स्त्री का विश्वास – Stri Ka Vishwaas
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – स्त्री का विश्वास – Stri Ka Vishwaas – The Trust of a Woman
एक गाँव में सचिदानन्द नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी नैनावती और अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी पत्नी स्वभाव उसके साथ तो बड़े प्रेम से रहती थी, लेकिन उसके परिवार के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं था। इस कारण परिवार में रोज किसी ना किसी बात पर कलह होती रहती थी।
प्रतिदिन की कलह से तंग आकर सचिदानन्द ने विचार किया कि “इस कलह से बचने का बस एक ही उपाय है कि वह अपने परिवार को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ किसी दूर देश में अपना अलग घर बसा ले।” यह सोच कर वह अपने मां-बाप, भाई-बहिन का साथ छो़ड़कर कर अपनी पत्नी को लेकर घर से निकल गया।
तुम बिन मर जाऊँगा
यात्रा बहुत लंबी थी, रास्ते में घना जंगल था। जंगल में पँहुचने पर नैनावती को बहुत प्यास लगी।
👩🏻🦱 नैनावती – नाथ, मुझे बहुत प्यास लगी है। साथ में लाया हुआ पानी खत्म हो गया है। कहीं से पानी लेकर आइए नहीं तो मैं प्यास से मर जाऊँगी।
👳🏼 सचिदानन्द – यहाँ तो दूर-दूर तक कहीं पानी दिखाई नहीं दे रहा है। यदि तुम चलोगी तो तुम्हारी प्यास और बढ़ जाएगी। इसलिए तुम यहीं बैठो मैं तुम्हारे लिए यहीं पानी लेकर आता हूँ।
इतना कहकर सचिदानन्द नैनावती को वहीं एक पेड़ के नीचे बैठाकर पानी की खोज में निकल गया। बहुत देर तक ढूँढने के बाद उसे एक तालाब दिखाई दिया। उसने पानी पिया और पानी के पात्र को भरकर वापस चल पड़ा। इस कार्य में उसे बहुत देर लग गई।
जब वह पानी लेकर अपनी पत्नी नैनावती के पास पँहुचा तो वह प्यास के मारे मर चुकी थी। यह देखकर सचिदानन्द बहुत दुखी हुआ और जोर-जोर से विलाप करते हुए भगवान से प्रार्थना करने लगा,
👳🏼 सचिदानन्द – नैनावती, तुम मुझे छोड़ कर नहीं जा सकती। तुम्हारे बिना मैं कैसे जीवित रहूँगा? है भगवान, मेरी पत्नि को मुझे वापस लौटा दो नहीं तो मेरे भी प्राण ले लो।
बाँट लेंगे हम आधा-आधा
तभी आकाश में एक रोशनी चमकी और आकाशवाणी हुई,
⚡ आकाशवाणी – सचिदानन्द, मैं तुम्हारे पत्नी प्रेम से बहुत प्रसन्न हूँ, यदि तुम अपनी आयु का आधा भाग इसे दे दोगे तो यह पुन: जीवित हो जाएगी।
👳🏼 सचिदानन्द – है देव, मैं आपको साक्षी मानकर अपनी पत्नी को अपनी आयु का आधा भाग देने के लिए तैयार हूँ। कृपया मेरी पत्नी को पुन: जीवित कर दीजिए।
⚡ आकाशवाणी – तथास्तु!
