सूत्रधार कथा – मित्रसंप्राप्ति – Sutradhar Katha – Mitrasmprapti
पंचतंत्र की कहानियाँ – दूसरा तंत्र – मित्रसंप्राप्ति – सूत्रधार कथा – मित्रसंप्राप्ति – Sutradhar Katha – Mitrasmprapti
दक्षिण क्षेत्र के महिलारोप्य नगर के समीप एक वन में बहुत सारे पशु-पक्षी रहते थे। उसी वन में एक विशाल वट वृक्ष (बरगद का पेड़) था। उसकी शाखाओं पर बहुत सारे पक्षी निवास करते थे। उसी पेड़ की एक शाखा पर लघुपतनक नामक एक कौवा अपने घोंसले में रहता था।
एक बार उसने जंगल में एक अनोखी घटना देखी।
शिकारी, कबूतरों के राजा चित्रग्रीव व हिरण्यक चूहे की कहानी – एकता की शक्ति
यह सब देखकर लघुपतनक हिरण्यक की महानता, दयालुता, बुद्धि और कौशल पर मुग्ध हो गया। उसने मन ही मन सोचा, “यद्यपि मेरा यह स्वभाव है कि मैं जल्दी से किसी पर विश्वास नहीं करता और ना ही इतनी शीघ्रता से किसी को अपना मित्र बनाता हूँ। लेकिन इस चूहे हिरण्यक के गुणों से प्रभावित होकर मैं इसे अपना मित्र बनाना चाहता हूँ।”
मुझे अपना दोस्त बना लो
यह सोच कर वह हिरण्यक के बिल के पास गया और चित्रग्रीव की तरह आवाज निकालकर हिरण्यक को पुकारा,
🦅 लघुपतनक – मित्र, बाहर आओं।
हिरण्यक ने सोचा “अब ये मुझे कौन पुकार रहा है? क्या अब भी कोई कबूतर मुक्त होने से रह गया है? लेकिन मैंने तो सभी कबूतरों को बंधन मुक्त कर दिया था और चित्रग्रीव को उसके सभी साथियों सहित विदा कर दिया था। हो ना हो ये कोई और है जो चित्रग्रीव की तरह आवाज निकाल कर मुझे धोखा दे रहा है।
🐭 हिरण्यक – (बिल के अंदर से ही) तुम कौन हो?
🦅 लघुपतनक – मैं लघुपतनक नामक एक कौवा हूँ।
🐭 हिरण्यक – मैं तुम्हें नहीं जानता, इसलिए तुम यहाँ से चले जाओं।
🦅 लघुपतनक – मुझे तुमसे एक जरूरी कार्य है। इसलिए मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ, एक बार बाहर आ जाओ।
🐭 हिरण्यक – तुम मुझसे क्यों मिलना चाहते हो? पहले तुम मुझसे मिलने का कोई प्रयोजन बताओं।
🦅 लघुपतनक – मैंने अभी तुम्हें चित्रग्रीव व उसके साथियों का बंधन काटते हुए देखा है। मैं तुम्हारी मित्रता का कायल हो गया हूँ। मेरी भी इच्छा है कि मेरा भी तुम्हारे समान कोई मित्र हो, इसलिए मैं तुम्हें अपना मित्र बनाना चाहता हूँ। यदि भविष्य में मैं भी किसी विपत्ति में पड़ जाऊँ तो मैं भी तुम्हारे पास आ सकूँ।
🐭 हिरण्यक – तुम्हारी और मेरी मित्रता नहीं हो सकती।
🦅 लघुपतनक – क्यों?
दुश्मन से मित्रता कैसी?
🐭 हिरण्यक – यह तो सर्वविदित है कि चूहे सदा से भी कौवों का प्रिय भोजन रहे है। इसलिए तुम यहाँ से चले जाओं। दुश्मन से मित्रता नहीं हो सकती। मित्रता केवल समान कुल और समान धन वाले से ही करनी चाहिए।
🦅 लघुपतनक – मैं तुम्हारे द्वार पर मित्रता की भीख लेकर आया हूँ। यदि तुम मुझसे मित्रता नहीं करोगे तो मैं यहीं तुम्हारे बिल के सामने अपने प्राण त्याग दूंगा।
🐭 हिरण्यक – मैं तुम्हारी चिकनी-चुपड़ी बातों में नहीं आने वाला। जिस तरह गरम किया हुआ पानी भी आग बुझा सकता है। उसी तरह जो जन्मों का बैरी हो वह कितना भी अच्छा और मीठा क्यों ना बोले नुकसान पँहुचा देता है।
🦅 लघुपतनक – लेकिन आज से पहले तो मेरी और तुम्हारी कोई मुलाकात ही नहीं हुई है तो मैं तुम्हारा बैरी कैसे हो सकता हूँ?
