संगीत विशारद गधा – Sangeet Visharad Gadha
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – संगीत विशारद गधा – Sangeet Visharad Gadha – The Music Genius Donkey
एक नगर में एक धोबी रहता था। वह बहुत ही कंजूस और निर्दयी था। उसके पास एक गधा था, जिसका नाम उद्धत था। वह अपने गधे से पूरे दिन खूब काम करवाता, लेकिन उसे खाने के लिए कुछ नहीं देता था, बस रात को उसे खुला छोड़ देता था, जिससे वह किसी चारागाह में जाकर घास खा लें।
लेकिन चारागाहों के रखवालों के कारण वह ज्यादा घास नहीं खा पाता था। इसलिए वह दिनों दिन दुबला हुआ जा रहा था। लेकन धोबी को तो बस उसके काम से मतलब था। एक रात को जब वह घास की तलाश में इधर उधर घूम रहा था, तब उसकी मुलाकात एक गीदड़ से हुई।
दुख भरे दिन बीते रे भईया
इतने कमजोर गधे को देखकर गीदड़ ने उससे पूछा,
🐺 गीदड़ – अरे महाशय, आप इतने कमजोर क्यों है?
🐩 गधा – क्या बताऊँ मित्र, मेरा मालिक बड़ा निर्दयी और कंजूस है। वह सारा दिन मुझसे काम करवाता है और खाने के लिए कुछ नहीं देता। बस रात को मुझे घास चरने के लिए छोड़ देता है और मैं अंधरे में इधर से उधर मुंह मार कर जैसे तैसे थोड़ा बहुत खा लेता हूँ।
🐺 गीदड़ – तुमने मुझे मित्र कहा है, तो समझों अब तुम्हारे दुख के दिनों का अंत हो गया है। यहाँ पास में ही एक बहुत बड़ा खेत है, जिसमें तरह-तरह की बहुत सारी सब्जियाँ, बैंगन, खीरे, ककडियां, तोरई, गाजर, शलजम, पालक और मूली उगी हुए है। मैंने खेत की बाड़ को जमीन के पास से खोदकर एक गुप्त मार्ग बना रखा है। बस रोज रात को उस मार्ग से खेत में घुसता हूँ और मजे से पेटभर कर हरी-हरी ताजा सब्जियाँ खाता हूँ। आज से तुम भी मेरे साथ चलों।
गीदड़ की बात सुनकर गधा भी उसके साथ हो लिया। उस दिन कई महीनों बाद गधे को पेटभर कर भोजन मिला था। अब तो दोनों रोज एक जगह मिलते, फिर गुप्त मार्ग से खेत में घुसते, पेटभर कर खाते और पौ फटने से पहले वापस निकल कर अपने-अपने घर चले जाते। थोड़े ही दिनों में गधे की काया पलट हो गई, उसका शरीर भर गया, बालों और त्वचा पर चमक आ गई। वह अपनी भुखमरी के दिनों को भूल गया।
संगीत विशारद गधा
एक बार चाँदनी रात थी, मंद-मंद ठंडी हवा चल रही थी। खेत में पेटभर सब्जियाँ खाने के बाद गधा मतवाला होकर झूमने लगा, उसके कान फड़फड़ाने लगे। उसे देख कर गीदड़ चिंता में पड़ गया और बोला,
🐺 गीदड़ – यह क्या कर रहे हो मित्र, तुमहारी तबीयत तो ठीक है?
