मेंढक और चूहा – Mendhak Aur Chuha
शिक्षाप्रद लघु कहानियाँ – मेंढक और चूहा – Mendhak Aur Chuha – The Frog and The Rat
एक जंगल में एक तालाब था। उसमें एक दादुर नामक मेंढक रहता था। उसकी तालाब के पास एक पेड़ के नीचे बने बिल में एक चूहा रहता था। उसका नाम मूषा था। एक दिन दादुर मेंढक तालाब के किनारे उदास बैठा हुआ था। उसे इस तरह उदास बैठे देखकर मूषा चूहे ने उससे पुछा,
🐭 मूषा – क्या हुआ मेंढक भाई, इस तरह उदास होकर क्यों बैठे हो?
🐸 दादुर – क्या कहूँ, मेरा ऐसा कोई मित्र नहीं है, जिसके साथ में खेल सकूँ, अपने सुख-दुख की बात कर सकूँ।
🐭 मूषा – अरे तो इसमें इतना उदास होने की क्या बात है, तुम मुझे अपना मित्र बना लो। तुम जब भी मुझसे बात करना चाहो मुझे आवाज दे देना। मैं आ जाऊँगा।
मैं हूँ ना
उस दिन से उन दोनों में दोस्ती हो गई। दोनों तालाब के किनारे बैठ कर घंटों अपने सुख-दुख की बाते करते। कभी-कभी दोनों मिलकर घूमने निकल जाते। धीरे-धीरे उनकी मित्रता बहुत गहरी हो गई। कभी-कभी दादुर मेंढक मूषा चूहे के बिल में चला जाता। लेकिन चूहा कभी दादुर से मिलने उसके तालाब में नहीं आया।
एक बार दादुर ने विचार किया कि “मैं तो कितनी बार चूहे के घर मिलने चला जाता हूँ, लेकिन मूषा एक बार भी मुझसे मिलने मेरे घर नहीं आया। क्यों ना उसे भी अपने घर पर आमंत्रित किया जाए।” यह सोच कर दादुर ने मूषा से कहा,
🐸 दादुर – मित्र, मैं तो तुम्हारे घर कितनी बार आ गया, लेकिन तुम मेरे घर पर कभी नहीं आए। इसलिए मैं चाहता हूँ कि कल तुम मेरे घर पर आओं।
🐭 मूषा – मित्र, तुम पानी में रहते हो इसलिए मैं तुम्हारे घर पर नहीं आ सकता।
ये तेरी मेरी यारी
दादुर मेंढक ने सोचा, “मूषा मेरे घर नहीं आना चाहता, लेकिन मैं किसी भी तरह से इसे अपने घर जरुर लेकर जाऊँगा।” अब वह हर समय मूषा को अपने घर ले जाने की युक्ति सोचता रहता। एक दिन उसे एक उपाय सूझ गया। वह मूषा के पास गया और बोला,
🐸 दादुर – मित्र, अब तो हम दोनों बहुत अच्छे मित्र बन गए है। क्यों ना हम कुछ ऐसा करें जिससे हम कभी भी ना बिछुड़े और जंगल में सभी हमारी मित्रता के बारें में चर्चा करें।
🐭 मूषा – हाँ-हाँ क्यों नहीं, लेकिन हम ऐसा क्या करें?
🐸 दादुर – हम एक रस्सी से एक-दूसरे को बांध लेते है, जिससे हम जहाँ कहीं भी जाएंगे साथ रहेंगे। इसके अलावा जब भी हमें एक-दूसरे की याद आएगी हम रस्सी खींचकर इशारा कर देंगे।
मूषा को भी दादुर मेंढक का विचार पसंद आ गया था। बस फिर क्या था, दोनों ने एक एक दूसरे को एक रस्सी से बांध लिया। अब वे जहाँ भी जाते साथ-साथ रहते। जब भी एक-दूसरे की याद आती रस्सी खींच कर बुला लेते।
आओं नदी की सैर करा दूँ
एक बार मेंढक और चूहा जंगल में घूम कर वापस आ रहे थे। जैसे ही तालाब पास आया, मेंढक ने यह कहते हुए तालाब में छलांग लगा दी,
🐸 दादुर – मित्र आज तो मैं तुम्हें अपने घर लेकर ही जाऊँगा।
🐭 मूषा – अरे मित्र ऐसा मत करों, पानी के अंदर मैं मर जाऊँगा।
🐸 दादुर – ऐसा कैसे हो सकता है, मैं भी तो पानी के अंदर और बाहर दोनों जगह रहता हूँ।
मूषा दादुर को समझाता रहा लेकिनउसने मूषा की एक ना सुनी, वह गहरे पानी में चला गया, जिस कारण चूहा पानी में डूबने लगा। जमीन पर रहने वाले चूहे की पानी में हालत खराब होने लगी, वह तड़पड़ाने लगा। तभी वहाँ से उड़ती हुई एक चील की नजर पानी में छटपटाते चूहे पर पड़ी। उसने तेजी से गोता लगाया और झपट्टा लगाकर चूहे को पकड़ लिया। चूहे को पंजों में पकड़कर वह आसमान में उड़ गया।
अब दादुर जी, जो कि मूषा के साथ रस्सी से बंधे हुए थे भी आसमान में उड़ने लगे। अपने आप को आसमान में उड़ता देखकर उसे समझ में ही नहीं आया कि वह आसमान में कैसे आ गया। तभी उसकी नजर चील के पंजे में दबे हुए चूहे पर पड़ी। उसे सारा माजरा समझ में आ गया। लेकिन अब क्या हो सकता था। चील को एक शिकार के साथ दूसरा शिकार भी मिल गया था। चील दोनों को मार कर खा गई।
अपनी मूर्खता की कीमत उसे अपनी और अपने मित्र दोनों की जान गँवाकर चुकानी पड़ी।
सीख
कोई भी कार्य करने से पहले उसके नफे नुकसान के बारे में पहले से विचार कर लेना चाहिए।
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तो दोस्तों, तो दोस्तों, “कैसी लगी ये रीत, कहानी के साथ-साथ मिली सीख”? बताना जरूर, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा।
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