मूर्ख साधु और ठग – Murkh Sadhu Aur Thug
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – मूर्ख साधु और ठग – Murkh Sadhu Aur Thug – The Foolish Sage & Swindler
दोस्तों आज आपके समक्ष प्रस्तुत है, कहानी मूर्ख साधु और ठग। यह कहानी साधु के लालच और एक ठग पर विश्वास करके ठगे जाने के बारे में है। तो चलिए शुरू करते है..
लालची साधु
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव के पुराने मंदिर में एक देवशर्मा नाम का एक साधु रहता था। पूरे गाँव में उसकी बहुत प्रतिष्ठा थी। गाँव के सभी लोग उसका बहुत सम्मान करते थे और उन्हें वस्त्र, धन और खाने-पीने की वस्तुएं अनाज, फल आदि दान में देते थे।
वैसे तो देवशर्मा में सभी बाते बहुत अच्छी थी, लेकिन उसमे एक कमी थी। उसे धन का बहुत लोभ था। इसलिए उसे दान में मिलने वाली सामग्री को वह गाँव वालों से छिपकर बेच देता था। उसने दान सामग्री को बेच-बेच कर बहुत सारा धन इकट्ठा कर लिया था।
धन के मामले में उसे किसी पर भी विश्वास नहीं करता था। उसे हमेशा अपने धन की चिंता लगी रहती कि कहीं कोई उसके धन को चुरा ना ले जाए। इसलिए वो उसे एक पोटली में भरकर सदा अपने पास ही रखता था।
ठग की नजर
देवशर्मा जहां भी जाता, अपनी पोटली को अपने साथ ले जाता। उसने किसी को भनक भी नहीं होने दी कि उसके पास इतना सारा धन है। उसी गाँव में छलिया नामक एक ठग भी रहता था। वह बहुत ही चतुर और चालाक था।
उसने पता लगा लिया था कि देवशर्मा के पास बहुत सारा धन है और वह उस धन को अपनी पोटली में हमेशा अपने पास रखता है। कई दिनों से उसकी नजर देवशर्मा के धन पर थी।
धन को चुराने के लिए वह हमेशा देवशर्मा का पीछा करता रहता था, लेकिन देवशर्मा कभी भी अपनी पोटली को अपने से दूर नहीं होने देता था। तब छलिया ने देवशर्मा से धन छीनने के लिए एक युक्ति निकाली। उसने एक छात्र का भेष बनाया और पहुँच गया देवशर्मा के पास।
शिकार फंस गया
उसने हाथ जोड़कर देवशर्मा से कहा, “मैं आपके ज्ञान से बहुत प्रभावित हूँ। और आपसे शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखता हूँ। कृपया मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।” देवशर्मा ने उसे अपना शिष्य बनाने से मना कर दिया।
लेकिन जब छलिया ने बहुत जिद की और कहा, “हे साधु महाराज, मैं आपको ही अपना गुरु बनाना चाहता हूँ। मैं आपकी बहुत सेवा करूंगा। आपके सारे काम कर दिया करूंगा।” तब देवशर्मा उसकी चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया और उसे अपना शिष्य बनने के लिए राजी हो गया।
देवशर्मा छलिया को अपने साथ मंदिर में ले आया। अब छलिया भी मंदिर में देवशर्मा के साथ रहने लगा। वह देवशर्मा की बहुत सेवा करता। वह मंदिर की सफाई से लेकर देवशर्मा के कपड़े धोने तक का सारा काम करता।
राम-राम जपना
उसकी नजर सदा देवशर्मा की पोटली पर रहती कि कब वह कुछ पल के लिए अपनी पोटली को अपने से दूर करे और वह उसे लेकर नौ-दो-ग्यारह हो जाए। लेकिन देवशर्मा ने उसे ऐसा करने का कोई मौका नहीं दिया।
लेकिन छलिया ने अपना धेर्य नहीं खोया और देवशर्मा की सेवा करता रहा। वह देवशर्मा के साथ खूब पूजा-पाठ करता। देवशर्मा के पास आने-जाने वालों से बहुत मीठा बोलता उनके साथ बड़े आदर से पेश आता। धीरे-धीरे अपने व्यवहार व सेवा से वह देवशर्मा का विश्वासपात्र बन गया।
एक बार पास के गाँव से देवशर्मा को एक अनुष्ठान करवाने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसे उसने स्वीकार कर लिया। नियत तिथि पर देवशर्मा अपनी पोटली और अपने शिष्य छलिया को लेकर अनुष्ठान करवाने के लिए रवाना हो गए।
पराया माल अपना
रास्ते में एक नदी पड़ी। नदी के शीतल जल को देखकर देवशर्मा की उसमें स्नान करने की इच्छा हुई। उसने छलिया को कहा, “पुत्र, चलते-चलते बहुत थकान हो गई है। नदी के शीतल जल में स्नान करने से सारी थकान दूर हो जाती है। इसलिए मैं नदी में स्नान करने जा रहा हूँ।”
इतना कहकर उसने अपनी पोटली छलिया को पकड़ा दी और उसका ध्यान रखने के लिए कहकर नदी में स्नान करने चला गया। छलिया को तो कब से इसी मौके की तलाश थी। जैसे ही देवशर्मा ने नदी में डुबकी लगाई, वह पोटली लेकर वहाँ से चंपत हो गया।
देवशर्मा नदी में स्नान करके बाहर आया तो अपने शिष्य और पोटली को वहाँ ना पाकर उसने अपना माथा पीट लिया।
सीख
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमे बहुत जल्दी किसी अजनबी व्यक्तियों की चिकनी-चुपड़ी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
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तो दोस्तों, “कैसी लगी ये रीत, कहानी के साथ-साथ मिली सीख”? आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा।
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