स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य – Swarth Siddhi Param Lakshy
पंचतंत्र की कहानियाँ – तीसरा तंत्र – कोकोलूकीयम – स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य -Swarth Siddhi Param Lakshy – The Selfishness is Ultimate Goal
दोस्तों, आज आप पढ़ेंगे साँप की सवारी करने वाले मेंढकों की अनोखी कहानी “स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य“। तो चलिए मेरे साथ,
स्वार्थ सिद्धि परम लक्ष्य
गिरनार पर्वत पर एक मन्दविष नामक एक बूढ़ा सर्प रहता था। बूढ़ा होने के कारण उसमें तेजी और चपलता नहीं रही। इस कारण वह शिकार नहीं कर पाता था। एक बार उसने विचार किया कि ऐसा क्या किया जाए कि बिना अधिक परिश्रम किए उसे पर्याप्त भोजन मिल जाए।
बहुत सोच-विचार करने के बाद उसे एक उपाय सूझा। उसी पर्वत की तलहटी में एक तालाब था। वह तालाब मेंढकों से भरा हुआ था। वह उस तालाब के किनारे जाकर उदास और विरक्त सा होकर बैठ गया। उसे बहुत देर तक इस तरह तालाब के किनारे बैठा देखकर एक मेंढक से रहा नहीं गया। उसने अपना मुँह तालाब से बाहर निकाला और मन्दविष से पूछा,
🐸 मेंढक – क्यों तात, मैं देख रहा हूँ, बहुत देर से आप तालाब के किनारे उदास और विरक्त से बैठे हुए है। क्या आपको अपने भोजन का प्रबंध नहीं करना है?
🐍 मन्दविष – मेरा यहाँ इस तालाब पर आने का एक विशेष प्रयोजन है। उसी प्रयोजन को कैसे पूरा करूँ, इसी की चिंता में मैं यहाँ उदास होकर बैठा हुआ हूँ। मेरा कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा है।
मैं शापित हूँ!
🐸 मेंढक – ऐसा कौन सा विशेष प्रयोजन है जिसकी चिंता में आपने खाना-पीना भी छोड़ दिया है?
🐍 मन्दविष – (ठंडी साँस भरते हुए) दरअसल आज सुबह मैं भोजन की खोज में निकला तो मुझे एक मेंढक दिखाई दिया। उसे अपना शिकार बनाने के लिए मैं उसके पीछे भागा तो अपनी जान बचाने के लिए वह मेंढक तालाब के किनारे पढ़ रहे ब्राह्मण कुमारों के बीच जाकर छुप गया। मैं उसकी तलाश में वहाँ गया तो मुझे देख कर वे डर कर भागने लगे। इसी आपा-धापी में एक ब्राह्मण पुत्र का पैर मेरी पूंछ पर पड़ गया और मैंने उसे डस लिया। मेरे विष के प्रभाव से वह ब्राह्मण पुत्र मर गया।
जब ब्राह्मण को इस बात का पता चला तो वह बहुत दुखी हुआ और उसने मुझे श्राप देते हुए कहा, “हे दुराचारी, तुमने मेरे पुत्र को बिना किसी अपराध के डस कर मार डाला। इस दोष के दंडस्वरूप मैं तुझे श्राप देता हूँ कि आज से तुझे मेंढकों की सवारी बनना पड़ेगा, तभी तू जीवित रह पाएगा। अपनी मर्जी से तू शिकार नहीं कर पाएगा। तेरी सेवा से प्रसन्न होकर वे जो कुछ भी देंगे, तू वही खा सकेगा।”
“इसलिए अपनी जान बचाने के लिए मैं तुम लोगों का वाहन बनने के उद्देश्य से यहाँ आया हूँ। क्या तुम मुझे लोग अपनी सवारी बनाना स्वीकार करोगे?”
🐸 मेंढक – लेकिन इसका निर्णय में नहीं हमारे राजा जलपाद ही कर सकते है।
🐍 मन्दविष – तो शीघ्र मुझे अपने राजा से मिलवा दो।
ये तो बड़ी विचित्र बात है!
