मेंढकराज और साँप – Mendhakraj Aur Sanp
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – मेंढकराज और साँप – Mendhakraj Aur Sanp -The Frog and The Snake
एक नगर के बाहर बने कुएं गंगदत्त नामक मेंढक अपने बंधु-बांधवों के साथ रहता था। वह अपने उस कुएं में रहने वाले मेंढकों का सरदार था। कुएं की सत्ता तो उसे विरासत में मिल गई थी, असल में तो वह इसके योग्य नहीं था। लेकिन उसे अपने पद का बड़ा अभिमान था। उसके दरबार में कुछ बहुत ही बुद्धिमान और चतुर मंत्री भी थे, लेकिन वह उनकी कोई बात नहीं मानता था।
वह कई बार बिना सोचे समझे ऐसे निर्णय ले लेता था, जिससे उसकी प्रजा को नुकसान उठाना पड़ जाता था। इस कारण उनमें अक्सर वाद-विवाद होता रहता था। एक बार उसने ऐसे ही अभिमान वश पड़ौसी राज्यों पर आक्रमण करके उन पर अधिकार करने का निर्णय ले लिया। उसके मंत्रियों यहाँ तक कि उसके रिश्तेदारों ने भी उसका विरोध किया। जिससे उसे आपना निर्णय बदलने पर मजबूर होना पड़ा।
दुश्मन का दुश्मन मेरा मित्र
इस बात को उसने अपना अपमान समझ और क्रोध में अपना कुआं छोड़कर बाहर निकल गया। उसके मन में उसका विरोध करने वाले मंत्रियों और रिश्तेदारों के लिए बहुत रोष था। वह उसने बदला लेना चाहता था। वह मन में सोचता हुआ इधर से उधर घूम रहा था कि “कैसे में इन सबका नाश कर दूँ, जिससे मैं निष्कंटक होकर राज कर सकूँ।”
तभी उसे प्रियदर्शन नामक एक भंयकर काला नाग अपने बिल में जाता दिखाई दिया। उसे देख कर उसने अपने मन में विचार किया कि क्यों न इस साँप की सहायता से अपने दुश्मनों का सफाया करवा दूँ। जब अपने दुश्मन बन जाएं तो दुश्मन को अपना बना लेना चाहिए। जिस प्रकार कांटे से ही कांटा निकाला जाता है, उसी प्रकार शत्रु से शत्रु का नाश करवाना चाहिए।“
इतना सोचते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। वह जल्दी से साँप के बिल के पास गया और उसे पुकारते हुए कहा,
गंगदत्त – नागदेव, जरा बाहर आइए।
प्रियदर्शन ने सोचा यह तो किसी सांप की आवाज नहीं लगती। यह मुझे कौन पुकार रहा है। किसी अपरिचित के बुलाने पर उसके पास नहीं जाना चाहिए। कहीं यह कोई सपेरा ना हो जो मुझे पकड़ने के लिए आवाज लगा रहा है। इसलिए उसने बिल के भीतर से ही पूछा,
🐍 प्रियदर्शन – तुम कौन हो और मुझसे क्या काम है?
🐸 गंगदत्त – मैं गंगदत्त हूँ, मेंढकों का सरदार। मैं तुमसे मित्रता करने के लिए आया हूँ।
🐍 प्रियदर्शन – तुम्हारी बात विश्वास करने योग्य नहीं है। मैं तो तुम्हारा शत्रु हूँ, मेंढक तो हमारा भोजन है। कोई स्वयं अपने काल के पास उसका ग्रास बनने के लिए नहीं आ सकता।गंगदत्त – तुम्हारी बात बिल्कुल सही है मित्र, हम और तुम वंशागत शत्रु है। लेकिन मैं अपने स्वजनों से अपमानित होकर उनसे बदला लेने की भावना से तुमसे मित्रता करने के लिए तुम्हारे पास आया हूँ। मेरी दोस्ती से तुम्हें लाभ ही होगा।
हो जाएगी तेरी बल्ले-बल्ले
🐍 प्रियदर्शन – तुमसे मित्रता करने में मेरा क्या लाभ?
🐸 गंगदत्त – मुझसे मित्रता करने पर तुम्हें बिना किसी परिश्रम के रोज पेट भर कर मेंढक खाने को मिलेंगे।
🐍 प्रियदर्शन – वह कैसे?
