उल्लू का अभिषेक – Ullu Ka Abhishek
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – उल्लू का अभिषेक – Ullu Ka Abhishek – The Owl’s Consecration
बहुत समय पहले की बात है, एक जंगल में बहुत सारे पक्षी रहते थे। उनका राजा, वेनतेय नामक गरुड़ था। वह हमेशा वासुदेव की सेवा और भक्ति में लगा रहता था। उसे अपनी प्रजा के सुख-दुख का कोई ख्याल नहीं था। इस बात से दुखी होकर हंस, तोता, बगुला, कोयल, परेवा, चातक, कबूतर, मुर्गा, उल्लू आदि पक्षियों ने आपस में एक सभा की।
हमें दूसरा राजा चाहिए
🦜 तोता – हमारा राजा गरुड़ शक्तिशाली तो है लेकिन भगवान विष्णु की सेवा में रहने के कारण वह हम पर ध्यान नहीं देता। हमारी शिकारियों और जंगली पशुओं से रक्षा का कोई उपाय नहीं करता।
🦉 उल्लू – तुम सही कह रहे हो मित्र, जिस प्रकार बिना नाविक की नौका डूब जाती है उसी प्रकार एक अच्छे राजा के अभाव में उसकी प्रजा का नाश हो जाता है। वह प्रजा का रक्षक नहीं बल्कि भक्षक हो जाता है।
🦢 हंस – हाँ, तुम्हारी बात सही है। ऐसे नाम के राजा से क्या लाभ जो समय आने पर हमारी रक्षा ही ना कर सके। ऐसे राजा का तो त्याग कर देना चाहिए।
🦜 तोता – हाँ, तुम सही कह रहे हो। इसलिए सोच-विचार करके सर्व-सम्मति से हमें एक नया राजा चुन लेना चाहिए।
🦢 हंस – हाँ, तुम्हारा विचार सही है मित्र, पर राजा के रूप में किसे चुना जाए।
🐓 मुर्गा – मेरे ख्याल से तो उल्लू सर्वांग सुंदर है, वह रात में भी देख सकता है। इसलिए उसे ही अपना राजा बना लेना चाहिए।
उल्लू का अभिषेक
सभा में उपस्थित सभी पक्षियों ने उल्लू को अपने राजा के रूप में मानने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी। कई दिनों की बैठक के बाद जंगल के सभी पक्षियों ने सर्व-सम्मति से उल्लू को अपना नया राजा चुन लिया। उल्लू को राजा बनाने का शुभ मुहूर्त निकाला गया।
सभी पक्षी उसके अभिषेक की तैयारियाँ करने लगे। विभिन्न से पवित्र जल मँगाया गया, सिंहासन पर रत्न जड़े गए, स्वर्णघट भरे गए, ब्राह्मणों को मंगल पाठ और वेद-पाठ के लिए को बुलाया गया, नृत्य के लिए नर्तकियों को बुलाया गया।
अभिषेक वाले दिन नियत समय पर ब्राह्मणों ने मंगल पाठ और वेद-पाठ प्रारंभ कर दिया। नर्तकियां नृत्य के लिए तैयार हो गई। उलूकराज राज्यसिंहासन पर आकर बैठ गए। ब्राह्मण उनका राजतिलक करने ही वाले थे कि कहीं से एक कौवा वहाँ आ गया। उसने जब पक्षियों को उत्सव मनाते देखा तो उसने कौतूहलवश पूछा,
🦅 कौवा – अरे भाइयों, इस जंगल में यह समारोह किस खुशी में मनाया जा रहा है।
कौवे को देख कर सभी पक्षी आश्चर्य में पड़ गए, क्योंकि उसे तो किसी ने बुलाया ही नहीं था। सभी पक्षी उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए। उन्होंने कौवे को सारी बात बताई और कहा,
🦜 तोता – गरुड़ वासुदेव की सेवा और भक्ति के कारण हमारी रक्षा और देखभाल में असमर्थ है। इसलिए हमने सर्व-सम्मति से उल्लू को हमारे राजा के रूप में चुना है। आज उन्ही के राज्याभिषेक का समारोह मनाया जा रहा है।
ये क्या अनर्थ कर डाला
उलूक राज के राज्याभिषेक की बात सुन कर कौवे को हँसी आ गई। उसे हँसता देख तोते ने उससे पूछा,
🦜 तोता – आप इस प्रकार हँस क्यों रहे है। क्या हमने कोई गलत बात कह दी?