🐭 हिरण्यक – बैरी दो तरह के होते है। पहला सहज बैरी और दूसरा कृत्रिम बैरी। तुम मेरे सहज बैरी हो।
🦅 लघुपतनक – मैं इन दोनों तरह के बैरियों के बारे में नहीं जानता हूँ। कृपया मुझे इनके बारें में कुछ बताओं।
🐭 हिरण्यक – जो शत्रुता किसी कारण से हुई हो वह कृत्रिम शत्रुता होती है, जो कारण का निदान करने पर खत्म हो जाती है। लेकिन सहज शत्रुता कभी खत्म नहीं हो सकती जैसे नेवले और साँप की, आग और पानी की, कुत्ते और बिल्ली की, शाकाहारी और माँसाहरी की। तुम्हारे और हमारे कुल का जन्मों से बैर है। तुम्हारा कुल सदा से ही हमारा भक्षक रहा है। इसलिए मेरी और तुम्हारी मित्रता नहीं हो सकती।
🦅 लघुपतनक – लेकिन यह बैर तो अकारण है। हम पुरानी शत्रुता को भुलाकर मित्र बन सकते है।
🐭 हिरण्यक – दुर्जन और सज्जन की तरह दो विरोधी प्रकृति के जीवों में कभी मित्रता नहीं हो सकती। इसमें कोई बुद्धिमानी नहीं है।
मैं धोखा नहीं दूँगा
🦅 लघुपतनक – दुर्जन की मित्रता मिट्टी के घड़े के समान होती है जो जरा सी चोट पर ही टूट जाती है, जिसे वापस जोड़ा नहीं जा सकता। लेकिन सज्जनों की मित्रता सोने के घड़े के समान होती है जिसे आसानी से तोड़ नहीं जा सकता और टूट भी जाए तो उसे वापस जोड़ा भी जा सकता है।
माना कि मैं दुर्जन हूँ, लेकिन मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैं तुम्हें किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पँहुचाऊँगा। तुम निर्भय होकर मुझसे मित्रता कर सकते हो।
🐭 हिरण्यक –देवताओं ने भी अपने कई शत्रुओं का खात्मा उन्हें अपने विश्वास में लेकर किया था। अविश्वासी दुर्बल को बलवान भी नहीं मार सकता, लेकिन विश्वास में लेकर एक निर्बल भी बलवान को मार सकता है। इसीलिए किसी की कसम पर विश्वास करना समझदारी नहीं है।
लघुपतनक ने हिरण्यक को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन फिर भी वह नहीं माना तो थक हार कर उसने हिरण्यक के सामने एक प्रस्ताव रखा,
🦅 लघुपतनक – ठीक है यदि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है तो कोई बात नहीं। तुम मुझे अपना मित्र मान लो। तुम अपने बिल में बैठे रहना और मैं तुम्हारे बिल के बाहर बैठ कर ही तुमसे बातें कर लिया करूँगा।
🐭 हिरण्यक – ठीक है, लेकिन तुम कभी भी मेरे बिल में घुसने की कोशिश मत करना।
🦅 लघुपतनक – मैं शपथ लेता हूँ कि मैं कभी तुम्हारे बिल में घुसने की कोशिश नहीं करूँगा।
इसके बाद दोनों मित्र बन गए। दोनों रोज घंटों एक दूसरे से बाते करते। कभी लघुपतनक हिरण्यक के लिए खाने के लिए कुछ लाता तो कभी हिरण्यक लघुपतनक को खाने के लिए कुछ देता। धीरे-धीरे दोनों में इतनी घनिष्टता हो गई कि एक दिन भी एक-दूसरे से दूर रहते तो उनका मन नहीं लगता।
अब तुमसे दूर जाना होगा
अब तो हिरण्यक भी अपने बिल से बाहर आकर लघुपतनक से बाते करता। उसके साथ खेलता, दोनों मिलकर खाना खाते। इस तरह उनके दिन मजे से कट रहे थे। लेकिन एक दिन लघुपतनक हिरण्यक से बड़े दुखी स्वर में बोला,
🦅 लघुपतनक – मित्र, लगता है अब इस देश को छोड़कर कहीं और जाना पड़ेगा।
🐭 हिरण्यक – क्यों मित्र ऐसा क्यों कहते हो? ऐसा क्या हो गया जो तुम यहाँ से जाना चाहते हो?