🐸 गंगदत्त – तुम मेरे साथ मेरे कुएं में चलों। वहाँ रहकर तुम रोज मेरे शत्रु मेंढकों को खा लेना।
🐍 प्रियदर्शन – लेकिन कुएं की दिवारे तो चिकनी और पत्थर की बनी हुई है। मैं उसमें बिल नहीं बना सकता और मैं जलचर साँप भी नहीं हूँ जो पानी में रह सकूँ।
🐸 गंगदत्त – उसकी तुम चिंता मत करों। कुएं में पानी की सतह के पास ही बना हुआ एक कोटर है, जो कई सुरंगों से जुड़ा हुआ है। उस कोटर और उसके रास्तों की जानकारी मेरे अलावा किसी को नहीं है। तुम आराम से उसमें रहना। मैं किसी न किसी बहाने से अपने शत्रुओं को उस कोटर के पास भेज दिया करूँगा। जिन्हे तुम बिना किसी कष्ट के आसानी से मारकर खा सकोगे।
प्रियदर्शन ने अपने मन में सोचा, “कहाँ तो बुढ़ापे की वजह से में पूरे दिन में बड़ी मुश्किलों से कोई चूहा पकड़ पाता हूँ और कहाँ मुझे बैठे बिठाए स्वादिष्ट मेंढक खाने को मिलेंगे। ऐसे अवसर को मुझे गंवाना नहीं चाहिए।” यह सोच वह बिल से बाहर आ गया और गंगदत्त के साथ जाने के लिए तैयार हो गया।
🐍 प्रियदर्शन – ठीक है, मैं तुमसे मित्रता करने के लिए तैयार हूँ। चलों कहाँ चलना है।
🐸 गंगदत्त – लेकिन एक बात का ध्यान रखना मित्र, मैं जिन मेंढकों को खाने के लिए कहूँ केवल उन्हीं को खाना, तुम मेरे शत्रुओं के अलावा किसी को भी खाने की कोशिश मत करना।
🐍 प्रियदर्शन – अब तो तुम मेरे मित्र बन गए हो। तुम चिंता मत करों तुम जिसे मेरे पास खाने के लिए भेजोगे में केवल उन्हें ही खाऊँगा। तुम्हारे साथियों की तरफ तो मैं देखूँगा भी नहीं।
प्रियदर्शन से आश्वासन पाकर गंगदत्त ने उसे एक सुरंग के रास्ते से उसे कोटर में घुसा दिया और खुद कुएं में चल गया। उसने अपने सारे शत्रुओं के बारे में उसे बता दिया। अब गंगदत्त रोज अपने शत्रुओं को किसी ना किसी बहाने से कोटर के पास भेज देता। प्रियदर्शन उन्हें मारकर खा जाता। थोड़े दिनों में गंगदत्त के सारे शत्रुओं का सफाया हो गया।
दगाबाज से कैसी दगाबाजी
अपने सभी शत्रुओं का खात्मा होने के बाद गंगदत्त प्रियदर्शन के पास गया और उससे बोला,
🐸 गंगदत्त – मित्र प्रियदर्शन, तुम्हारी सहायता से मेरे सारे शत्रुओं का नाश हो चुका है। अब मैं निश्चिंत होकर यहाँ पर राज कर सकता हूँ। तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। अब चलों, मैं तुम्हें वापस तुम्हारे बिल में छोड़ आता हूँ।
प्रियदर्शन हाथ में आए इस अवसर की गंवाना नहीं चाहता था। उसे वहाँ पर आसानी से पेट भर कर भोजन मिल रहा था इसलिए अब वह वहाँ से जाना नहीं चाहता था, इसलिए वह बोला,
🐍 प्रियदर्शन – मैं तुमहारी मदद करने के लिए अपना बिल छोड़कर तुम्हारे साथ आया था। अब तो मेरे बिल पर किसी अन्य साँप ने अपना अधिकार कर लिया होगा। अब मैं कहाँ रहूँगा? तुम ही मुझे यहाँ लेकर आए थे, अब तुम्हें ही मेरे रहने और भोजन का प्रबंध करना पड़ेगा।
🐸 गंगदत्त – तो अब मैं क्या करूँ, मेरे तो सारे शत्रु खत्म हो चुके है?
