रथकार की स्त्री और उसका प्रेमी – Rathkaar Ki Stri Aur Uska Premi
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – रथकार की स्त्री और उसका प्रेमी – Rathkaar Ki Stri Aur Uska Premi – The Charioteer’s Wife And Her Lover
शीलभंगा नगर में एक वीरधर नाम का एक रथकार अपनी पत्नी कामदमनी के साथ रहता था। वीरधर अपनी पत्नि से बहुत प्रेम करता था, लेकिन उसकी पत्नी उससे संतुष्ट नहीं थी। जैसे ही वीरधर काम से बाहर जाता, वह भी पर-पुरुषों से मिलने अपने घर से बाहर निकल जाती और वीरधर के आने से पहले वापस अपने घर आ जाती।
उसके इस कृत्य के कारण पूरे नगरवासी उसकी निन्दा करते। यह बातें वीरधर के कानों में भी पड़ी। उसे इन बातों पर विश्वास नहीं हुआ।
क्या है सच?
लेकिन फिर भी नगरवासियों के मुख से अपनी पत्नी की निन्दा सुनने के बाद उसने अपनी पत्नी की परीक्षा लेने का निश्चय कर लिया। एक दिन उसने अपनी पत्नि से कहा,
🧔🏻 वीरधर – प्रिये, मुझे किसी काम से दूसरे नगर जाना है। मुझे वहाँ कुछ दिन रहना पड़ेगा। तुम मेरे जाने की तैयारी कर दो। मैं कल सुबह जल्दी निकलूँगा, इसलिए रास्ते में खाने के लिए कुछ भोजन भी बना देना।
यह सुनकर कामदमनी मन ही मन बहुत खुश हुई, लेकिन अपने मुख पर दु:ख के भाव लाते हुए वीरधर से बोली,
🤷🏻♀️ कामदमनी – प्राणनाथ, तुम इतने दिनों के लिए बाहर चले जाओगे तो मेरा मन कैसे लगेगा? मैं तुम्हारे बिना अकेली कैसे रहूँगी?
🧔🏻 वीरधर – प्रिये, काम जरूरी नहीं होता तो मैं भी तुम्हें छोड़कर नहीं जाता। तुम दुखी मत होओ, मैं काम खत्म करके जल्द ही वापस आने का प्रयत्न करूँगा।
कामदमनी ने अपनी प्रसन्नता को छुपाते हुए वीरधर के जाने की सारी तैयारी कर दी। सुबह होते ही वीरधर घर से निकल गया। उसके जाते ही कामदमनी ने खूब साज-शृंगार किया और घर से निकल गई। उसने पूरे दिन पर-पुरुषों के साथ विहार करती रही। शाम होने पर वह अपने पूर्व प्रेमी देवदत्त के पास गई और उससे बोली,
🤷🏻♀️ कामदमनी – मेरा पति बहुत दुष्ट है, वह मुझे बहुत सताता है। आज वह किसी काम से नगर से बाहर गया है। तुम आज रात सबके सोने के बाद मेरे घर पर आ जाना।
🧟♂️ देवदत्त – मुझे भी तुम्हारे साथ समय बिताए बहुत समय हो गया है। मैं आज रात को तुम्हारे घर पर जरुर आऊँगा।
इसके बाद वह अपने घर आ गई। उधर वीरधर ने भी पूरा दिन जंगल में गुजारा और शाम होने पर चुपके से अपने घर के शयनकक्ष में शय्या के नीचे जाकर छुप गया। रात होने पर देवदत्त भी उसके शयनकक्ष में आपकर शय्या पर बैठ गया और कामदमनी का इंतजार करने लगा। उसे अपनी शय्या पर बैठा देखकर वीरधर को बहुत क्रोध आया।
उसने सोचा, “मैं अभी इस निर्लज्ज को मार देता हूँ।” वह उसे मारने के लिए बाहर निकलने ही वाला था कि उसने सोचा, “नहीं पहले मुझे मेरी पत्नी और इसके बीच की बातचीत और व्यवहार देख लेना चाहिए। फिर मैं इसे अपनी कुलटा पत्नी के साथ सोते हुए मारूँगा।” यह सोच वह रूक गया और अपनी पत्नी के आने का इंतजार करने लगा।
तभी उसकी पत्नि कामदमनी कमरे मे आई और कक्ष का दरवाजा बंद कर शय्या पर चढ़ने लगी। तभी उसका पैर पलंग के नीचे छिपे वीरधर के शरीर से छू गया। किसी का स्पर्श महसूस होने पर उसने तिरछी नजरों से पलंग के नीचे देखा तो उसे पलंग के नीचे छिपा हुआ वीरधर दिखाई दे गया।
अब देखों, मेरा त्रिया-चरित्र
उसे सारा मामला समझ में आ गया। उसने मन में सोचा, “अच्छा तो मेरे पति ने मेरी परीक्षा लेने के लिए यह नाटक रचा है। लेकिन अब देखों मैं कैसा त्रिया-चरित्र दिखाती हूँ।” उसे इस तरह से सोचते हुए देखकर देवदत्त से रहा नहीं गया। उसने पलंग से उतर कर कामदमनी को अपनी बाहों में लेना चाहा, तो कामदमनी ने उसे अपने से दूर छिटकते हुए कहा,
🤷🏻♀️ कामदमनी – महानुभाव, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, मुझे छूने की कोशिश भी मत करना। मैं एक पतिव्रता और महासती स्त्री हूँ। यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें शाप दे कर तुम्हें भस्म कर दूँगी।
🧟♂️ देवदत्त – यदि यही बात है तो तुमने मुझे यहाँ बुलाया ही क्यों?