🦅 लघुपतनक – तीन-चार सालों से इस देश में बरसात नहीं में बरसात नहीं होने के कारण भयंकर अकाल पड़ गया है। बिना पानी के अन्न की कमी हो गई है जिससे लोग भूखे मर रहे है। इस कारण लोग पक्षियों को पकड़कर मार-मार कर खा रहे है। अब तक तो मैं भाग्य से बचा हुआ हूँ, लेकिन कब मारा जाऊँ कह नहीं सकता। ऐसे देश में रहने से अच्छा तो यही है कि परदेस में चला जाऊँ।
🐭 हिरण्यक – लेकिन कहाँ जाओगे?
🦅 लघुपतनक – यहाँ से दक्षिण दिशा में एक बहुत ही सघन वन है। वहाँ एक बहुत बड़ा तालाब है। उस तालाब में मंथरक नामक एक कछुआ रहता है, जो तुम्हारे समान ही मेरा परम मित्र है। वहाँ मुझे खाने पीने की भी कोई कमी नहीं होगी और अपने मित्र मंथरक से बातें करते हुए जिंदगी आराम से गुजर जाएगी। लेकिन मुझे तुम्हें छोड़कर जाने में बहुत दुख हो रहा है।
हिरण्यक – यदि ऐसी बात है तो मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ। मुझे भी अब इस जगह से विरक्ति हो गई है। मैं भी अब इस जगह पर नहीं रहना चाहता हूँ।
🦅 लघुपतनक – लेकिन तुम्हें यहाँ किस बात का दु:ख है।
🐭 हिरण्यक – यह बहुत लंबी और दु:ख भरी कहानी है। इसलिए मैं तुम्हें वहाँ पँहुचकर विस्तार से बताऊँगा।
🦅 लघुपतनक – लेकिन तुम मेरे साथ कैसे चलोगे। मैं तो आकाश में उड़कर वहाँ जाऊँगा, लेकिन तुम तो उड़ नहीं सकते।
🐭 हिरण्यक – यदि तुम मुझे जीवित देखना चाहते हो तो मुझे किसी भी तरह अपने साथ ले चलों।
🦅 लघुपतनक – लेकिन कैसे?
🐭 हिरण्यक – तुम्हें तकलीफ तो होगी लेकिन तुम अपनी पीठ पर मुझे बैठाकर अपने साथ ले चलों।
🦅 लघुपतनक – मित्र के लिए तकलीफ कैसी? मैं आठ तरह की उड़ने की क्रियाओं में माहिर हूँ। मैं तुम्हें आराम से अपनी पीठ पर बैठाकर वहाँ ले जा सकता हूँ। अब तुम देर मत करों और मेरी पीठ पर बैठ जाओं।
ये कैसा चमत्कार है?