उसकी बात सुनकर वह मेंढक तालाब में अपने राजा जलपाद के पास गया और उसे सारी बात बताई। सारी बात जानकर जलपाद को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपने मंत्रियों से इस बारें में सलाह ली।
🐸 जलपाद – मैंने सुना है इस तालाब के किनारे एक सर्प रहने आया है। वह किसी का भी शिकार नहीं करता और मेंढकों की सवारी बनना चाहता है। क्या ऐसा हो सकता है?
🐸 मंत्री – महाराज, हमने तो आज से पहले ऐसा कभी देखा ना सुना। लेकिन सुना तो हमने भी है, कि एक साँप दो दिन से तालाब के किनारे बैठा हुआ है। कई मेंढक खेलते हुए उसके पास से निकल जाते है, तब भी वह उन पर हमला नहीं करता। पर सच्चाई का पता तो उसके पास जाने से ही लगेगा, हमें उसके पास जाकर सच्चाई का पता लगाना चाहिए।
अपने मंत्रियों की सलाह पर सच्चाई का पता लगाने के लिए वह सर्प के पास गया और बोला,
🐸 जलपाद – मैं मेंढकों का राजा जलपाद हूँ। मैंने सुना है तुम मेंढकों की सवारी बनने के लिए मुझसे मिलना चाहते हो।
🐍 मन्दविष – हाँ महाराज, मुझे ब्राह्मण ने यही श्राप दिया था। अब तो मैं आप लोगों की सेवा करके ही जीवित रह सकता हूँ। कृपया करके मुझे अपनी सवारी बना लीजिये।
🐸 जलपाद – लेकिन हम तो तुम्हारा भोजन है। हम तुम पर सवार कैसे हो सकते है? कहीं तुम्हारे पास आने पर तुमने हमें खा लिया तो?
🐍 मन्दविष – ब्राह्मण के श्राप के कारण में चाह कर भी शिकार नहीं कर सकता। मुझे आपकी सेवा से जो मिलेगा वहीं खाकर में अपना पेट भर सकूँगा। आप एक बार मेरी सवारी करके तो देखिए, आपको बड़ा मजा आएगा।
🐸 जलपाद – मुझे तुम पर विश्वास नहीं है, इसलिए पहले मैं तुम्हारी सवारी करूँगा। यदि मुझे सब सही लगा, तभी तुम अन्य मेंढकों को अपनी सवारी करवा सकते हो।
🐍 मन्दविष – जैसा आप ठीक समझे महाराज। मैं आपकी सवारी बनने के लिए तैयार हूँ। आप मेरे फन पर चढ़ जाइए, मैं अभी आपको सैर करवाता हूँ।
मजा आ गया
यह सुनकर जलपाद उछल कर उसके फन पर चढ़ गया। सर्प मन्दविष को अपने फन पर बैठाकर चल पड़ा। उसने उसे प्रभावित करने के लिए कई तरह की चाले और करतब दिखाए। कभी वह तेज चलता तो कभी अपनी चाल को एकदम धीमा कर देता। सर्प की कोमल त्वचा के स्पर्श और उसकी सवारी करके जलपाद को बहुत आनंद आया। वह बहुत प्रसन्न होते हुए बोला,
🐸 जलपाद – मन्दविष, तुम्हारी सवारी करके मुझे जो आनंद आया है, वह तो मुझे हाथी, घोड़े, रथ या नाव आदि की सवारी करने में भी नहीं आया। मैं तुम्हें मेंढकों की सवारी बनने की स्वीकृति प्रदान करता हूँ।
🐍 मन्दविष – धन्यवाद महाराज।
उसके बाद जलपाद ने अपने साथियों को भी मन्दविष की सवारी करने की इजाजत दे दी। अपने राजा की इजाजत मिलते ही अन्य मेंढक भी मन्दविष की पीठ पर सवार होने लगे। उनमें उसकी पीठ पर सवार होने की होड होने लगी। जिसको जहाँ जगह मिली वह वहीं चढ़कर बैठ गया। मन्दविष ने किसी को कुछ नहीं कहा और उन्हें लेकर चलने लगा। जिन मेंढकों को उसकी पीठ पर जगह नहीं मिली थी वे भी आनंद से उसके पीछे भागने लगे।
मेंढकों को भी मन्दविष की सवारी करने में बड़ा मजा आया। जलपाद अब तो रोज अपने साथियों के साथ उसकी सवारी करने लगा, उसे इसमें बड़ा आनंद आता था। इसी तरह दो दिन गुजर गए। तीसरे दिन जलपाद अपने साथियों के साथ मन्दविष की सवारी कर रहा था तो उसे मजा नहीं आया क्योंकि वह बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। यह देखकर उसने मन्दविष से पूछा,
🐸 जलपाद – क्या बात है, आज आप इतना धीरे क्यों चल रहे हो?
