अंधा, कुबड़ा और त्रिस्तनी – Andha, Kubla Aur Tristani
पंचतंत्र की कहानियाँ – पाँचवाँ तंत्र – अपरीक्षितकारकम – अंधा, कुबड़ा और त्रिस्तनी -Andha, Kubla Aur Tristani – The Blind, The Humpback and The Tristani
उत्तरी प्रदेश में मधुपुर नामक नगर पर राजा मधुसेन राज्य करते थे। उनकी गर्भवती पत्नी की प्रसव पीड़ा शुरू होने पर वह बहुत बेसब्री से कक्ष के बाहर खुशखबरी की प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी दाई ने आकर बताया,
👵🏿 दाई – महाराज, आपके कन्या रूपी रत्न पैदा हुआ है। कन्या बहुत ही रूपवती है, लेकिन उसके तीन स्तन है।”
🤴🏻 मधुसेन – मैंने ऐसा सुना है कि तीन स्तनों वाली कन्या अनिष्टकारी होती है इसलिए तुम इसे वन में छोड़ आओं। इसके भाग्य में होगा तो जी जाएगी, नहीं तो कोई जंगली जानवर इसे अपना भोजन बना लेंगे। सबसे कह देना कि मृत कन्या का जन्म हुआ था, असल बात किसी को भी पता ना चले।”
ये कैसा दुर्भाग्य?
👵🏿 दाई – आप सही कह रहे है महाराज, लेकिन कन्या हत्या का पाप और निंदा सर पर लेने से पहले ब्राह्मणों को बुलाकर पूछ लेना चाहिए। जिससे दोनों लोक बने रहें। वैसे भी मनुष्य को सदा प्रश्न पूछते रहना चाहिए। प्रश्न पूछने से बुद्धि का विकास उसी प्रकार होता है जिस प्रकार सूर्य की किरणों से कमलिनी का।
बुद्धिमान और ज्ञानी पुरुष को भी प्रश्न पूछते रहना चाहिए क्योंकि इससे अज्ञात भी ज्ञात हो जाता हु। जिस प्रकार प्रश्न पूछने की आदत से एक कमजोर ब्राह्मण राक्षस के चंगुल से बच गया।
🤴🏻 मधुसेन – वह कैसे?
तब दाई ने राजा को ब्राह्मण और राक्षस की कहानी “जिज्ञासु बनों” सुनाई।
👵🏿 दाई – महाराज, ब्राह्मण यदि राक्षस से प्रश्न नहीं पूछता तो उसे उसका भेद नहीं मालूम चलता और वह मारा जाता। इसलिए कहती हूँ प्रश्न पूछते रहने से कोई ना कोई समाधान निकल ही जाता है।
दाई का कहा मान कर राजा ने ब्राह्मणों के बुलाया और उनसे पूछा,
🤴🏻 मधुसेन – हे ब्राह्मणों, दुर्भाग्यवश मेरे यहाँ त्रिस्तनी कन्या का जन्म हुआ है। आप सब कृपया करके यह बताइए कि इस दोष से शांति का कोई उपाय है या नहीं।
👴🏼 ब्राह्मण – हे देव, यदि मनुष्य के यहाँ कम या अधिक अंगों वाली कन्या का जन्म होता है तो वह अपने पति और शील का नाश करने वाली होती है। इनमें से भी अगर तीन स्तनों वाली कन्या में एक दोष और होता है। यदि ऐसी कन्या पर पिता की दृष्टि पड़े तो वह तुरंत अपने पिता का नाश कर देती है। इसमें किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं है।
दोष मुक्ति का उपाय
🤴🏻 मधुसेन – तो आप सभी की राय में मुझे क्या करना चाहिए?
