साधु और चूहा – Sadhu Aur Chuha
पंचतंत्र की कहानियाँ – दूसरा तंत्र – सूत्रधार कथा – साधु और चूहा – Sadhu Aur Chuha – The Sage And The Rat
दक्षिण देश में महिलरोप्यम नामक नगर के पास भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर था। ताम्रचूड नामक एक ब्राह्मण साधु वहाँ रहकर मंदिर की देखभाल करते थे। वे प्रतिदिन सुबह भिक्षा मांगने के लिए नगर में जाते और शाम को आकर भिक्षा से मिले अन्न में से अपनी आवश्यकतानुसार अन्न निकालकर अपना भोजन करते।
बाकी बचे हुए अन्न को एक पात्र में रखकर खूंटी पर टांग देते। दूसरे दिन सुबह उस अन्न को वे मंदिर की साफ सफाई व सजावट का कार्य करने वाले कर्मचारियों में बाँट देते थे।
उसी मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर एक दुर्ग का खंडहर था। वहाँ पर चूहों की एक बस्ती थी और बहुत सारे बिल बने हुए थे। उन्हीं में से एक बिल में मूषकराज हिरण्यक रहता था। वह एक ही छलांग में बहुत ऊंचाई तक कूद सकता था। एक बार उसके साथी चूहे उसके पास गए और उससे बोले,
ये क्या हो रहा है?
🦏 एक चूहा – मूषकराज, यहाँ पास ही शिव मंदिर में एक ब्राह्मण के पास बहुत सारा अनाज है, लेकिन वह उस अनाज को ऊंची खूंटी पर टांग कर रखता है। बहुत कोशिश करने पर भी हम इतनी ऊंची छलांग नहीं लगा पाते।
🐭 हिरण्यक – तो तुम सब मुझसे क्या चाहते हो?
🐀 दूसरा चूहा – हम जानते है आपके पास भोजन की कोई कमी नहीं है। लेकिन हमारी सहायता के लिए आप उस पात्र से अन्न चुराने में हमारी मदद करिये। आप उस पात्र तक आसानी से पँहुच सकते है और आपकी कृपा से हमें भी रोजाना पेट भर कर भोजन मिल जाएगा।
🐭 हिरण्यक – यदि ऐसा है तो ठीक है। तुम मुझे उस मंदिर तक ले चलों।
हिरण्यक उनकी प्रार्थना स्वीकार करके उसी रात उनके साथ मंदिर में पँहुच गया और एक ही छलांग में उस पात्र तक पँहुच गया। उसने पात्र में से बहुत सारा अनाज नीचे गिरा दिया। उसके साथी अनाज को अपनी बस्ती में ले गए। हिरण्यक ने अपने साथियों के साथ पेटभर कर भोजन किया। दूसरे दिन जब ताम्रचूड ने अपना पात्र देखा तो उसे उसमें अन्न कम लगा, लेकिन उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
अब तो हिरण्यक रोज रात को अपने साथियों के साथ मंदिर में जाता और सब पेटभर कर अन्न खाते और लौट जाते। रोज-रोज पात्र में अन्न कम देख कर ताम्रचूड का माथा ठनका। एक रात को उसने जागकर पता लगा लिया कि एक चूहा अपने साथियों के साथ उसके अन्न को चुरा लेता है।
तू डाल-डाल मैं पात-पात
उसने इस चोरी को रोकने के लिए अपने पात्र को और ऊंचा बांध दिया लेकिन फिर भी चूहा उसका अन्न चुरा लेता। एक दिन ताम्रचूड नगर से एक बांस का डंडा लेकर आ गया और सारी रात उस डंडे से उस पात्र को खड़खड़ाता रहा। बांस से लगने के डर से हिरण्यक पात्र तक नहीं जा पाया।
अब हर रात को ताम्रचूड और हिरण्यक में चूहे-बिल्ली वाली दौड़ शुरू हो गई। ताम्रचूड डंडे से पात्र को खड़खड़ाता रहता और जैसे ही उसे नींद आ जाती, हिरण्यक जल्दी से अन्न की चोरी कर लेता। ऐसा की दिनों तक चलता रहा। ताम्रचूड चूहे से परेशान हो गया था। उसे उससे छुटकारा पाने का कोई उपाय नहीं मिल रहा था।
एक दिन वृहत्स्फिक नामक सन्यासी कुछ दिनों के लिए ताम्रचूड का अतिथि बनकर मंदिर में आया। ताम्रचूड ने उसको भोजन आदि खिलाकर उसका यथोचित आदर सत्कार किया। रात में दोनों आपस में धर्म-कर्म की बातें करने लगे।
लेकिन ताम्रचूड का बातचीत के दौरान भी बांस से उस पात्र को बांस के डंडे से खड़खड़ाने का कार्यक्रम चालू रहा। ताम्रचूड का ऐसा करटे देख कर वृहत्स्फिक को लगा कि ताम्रचूड उसकी बातों को अनसुना कर रहा है। उसने इसे अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर कहा,
