स्त्री का भक्त – Stri Ka Bhakt
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – स्त्री का भक्त – Stri Ka Bhakt – The Devotee of Woman
माधोपुर राज्य में अति बलशाली और पराक्रमी राजा नन्द राज्य करते थे। बहुत दूर-दूर तक उसका राज्य फैला हुआ था। उनके वीरता के किस्से चारों ओर फैले हुए थे। मित्र देश के राजा ही नहीं शत्रु राजा भी उनका सम्मान करते थे। उनका एक वररुचि नाम का एक मंत्री था। वह बहुत ही विद्वान और सभी शास्त्रों में पारंगत था।
दोनों में बस एक ही कमी थी, दोनों ही अपनी पत्नियों को बहुत प्रेम करते थे। इतना कि वे उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते थे।
रूठे-रूठे सजन मनाऊँ कैसे?
एक दिन वररुचि की पत्नी मालती उससे किसी बात पर रूठ गई।
🧞♀️ मालती – आजकल मैं देख रही हूँ कि आप मुझ पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते, बस हर वक्त अपने काम में लगे रहते है। लगता है, अब आपकों मुझसे प्रेम नहीं रहा।
🧞 वररुचि – ऐसा मत कहों प्रिय, तुम तो मुझे अपने प्राणों से भी प्यारी हो।
🧞♀️ मालती – तुम तो बस मुझे बातों में ही बहलाते रहते हो। मेरे लिए कुछ नहीं करते, जाओं आज से मैं तुमसे बात नहीं करूँगी।
🧞 वररुचि – प्रिये ऐसा ना कहो, तुम मुझसे बात नहीं करोगी तो मैं जीते जी ही मर जाऊंगा।
पर मालती उससे कुछ नहीं बोली और मुँह फेर कर बैठ गई। वररुचि ने उसे अनेकों प्रकार से मनाने का प्रयत्न किया लेकिन वह नहीं मानी। तब वररुचि ने उससे कहा,
🧞 वररुचि – प्रिये, मैं तुम्हें प्रसन्न करने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ। जो तुम कहोगी मैं करने के लिए तैयार हूँ।
🧞♀️ मालती – यदि ऐसी ही बात है, तो ठीक है! यदि तुम अपना सिर मुंडवा कर मेरे पैरों में गिरकर मुझे मनाओगे, तभी मैं मानूँगी।
तू कहे तो मैं जोगी बन जाऊँ
अपनी पत्नी को मनाने के लिए वररुचि ऐसा करने के लिए भी तैयार हो गए। वह उसी वक्त नाई के पास गए और अपना सिर मुंडवा लिया। वररुचि अपना सिर मुड़वा के रजमहल के सामने से लौट रहे थे तो उन्होंने देखा, राजमहल के शाही बाग में रानी यशोधरा भी राजा नन्द से रूठ कर बैठी हुई है और राजा उसे मनाने का यत्न कर रहे है
🤴🏻 नन्द – प्रिये, तुम मुझसे यूँ रूठा नया करों, मेरे प्राण निकल जाते है।
👸🏻 यशोधरा – आप तो बस मीठी-मीठी बातों से ही मुझे खुश करना चाहते हो। मेरी खुशी के लिये आप कुछ नहीं कर सकते।
🤴🏻 नन्द – नहीं प्रिये ऐसी बात नहीं है, तुम्हारी प्रसन्नता के लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ। तुम तो बस आदेश करों, मेरे दिल की रानी।
👸🏻 यशोधरा – मैं चाहती हूँ आप मेरे लिए घोड़े बन जाइए। मैं आपके मुँह में लगाम लगा कर आपकी सवारी करूँगी और आप मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए दौड़ लगाए।
🤴🏻 नन्द – बस इतनी से बात प्रिये, मैं तुम्हारे लिए घोड़ा तो क्या जोगी भी बन सकता हूँ।
इतना कहकर राजा नन्द उसके सामने घोड़े बन गए और रानी को अपनी पीठ पर बैठाकर अपनी सवारी करवाई। वररुचि ने यह सब देख चुपचाप अपने घर लौट आया। घर आकर उसने पत्नी मालती के पैरों में गिरकर उसे मनाया। उसके ऐसा करने पर मालती भी मान गई। दूसरे दिन वररुचि दरबार में गए। उनके मुंडे हुए सिर को देखकर राजा ने परिहास करते हुए वररुचि से पूछा,
🤴🏻 नन्द – क्यों वररुचि, आपने अपना सिर किस पुण्यकाल में मुंडाया है।
🧞 वररुचि – राजन, मेरे सिर मुँड़ाते हुए वहीं पुण्यकाल था, जिस पुण्यकाल में पुरुष अपने मुँह में लगाम डालकर घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए दौड़ता है।
यह सुनकर राजा नन्द झेंप गए और बहुत लज्जित महसूस किया।
सीख
अपनी पत्नी से प्रेम करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन इतना भी नहीं के आप उसके दास ही बन जाओं। उसकी उचित-अनुचित इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने मान-सम्मान की बलि चढ़ा दो।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
पिछली कहानी – अपने पति के विश्वास को धोखा देने वाली ब्राह्मणी की कहानी “स्त्री का विश्वास”
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