यह सुनकर हिरण्यक उछल कर लघुपतनक की पीठ पर सवार हो गया और लघुपतनक उसे अपनी पीठ पर बैठ कर धीरे-धीरे उड़ते हुए तालाब तक पँहुच गया। मंथरक ने दूर से देखा कि एक कौआ अपनी पीठ पर एक चूहे को बैठाकर उसकी तरफ आ रहा है।
उसने सोचा, “यह कैसा विचित्र कौआ है जो अपने शत्रु को अपनी पीठ पर बैठाकर ला रहा है। कहीं ये मुझे नुकसान ना पँहुचा दे।” यह सोच कर वह डर गया और जल्दी से भाग कर तालाब में छुप गया।
लघुपतनक ने हिरण्यक को तालाब के किनारे पर उतार दिया और खुद तालाब के किनारे उगे एक पेड़ की एक शाखा, जो पानी में डूबी हुई थी, पर बैठ कर जोर-जोर से आवाज लगाने लगा।
🦅 लघुपतनक – मंथरक ओ मित्र मंथरक, जल्दी से बाहर आओं। देखों तुमसे मिलने तुम्हारा मित्र लघुपतनक आया है।
लघुपतनक की आवाज सुनकर मंथरक बहुत खुश हुआ और खुशी से नाचता हुआ तालाब से बाहर आया। बाहर आते ही उसने लघुपतनक को अपने गले से लगा लिया। तब तक हिरण्यक भी वहाँ आ गया और मंथरक को प्रणाम करके वहीं बैठ गया।
🐢 मंथरक – मित्र, बहुत दिनों से मिलने के कारण मैं तुम्हें पहचान नहीं सका। दूसरा तुम अपने भक्ष्य को अपनी पीठ पर बैठा कर ला रहे थे जिससे मैं डर गया और तालाब में छुप गया। यह चूहा कौन है और तुम इसे अपनी पीठ पर बैठा कर यहाँ क्यों लेकर आए हो?
🦅 लघुपतनक – यह हिरण्यक है। यह तुम्हारे समान ही मेरा परम मित्र है। यह बहुत ही दयालु और गुणी है। मैंने खुद इसकी सज्जनता देखी है इसलिए मैंने इसे अपना मित्र बना लिया है। किसी बात को लेकर इसे अपनी जगह से वैराग्य हो गया है। इसलिए यह भी मेरे साथ यहाँ आ गया।
🐢 मंथरक – इसके वैराग्य का कारण?
🦅 लघुपतनक – मैंने इससे पूछा था लेकिन इसने मुझे कहा कि यहाँ आने के बाद बताऊँगा। (हिरण्यक से) मित्र हिरण्यक, अब हम सकुशल यहाँ पँहुच गए है अब तुम विस्तार से अपने वैराग्य का कारण हमें बताओं।
सुनों कहानी
तब हिरण्यक ने उन्हें अपनी और ताम्रचूड साधु की कहानी – साधु और चूहा सुनाई। (इसी कहानी के मध्य ब्राह्मणी और तिल तथा सूअर, शिकारी और गीदड़ की कथा भी है।)
अपनी कहानी सुनाकर हिरण्यक ने कहा,
🐭 हिरण्यक – शायद मेरी आयु शेष थी इसलिए मैं बच गया। मैंने सोचा जो शायद अब यह धन मेरे भाग्य में नहीं है। भाग्य के आगे किसी की नहीं चलती। जो धन भाग्य में लिखा होता है वह मिल ही जाता है, देवता उसे छीन नहीं सकते। जो मेरा है वह मुझे मिल ही जाएगा। जिस प्रकार बनिए के लड़के के भाग्य में जो लिखा था वह उसे मिलकर ही रहा?
🐢 मंथरक – वह कैसे?
