तीस मार खां – Tees Mar Khan
सुनी-अनसुनी कहानियाँ – तीस मार खां – Tees Mar Khan –
एक गाँव में बहादुर नाम का एक लड़का अपनी माँ के साथ रहता था। अपने नाम से बिल्कुल उलट वह एकदम डरपोक व निकम्मा था। सारे दिन खाना-पीना और खाट तोड़ना बस उसका यहीं काम था। उसकी इस आदत से उसकी माँ बहुत परेशान थी। उसे बहुत समझाती, डाँटती, लेकिन वह तो बस एक कान से सुनता और दूसरे कान से निकाल देता।
मैं हूँ, तीस मार खां
एक दिन वह खाना खा कर खाट पर लेटा हुआ था। उसके चारों तरफ मक्खियाँ भिन-भिना रही थी। वह उन्हें उड़ाता, लेकिन वे फिर आ जाती। उनकी भिनभिनाहट से परेशान होकर उसने मक्खियों को मारते हुए गिनना शुरू कर दिया। एक, दो, तीन, चार ……………. उनतीस, तीस।
उस दिन बाद से वह सबकों कहने लगा, “मैंने तीस को मार दिया, मैं तीस मार खां हूँ।|” गाँव के सारे लोग तो उसके बारें में जानते थे, लेकिन अब सभी उसे मजाक में तीस मार खां कहने लगे। एक बार उसके निकम्मेपन के कारण उसकी माँ को बहुत को बहुत गुस्सा आया। उसने चार रोटियाँ बनाकर उसे देते हुए कहा,
👵 माँ – काम-धाम तो कुछ करता नहीं, बड़ा तीस मार खां बना फिरता है। ये ले रोटियाँ और निकल जा इस घर से और इस घर में तभी कदम रखना, जब कुछ कमाने लगो।
बेचारा तीस मार खां क्या करता, चुपचाप रोटियां लेकर घर से निकल गया। लेकिन माँ और तीस मार खां, दोनों को ही ना पता था कि रोटियां बनाने का आटा गूँदते वक्त पानी में छिपकली गिर गई थी जिससे आटा जहरीला हो गया था। वह तो अपनी मस्ती में चलता हुआ, दूसरे गाँव पँहुच गया।
तकदीर का धनी
तभी उसने देखा सभी लोग डर के मारे इधर-उधर भाग रहे है और एक विशालकाय पागल हाथी दौड़ा चला आ रहा था। हाथी अपनी सूँड से लोगों को उठा कर पटकता और आस-पास दुकानों पर रखी चीजों को उठाकर खाता हुआ, उसकी ओर ही बढ़ रहा था।
उसे अपनी ओर आता देख डर के मारे उसकी घिग्गी बंध गई, उसके पैर जाम हो गए, उसके हाथों से रोटियों की पोटली नीचे गिर कर खुल गई। बड़ी मुश्किल से वह थोड़ी दूर भागा। लेकिन हाथी उसके नजदीक आ गया। हाथी उसको अपनी सूँड में लपेटने ही वाला था कि उसकी दृष्टि रोटियों पर पड़ी। उसने वे रोटियाँ खा ली।
जहरीली रोटियाँ खाने के कारण हाथी बेहोश होकर गिर गया। हाथी को बेहोश होकर गिरते देख, तीस मार खां उसके पास गया और उसके सिर पर घूंसों से प्रहार करते हुए कहने लगा,
🧖🏻 तीस मार खां – दुष्ट हाथी, तू मुझे जानता नहीं मेरा, नाम तीस मार खां है। तेरी इतनी हिम्मत कि तूने मुझसे पंगा लिया!
हाथी को जमीन पर गिरा हुआ देख कर लोग वहाँ आ गए और उन्होंने तीस मार खां को हाथी को मारते देखा और कहते हुए सुना। वे सब तीस मार खां की बहादुरी देखकर हैरान थे कि कैसे उसने निहत्थे ही एक हाथी को मार गिराया था। उन्होंने उससे पूछा,
👳 गाँव वाला – आप कौन है? इस हाथी को अपने निहत्थे कैसे मार गिराया?
