शेर और सियार – Sher Aur Siyar
पंचतंत्र की कहानियाँ – शेर और सियार – Sher Aur Siyar – The Lion And The Jackal
कभी-कभी ताकतवर के साथ रहते हुए कमजोर को भी बलवान होने का अभिमान हो जाता है। और इसी भ्रम में वो अपने आप को भी नुकसान पँहुचा सकता है। पंचतंत्र की शेर और सियार की कहानी में हमे इसी से जुडी सीख दे जाती है।
कमजोर सियार
बहुत पुरानी बात है काननवन में अल्पमति नाम का एक सियार रहता था। वह छोटे मोटे जानवरों का शिकार करके अपना पेट भर लिया करता था। एक बार वह बीमार पड़ गया और कई दिनों तक शिकार पर नहीं जा सका। इसलिए वह बहुत कमजोर हो गया था।
अब तो वह छोटे-छोटे जानवरों का भी शिकार नहीं कर पाता था, इसलिए वह दिनों दिन और कमजोर होता जा रहा था। एक दिन ऐसे ही वह शिकार के लिए जंगले में भटक रहा था तभी उसने एक शेर को एक भैंसे का शिकार करते देखा।
उसने देखा कि शेर ने एक मोटे से भैंसे का शिकार करके पेट भर कर उसका मांस खाया और बहुत सारा मांस वहीँ छोड़ कर थडी दूर जा कर सुस्ताने लगा। उसने शेर के सोते ही पेट भर कर उस भैंसे का मांस खाया। उसे आज बहुत दिनों बाद पेट भर कर खाने को मिला था।
सियार पर शेर का हाथ
उसने सोचा क्यों ना मैं इस शेर के साथ ही रह जाऊ जिससे मुझे रोज इसका छोड़ा हुआ मांस खाने को मिल जाया करेगा और मुझे शिकार करने की मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और मेरा पेट भी आसानी से भर जायेगा।
यह सोच कर वह शेर के पास ही बैठकर उसके जागने का इन्तजार करने लगा। जब शेर जागा तो वह उसके चरणों में लेट गया। शेर का पेट भरा हुआ था इसलिए उसने उस पर हमला नहीं किया और उससे इस तरह अपने सामने लेटने का कारण पूछा।
तब सियार बोला, “सरकार, मैं बीमारी के कारण बहुत कमजोर हो गया हूँ अपने लिए शिकार भी नहीं कर सकता। इसलिए मैंने सोचा कि मैं अपने-आपको आपके हवाले कर देता हूँ जिससे आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कर ले और मर कर भी मैं आपके काम आ संकू।
शेर ने कहा, “मैं अपने शरण मैं आये जानवर का शिकार नहीं करता।” तो सियार बड़ी चाटुकारिता से बोला, “ तो फिर आप मुझे अपना सेवक ही बना लीजिये मैं आपकी मन लगा कर सेवा करूँगा और आपके द्वारा छोड़ा हुआ मांस खा कर अपना गुजारा कर लूँगा।” शेर को उस पर दया आ गई और उसने सियार को अपना मित्र बनाकर अपने साथ रख लिया।
सियार की तो बल्ले-बल्ले
अब तो सियार के मजे हो गए। वह सारा दिन शेर के साथ घूमता और उसका छोड़ा हुआ मांस खाकर अपना पेट भर लेता। कुछ ही दिनों में वह बहुत मोटा ताजा हो गया। चूँकि वह शेर के साथ ही रहता था तो जंगल के जानवर उसे देख कर ही समझ जाते थे कि शेर कहीं आस-पास ही है और वे उसे देखकर डर कर भाग जाते।
यह देखकर सियार यह समझने लगा कि सब जानवर उससे डर कर भाग जाते है। उसे ये अभिमान हो गया कि अब तो वह भी शेर के समान शक्तिशाली हो गया है।
इसी घमंड में एक दिन उसने शेर से कहा, “अरे मित्र, मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ, आज मैं एक हाथी का शिकार करूँगा और उसको खाने के बाद बचे खुचे मांस को तुम्हारे लिए छोड़ दिया करूँगा।”
शेर उसे अपने मित्र के सामान समझता था इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा नहीं माना बल्कि उसने सियार को बहुत समझाया और ऐसा ना करने को कहा।
अभिमान की सजा
लेकिन सियार कि बुद्धि पर तो घमंड का पर्दा पड़ा हुआ था उसने शेर की एक बात नहीं मानी और वह पहाड़ कि छोटी पर जाकर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर बाद हाथियों का एक समूह नीचे से गुजरने लगा। उसने मुंह उठा कर जोर से आवाज लगाईं जिस तरह से शेर अपने शिकार पर हमला करने से पहले दहाड़ता है और वह एक बड़े हाथी पर कूद गया।
वह हाथी के सर से टकराकर उसके पेरों के पास गिर गया और हाती बिना किसी कि परवाह करके अपनी मतवाली चाल में चलता हुआ उस पर पाँव रखकर आगे बढ़ गया।
उसके पीछे-पीछे उसके समूह के बाकी हाथी भी इसी तरह उस पर पाँव रखते हुए निकल गए। सियार का पूरा कचूमर निकल गया और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए।
पहाड़ के ऊपर से शेर यह सब देख रहा था अपने मित्र को इस तरह से काल का ग्रास बनते देख उसे बहुत दुःख हुआ। लेकिन मुर्ख और घमंडी की ऐसी ही गति होती है।
सीख
घमंडी व्यक्ति कि बुद्धि भी उसका साथ छोड़ देती है। जिस तरह सियार चतुराई ने शेर का साथ पाया उसमे बुद्धि कि कमी नहीं थी लेकिन जब घमंड उसके सर पर चढ़ गया तो उसकी बुद्धि फिर गई उसे अपने घमंड के आगे कुछ दिखाई नहीं दिया और इसका खामियाजा उसे अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।
इसलिए हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए।
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