इतना होते ही नैनावती इस तरह उठ कर बैठ गई जैसे गहरी नींद से जागी हो। उस घटना के बारें में कुछ पता नहीं था। यह देख सचिदानन्द बहुत खुश हुआ। उसने उसे पानी पिलाया और अपनी यात्रा फिर से प्रारंभ कर दी।
उन्हें चलते-चलते शाम हो गई। सचिदानन्द ने नैनावती से कहा,
👳🏼 सचिदानन्द – प्रिये, तुम यहीं रुककर रात में रुकने और सोने का इंतजाम करों, मैं आसपास से खाने का कुछ सामान लेकर आता हूँ।
नैनों से लड़ गए नैन
इतना कहकर सचिदानन्द चला गया। नैनावती वहाँ अकेली रह गई। उसने इधर-उधर देखा तो उसे थोड़ी दूर पर एक कुआं दिखाई दिया। वह पानी लेने के लिए उस कुएं पर गई। वहाँ उसने देखा कि एक लंगड़ा, लेकिन बहुत ही सुंदर नवयुवक रहट चला रहा था। वह उस पर मोहित हो गई। उसने अपना पानी का बर्तन भरा और उससे पूछा,
👩🏻🦱 नैनावती – तुम्हारा नाम क्या है? तुम कहाँ रहते हो?
🙍🏽♂️ लंगड़ा – मेरा नाम सुदर्शन है। मेरा कोई ठिकाना नहीं है। मैं दिन भर इस कुएं पर रहट चलाता हूँ और यहीं पेड़ों पर सो जाता हूँ।
दोनों आपस में हँस-हँस कर बातें करने लगे।
👩🏻🦱 नैनावती – मैं तुम्हारी सुंदरता और मीठी बातों से बहुत प्रभावित हो गई हूँ। मुझे तुमसे प्रेम हो गया है। क्या तुम मेरे साथ रहोगे?
🙍🏽♂️ सुदर्शन – आज से पहले मुझसे किसी ने भी इतने प्यार से बात नहीं की। मैं भी तुमसे प्रेम करने लगा हूँ। मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। लेकिन मेरे तो खुद के रहने का कोई ठिकाना नहीं है। मैं तुम्हें कहाँ रखूँगा।
👩🏻🦱 नैनावती – उसकी तुम चिंता मत करों। तुम मेरे साथ चलों। मेरा पति भोजन की तलाश में पास के गाँव में गया है। मैं उसे तुम्हें अपने साथ रखने के लिए मना लूँगी।
त्रिया चरित्र से पार ना पाया कोई
नैनावती सुदर्शन के साथ वापस अपनी जगह आ गई। थोड़ी देर में सचिदानन्द भी भोजन लेकर आ गया। उसके आने पर नैनावती ने कहा,
👩🏻🦱 नैनावती – प्राणनाथ, यह लंगड़ा बहुत भूखा है। इसे भी थोड़ा स भोजन दे दें?
सचिदानन्द ने उसे भोजन करवा दिया। उसके बाद वे वहीं सो गए। सुदर्शन भी थोड़ी दूर पर जाकर सो गया। सुबह उठने के बाद वे आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान करने लगे तो नैनावती ने बड़े प्यार से कहा,
👩🏻🦱 नैनावती – प्रियतम, इस लँगड़े व्यक्ति को भी साथ ले लो। दो से तीन होंगे तो रास्ता आराम से कट जायगा। तुम जब कहीं जाते हो तो मैं अकेली रह जाती हूँ। बात करने को भी कोई नहीं होता, और अकेले रहते हुए डर भी लगता है। यह हमारे साथ रहेगा तो तुम मुझे छोड़कर बेफिक्र होकर कहीं भी जा सकोगे और मुझे भी बात करने वाला मिल जाएगा।
👳🏼 सचिदानन्द – लेकिन हमारे पास इतना धन नहीं है कि हम इसे अपने साथ ले जा सके। नगर में प्रवेश करने के लिए हमें राजकर देना पड़ेगा। मेरे पास इतना ही धन है कि हम दोनों ही बड़ी मुश्किल से नगर में प्रवेश कर पाएंगे।
👩🏻🦱 नैनावती – नगर में प्रवेश करते समय हम इसे पिटारी में छिपा लेंगे। इस तरह हम आसानी से नगर में प्रवेश कर लेंगे।
सचिदानन्द के बहुत समझाने पर भी नैनवती ने अपनी जिद नहीं छोड़ी तो उसने उसकी बात मान ली।
