हंस और सुनहरा पक्षी – Hans Aur Sunahra Pakshi
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – काकोलूकीयम – हंस और सुनहरा पक्षी – Hans Aur Sunahra Pakshi – The Swan and The Golden Bird
कौशल नगर में चित्ररथ नाम का एक राजा राज्य करता था। उसे पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम था। उसने अपने राज्य में उनके रहने के लिए कई तरह के स्थान बना रखे थे। राजा चित्ररथ के राज्य में पद्मसर नाम का एक तालाब था। उसमें बहुत सारे सोने के हंस रहते थे। ये हंस प्रत्येक छ: महीने में अपने पंख गिरा देते थे। जिन्हें राजा चित्ररथ अपने पास रख लेता था।
मुझे आश्रय चाहिए
इस प्रकार हर छ: महीने में राज्य को बहुत सारे सोने के पंख मिल जाते थे। इसलिए राजा चित्ररथ ने उस तालाब की रक्षा के लिए सिपाही तैनात कर रखे थे। एक बार उस तालाब पर एक बहुत बड़ा सुनहरा पक्षी आया। उसे देख कर उन हंसों ने कहा,
🦢 हंस – तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो?
🐥 स्वर्णपक्षी – मैं दूर देश में रहने वाला एक पक्षी हूँ। मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है, इसलिए भोजन पानी की तलाश में मैं यहाँ आया हूँ। अब कुछ दिनों के लिए मैं यहीं रहूँगा।
🦢 हंस – यह तालाब हमारा है, तुम यहाँ नहीं रह सकते।
🐥 स्वर्णपक्षी – भोजन हवा और पानी पर सभी का हक होता है। इन सब पर किसी एक का अधिकार नहीं हो सकता। मुझे पता है कि यह तालाब इस नगर के राजा चित्ररथ ने बनवाया है। इसलिए यह तालाब उसका ही है। इसलिए तुम मुझे यहाँ रहने से नहीं रोक सकते।
🦢 हंस – हम इस तालाब में रहने के बदले राजा को हर छ: महीने में बहुत सारे सोने के पंख देते है। इसलिए यह तालाब हमारा है और हम तुम्हें यहाँ नहीं रहने देंगे।
इस तरह बहुत देर तक हंसों और उस स्वर्णपक्षी के बीच बहस होती रही। एक बूढ़े हंस ने बीच-बचाव करके कहाँ,
🦆 बूढ़ा हंस – साथियों, यह पक्षी हमारी शरण में आया है। हमें इस पर दया करके इसे आश्रय प्रदान करना चाहिए।
मैं बदला लूँगा
लेकिन हंसो ने उस बूढ़े हंस की भी नहीं सुनी। उन्होंने स्वर्णपक्षी का तिरस्कार करके उसे वहाँ से भगा दिया। स्वर्णपक्षी को बहुत बुरा लगा और उसे उन हंसों पर क्रोध भी आया। उसने मन में सोचा कि ये हंस तो बड़े अभिमानी है। ये ना तो घर आए अतिथि का सत्कार करते है और ना ही शरण में आए प्राणी पर दया। ऐसे लोग को तो सबक सिखाना चाहिए।
उसने मन ही मन हंसों को सबक सिखाने की योजना बना ली। अपनी योजनानुसार वह राजा चित्ररथ के पास गया और उसे प्रणाम करके बोला,
🐥 स्वर्णपक्षी – प्रणाम महाराज, मैं दूर देश में रहने वाला एक पक्षी हूँ। मेरे राज्य में अकाल पड़ जाने के कारण में अब आपकी शरण में आया हूँ। मुझ पर कृपा करके मुझे कहीं रहने की जगह दे दीजिए।
🤴🏻 चित्ररथ – तुम भी स्वर्ण के पक्षी हो। तुम हमारे तालाब पद्मसर में रह लो। वहाँ तुम्हारे ही समान सोने के बहुत सारे हंस रहते है।
🐥 स्वर्णपक्षी – महाराज आपके पास आने से पहले में वहीं गया था। लेकिन उन्होंने मुझे वहाँ से भगा दिया।
🤴🏻 चित्ररथ – लेकिन क्यों?
🐥 स्वर्णपक्षी – वे हंस कहते है, “ये तालाब हमारा है। तुम यहाँ हमारी अनुमति के बिना नहीं रह सकते।” तब मैंने उनसे कहाँ कि “मैं तुम लोगों की शिकायत राजा से कर दूँगा।” तो उन्होंने मुझसे कहा, “राजा हमारा क्या बिगाड़ लेगा। हम राजा को इस तालाब का मूल्य चुकाते है।” और आपका अपमान करने लगे। मैंने उन्हें कहा कि “अपने राजा का अपमान मत करों।” लेकिन वे नहीं माने और उन्होंने मेरा भी तिरस्कार करके वहाँ से भगा दिया। अब मैं आपकी शरण में हूँ राजन्, अब आगे जैसी आपकी मर्जी।”
चित्ररथ कान का कच्चा था। उसने स्वर्ण पक्षी की बातों पर विश्वास कर लिया और क्रोधित होकर अपने सेवकों से बोला,
🤴🏻 चित्ररथ – (गुस्से से) उन हंसों की यह मजाल। सेवकों तुम अभी पद्मसर तालाब पर जाओं और उन अभिमानी हंसों को मारकर यहाँ ले आओं।
करनी का फल
राजा का आदेश सुनकर कुछ सिपाही लाठियाँ और तलवारे लेकर पद्मसर तालाब पर पँहुच गए। सिपाहियों को तलवारें और लाठियाँ ले कर तालाब की तरफ आते देख कर बूढ़े हंस ने कहा,
🦆 बूढ़ा हंस – लगता है उस स्वर्ण पक्षी ने राजा चित्ररथ के कान भर दिए है। इसीलिए राजा के सिपाही हाथों मे तलवारें लेकर इधर ही आ रहे है। इससे पहले कि वे हमें मार डालें, हम सभी को यहाँ से उड़ कर दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए।
🦢 हंस – लेकिन यहाँ से निकल कर हम रहेंगे कहाँ?
🦆 बूढ़ा हंस – इस बात का विचार तुम्हें उस स्वर्णपक्षी का तिरस्कार करने से पहले करना चाहिए था। अब हमारे पास समय बहुत काम है। सिपाही बहुत नजदीक आ गए है। अपनी जान बचाने के लिए जल्दी से उड़ कर कहीं दूर चले जाओं।
उसके इतना कहते ही सभी हंस उस तालाब को छोड़कर उड़ गए। शरणागत पर दया न करने का दंड उन्हें मिल गया था।
सीख
- शरणागत को सदा आश्रय देना चाहिए।
- कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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