🧔 वृहत्स्फिक – ताम्रचूड, मैं देख रहा हूँ कि तुम मेरी बात ध्यान से ना सुनकर मेरा अपमान कर रहे हो। जहाँ मान ना हो वहाँ एक क्षण भी नहीं रुकना चाहिए। इसलिए मैं अभी यहाँ से जा रहा हूँ।
कुछ तो बात है
🧔🏻 ताम्रचूड – (विनम्रता से उसे रोकते हुए) मित्र, तुम गलत समझ रहे हो। मेरा तुम्हारा अपमान करने का कोई इरादा नहीं था। दरअसल मैं एक चूहे से अपना अन्न बचाने के लिए यह सब कर रहा था। दरअसल एक चूहा रोज अपने साथियों के साथ आकर मेरा अन्न चुरा के ले जाता है।
मित्र, पता नहीं उस चूहे में ऐसी कौन सी शक्ति है कि वह इतना ऊंचा कूद पाता है। कूदने में तो वह बिल्ली और बंदर को भी मात दे सकता है।
🧔 वृहत्स्फिक – मित्र, हो ना हो इसके पीछे अवश्य ही कोई कारण है। कोई भी कार्य अकारण नहीं होता उसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होता है। जैसे एक ब्राह्मणी धुले व साफ किए हुए तिलों की जगह बिना धुले हुए तिल लेने को तैयार हो गई थी।
🧔🏻 ताम्रचूड – मित्र, तुम किस ब्राह्मणी की बात कर रहे हो?”
तब वृहत्स्फिक ने उसे ब्राह्मणी और तिल की कहानी सुनाई।
कहानी सुनाकर वृहत्स्फिक ने कहा, उस ब्राह्मण का अतिथि मैं ही था और मैं उस समय वृहत्स्फिक भी उस घर के निकट ही भिक्षा मांग रहा था। उसने अपनी आँखों से इस सारे वृतांत को देखा।
🧔 वृहत्स्फिक – मित्र, अब तुम समझ गए होंगे कि कोई भी काम अकारण नहीं होता है। इसलिए हमें किसी भी बात की तह तक जाकर उसके पीछे छिपे कारण को जानने की कोशिश करनी चाहिए। इसलिए हमें भी चूहे की इतना ऊंचे उछलने की ताकत, आत्मविश्वास और चंचलता के पीछे का कारण जानने का प्रयास करना चाहिए। क्या तुम जानते हो उस चूहे का बिल कहाँ है?”
🧔🏻 ताम्रचूड – नहीं मित्र मैं नहीं जानता। वह चूहा पूरे दल-बल के साथ रात को यहाँ आता है और अन्न चुराकर भाग जाता है।
पीछा करों
🧔 वृहत्स्फिक – कल रात हम एक फावड़ा लेकर उस चूहे के दल के पदचिन्हों का पीछा करते हुए उसके बिल तक पँहुचेंगे और असलियत का पता लगाएंगे।
हिरण्यक ने उनकी बाते सुन ली और उसने अपने साथी चूहों को अपने दुर्ग में ना जाकर किसी अन्य स्थान पर चलने के लिए राजी किया। सभी चूहे उसकी बात मानकर उसके साथ चलने लगे। अभी वे थोड़ी दूर ही पँहुचे थे कि सामने से एक बहुत बड़ा बिल्ला आ गया।
इससे पहले वे कुछ संभलते वह चूहों पर टूट पड़ा और बहुत सारे चूहों को मारकर खा गया। हिरण्यक के साथी इसका दोष उसे देते हुए उससे रूष्ठ हो गए। उसके बहुत समझाने पर भी वे उसे छोड़कर दुर्ग में चले गए।
दूसरे दिन ताम्रचूड और वृहत्स्फिक उनके पड़चिन्हों का पीछा करते हुए दुर्ग तक पँहुच गए। उन्होंने फावड़े से वहाँ बने बिलों को खोदना शुरू कर दिया। जब उन्होंने हिरण्यक के बिल को खोदा तो उन्होंने देखा कि उसके नीचे बहुत सारा खजाना गढ़ा हुआ था। खजाना देखकर वृहत्स्फिक ने कहा,
🧔 वृहत्स्फिक – देखा मित्र, मैंने सही कहा था। इस खजाने की गर्मी से ही उसे इतनी ताकत मिल रही थी कि वह बिल्ली और बंदर से भी ज्यादा ऊंचा कूद सकता था। अब हम ये सारा कखजाना अपने साथ ले जाएंगे।
सब बर्बाद हो गया
उन दोनों ने सारा खजाना निकाल लिया और अपने साथ ले गए। उन दोनों के जाने के बाद हिरण्यक वापस अपने दुर्ग पर आया। उसने देखा कि वहाँ चूहों की सारी बस्ती उजड़ चुकी थी और उसके बिल के नीचे छिपा खजाना भी खत्म हो गया था। वह पूरी तरह से टूट गया। वह सोचने लगा, अब मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ? कहाँ जाकर मेरे मन को शांति मिलेगी?