वफा से बेवफाई
अब उन तीनों ने आगे की यात्रा प्रारंभ कर दी। दो दिनों की यात्रा के बाद शाम के समय वे नगर के निकट पँहुच गए। नगर तक पँहुचते-पँहुचते रात हो गई। नगर का प्रवेश द्वार बंद हो गया था। सचिदानन्द ने कहा,
👳🏼 सचिदानन्द – रात होने के कारण नगर का प्रवेश द्वार बंद हो गया है। आज रात हम नगर के बाहर बने इस कुएं के पास विश्राम करेंगे और कल सुबह जब द्वार खुलेगा तब नगर में प्रवेश करेंगे।
वे नगर के बाहर बने एक कुएं के पास रात गुजारने के लिए रुक गए। सचिदानन्द कुएं की मुंडेर पर सो गया। उसके गहरी नींद में सोने पर नैनावती और सुदर्शन ने मिलकर उसे कुएं में धक्का दे दिया। कुआं सूखा था लेकिन गिरने से सचिदानन्द अचेत हो गया। सुबह होने पर उसे मरा हुआ जान कर दोनों सारा सामान लेकर नगर की तरफ बढ़ गए।
नगर के द्वार पर राज-कर वसूलने की चौकी थी। नैनावती ने सूदर्शन को एक पिटारी में छिपा दिया और उसे लेकर चौकी पर पँहुच गई। अपना कर चुका कर वह पिटारी को घसीटते हुए नगर में प्रवेश करने लगी। इतनी भारी पिटारी को देख कर सैनिकों ने उससे पूछा,
🧙🏻♀️ सैनिक – यह पिटारी तो बहुत भारी है, इस पिटारी में क्या है?
👩🏻🦱 नैनावती – इसमें तो मेरे कपड़े और कुछ सामान है।
🧙🏻♀️ सैनिक – इसे खोलकर दिखाओ।
यह सुनकर नैनावती घबरा गई। उसे इस तरह घबराता देख कर सैनिकों को उस पर शक हो गया और उन्होंने जबर्दस्ती करके पिटारी को खोला तो उस में वह लँगड़ा छिपा बैठा था।
धोखा ही धोखा
सैनिक उन दोनों को लेकर राजा के पास पँहुचे और उसे सारी बात दी। तब राजा ने नैनावती से पूछा,
🤴🏻 राजा – यह लंगड़ा कौन है, और तुम इसे इस तरह पिटारी में छुपा कर क्यों ले जा रही थी?
👩🏻🦱 नैनावती – महाराज, यह मेरे पति सुदर्शन है। हमारे परिवार वालों ने झगड़ कर हमें घर से निकाल दिया। इसलिए हम वह देश छोड़ कर इस नगर में रहने के लिए आए है। हमारे पास इतना धन नहीं था कि हम दोनों का राज-कर दे सकें, इसलिए मैंने इन्हें पिटारी में छिपा लिया था। महाराज, मेरे इस अपराध को क्षमा करके हमें आपके नगर में रहने की अनुमति प्रदान कर दीजिए। भविष्य में आपकों हमसे कोई शिकायत नहीं होगी।
उसकी बात सुनकर राजा ने उन्हें अपने नगर में रहने की अनुमति दे दी।
उधर कुएं में अचेत पड़े सचिदानन्द को होश आया तो वह चिल्ला-चिल्ला कर मदद मांगने लगा। दो दिनों बाद उधर से एक साधु निकला, उसने जब सचिदानन्द के चिल्लाने की आवाज सुनी तो उसे कुएं से बाहर निकाल दिया। सचिदानन्द ने साधु को पूरी बात बताई और उसकी मदद से वह भी उस नगर में पँहुच गया।
अपने साथ हुए धोखे का बदला लेने के वह नगर में नैनावती को ढूँढने लगा। एक दिन नैनावती ने सचिदानन्द को देख लिया। उसने सोचा, “इससे पहले सचिदानन्द उसके खिलाफ कुछ करें, राजा से शिकायत करके इसे मरवा देना चाहिए।” यह सोचकर वह राजा के दरबार में पँहुची और कहा,
👩🏻🦱 नैनावती – महाराज, हमारी सहायता कीजिए, महाराज हमारी रक्षा कीजिए।
🤴🏻 राजा – क्या हुआ, मैं तुम्हारी किससे रक्षा करूँ?