🦢 हंस – हमने सुना है कि कौआ सब से चतुर और कूटराजनीतिज्ञ पक्षी होता है। आप ही बताओं क्या हमारा चुनाव सहीं है।
🦅 कौवा – (हँसते हुए) मेरी राय में तो यह चुनाव ठीक नहीं हैं। मोर, हंस, सारस, तोता, चक्रवाक जैसे सुन्दर पक्षियों के होते हुए दिवान्ध (दिन में ना देख सकने वाला) और टेढ़ी नाक वाले अप्रियदर्शी पक्षी को राजा बनाना उचित नहीं है। उल्लू तो स्वभाव से रौद्र और वाणी से कटुभाषी होते है।
वैसे भी अभी तक गरुड़ वेनतेय को राजा के पद से हटाया नहीं गया है। जिस प्रकार पृथ्वी पर एक ही सूर्य होता है, जो अपनी आभा से पूरे संसार को प्रकाशित कर उसका कल्याण करता है। एक से अधिक सूर्य होने से पृथ्वी पर प्रलय आ जाती है। सबका विनाश हो जाता है। उसी प्रकार पर एक राजा के होते हुए दूसरे को राज्य-सिंघासन देना विनाश को आमंत्रित करना होता है।
राजा एक ही होता है। उसी के नाम कीर्तन से सारे काम बन जाते है। जिस प्रकार चंद्रमा के नाम से ही खरगोशों ने हाथियों से छुटकारा पा लिया था।
🦢 हंस – वह कैसे?
तब कौवे ने उन्हें हाथी और खरगोश की कहानी “बड़े नाम की महिमा” सुनाई।
🦅 कौवा – यदि तुम उल्लू जैसे नीच, आलसी, कायर, व्यसनी और पीठ पीछे कटुभाषी पक्षी को राजा बनाओगे तो शिघृग खरगोश और कपिंजल तीतर की तरह नष्ट हो जाओगे
🦜 तोता – वह कैसे?
तब कौवे ने उन्हें शिघृग खरगोश और कपिंजल तीतर की कहानी बिल्ली का न्याय सुनाई।
🦅 कौवा – इसीलिए कहता हूँ उल्लू जैसे नीच और व्यसनी और दिवान्ध को अपना राजा बनाओगे तो वह रात के अंधेरे में तुम सबको नष्ट कर देगा। मैंने तुम्हें समझा दिया है, अब आगे जैसा तुम लोग उचित समझों वैसा ही करों।
रंग में भंग पड़ गया
🦜 तोता – मित्रों, यह कौवा ठीक ही कहता है। अब हम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करके फिर मिलेंगे।
यह सुनकर सभी पक्षी उल्लू का राज्याभिषेक किए बिना वहाँ से चले गए। अब वहाँ केवल राजसिंघासन पर बैठकर अपने अभिषेक की प्रतीक्षा करता हुआ उल्लू, उसकी मित्र कृकालिका और कौवा ही रह गए। राज्याभिषेक की प्रतीक्षा करते उल्लू ने अपनी मित्र कृकालिका से पूछा,
🦉 उल्लू – मित्र कृकालिका, मेरा राज्याभिषेक क्यों नहीं हो रहा है। कोई चहल-पहल भी सुनाई नहीं पड़ रही है।
🦃 कृकालिका – एक कौवे ने आकर रंग में भंग कर दिया है। उसके कहने पर सारे पक्षी तुम्हारा राज्याभिषेक किए बिना ही चले गए? केवल यह कौवा ही यहाँ बैठा हुआ है। आओ अब मैं तुम्हें भी तुम्हारे घर छोड़ दूँ।
🦉 उल्लू – (क्रोध में भरकर) ऐ दुष्ट कौवे, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था, जो तूने मेरे कार्य में विघ्न डाल दिया। आज से मेरे और तुम्हारे वंश का बैर पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमेशा बना रहेगा।
इतना कहकर उल्लू कृकालिका के साथ वहाँ से अपने घर चला गया। अब वहाँ बस अकेला कौवा ही रह गया। वह बैठे-बैठे सोचने लगा, “मैंने बिना कारण ही उल्लू से बैर ले लिया। दूसरों के मामलों में अकारण हस्तक्षेप करना और कटु सत्य कहना दु:खप्रद होता है। मैंने ऐसा करके कौवों और उल्लुओं के मध्य कई वंशों तक चलने वाली शत्रुता करवा दी।“
यहीं सोचता हुआ कौवा वह से चला गया।
सीख
- बिना किसी कारण किसी के मामले में ह्रतक्षेप नहीं करना चाहिए।
- ऐसा कटु सत्य भी नहीं बोलना चाहिए जिससे किसी का बुरा हो।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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