🐩 गधा – देखों मित्र, मौसम कितना सुहावना हो रहा है। मेरा मन खुशी से बावरा होकर गाने को हो रहा है। मैं तुम्हें ढेंचू राग सुनाता हूँ।
🐺 गीदड़ – हम दोनों यहाँ चोरी से घुसे है। चोरों को अपने आपको उजागर नहीं करना चाहिए, बस अपना काम खत्म करके चुपचाप वापस चले जाना चाहिए। यह गाने का चक्कर पड़कर मुसीबत को न्यौता मत दो।
🐩 गधा – मित्र, तुम जंगल में रहने वाले राग-रागिनियों के बारे में क्या जानो। ऐसी चाँदनी में संगीत के मधुर स्वरों का रसपान भाग्य वालों को ही नसीब होता है।
🐺 गीदड़ – तुम ठीक कहते हो, मैं संगीत के बारें में कुछ नहीं जानता। लेकिन तुम भी कोई संगीत विशारद नहीं हो। जब तुम्हारी आवाज रखवालों के कानों में पड़ेगी तो वे जाग जाएंगे। इसलिए अपनी ये बेसुरा राग अलापने की जिद छोड़ दो, नहीं तो हम दोनों ही मुसीबत में पड़ जाएंगे।
🐩 गधा – अरे मित्र, धिक्कार है जो तुम मुझे बेसुरा कह रहे हो। शायद तुम नहीं जानते मुझे सभी राग-रागिनियों की जानकारी है, जिनसे मैं मनुष्य तो क्या देवताओं को भी प्रसन्न कर सकता हूँ। इसलिए मुझे मत रोको।
आ बैल मुझे मार
गीदड़ के बहुत समझाने पर भी जब गधा नहीं माना तो उसने चतुराई से काम लेते हुए उसने कहा,
🐺 गीदड़ – अगर ऐसी बात है तो ठीक है मित्र, मैं खेत के बाहर जाकर रखवालों पर नजर रखता हूँ। उसके बाद तुम जैसा चाहो वैसा राग गाना। मैं खेत के बाहर बैठ कर ही तुम्हारे मधुर संगीत का आनंद ले लूँगा। तुम मेरे जाने के कुछ देर बाद गाना गाना शुरू करना।
इतना कहकर गीदड़ जल्दी से गुप्त मार्ग से बाहर निकला और भाग कर दूर जाकर छुप गया। उसके जाने के कुछ देर बाद ही गधे ने अपने सुर छेड़ दिए। वह ढेंचू-ढेंचू करके रेंकने लगा। उसके रेंकने की आवाज सुनकर रखवाले जाग गए और लाठियाँ लेकर उसकी तरफ दौड़ पड़े। उसे देखते ही उन्होंने उस पर लठियों की बौछार कर दी।
लाठियों की मार खाकर गधा अधमरा सा होकर जमीन पर गिर गया, तो उन्होंने उसके गले में एक मूसल बांध दिया। जिससे वह भाग ना सके। उसके बाद सभी रखवाले वापस चले गए। उनके जाने के थोड़ी देर बाद गधा अपना सारा दर्द भूल कर उठा और उस मूसल समेत ही बाहर की तरफ भागा।
गले में मूसल बंधा होने के कारण उससे तेजी से भागा भी नहीं जा रहा था। लेकिन फिर भी वह किसी तरह से खेत की बाड़ तोड़ते हुए बाहर निकल गया। वह लँगड़ाते हुए कुछ दूर ही गया था कि जगल से गीदड़ निकल कर उसके पास आया और उसके गले में मूसल देखकर बोला,
🐺 गीदड़ – मित्र, मैंने तुम्हें समझाया था लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी। लगता है यह जो तुम्हारे गले में माला बंधी है, वह तुम्हारे मधुर संगीत का ही ईनाम है।
🐩 गधा – एक तो मैं पहले से ही कष्ट में हूँ मित्र, और तुम जले पर नमक छिड़क रहे हो। मुझे अपनी गलती का दंड और सबक मिल चुका है।
सीख
- हमें अपने मित्रों की सही सलाह पर अमल करना चाहिए।
- जो असमय बेसुरा राग छेड़ते है उन्हें बाद में पछताना पड़ता है। अर्थात् हमें कोई भी काम अनुकूल समय देखकर ही करना चाहिए।
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तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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