व्यापारी और चालाक गधा – Vyapari Our Chalak Gadha
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – व्यापारी और चालाक गधा – Vyapari Our Chalak Gadha – The Merchant and The Cunning Donkey
लूणकसर गाँव में सोमदत्त नामका एक व्यापारी रहता था। उसके पास एक गधा था। व्यापारी नमक का व्यापार करता था। इसलिए रोज सुबह नमक की बोरियाँ गधे की पीठ पर लाद कर, नगर की हाट में मे जाता और सामान बेचकर शाम को वापस आ जाता। व्यापारी अपने गधे का बहुत ध्यान रखता था। उसे समय पर खाना पानी देना, उसके रहने की जगह को स्वच्छ रखना, उसे नहलाना।
काश कुछ ऐसा हो जाए!
गधा भी अपने मालिक को बहुत प्यार करता था। लेकिन उसमें एक कमी थी वह आलसी था। उसे काम करना और बोझा उठाना बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए हाट जाते समय तो वजन उठाकर चलने में उसे बहुत जोर आता, लेकिन आते समय जब बोरियाँ खाली होती तो वह बहुत प्रसन्न होता। वह मन ही मन सोचता रहता कि काश कुछ ऐसा हो जाए कि मुझे हाट जाते समय भी ज्यादा बोझा ना उठना पड़े।
एक बार नगर में मेला लगा हुआ था। इसलिए नमक की ज्यादा मांग थी। सोमदत्त ने भी मांग के अनुसार थोड़ा ज्यादा नमक बोरियों में भरकर गधे की पीठ पर डाली और हाट की तरफ चल पड़ा। ज्यादा वजन के कारण गधे से चला नहीं जा रहा था। वह बहुत ही धीरे-धीरे चल रहा था। गाँव और हाट बाजार के बीच में एक नदी पड़ती थी। वह ज्यादा गहरी नहीं थी। उस पर पल भी बना हुआ था लेकिन पुल पर भार लेकर चढ़ने में गधे को कठिनाई होती थी, इसलिए व्यापरी और गधा नदी में चलकर ही नदी के पार चले जाते थे।
उस दिन भी वे हमेशा की तरह नदी पर कर रहे थे कि गधे का पाँव एक पत्थर पर पड़ा और वह लड़खड़ाकर गिर गया। व्यापारी ने किसी तरह गधे को उठाया। जैसे ही गधा खड़ा हुआ उसे अपने पीठ पर कम बोझ महसूस हुआ। दरअसल उसकी पीठ पर नमक की बोरियाँ थी पानी में गिरने से बहुत सारा नमक पानी में घुल कर बह गया। जिससे बोरियाँ हल्की हो गई।
मिल गया उपाय
गधे की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उसे तो अपना बोझा कम करने का उपाय मिल गया था। लेकिन बहुत सारा नमक बह जाने और बाकी का नमक गीला हो जाने के कारण व्यापरी को बहुत नुकसान हो गया।
अगले दिन फिर व्यापारी ने उसकी पीठ पर नमक की बोरियाँ रखी और हाट की तरफ चल दिया। नदी के बीच में पँहुचते ही गधा जानबूझकर नदी में गिर गया। आज भी सोमदत्त को नुकसान उठाना पड़ा। अब तो रोज गधे का ये ही नियम बन गया। सोमदत्त गधे पर बोरियाँ लाद कर हाट के लिए निकलता और गधा बीच नदी में जाकर गिर जाता। जिससे बहुत सारा नमक पानी में बह जाता और उसका बोझ कम हो जाता। सोमदत्त को रोज नुकसान उठान पड़ता।
ऐसा तीन-चार दिन तक होता रहा। लगातार ऐसा होते रहने से सोमदत्त गधे की चाल समझ गया।लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए? कैसे इस गधे को सबक सिखाया जाए? वह गधे पर ऐसी कौन सी वस्तु रखे, जिससे जब वह पानी में गिरे तो उसका वजन बढ़ जाए?
तेरी चाल तुझी पर
बहुत सोचने पर उसे एक युक्ति सूझ गई। उसने गधे को सबक सिखाने की तैयारी कर ली। अगले दिन उसने गधे की पीठ पर चार रुई की बोरियाँ बांध दी और हाट की ओर चल पड़ा। आज गधे को बोझ बहुत कम लग रहा था, लेकिन फिर भी नदी के बीच में पँहुचने पर वह रोजाना की तरह गिर गया। उसके गिरने पर रुई ने नदी का पानी सोख लिया।
अब जैसे ही गधा उठा उसका बोझ बहुत ज्यादा हो गया था। वह बड़ी मुश्किल से चलता हुआ हाट तक पँहुचा। अगले दिन भी सोमदत्त ने गधे पर रुई ही बाँधी, लेकिन गधा अपनी आदत के अनुसार फिर नदी में गिर गया। उसका वजन फिर बढ़ गया। आज भी उसकी हालत खराब हो गई।
ऐसा अगले तीन चार दिन तक होता रहा। गधे की समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है? वजन कम होने की जगह बढ़ क्यों रहा है। आखिरकार परेशान होकर उसने नदी में गिरना बंद कर दिया। उसे उसकी चालाकी का सबक मिल चुका था। इसके बाद उसने कभी आलस और चालाकी नहीं की।
सीख
- हमें कभी आलस नहीं करना चाहिए।
- काम से बचने के लिए चालाकी नहीं करनी चाहिए।
- अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा से करना चाहिए।
- व्यापारी की तरह हम भी सूझबूझ से अपना काम निकाल सकते है।
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तो दोस्तों, “कैसी लगी ये रीत, कहानी के साथ-साथ मिली सीख”? आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा।
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