🤷🏻♀️ कामदमनी – अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए।
🧟♂️ देवदत्त – वह कैसे?
🤷🏻♀️ कामदमनी – आज सुबह में देवी के मंदिर पूजा के लिए गई थी, तभी वहाँ देववाणी हुई। देवी ने मुझसे कहा, “पुत्री तू मेरी परम भक्त है। मैं तुम्हारा बुरा नहीं देख सकती, लेकिन आज से ठीक एक महीने बाद तुम्हारे पति की मृत्यु हो जाएगी और तुम विधवा हो जाओगी”।
तब मैंने देवी से प्रार्थना की, “हे माँ, जिस तरह आप मेरे पति की मृत्यु के बारे में जानती है उसी तरह उनकी मृत्यु को टालने का उपाय भी जानती होंगी। कृपया मुझे मेरी के प्राण बचाने का कोई ऐसा उपाय बताइए कि मेरे पति की आयु सौ वर्ष की हो जाए।” तब देवी ने कहा, “पुत्री, उपाय तुम्हारे ही हाथ में है”। तब मैंने देवी से कहा, “हे माँ, मुझे जल्दी से वह उपाय बताइए। यदि मेरे प्राण देकर भी मेरे पति के प्राणों की रक्षा हो सके तो मैं खुशी-खुशी अपने प्राण भी न्यौछावर कर दूँगी”।
तब देवी ने मुझसे कहा, “पुत्री, यदि आज की रात तू अपने पलंग पर किसी पर पुरुष के साथ आलिंगन करे तो तुम्हारे पति की मृत्यु टल सकती है”। यह सब कहते हुए उसने देवदत्त को पलंग के नीचे इशारा किया। देवदत्त उसका इशारा समझ गया और समय की गंभीरता को समझते हुए बोला,
🧟♂️ देवदत्त – मैं तुम जैसी पतिव्रता स्त्री के समक्ष नतमस्तक हूँ। आओ, शय्या पर आओं और अपने पति के प्राण बचाने के लिए मेरा आलिंगन करों।
मैं धन्य हुआ
फिर दोनों पलंग पर चढ़ गए और एक दूसरे को अपनी बाहों में भर लिया। यह सब देखकर भी वीरधर बहुत पुलकित (खुश) हुआ। वह पलंग के नीचे से बाहर निकल और बोला,
🧔🏻 वीरधर – तुम धन्य हो देवी, लोगों की बातों में आकर मैंने नाहक ही तुम पर शक किया। इसके लिए मुझे क्षमा करके अपने गले लगा लो। तुम तो पतिव्रताओं में सबसे श्रेष्ट हो। तुमने पर-पुरुष के साथ रहकर भी अपने पतिव्रत-धर्म का पालन किया है। मेरी अकाल मृत्यु को टालने के लिए तुमने कितना बड़ा त्याग किया है। मैं धन्य हुआ।
इतना कहकर उसने कामदमनी को अपने कंधे पर उठा लिया। इसके बाद वह देवदत्त से बोला,
🧔🏻 वीरधर – हे महानुभाव, ये मेरे पुण्य कर्म थे जो आप यहाँ पधारे। आपकी वजह से आज मैंने सौ वर्ष की आयु प्राप्त की है। आप भी मेरे कंधे पर आ जाओं।
इतना कहकर वीरधर ने देवदत्त को भी अपने दूसरे कंधे पर बैठा लिया। दोनों को अपने कंधों पर बैठकर वह खुशी से नाचने लगा। दूसरे दिन वह अपने रिश्तेदारों, पड़ौसियों व नगर के लोगों के पास जा-जाकर अपनी पत्नी और देवदत्त के गुणगान करने लगा। उसकी बात सुनकर लोग पीछे से उसकी मूर्खता पर हँसते।
सीख
सच्चाई अपने सामने होते हुए भी जो मीठे शब्दों के जाल में फँस जाते है उनसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होता है
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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