दो मछलियाँ और मेंढक – Do Machliyan Our Mendhak
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – दो मछलियाँ और मेंढक – Do Machliyan Our Mendhak – Two Fishes and A Frog
एक जंगल में एक तालाब था। उसमें बहुत से जलचर रहते थे। उसी तालाब में शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि नामक दो मछलियाँ और एकबुद्धि नाम का एक मेंढक भी रहता था। शतबुद्धि के पास सौ बुद्धियाँ तो सहस्त्रबुद्धि के पास हजार बुद्धियाँ थी। लेकिन मेंढक एकबुद्धि केवल एक बुद्धि वाला था।
शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि दोनों को अपनी अनेकों बुद्धियों का बहुत अभिमान था। वे अपने आगे एकबुद्धि को कुछ नहीं समझती थी। फिर भी तीनों में मित्रता थी, वे रोज तालाब के किनारे बैठ कर अपने सुख-दुख की बातें किया करते थे।
हम हैं तो क्या गम है
एक बार शाम के समय वे तीनों इसी तरह बैठ कर बातें कर रहे थे तभी कुछ मछुआरे अपने हाथों में जाल लिए उधर से गुजरे। उनके जाल में बहुत सारी मछलियाँ फँसी हुई थी। कुछ मछलियाँ मर गई थी तो कुछ पानी के बिना तड़प रही थी। वे तालाब पर पानी पीने के लिए रुके। उन्हें तालाब में बहुत सारी मछलियाँ नजर आई। उनमें से एक मछुआरे ने कहा,
🧖♂️ एक मछुआरा – देखो मित्रों, इस तालाब में कितनी सारी मछलियाँ है और पानी भी ज्यादा गहरा नहीं है। आज तो हमारे जाल में मछलियाँ है। हम कल यहाँ आकर अपना जाल बिछाकर मछलियाँ पकड़ेंगे।
🧔🏻 दूसरा मछुआरा – हाँ मित्र, तुम ठीक कहते हो, यहाँ हमें बहुत कम मेहनत में बहुत सारी मछलियाँ मिल जाएंगी।
दूसरे मछुआरों ने भी उनका समर्थन किया। इस तरह आपस में बातचीत करके वे दूसरे दिन सुबह आने का निश्चय करके वहाँ से चले गए। उनकी बात सुनकर तालाब की सारी मछलियाँ डर गई और चिंता करनें लगी । उन्होंने मिल कर इस संकट से बचने के लिए आपस में सभा की। उन सब का उपहास उड़ाते हुए सहस्त्रबुद्धि ने कहा,
🐟 सहस्त्रबुद्धि – तुम सब नाहक ही डर रही हो, यदि दुनियाँ में रहने वाले सभी दुर्जनों के मन की इच्छा पूरी हो जाए तो कोई यहाँ रह ही नहीं पाएगा। यह संसार ही खत्म हो जाएगा। सांपों और दुष्टों के अभिप्राय पूरे नहीं होते, इसीलिए यह संसार अब तक बना हुआ है। किसी के कथन मात्र से डरना कायरता है। पहली बात तो वे यहाँ आएंगे ही नहीं और यदि आ भी गए तो मैं अपनी हजार बुद्धियों से तुम सब की रक्षा कर लूँगी।
🐬 शतबुद्धि – सहस्त्रबुद्धि बिल्कुल सही कह रही है। बुद्धिमान व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता है। जहाँ वायु और प्रकाश भी नहीं पँहुच पाते वहाँ पर भी बुद्धिमानों की बुद्धि पँहुच सकती है। किसी की बातों से डर कर हमें अपने पूर्वजों की जगह को नहीं छोड़ना चाहिए। जो सुख अपनी जन्मभूमि में रहने पर मिलता है उसके आगे तो स्वर्ग का सुख भी फीका है। भगवान ने हमें बद्धि संकट के डर से भागने के लिए नहीं बल्कि उसका डट कर सामना करने के लिए दी है।
🐸 एकबुद्धि – मैं तो तुम लोगों से सहमत नहीं हूँ। माना मेरी एक बुद्धि है जो मुझे यहीं सलाह दे रही है कि जितना जल्दी हो सके हमें यह तालाब छोड़ कर किसी दूसरे तालाब में चले जाना चाहिए।
🐬 शतबुद्धि – तुम बहुत डरपोक हो एकबुद्धि, हमें तो अपनी बुद्धि पर बहुत भरोसा है। हम अपनी बुद्धि से अपनी, तुम्हारी और इन सभी मछलियों की रक्षा बड़ी आसानी से कर लेंगी।
हम तो लुट गए तेरी बात में
🐸 एकबुद्धि – मैं तो मेरी बुद्धि की सलाह ही मानूँगा और कल सुबह होने से पहले ही अपने परिवार के साथ इस तालाब को छोड़कर चला जाऊँगा। जिसे मेरी बात पर भरोसा हो वह मेरे साथ चल सकता है।
कुछ मछलियाँ एकबुद्धि की बात मान कर उसके साथ चली गई, लेकिन बाकी मछलियाँ शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि की बात मानकर वहीं रुक गई। दूसरे दिन सुबह-सुबह ही वे मछुआरे अपना जाल लेकर तालाब पर आ गए। उन्होनें मछलियों को पकड़ने के लिये तालाब में जाल फेंका। बहुत सारी मछलियाँ जाल में फँस गई।
शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि अपने परिवार के साथ जाल से बचने के लिए टेढ़े-मेढ़े तैर कर बच गई। लेकिन मछुआरे भी अनाड़ी नहीं थे, उन्होंने उन्हें पकड़ने के लिए फिर से जाल फेंका। इस तरह एक-दो बार तो वे बच गई लेकिन आखिरकार वे उनके जाल में फँस ही गई। दोपहर तक ही मछुआरों के हाथ बहुत मछलियाँ लग चुकी थी, जिनमे शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि भी थी।
उन्होंने खुशी-खुशी अपना जाल समेटा और अपने घर की और चल पड़े। शतबुद्धि और सहस्त्रबुद्धि दोनों आकार में बड़ी और भारी थी, इसलिए उन्होंने शतबुद्धि को अपने कंधे पर और सहस्त्रबुद्धि को अपने हाथ में पकड़ लिया था। उनकी ऐसी अवस्था देख कर एकबुद्धि ने अपनी पत्नी से कहा,
🐸 एकबुद्धि – देखों प्रिये, अपनी बुद्धि के अभिमान में शतबुद्धि कंधे पर चढ़कर और सहस्त्रबुद्धि हाथों में लटक कर जा रही है और मैं एकबुद्धि अपने परिवार के साथ मजे से इस छोटे से जलाशय के निर्मल जल में विहार कर रहा हूँ।
सीख
- जो अपनी बुद्धि पर अभिमान करके आने वाले संकट को भी अनदेखा करते है, उन्हे बाद में पछताना पड़ता है।
- अपनी बुद्धि पर काभी अभिमान नहीं करना चाहिए। संकट से बचने का उपाय समय रहते ही कर लेना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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