इसी तरह निराशा में भरा हुआ वह मंदिर ही पँहुच गया। उसके पैरों की आहट सुनकर ताम्रचूड ने कहा,
🧔🏻 ताम्रचूड – है भगवान! यह चूहा तो फिर यहाँ आ गया।
वह बांस का डंडा उठाकर पात्र को बजाने लगा।
🧔 वृहत्स्फिक – मित्र, शांति से सो जाओं, अब उस चूहे से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। उसका खजाना छीनने से उसका आत्मविश्वास खत्म हो गया होगा। अब वह इतनी ऊंची छलांग नहीं लगा पाएगा।
यह सुनकर हिरण्यक को गुस्सा आ गया और उसने अपनी पूरी शक्ति लगाकर पात्र पर छलांग लगाई लेकिन वह पात्र तक तो क्या उसकी आधी ऊंचाई तक भी नहीं पँहुच पाया। उसने दो तीन बार पात्र तक पँहुचने की कोशिश की लेकिन वह असफल रहा।
यह देखकर वृहत्स्फिक ने ताम्रचूड से कहा,
🧔 वृहत्स्फिक – देखा मित्र, यह चूहा दो अंगुल तक की ऊंचाई तक भी नहीं कूद पाया। जिस तरह साँप कितना ही जहरीला हो दाँत के अभाव में वह कुछ नहीं कर सकता, उसी तरह धन के अभाव से इस चूहे का आत्मविश्वास खो गया है। अब यह कुछ नहीं कर पाएगा।
सुख के सब साथी दुख में न कोय
उसकी बात सुनकर हिरण्यक दुखी मन से धीरे-धीरे चलता हुआ अपने दुर्ग में गया। उसे देखकर उसके अनुचर आपस में कानाफूसी करने लगे,
🦏 एक चूहा – देखो, इस हिरण्यक को, अब इसमें वह शक्ति नहीं रह गई। अब ये हम सबका पालन-पोषण और रक्षा करने में समर्थ नहीं है, बल्कि इसके साथ रहने से तो हम किसी बिल्ली का भोजन बन जाएंगे।
🐀 दूसरा चूहा – हाँ-हाँ, तुम सही कह रहे हो। अब हमें इससे दूर ही रहना चाहिए।
उनकी बात सुनता हुआ हिरण्यक अपने दुर्ग में आ गया। लेकिन उसके साथियों में से कोई भी उसके पास नहीं आया। यह देखकर हिरण्यक ने अपने मन में सोचा, “दरिद्र होना कितना बुरा है। अपने संगी-साथी भी दूर हो जाते है। धन के बिना कोई गति नहीं है।” वह अपने आप को धिक्कारने लगा।
हिरण्यक से अपने साथियों का तिरस्कार सहन नहीं हो रहा था। इसलिए एक दिन उसने सोचा, “मैं एक बार फिर से अपना खजाना पाने का प्रयत्न करता हूँ। फिर इसके लिए मेरी जान ही क्यों ना चली जाए। इस तिरस्कार भरे जीवन से तो मृत्यु ही अच्छी है।”
इस तरह का निश्चय कर हिरण्यक एक बार फिर मंदिर में गया। उसने देखा ताम्रचूड़ और वृहत्स्फिक उसके धन को एक पेटी में डाल कर अपने सिरहाने की तरफ रख कर सोये हुए थे। उन्हें सोया जान वह उस पेटी में से धन ले जाने के लिए एक छिद्र करने लगा। इस आवाज से दोनों जाग गए और लाठी लेकर उसके पीछे दौड़े।
ताम्रचूड ने हिरण्यक सिर पर लाठी से प्रहार किया। लाठी के प्रहार से हिरण्यक बहुत घायल हो गया। उसने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई। सब कुछ खो जाने की निराशा के कारण उसका उत्साह और आत्मविश्वास खत्म हो गया था। वह वहाँ से चला गया और फिर कभी लौटकर उस मंदिर में दुबारा नहीं आया।
ताम्रचूड ने भी चैन की सांस ली और अपने मित्र को धन्यवाद दिया।
सीख
- कोई भी कार्य अकारण नहीं होता उसके पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य होता है। इसलिए हमें किसी भी बात की तह तक जाकर उसके पीछे छिपे कारण को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
- यदि हमारे पास बहुत सारे संसाधन हो तो उसकी ऊर्जा से हमें मानसिक ताकत मिलती है जिससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ जाता है जिससे हम असंभव कार्य भी बड़ी आसानी से कर सकते है। जैसे चूहा हिरण्यक खजाने के दम पर इतनी ऊँची छलांग लगा पाता था, जो की सामान्य चूहे के बस की बात नहीं थी।
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पिछली कहानी – शिकारी, कबूतरों के राजा चित्रग्रीव व हिरण्यक चूहे की कहानी – एकता की शक्ति
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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