तब हिरण्यक ने उन्हें व्यापारी के पुत्र की कहानी “भाग्य बलवान है” सुनाई।
🐭 हिरण्यक – जिसके भाग्य में जो लिखा होता है वह उसे अवश्य मिलता है। इसलिए मुझसे जो छिन गया मैं उसका शोक नहीं करता। जो मेरे भाग्य में होगा वह मुझे मिल ही जाएगा। लेकिन मुझसे अपने साथियों का तिरस्कार सहन नहीं हो रहा था। मुझे उस जगह से वैराग्य हो गया। इसी बीच लघुपतनक मेरा परम मित्र बन गया। इसके के साथ रहने से मेरे मन को शांति और प्रसन्नता मिलती है। इसलिए मैं लघुपतनक के साथ यहाँ चला आया।
मिलजुल कर रहेंगे
🐢 मंथरक – तुम सही कह रहे हो। लघुपतनक तुम्हारा परम मित्र है, जिसने भूख से व्याकुल होते हुए भी तुम्हें नहीं खाया। बल्कि तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर इतनी दूर लेकर भी आया है। सुख के समय में तो दुश्मन भी मित्र बन जाते है, लेकिन विपत्ति के समय जो साथ निभाए वहीं सच्चा मित्र होता है।
कई बार ऐसा भी होता है कि परम मित्र द्वारा भी नाश हो जाता है और घोर शत्रु भी रक्षा कर देता है। वैसे माँस खोर कौवों और जलचरों के मध्य मित्रता नीति विरुध्द है। लेकिन फिर भी मुझे लघुपतनक पर पूर्ण विश्वास है।
तुम्हारा धन नष्ट हो गया है, इसलिए दुखी मत हो। वैसे भी धन बादल की छाया, दुर्जन की प्रीति, पके हुए फल और जवानी की तरह क्षणिक सुख ही प्रदान करता है। कष्टों से संचित और संरक्षित किया हुआ धन मृत्यु के बाद यहीं छूट जाता है। यह परलोक में पाँच कदम भी साथ नहीं देता। परलोक में तो संचित किए हुए पुण्य कर्म ही साथ जाते है।
जितने कष्ट सहकर मनुष्य धन कमाता और उसका संचय करता है, उसके सौवें हिस्से के बराबर कष्ट सहकर भी यदि धर्म करके पुण्य संचित किए जाए तो मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए बुद्धिमान पुरुष धन का संचय करने के स्थान पर पुण्यों का संचय करते है।
तुम लघुपतनक के मित्र हो, इस नाते तुम मेरे भी मित्र हुए। अब बिना कोई चिंता करे इस तालाब के किनारे आराम से रहो। हम तीनों मित्र मिलकर अपना जीवन निर्वाह कर लेंगे। तुम यह सोच कर दुखी मत रहो कि तुम्हारा धन नष्ट होने के कारण तुम्हें परदेस में रहना पड़ रहा है।
तुम्हारे जैसे बुद्धिमान और मीठा बोलने वाले प्राणी के लिए देश हो या परदेस कहीं भी धन कमाना मुश्किल नहीं है। वैसे भी यदि भाग्य में धन ना हो तो वह मिलकर भी नष्ट हो जाता है। अभागा आदमी तो धन को संचित करके भी उसका उपभोग नहीं कर पाता। ठीक उसी तरह, जिस तरह सोमिलक नहीं कर पाया था।
🐭 हिरण्यक – यह सोमिलक कौन था?
तब मंथरक कछुए ने हिरण्यक को अभागे बुनकर सोमलिक की कथा “अभागा बुनकर” सुनाई। (इसी कहानी के मध्य “बैल और गीदड़“ की कथा भी है।)
कहानी सुनाने के बाद मंथरक ने हिरण्यक से कहा,
🐢 मंथरक – इसलिए तुम्हें धन के लिए दुखी नहीं होना चाहिए। जिस धन का उपयोग ही ना किया जा सके ऐसा धन किस काम का। तुम्हारा धन तो वैसे भी जमीन में गढ़ा हुआ था, जिसका तुम उपयोग भी नहीं कर सकते थे। धन की तीन गतियाँ होती है, भोग, दान और नाश।
यदि धन का भोग या दान नहीं किया जाए तो उसका नाश ही होता है। संसार में दान से बड़ा कोई खजाना नहीं है, शांति के समान कोई गहना नहीं है और संतोष के समान कोई धन नहीं है। इसलिए तू संतोष रूपी धन को अपना।
🦅 लघुपतनक – हाँ मित्र, तुम जो मंथरक कह रहा है उसे मानो। संसार में मीठा बोलने वाले मित्र तो बहुत मिल जाते है, किन्तु अप्रिय लेकिन हितकारी बोलने वाले ही सच्चे मित्र होते है।
तुम्हारा स्वागत है!