👩🏻🦱 नैनावती – आपके राज्य मैं मेरे पति का पुराना बैरी आ गया है। वह मेरे पति को मार डालेगा। इससे पहले कि वह मेरे पति को मार डाले आप उसे फांसी पर चढ़ा दीजिए या उसे देश निकाला दे दीजिए।
उसकी फरियाद सुनकर राजा ने सैनिकों को सचिदानन्द को दरबार में लाने का आदेश दिया।
मेरी चीज मुझे लौटा दो
थोड़ी देर में सैनिक सचिदानन्द को दरबार में ले आए तो राजा ने उससे पूछा,
🤴🏻 राजा – तुम नैनावती और उसके पति को क्यों मारना चाहते हो?
👳🏼 सचिदानन्द – महाराज, इसका पति वह लंगड़ा नहीं, मैं हूँ महाराज।
👩🏻🦱 नैनावती – नहीं महाराज, यह झूठ बोल रहा है। बहुत दिनों से इसकी नजर मुझ पर थी। हम इस नगर में आ गए और ये भी हमारा पीछा करता हुआ यहाँ आ गया। यह मेरे पति को मारकर मुझ पर अपना अधिकार करना चाहता है।
👳🏼 सचिदानन्द – नहीं, यह झूठ बोल रही हैं, महाराज मैं ही इसका पति हूँ।
🤴🏻 राजा – क्या तुम्हारे पास इसका कोई सबूत है कि यह तुम्हारी पत्नी है।
👳🏼 सचिदानन्द – नहीं, महाराज।
🤴🏻 राजा – इसका मतलब तुम झूठ बोल रहे हो, मैं तुम्हें मृत्यु दंड देता हूँ।
👳🏼 सचिदानन्द – है देव, मैं मरने से पहले चाहता हूँ कि मैंने जो इस स्त्री को दिया है, वह मुझे वापस दिलवा दिया जावे।
🤴🏻 राजा – है देवी, तुमने इस ब्राह्मण से जो भी लिया है, वह इसे वापस दे दो।
👩🏻🦱 नैनावती – मैंने इससे कुछ नहीं लिया है, महाराज।
👳🏼 सचिदानन्द – मैंने देवताओं को साक्षी मानकर इसे कुछ दिया था। यह भी उन्हें साक्षी मानकर मुझे मेरी चीज लौटा दें। मुझे मेरी वस्तु वापस मिल जाएगी।
सचिदानन्द की बात सुनकर राजा ने नैनावती से कहा,
🤴🏻 राजा – मरने वाले की आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी की जाती है। इसलिए तुम ईश्वर को साक्षी मानकर उसकी वस्तु उसे वापस लौटा देने का वचन दे दो।
राजा के कहने पर नैनावती ने सोचा, “एक वचन देने में क्या जाता है, कम से कम इससे पीछा तो छूट जाएगा।” इसलिए उसने वचन देते हुए कहा,
👩🏻🦱 नैनावती – मैं देवताओं को साक्षी को साक्षी मानकर वचन देती हूँ कि इस ब्राह्मण ने मुझे जो कुछ भी दिया है वह उसे वापस मिल जाए।
नैनावती के इतना कहते ही वह मर गई। उसे मार देखकर राजा ने सचिदानन्द से सारी बात बताने को कहा, तब उसने राजा को सर वृत्तान्त विस्तार से बताया। पूरी बात सुनकर राजा ने सचिदानन्द को आदर सहित छोड़ दिया और सुदर्शन को कारावास में डाल दिया।
सीख
- किसी के साथ भी विश्वासघात नहीं करना चाहिए।
- विश्वासघाती का अंत बुरा होता है।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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