🐍 मन्दविष – हाँ, मैं बहुत भूखा हूँ। मैंने दो दिनों से कुछ नहीं खाया है, इसलिए कमजोरी के कारण मैं चल नहीं पा रहा हूँ।
मेरी प्रजा को खा लो
🐸 जलपाद – ऐसी बात है तो आज से आप तालाब के छोटे-छोटे मेंढकों को खा लिया कीजिए।
🐍 मन्दविष – महाराज, ब्राह्मण के श्राप के अनुसार आपकी सेवा से मिले पुरस्कार से ही मुझे आहार मिलेगा। आपकी आज्ञा से मैं धन्य हो गया। आपकी कृपा से अब मैं कुछ दिनों तक और जीवित रह सकूँगा।
बस फिर क्या था, मन्दविष को तो मनचाही मुराद मिल गई थी। उसे बिना अधिक परिश्रम किए पेट-भर कर अपना प्रिय भोजन मिलने लगा। अब तो वह रोज जलपाद को अपनी सवारी करवाकर खुश करता और उस तालाब के छोटे-छोटे मेंढकों को खाकर अपना पेट भरने लगा।
पर्याप्त भोजन पाकर कुछ ही दिनों में वह मोटा और शक्तिवान हो गया। अब तो उसके गुदगुदे शरीर पर सवारी करने में जलपाद को और भी आनंद आने लगा। कुछ दिनों में तालाब के सभी छोटे मेंढक खत्म हो गए। तब मन्दविष ने जलपाद को अपनी सवारी करवाते हुए कहा,
🐍 मन्दविष – महाराज, तालाब के सारे छोटे मेंढक शायद कहीं और रहने चले गया है। मुझे तो तालाब में कोई भी छोटा मेंढक दिखाई नहीं देता। अब मैं अपना पेट कैसे भरूँ?
🐸 जलपाद – कोई बात नहीं, तुम इस तालाब के कमजोर मेंढकों को खाकर अपनी भूख शांत कर लिया करों।
सर्वनाश को आमंत्रण
मन्दविष ने अब तालाब के कमजोर मेंढकों को खाना शुरू कर दिया। कुछ ही समय में कमजोर मेंढकों का भी सफाया हो गया। उसने जलपाद से कहा,
🐍 मन्दविष – लगता है महाराज, मैं अब और ज्यादा दिनों तक आपको अपनी सवारी नहीं करवा पाऊँगा?
🐸 जलपाद – लेकिन क्यों?
🐍 मन्दविष – तालाब के कमजोर मेंढक भी शायद ये तालाब छोड़कर चले गए है। भोजन ना मिलने से तो कुछ ही दिनों में मैं मर जाऊँगा।
जलपाद अपने आनंद को गंवाना नहीं चाहते था। इसलिए उसने मन्दविष को अन्य मेंढकों को भी खाने की इजाजत दे दी। वह समझ ही नहीं पाया कि अपने क्षणिक आनंद के लिए वह अपने वंश को नष्ट कर रहा है। इस तरह मन्दविष जलपाद को अपनी सवारी करवाकर प्रसन्न करता रहा और तालाब के मेंढक खाकर अपनी उदरपूर्ति करता रहा। इस तरह कुछ ही दिनों में उसने तालाब के सभी मेंढकों को खाने के बाद उसने जलपाद को भी खा लिया।
इस तरह अपने क्षणिक सुख के लिए जलपाद ने अपने समूल वंश का नाश करवा दिया।
सीख
- अपने क्षणिक सुख के लिए हितैषियों की रक्षा ना करने वाले के कुल का सम्पूर्ण नाश हो जाता है।
- स्वजनों की रक्षा करने से स्वयं की भी रक्षा होती है।
- जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बना लेना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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