सूअर, शिकारी और गीदड़ – Suar, Shikari Aur Geedad
पंचतंत्र की कहानियाँ – दूसरा तंत्र – मित्रसंप्राप्ति – सूअर, शिकारी और गीदड़ – Suar, Shikari Aur Geedad – The Pig, The Hunter and The Jackal
.बहुत समय पहले की बात है एक शिकारी शिकार की तलाश में जंगल में गया। वह अपने हाथ में धनुष बयान लिए सतर्कता से चारों और देखते हुए जंगले में आगे बढ़ने लगा। जंगल के अंदर पँहुचने पर उसे एक पहाड़ जैसा बड़ा और अंजन के समान काला सूअर दिखाई दिया। उसे देखते ही शिकारी ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींची और सुअर के पेट पर निशान साधकर तीर चला दिया। तीर बिल्कुल ठीक निशाने पर लगा।
सूअर तीर से घायल हो गया और दर्द से चीखता हुआ तेजी से शिकारी की तरफ दौड़ा। इससे पहले कि शिकारी कुछ समझ पाता सूअर ने अपने तीखे दाँत शिकारी के पेट में चुभा दिए। शिकारी का पेट फट गया और वह उसी समय जमीन पर गिर गया और मर गया। तीर से घायल सूअर भी वहीं उसके पास ही गिर गया और थोड़ी देर में उसने भी दम तोड़ दिया। शिकारी और शिकार दोनों का अन्त हो गया।
तभी भूख से व्याकुल एक गीदड़ शिकार की तलाश में भटकता हुआ वहाँ आया। उसकी नजर जमीन पर गिरे हुए शिकारी और सूअर पर पड़ी। उन्हें मरा देखकर उसे बहुत खुशी हुई। उसने मन ही मन सोचा, “आज तो भगवान की कृपा से बहुत सारा और स्वादिष्ठ भोजन मिला है। बिना किसी विशेष परिश्रम के इतना सारा और स्वादिष्ठ भोजन मिलना जरूर मेरे किसी पूर्वजन्म के पुण्य कर्मों का फल है।”
यह सोच वह सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे उनके पास गया। वहीं पास में ही शिकारी के धनुष बाण भी पड़े हुए थे। इतना सारा भोजन सामने देख कर वह सोचने लगा कि, मेरे सामने इतनी सारी खाने की वस्तुएं पड़ी हुई है। इनका भोग मैं कैसे करूँ?”
तभी उसे याद आया कि बुजुर्गों ने कहा है कि मनुष्य को अपने धन का उपयोग धीरे-धीरे ही करना चाहिये। जिससे अल्प से अल्प धन का भी बहुत समय तक उपयोग किया जा सकता है। अतः मैं भी इनका भोग इस तरह से करुँगा कि मैं इनसे कई दिनों तक अपना पेट भर सकूँ और इनके उपभोग से ही बहुत दिनों तक मेरी प्राणयात्रा चलती रहे। मैं इन सबकों थोड़ा-थोड़ा खाकर कई दिनों तक अपनी पेट पूजा करूँगा।
उसने आगे सोचा, “लेकिन समझ में नहीं आ रहा पहले किसे खाऊँ। ऐसा करता हूँ पहले छोटी-छोटी चीजें खाकर अपना पेट भर लेता हूँ। बाद में मजे से स्वादिष्ट माँस का भक्षण करूंगा।”
यह सोचकर उसने निश्चय किया कि वह सबसे पहले धनुष की डोरी को खाएगा। उस समय धनुष की प्रत्यंचा चढ़ी हुई थी। उसकी डोरी कमान के दोनों सिरों पर कसकर बँधी हुई थी। गीदड़ धनुष के एक सिरे पर बांध डोरी को मुख में लेकर अपने तीखे दाँतों से चबाने लगा।
चबाते-चबाते धनुष की डोरी का वह सिरा टूट गया और बहुत वेग के साथ उसके माथे से टकराया। वह टूटा हुआ सिरा उसके माथे को भेद कर इस तरह ऊपर निकला आया, जैसे माथे पर शिखा निकल आई हो। धनुष की डोरी से घायल होकर वह गीदड़ भी वहीं मर गया।
सीख
ज्यादा लालच या ज्यादा कंजूसी भी अच्छी नहीं होती।
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