल का एक सिरा तालाब में डाला और दूसरा सिरा अपने मुँह में डालकर पानी पीने लगा। तभी उस तालाब से एक चमकता हुआ कंठहार पहने एक राक्षस बाहर आया और उसे इस तरह पानी पीते देख कर बोला,
👹 राक्षस – आज से पहले इस तालाब पर जो भी पानी पीने आया है, वह जीवित नहीं जा पाया। लेकिन तुमने कमल नाल से पानी पीने उपाय करके अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया है। मैं तेरी इस प्रतिभा से बहुत प्रसन्न हूँ और तुम्हें एक वर देना चाहता हूँ। तुम मुझसे जो चाहो वह माँग लो।
🐒 वानरराज – लेकिन उससे पहले, मैं आपसे कुछ जानना चाहता हूँ।
👹 राक्षस -हाँ, बोलो।
🐒 वानरराज – हे राक्षस राज, आपकी भक्षण शक्ति कितनी है? आप एक बार में कितने जनों को खा सकते है?
👹 राक्षस – मैं इस तालाब का यक्ष हूँ। जल में तो मैं सैंकड़ों, सहस्त्रों या लाखों पशुओं और मनुष्यों को खा सकता हूँ, लेकिन जमीन पर तो मुझे एक गीदड़ भी हरा सकता है।
🐒 वानरराज – एक राजा से मुझे बदला लेना है। यदि तुम मुझे अपना ये कंठहार दे दो, तो मैं तुम्हें उसके सारे परिवार को तालाब में लाकर तुम्हारा भोजन बना सकता हूँ।
कुबेर का खजाना
यक्षराज ने उसे अपना कंठहार दे दिया। वानरराज उस कंठहार को पहन कर राजा के महल में चला गया।
उस कंठहार से निकलने वाली तेज चमक से सारा दरबार जगमगा उठा। यह देख कर राजा ने पूछा,
🤴🏻 राजा – हे वानरराज, तुम्हारे इस कंठहार का तेज तो सूरज के तेज को भी मात कर रहा है। तुम्हें यह कंठहार कहाँ से मिला?
🐒 वानरराज – महाराज, यहाँ से कुछ दूर एक जंगल में कुबेर ने एक गुप्त तालाब बनवाया है। रविवार के दिन सूर्योदय के समय जो भी उस तालाब में डुबकी लगाता है। कुबेर के आशीर्वाद से उसके गले में ऐसा ही कंठहार आ जाता है।
🤴🏻 राजा – (आश्चर्य और अविश्वास से) वानर राज सच में ऐसा भी कोई तालाब हो सकता है? विश्वास नहीं होता!
हाथ कंगन को क्या आरसी!
🐒 वानरराज – जब मैं यहाँ रहता था, तब मुझे किसी के द्वारा इस तालाब के बारे में सूचना मिली थी। इस बात की सत्यता की जांच करने के लिए ही मैं यहाँ से गया था। बहुत ढूँढने पर मुझे वह तालाब मिल गया। मेरे गले में पड़ा यह कंठहार इसका सबूत है। मैं आपको भी ऐसा ही कंठहार दिलवा सकता हूँ। आप किसी को मेरे साथ भेज दीजिए।
🤴🏻 राजा – यदि ऐसी बात है, तो किसी एक को क्यों? मैं खुद अपने परिवार और सेवकों के साथ तुम्हारे साथ चलता हूँ, जिससे एक नहीं बहुत सारे कंठहार मिल जाएंगे।
🐒 वानरराज – जैसा आप चाहे महाराज, फिर तो हमें कल ही उस तालाब पर जाने के लिए निकलना होगा, जिससे हम सही समय पर वहाँ पँहुच जाए।
राजा या राजा के दरबारियों में से किसी को भी यह नहीं सुझा कि पहले इस की इस असंभव सी बात की सत्यता की जांच करवा ली जाए। अति शीघ्र ज्यादा धन पाने के लालच में सभी ने अंधे होकर वानरराज की बातों पर विश्वास कर लिया और तालाब की ओर चल पड़े।
