वाचाल गधा – Wachal Gadha
पंचतंत्र की कहानियाँ – चौथा तंत्र – लब्धप्रणाशम – वाचाल गधा – Wachal Gadha – The Talkative Donkey
काशीनगर में एक शुद्धपट नामक धोबी रहता था। वह बहुत कंजूस था। उसके पास अतिभाषी नामक एक गधा था। वह रोज सुबह लोगों के गंदे कपड़े अपने गधे पर लाद के लाता और धोकर उन्हें उसी तरह वापस दे आता। इसी आमदनी से वह अपना गुजारा करता था। लेकिन अपनी कंजूसी के कारण वह अपने गधे को खाने के लिए पर्याप्त घास नहीं देता था।
पेट भरकर भोजन ना मिलने की वजह से अतिभाषी दिनों-दिन दुबला हुआ जा रहा था। उसके कार्य करने की क्षमता भी कम होती जा रही थी। उसे देख कर धोबी सोचता कि काश कोई ऐसा उपाय मिल जाए जिससे मुझे एक पैसा भी खर्च ना करना पड़े और इसे भी पेटभर कर घास भी मिल जाए।
एक बार शुद्धपट अपने गधे को साथ लेकर भोजन पकाने के लिए सुखी लकड़ियाँ लेने के लिए पास के जंगल में गया। जंगल में घूमते-घूमते उसे एक मरा हुआ शेर मिला। उसे देख कर उसके मन में एक विचार आया।
उसने सोचा, “यदि मैं इस शेर खाल निकाल कर अपने गधे को पहना दूँ, तो सब उसे शेर समझ कर डर जाएंगे। कोई भी इसके पास नहीं आएगा, फिर यह किसी के भी खेत में जाकर हरी-हरी घास खा सकेगा।”
यह सोच कर उसने शेर की खाल निकाल ली और अपने घर पर आ गया।
शेर की खाल में गधा
अब दिन में तो वह अपने गधे से खूब काम करवाता और रात को उसे शेर की खाल पहनाकर किसी के भी खेत में छोड़ देता। धोबी की चाल सफल हो गई। शेर की खाल पहने हुए गधे को लोग शेर समझ कर डर जाते और उससे दूर भाग जाते। अतिभाषी बिना किसी डर के पेटभर के हरी-हरी घास और खेतों में खड़ी फसल खाता और घर आ जाता।
इस तरह कई दिन बीत गए। रोज पेटभर के हरी-हरी घास, सब्जियाँ और अनाज खा-खा कर अतिभाषी कुछ ही दिनों में बहुत ही हट्टा-कट्टा हो गया। शेर को रोज अपने खेतों में आता देख गाँव के लोग आश्चर्य चकित तो थे, लेकिन उसके पास जाने की हिम्मत किसी में नहीं थी। वे दूर से ही उसे अपने खेतों में घूमते हुए देखते रहते।
लेकिन कहते है न कि झूठ की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती। एक रात को अतिभाषी शेर की खाल ओढ़े, मजे से घास चर रहा था, तभी कहीं दूर पर एक गधी ने रेंकना शुरू कर दिया, “ढेंचू-ढेंचू”। गधी की आवाज सुनकर अतिभाषी अपने पर संयम ना रख सका और वह भी उसी के सुर में सुर मिलाते हुए रेंकने लगा “ढेंचू-ढेंचू”।
शेर को “ढेंचू-ढेंचू” की आवाज निकालते देख कर एक बार तो खेत के रखवाले आश्चर्यचकित रह गए, लेकिन जल्दी ही वे सारी बात समझ गए। वे लाठियाँ लेकर खेत में गए और गधे पर टूट पड़े। उन्होंने उसे इतना मारा कि वह वहीं ढेर हो गया और मर गया।
अपनी वाणी पर संयम नहीं रख पाने के कारण वह मारा गया। अपने गधे के मारे जाने पर धोबी को बहुत दुख हुआ। अपने लालच और कंजूसी के कारण उसने अपने गधे को भी खो दिया।
सीख
- दूसरों को नुकसान पँहुचाने वाले और ज्यादा चालाकी करने वाले को अंत में पछताना पड़ता है।
- जो अपनी वाणी पर संयम नहीं कर पाता और बिना विचार करे बोलता है, उसे उसका परिणाम भुगतान पड़ता है।
- इसलिए हमें कभी किसी के साथ चालाकी नहीं करनी चाहिए। अतिभाषी नहीं मितभाषी बनाना चाहिए। कुछ भी बोलने से पहले विचार कर लेना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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