👴🏼 ब्राह्मण – हे देव, आप इस कन्या को अपनी नज़रों से दूर किसी ऐसे स्थान पर रखिए जहाँ पर आपकी दृष्टि इस पर ना पड़ पाए। थोड़ी बड़ी होने पर आप उसका विवाह करवा दे और इस देश से बाहर भेज दें। इससे आपके दोनों लोक सुधर जाएंगे।
ब्राह्मणों की सलाह मानकर राजा ने उसे कुछ दासियों के साथ महल से दूर एक अलग मकान में भेज दिया। जैसे ही वह दस वर्ष की हुई राजा ने अपने राज्य में मुनादी करवा दी, “जो कोई भी इस त्रिस्तनीय कन्या से विवाह करेगा उसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं ईनाम में दी जाएगी, लेकिन विवाह के बाद उसे इस देश को छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ेगा।”
मुनादी करवाए हुए कई दिन बीत गए, लेकिन कोई भी दुर्भाग्यशाली त्रिस्तनीय कन्या से विवाह करने के लिए तैयार नहीं हुआ। समय बीतने के साथ ही वह कन्या जवान हो गई, लेकिन कोई भी उससे विवाह करने के लिए नहीं आया। दिनों-दिन राजा की परेशानी बढ़ती जा रही थी। वह समय-समय पर मुनादी करवाते रहते थे।
आर या पार
उसी नगर में सुरसेन नामक एक अंधा और मंथरक नामक एक कुबड़े के साथ रहता था। दोनों बहुत गरीब थे और भिक्षा मांग कर अपना गुजारा करते थे। कुबड़ा, अंधे के आगे-आगे उसकी लाठी पकड़ कर चलता था। एक दिन बाजार जाते वक्त उन्होनें भी मुनादी सुनी। मुनादी सुनकर सुरसेन ने मंथरक से कहा,
🧖🏻♂️ सुरसेन – हमें यह मुनादी रोकनी चाहिए। यदि भाग्य में हुआ तो हमें कन्या के साथ-साथ इतनी सारी स्वर्ण मुद्राएं भी मिल जाएगी। जिससे हमारी आगे की जिंदगी सुखपूर्वक कटेगी। इतने धन दे लिए देश भी छोड़ना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। मुझ अंधे गरीब के लिए देश क्या और परदेश क्या? और उस त्रिस्तनी दे दोष के कारण मैं मर भी गया तो भी कोई हर्ज नहीं। ऐसी दरिद्रता की जिंदगी से तो छुटकारा मिल जाएगा।
किसी ने सही कहा है, “लज्जा, स्नेह, वाणी की मिठास, वृहस्पति जैसी बुद्धि, जवानी, स्त्रियों का साथ, अपनों का प्यार, दुःख, हानि-लाभ, भोग-विलास, धर्म, स्वास्थ्य, पवित्रता, और आचार-विचार ये सब बातें, तभी अच्छी लगती है जब यह पेट-रूपी गड्ढा भरा हुआ हो, नहीं तो सब व्यर्थ है। तुम मुझे उस मुनादी वाले के पास ले चलों।
मंथरक उसे मुनादी वाले के पास ले गया। अंधे ने मुनादी वाले को रोका और कहा,
🧖🏻♂️ सुरसेन – यदि राजा की स्वीकृति हो तो मैं उस राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए तैयार हूँ।
यह सुनकर राजा के कर्मचारी राजा के पास गए और उनसे कहा,
👨🏻🏭 कर्मचारी – महाराज एक अंधे ने मुनादी रुकवा कर है। यदि आप अनुमति प्रदान करें तो वह राजकुमारी से विवाह करने के लिए तैयार है।
🤴🏻 मधुसेन – अंधा-कुबड़ा, रोगी-कोढ़ी, गूंगा-बहरा कोई भी हो जो भी राजकुमारी से विवाह करने के लिए तैयार हो उससे राजकुमारी का विवाह करवा दो और मुनादी के अनुसार उसे एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर इस देश से निकाल दो।
विवाह दुर्भाग्य से या सौभाग्य से?
राजा की आज्ञानुसार उसके मंत्रियों ने एक नदी के किनारे जाकर राजकुमारी का विवाह अंधे सुरसेन के साथ कर दिया। फिर अंधे को एक लाख स्वर्ण मुद्राएं देकर उसे और राजकुमारी को नाव में बैठा दिया। उन्होनें केवटों से कहा,
👳🏼 मंत्री – इन्हें अपने राज्य से दूर किसी अन्य नगर में उतार देना।
केवट नाव ले जाने लगे तो सुरसेन ने कुबड़े मंथरक को भी अपने साथ बैठा लिया। केवटों ने उन्हें मधुपुर नगर से दूर ले जाकर सोनपुर नगर में उतार दिया। उस नगर में उन्होंने कुछ मुद्राओं से एक बहुत हो सुन्दर महल जैसा मकान खरीद लिया और आराम से रहने लगे।
अंधा सारा दिन पलंग पर सोया रहता। घर का सारा काम कुबड़ा मंथरक और राजकुमारी मिलकर ही करते। धीरे-धीरे राजकुमारी और मंथरक में नजदीकियाँ बढ़ने लगी। वे दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगे। एक् दिन राजकुमारी ने मंथरक से कहा,
👸🏻 राजकुमारी – इस अंधे के कारण हमें धीरे-धीरे बात करनी पड़ती है। हमेशा यही डर लगा रहता है कि कहीं इसे पता ना चल जाए, और यह हमें इस घर से ना निकाल दे। सारा धन भी इसी के पास है। यदि किसी तरह इस अंधे को मार दिया जाए तो तुम और मैं दोनों आराम से जिंदगी जिए।