सच ही कहा है तृष्णा सबको अंधा बना देती है, सैकड़ों रखने वाला सहस्त्रों की, सहस्त्रों वाला लाखों की और लाखों वाला करोड़ों की चाह रखता है। मनुष्य बूढ़ा हो जाता है लेकिन उसकी तृष्णा हमेशा जवान रहती है। इसी ज्यादा पाने की तृष्णा ने राजा चन्द्र और उसके परिवार को मृत्यु के मुख में पँहुचा दिया।
वानरराज का बदला
शनिवार रात को ही सब तालाब के पास पँहुच गए और रविवार को सुबह सभी तालाब के पास पँहुच गए। तब वानरराज ने राजा को रोकते हुए कहा,
🐒 वानरराज – रुकिए महाराज, थोड़ा धीरज रखिए, पहले आपके परिवार के लोगों को डुबकी लगा कर कंठहार लेने दीजिए। आप मेरे साथ उस स्थान पर चलिएगा जहाँ पर डुबकी लगाने पर सबसे ज्यादा कंठहार मिलेंगे।
राजा ने वानरराज की बात मान ली। राजा का पूरा परिवार और सेवक तालाब में प्रवेश कर गए और डुबकी लगाई। जब बहुत देर होने पर भी वे सब बाहर नहीं निकले तो राजा चन्द्र ने चिंतित होते हुए वानरराज की तरफ देखा। वानरराज दौड़ कर एक वृक्ष की सबसे ऊँची शाखा पर चढ़ गया और बोला,
🐒 वानरराज – दुष्ट राजा, तुम्हारे सारे परिवार और सेवकों को तालाब में रहने वाले यक्ष ने खा लिया है। तुमने मेरे कुल का नाश किया था इसलिए मैंने तुम्हारे कुल का नाश करके अपना बदला ले लिया है। अपने परिवार के सर्वनाश पर कितना कष्ट होता है इसी का एहसास करवाने के लिए मैंने तुम्हें तालाब में नहीं जाने दिया। अब तुम अपने राजमहल वापस लौट जाओ।
राजा को वानरराज पर और अपनी मूर्खता पर बहुत क्रोध आ रहा था। अपने लालच और मूर्खता के कारण उसने अपने पूरे परिवार का नाश करवा दिया था। अब वह किस मुंह से अपने राजमहल लौटे, उसकी कितनी जग हँसाई होगी? लेकिन फिर भी दुखी मन से राजा चन्द्र वहाँ से चले गए।
🐒वानरराज – राजा के जाने के बाद राक्षस तालाब से बाहर निकला और वानरराज की चतुराई की प्रशंसा करते हुए बोला,
👹 राक्षस – तुम्हारी चतुराई की जितनी प्रशंसा की जाए काम है। तुमने अपने शत्रु को भी हरा दिया, मुझ जैसा मित्र भी पा लिया और कंठहार भी कहीं नहीं गया।
मैंने तो सामान्य नीति का ही पालन किया था। हिंसा का प्रतिउत्तर हिंसा से, दुष्टता का उत्तर दुष्टता से देना ही व्यवहारिक नीति है।
सीख
- लोभ बुद्धि पर पर्दा डाल देता है। बिना सोच विचार करे काम करने वाले को नुकसान उठान पड़ता है।
- बुदधि की धार तलवार से भी ज्यादा तेज होती है, इसकी सहायता से बड़े से बड़े दुश्मन को हराया जा सकता है।
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पिछली कहानी – कोरी कल्पनाओं में खोए रहने वाले ब्राह्मण की कहानी “ब्राह्मण का सपना“
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – विकाल राक्षस के पंजे में फँसे वानर की कहानी “भय का भूत”
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