बंदर और लकड़ी का खूंटा – Bandar Aur Lakdi Ka Khunta
पंचतंत्र की कहानियाँ – पहला तंत्र – मित्रभेद – बंदर और लकड़ी का खूंटा – Bandar Aur Lakdi Ka Khunta
बहुत समय पहले की बात है एक शहर के पास एक मंदिर का निर्माण हो रहा था। उस मंदिर में लकड़ियों का काम बहुत अधिक था। इसलिए बहुत सारे लकड़ी के लट्ठे यहाँ-वहाँ रखे हुए थे। लट्ठों को चीरने के लिए बहुत सारे मजदूरों को काम पर रखा हुआ था।
दोपहर में खाने का समय होने पर सभी मजदूर तो सभी मजदूर आधे कटे हुए लट्ठों में लकड़ी का खूंटा लगा कर भोजन करने चले गए। जिससे उसमें वापस आरी डालने में आसानी रहे।
मैं तो एक मनमौजी
तभी वहाँ बंदरों का एक दल आया। बंदरों के सरदार ने सभी बंदरों को किसी भी सामान को ना छेड़ने की चेतावनी देते हुए पेड़ों पर चढ़ जाने को कहा। सभी बंदर अपने सरदार की आज्ञा मानकर पेड़ों पर चढ़ गए।
लेकिन उनमें से एक बंदर, जो बहुत ही शरारती था, दूसरों के कामों में टांग अड़ाना उसकी आदत थी। उसे चीजों को छेड़ने में बड़ा मजा आता था।
उसने अपने सरदार की चेतावनी नहीं मानी और वहीं रुक गया और लगा उछल-कूद मचाने। वह कभी एक चीज को छेड़ता तो कभी दूसरी को।
उसने लट्ठे के पास पड़ी आरी को उठाया और लट्ठे पर घिसने लगा। उसमे से किरर-किरर की आवाज आई, जो उसे अच्छी नहीं लगी। उसने गुस्से से आरी को वहीं पटक दिया।
पंचतंत्र की कहानियाँ – Panchtantra ki Kahaniyan
ये क्या है?
तभी उसकी नजर लट्ठे में फँसे खूंटे पर पड़ी। थोड़ी देर तक तो वह लट्ठे और उसमें फँसे खूंटे को गौर से देखता रहा। फिर उसने खूंटे को निकालने की कोशिश की, लेकिन उससे खूंटा हिला ही नहीं, क्योंकि खूंटा लकड़ी के दो पाटों के बीच में कसकर फंसा हुआ था।
दरअसल लकड़ी के लट्ठे के आधे कटे हिस्से मजबूत स्प्रिंग के क्लिप की तरह आपस में जकड़े होते है। जिसके बीच मे कोई वस्तु रख दी जाए, तो वह बुरी तरह से दब जाती है।
तो भाई, जब बंदर मियां से खूंटा नहीं हिला, तो उसके ऊपर उस खूंटे को निकालने की सनक सवार हो गई। वह उछल कर उस लट्ठे पर जा बैठा और लगा जोर आजमाइश करने।
बड़ी देर तक वह अपना पूरा जोर लगाकर उसे निकालने की कोशिश करता रहा। आखिरकार लकड़ी का खूंटा थोड़ा सा हिला। वह खुशी से उछल पड़ा।
फँस गया रे
इसी उछल-कूद में कब वह लट्ठे के दो पाटों के बीच में बैठ गया, उसे पता ही नहीं चला। बल्कि वह तो अपनी सफलता पर खुश होकर और ज्यादा जोर लगाकर खूंटे को निकालने में जुट गया।
आखिर उसे अपने काम में सफलता मिल ही गई, खूंटा उसके हाथ में था। पर ये क्या उसके मुख से खुशी की किलकारी की जगह जोर से चीख निकली। वह दर्द के कराह उठा।
खूंटा निकलने के कारण लट्ठे के दोनों पाट फटाक की आवाज के साथ आपस में जुड़ गए और उसके शरीर का निचला हिस्सा दो पाटों के बीच में बुरी तरह से फँस गया।
उसने अपने आपको निकालने के लिए बहुत जोर लगाया, लेकिन दर्द के मारे तड़प कर रह गया। लट्ठे के पाटों में से निकलने के उसके सारे प्रयास व्यर्थ हो गए और थोड़ी ही देर में ही उसके प्राण पंखेरू उड़ गए।
बंदर और लकड़ी का खूंटा कहानी का वीडियो – Bandar Aur Lakdi Ka Khunta
सीख
जिस काम से कोई मनोरथ सिद्ध ना होता हो, उस काम को नहीं करना चाहिए। व्यर्थ का काम करने से समय तो बर्बाद होता ही है, प्राण जाने का खतरा भी हो सकता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~ **************** ~~~~~~~~~~~~~~~~~
पिछली कहानी – मित्रभेद – सूत्रधार कथा
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – ढोल की पोल
अब एक छोटा सा काम आपके लिए भी, अगर यह कहानी आपको अच्छी लगी हो, तो इस पेज को Bookmark कर लीजिये और सोशल मीडिया जैसे Facebook, Twitter, LinkedIn, WhatsApp (फेसबुक टि्वटर लिंकडइन इंस्टाग्राम व्हाट्सएप) आदि पर अपने दोस्तों को शेयर कीजिए।
अपनी राय और सुझाव Comments Box में जरूर दीजिए। आपकी राय और सुझावों का स्वागत है।