🧔🏻 मंथरक – तुम सही कहती हो प्रिये, मैं भी तुम्हारे साथ ज्यादा से ज्यादा समय गुजारना चाहता हूँ, लेकिन यह अंधा बीच में आ जाता है। लेकिन किया क्या जाए।
👸🏻 राजकुमारी – तुम कहीं से थोड़ा विष लेकर आ जाओं। मैं इसके खाने में विष मिलाकर इसे खिला दूँगी, जिससे हमारे रास्ते का यह काँटा हमेशा के लिए हट जाएगा।
🧔🏻 मंथरक – ठीक है।
दुर्भाग्य की चाल
दूसरे दिन कुबड़ा किसी काम से बाहर गया तो रास्ते में उसे एक मरा हुआ काला साँप दिखाई दिया। उसने उसे उठा लिया और प्रसन्नता से घर वापस आ गया। उसने वह मरा हुआ साँप राजकुमारी को दिया और बोला,
🧔🏻 मंथरक – प्रिये, इस विषैले साँप के छोटे-छोटे टुकड़े करके खूब अच्छे मसालें डालकर स्वादिष्ट सब्जी बना लो। फिर अंधे को मछली का माँस बताकर उसे खिला दो। उसे मछली का माँस बहुत पसंद है। वह झट से इसे खा लेगा और मर जाएगा। मैं बाजार जाकर तुम्हारे लिए उपहार और स्वादिष्ट मिठाइयाँ लेकर आता हूँ।
इतना कहकर वह बाजार चला गया। उसके जाने के बाद राजकुमारी ने उस साँप को काटकर एक कढ़ाई में मट्ठा और अच्छे मसाले डालकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। उसे घर के दूसरे काम भी करने थे, इसलिए उसने बड़े प्यार से अंधे से कहा,
👸🏻 राजकुमारी – प्रिये, तुम हमेशा मछली का माँस खाने के लिए कहते रहते हो। आज मैंने मंथरक से तुम्हारे लिए मछली का माँस मँगवाया था। अब मैंने इसे पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया है। मुझे घर के अन्य काम भी करने है, इसलिए तुम चूल्हे के पास बैठकर कड़छी से उसे हिलाते रहो।
सौभाग्य का आगमन
मछली के माँस की सुनकर सुरसेन के मुँह में पानी आ गया। वह प्रसन्नता से अपने होंठों पर जीभ फिराता हुआ उठ गया। राजकुमारी ने उसे कड़छी देकर चूल्हे के पास बैठा दिया और वह कड़छी बर्तन में हिलाने लगा। साँप के व्यंजन को हिलाते हुए उसकी विषैली भाप उसके चेहरे पर पढ़ने लगी, जिससे उसके आँखों के परदे पर छाया जाला गल कर हटने लगा। उसे धुंधला सा दिखाई देने लगा।
अपनी दृष्टि में लाभ होता महसूस कर उसने अपनी आँखों को फैला-फैला कर भाप लेना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में उसकी आँखों का जाला पूरी तरह से हट गया और उसे साफ-साफ दिखाई देने लगा। उसने कढ़ाई में देखा, उसे उसमें कढ़ाई में मट्ठे के साथ साँप के टुकड़े तैरते दिखाई दिए।
यह देख कर उसने सोचा, “अरे, इसमें तो मछली नहीं साँप पक रहा है। इसका मतलब यह त्रिस्तनी मुझे मारना चाहती है। लेकिन क्यों?”
उसे राजकुमारी पर बहुत क्रोध आया। वह राजकुमारी से पूछने के लिए उठने ही वाला था कि उसके मन में विचार आया, “कुछ भी करने से पहले मुझे सच्चाई का पता लगाना चाहिए कि यह चाल त्रिस्तनी की है, कुबड़े की है या फिर दोनों की।“ यह सोचकर वह अपने क्रोध को दबाकर पहले की तरह ही कढ़ाई में कड़छी हिलाता रहा।
तभी कुबड़ा बाजार से वापस आ गया। उसने राजकुमारी के बालों में गजरा लगाकर उसे गले से लगा लिया। फिर दोनों बिना आवाज किए धीरे-धीरे शयनकक्ष में चले गए। अंधा भी चुपके-चुपके उनके पीछे वहाँ गया। उसने दोनों के अपनी शैय्या पर प्रेमालाप करते देखा तो उसे बहुत क्रोध आया।
उसने इधर-उधर देखा, लेकिन उसे उन्हें मारने का कोई हथियार नहीं दिखा। वह धीरे से शैय्या के पास पँहुचा। उसने कुबड़े के दोनों पैर पकड़े और उसे उठाकर अपने सर के चारों ओर घुमाते हुए राजकुमारी के ऊपर पटक दिया। कुबड़े के गिरने से राजकुमारी का तीसरा स्तन छाती के अंदर बैठ गया। पाँव पकड़ कर घुमाने और जोर से पटकने से कुबड़े की कमर सीधी हो गई और उसका कूबड़ भी बैठ गया।
इस तरह तीनों के ही विकार दूर हो गए।
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पिछली कहानी – विकाल राक्षस के पंजे में फँसे वानर की कहानी “भय का भूत”
तो दोस्तों, कैसी लगी पंचतंत्र की कहानियों के रोचक संसार में डुबकी। मजा आया ना, तो हो जाइए तैयार लगाने अगली डुबकी, .. .. .. ..
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