अभी वे सब ये बातें कर ही रहे रहे कि उन्होंने किसी के दौड़ कर उधर आने की आवाज सुनी। आवाज को सुनकर तीनों घबरा गए। मंथरक जल्दी से तालाब में घुस गया, हिरण्यक भाग कर पेड़ की कोटर में घुस गया और लघुपतनक उड़कर पेड़ की शाखा पर जाकर बैठ गया।
पेड़ की शाखा पर से लघुपतनक ने देखा कि एक हिरण दौड़ता हुआ आया और तालाब के किनारे पर खड़ा होकर हाँफता हुआ पीछे देखने लगा। उसे देखकर लघुपतनक ने कहा,
🦅 लघुपतनक – मित्र मंथरक बाहर आ जाओ, घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह तो एक हिरण है जो पानी पीने के लिए तालाब पर आया है।
उसकी बात सुनकर मंथरक और हिरण्यक बाहर आ गए। उन्होंने तालाब के किनारे खड़े हिरण को देखा।
🐢 मंथरक – यह हिरण बार-बार पीछे मुड़ कर पीछे देख रहा है और डरा हुआ भी है। इसलिए मुझे लगता है कि यह प्यासा नहीं है। यह किसी से अपनी जान बचाकर भागता हुआ इधर आया है। तुम जाकर पता लगाओ कि यह किसके भय से यहाँ भाग कर आया है और वह अब भी इसका पीछा कर रहा है या नहीं।
🦅 लघुपतनक – ठीक है मित्र।
इतना कहकर लघुपतनक वहाँ से चला गया। हिरण उनकी बातचीत सुनकर उनके पास आ गया। उसे अपने पास आया देख कर मंथरक ने उससे पूछा,
🐢 मंथरक – तुम कौन हो और यह इस तरह घबराकर भागते हुए यहाँ क्यों आए हो?
🦌 चित्रांग – मंथरक, मैं चित्रांग हूँ। मैं जंगल में घास चर रहा था। तभी वहाँ एक शिकारी आ गया और उसने मुझ पर बाणों की वर्षा कर दी। मैं किसी तरह उसके बाणों से बचता हुआ भाग कर इधर आ गया। मुझे डर है कि वह शिकारी मेरा पीछा करते हए यहीं ना आ जाए।
तुम बहुत बुद्धिमान लगते हो जो मुझे देखकर ही जान गए कि मैं अपनी जान बचाते हुए यहाँ आया हूँ। इसलिए तुम ही मेरी रक्षा कर सकते हो। जल्दी से मुझे कोई ऐसी जगह बताओं जहाँ शिकारी ना पँहुच सके?
🐢 मंथरक – दुश्मन से बचने के दो ही उपाय होते है, या तो अपने हाथों से उसका सामना करों या अपने पैरों से भाग कर अपनी जान बचा लो। शिकारी का सामना तुम कर नहीं सकते इसलिए इससे पहले कि शिकारी यहाँ तक पँहुचे तुम घने जंगल में चले जाओ।
तभी लघुपतनक वहाँ आ गया और बोला,
🦅 लघुपतनक – मंथरक, अब घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है। मैंने देखा कि उस शिकारी को दूसरा शिकार मिल गया है और वह उसे लेकर वापस चला गया है। चित्रांग अब वापस अपने घर जा सकता है।
🐢 मंथरक – चित्रांग, शिकारी चले गए है, अब तुम अपने घर जा सकते हो।
🦌 चित्रांग – धन्यवाद, मैं आप लोगों की मित्रता देख पर बहुत प्रभावित हुआ हूँ। क्या मैं भी आपकी मित्र मंडली में शामिल हो सकता हूँ?
🐢 मंथरक – हाँ-हाँ, क्यों नहीं, हमारी मित्र मंडली में तुम्हारा स्वागत है।
मंथरक, लघुपतनक, हिरण्यक और चित्रांग की मित्रता की कहानी – सच्ची मित्रता
इसके बाद से चारों मित्र उस तालाब के किनारे हँसते-खेलते हुए अपने दिन बिताने लगे।
सीख
- जो विपत्ति में साथ ना छोड़े वहीं सच्चा मित्र होता है।
- लालच बुरी बला है।
- जो भाग्य में होता है उसे कोई छीन नहीं सकता।
- बुद्धिमानी और एकता की शक्ति से बड़े से बड़े दुश्मन को हराया जा सकता है।
- मित्रता में बड़ी शक्ति होती है। बुद्धिमान व्यक्ति को जीवन में सदा सच्चे मित्र बनाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। संकट के समय बिना किसी स्वार्थ के अपने मित्र का साथ देना चाहिए।
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पिछली कहानी – मूर्ख मित्र
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
अगली कहानी – शिकारी, कबूतरों के राजा चित्रग्रीव व हिरण्यक चूहे की कहानी – एकता की शक्ति
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