🐍 प्रियदर्शन – अब तू एक-एक करके इस कुएं में रहने वाले मेंढकों को मेरे पास भेजता जा, नहीं तो मैं तेरे सारे कुनबे को तेरा सच बता दूँगा। तेरी सच्चाई जानकर सभी तुझसे घृणा करेंगे और तेरा तिरस्कार करके तुझे इस कुएं से निकाल देंगे और मैं इन सबकों एक साथ मार डालूँगा।
🐸 गंगदत्त – तुम मेरे साथ विश्वासघात कर रहे हो।
🐍 प्रियदर्शन – विश्वास और विश्वासघात की बातें तुम्हारे मुँह से अच्छी नहीं लगती। तुमने भी तो अपने साथियों से विश्वासघात किया है। अब तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम मेरी बात मान लों और मेरे भोजन का प्रबंध करते रहो।
कुछ को तो बचा लूँ
प्रियदर्शन की बात सुनकर गंगदत्त को अपने किए पर बहुत पछतावा हुआ। लेकिन अब वह कर ही क्या सकता था। अपने से बलवान शत्रु को मित्र बनाने और अपनों से दगा करने वालों का यहीं परिणाम होता है। बहुत सोचने के बाद उसने निर्णय लिया कि सर्वनाश से तो कहीं अच्छा है कि जिनको बचाया जा सकता है उन्हें बचा लिया जाए। इसके अलावा उसके पास और कोई चारा भी नहीं था।
🐸 गंगदत्त – ठीक है तुम मेरी प्रजा के मेंढकों को खा लेना। लेकिन मेरे परिवार के लोगों को मत खाना।
🐍 प्रियदर्शन – ठीक है।
दूसरे दिन से प्रियदर्शन ने अन्य मेंढकों को खाना शुरू कर दिया। थोड़े दिनों में ही प्रियदर्शन गंगदत्त के परिवार के अलावा कुएं के सारे मेंढकों को यहाँ तक कि उसके रिश्तेदारों को भी खा गया। उसके बाद एक दिन उसने उसके पुत्रों को भी खा लिया।
अब उस कुएं में गंगदत्त, उसकी पत्नी और पाँच-दस मेंढकों के सिवा कोई नहीं बचा था। वह अपने पुत्रों की मृत्यु पर शोक मनाने लगा। तब उसकी पत्नि ने कहा,
🐸 मेंढकी – अब शोक मनाने से क्या होगा? अपने जाती बंधुओं का नाश करवाते समय तो तुमने कोई विचार नहीं किया। अब सभी समाप्त हो चुके है। जब अपने ही नहीं है तो अब रक्षा कौन करेगा। “अब पछताएं होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत”
गंगदत्त ने बहुत विचार किया, आखिर उसे एक उपाय सूझ गया। उसने बचे हुए मेंढकों को अपनी पत्नी सहित कुएं से बाहर निकाल दिया और प्रियदर्शन के पास जाकर कहा,
🐸 गंगदत्त – मित्र, इस कुएं के तो सारे मेंढक समाप्त हो गए है।
🐍 प्रियदर्शन – तो अब तुम मेरे भोजन का कोई और प्रबंध करों नहीं तो मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा।
🐸 गंगदत्त – मित्र, तुम चिंता मत करों, मैं दूसरे कुओं के मेंढकों को बुलाकर यहाँ ले आया करूँगा। तुम उन्हे खा लिया करना।
🐍 प्रियदर्शन – ठीक है, यदि तुम मेरे भोजन का प्रबंध करते रहोगे तो मैं तुम्हें नहीं खाऊँगा। तुम्हें अपने पिता तुल्य समझूँगा।
काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती
गंगदत्त जल्दी से उस कुएं से बाहर निकल गया। अपने बचे हुए साथियों के साथ उसने उस कोटर से जुड़ी हर सुरंग को बंद कर दिया और कुएं की मुंडेर पर जाकर बैठ गया। उसे देख कर प्रियदर्शन ने कहा,
🐍 प्रियदर्शन – आओं मित्र, मैं तुम्हारी कब से प्रतीक्षा कर रहा था। तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लग रहा था। यदि कोई दूसरे मेंढक नहीं मिल रहे है तो कोई बात नहीं। तुम ही मेरे पास आ जाओं, मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पँहुचाऊँगा। हम दोनों सुख दुख की बातें करके अपने दिन काट लेंगे।
🐸 गंगदत्त – विश्वासघाती, दुष्ट प्रियदर्शन, तूमने क्या मुझे इतना मूर्ख समझ रखा है, जो तेरी मीठी बातों में आकर अपनी जान जोखिम में डाल दूँ। अब मैं तेरी बातों में नहीं आने वाला। मैंने पहले ही तुम्हें अपना मित्र बनाकर बहुत बड़ी मूर्खता की थी, जिसके कारण मेरे सारे कुटुंब का नाश हो गया।
मुझे मेरे किए का दंड अपने पूरे कुटुंब और पुत्रों को खोकर चुकाना पड़ा। लेकिन तुझे भी अपने किए का दंड भोगना पड़ेगा। मैंने इस कोटर से बाहर निकलने वाले सभी मार्गों को बंद कर दिया है। अब तू इस कोटर में भूख से तड़प-तड़प कर मर।
इतना कहकर गंगदत्त अपनी पत्नी और बचे हुए साथियों के साथ वहाँ से चला गया और कभी लौट कर नहीं आया।
सीख
- विश्वासघाती के साथ विश्वासघात ही होता है।
- अपनों के साथ विश्वासघात करने वाले के खुद के प्राणों पर भी बन आती है।
- अपनों से बदला लेने के लिए जो शत्रु का साथ लेता है, वह अपना भी अंत निश्चित कर लेता है।
- एक बार विश्वास खोने के बाद उसे वापस नहीं पाया जा सकता।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
पिछली कहानी – “सूत्रधार कथा – लब्धप्रणाशम” और “बन्दर और मगरमच्छ”
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