🧖🏻 तीस मार खां – वैसे तो मेरा नाम बहादुर है, लेकिन मैंने तीस को मार गिराया है, इसलिए लोग मुझे तीस मार खां कहते है।
तीस मार खां की बहादुरी तो गाँव के लोग देख चुके थे, इसलिए किसी ने भी उससे यह नहीं पूछा कि उसने किसको मारा था। सभी उसकी जय-जयकार करने लगे। लोगों ने मिलकर हाथी को जंजीरों से बांध दिया।
गाँव वालों ने तीस मार खां की बहुत आव-भगत की और उसे रहने के लिए एक घर दे दिया। तीस मार खां भी मजे से उस गाँव में रहने लगा।लोग उसकी बहादुरी के किस्से एक-दूसरे को बढ़-चढ़ कर सुनाते। कोई बताता कि कैसे तीस मार खां ने हाथी को निहत्थे बेहोश कर दिया तो कोई कहता कि तीस मार खां ने तीस शेरों को मार गिराया है। धीरे-धीरे उसकी बहादुरी के किस्से आस-पास के गांवों में फैल गए थे।
वाह क्या किस्मत है!
एक बार उस गाँव के जौहरी के यहाँ डाकुओं ने हमला कर दिया। गाँव वाले भागे-भागे तीस मार खां के पास गए। सारी बात बता कर उसे अपने साथ चलकर डाकुओं का सामना करने के लिए कहा। डाकुओं का नाम सुनकर उसकी तो हालत पतली हो गई। लेकिन मरता क्या ना करता गाँव वालों के साथ उसको जाना पड़ा।
डाकू जौहरी के घर में घुसे हुए थे। उसने सोचा डाकुओं के सामने जाते ही वे तो मेरा कचूमर बना देंगे, किस तरह से बचूँ। ऐसा करता हूँ, जौहरी के घर की छत पर चढ़ कर छुप जाता हूँ। तब तक डाकू लुट कर चले जाएंगे। यह सोचकर उसने गाँव वालों से कहा,
🧖🏻 तीस मार खां – डाकू पता नहीं कितने होंगे। पहले मैं छत पर जाकर देख लेता हूँ, उसके बाद उन पर हमला करूँगा।
👳 गाँव वाले – ठीक है।
गाँव वाले जल्दी से एक सीढ़ी लाए और तीस मार खां छत पर चढ़ गया। छत पर एक छोटा गड्ढा सा बना हुआ था। उसने सोचा कि इसमें छुप जाता हूँ, थोड़ी देर में जब डाकू चले जाएंगे तब बाहर निकल जाऊँगा। गाँव वालों से कह दूँगा कि मैं हमला करने ही वाला था, लेकिन डाकू चले गए।
यह सोचकर वह उस गड्ढे में कूद गया। दरअसल उस गड्ढे पर पक्की छत नहीं थी। ऐसे ही घास-फूस बिछाकर कुछ लकड़ियाँ और कुल्हाड़ियाँ रखी हुई थी। गड्ढे में कूदते ही वह लकड़ियों और कुल्हाड़ियों के साथ डाकुओं के सरदार पर जा गिरा और कुछ लकड़ियाँ ओर कुल्हाड़ियाँ उसके साथियों पर गिर गई। कुछ के सर फूट गए और कुछ घायल हो गए।
सरदार जी नीचे गिरे हुए थे और तीस मार खां जी उनके ऊपर सवार थे। तीस मार खां को देखकर जौहरी खुशी से चिल्ला उठा,
जौहरी – अरे तीस मार खां जी आप आ गए!
डाकुओं ने भी तीस मार खां के किस्से सुन रखे थे और आज उनकी बहादुरी भी देख चुके थे। डाकुओं ने सोचा तीस मार खां के साथ लड़ना बेकार है, उन्होनें आत्म समर्पण कर दिया। गाँव वालों ने डाकुओं को रस्सियों से बाँध कर नगर के सैनिकों के हवाले कर दिया। सैनिकों ने राजा को तीस मार खां की बहादुरी के बारे में बताया। राजा ने उसे बुलाकर उसे सम्मानित किया और ईनाम दिया।
एक और मार दो
अब तो तीस मार खां के तो और भी मजे हो गए। लोग उसका बहुत मान करते थे, उसकी सारी जरूरत की चीजें उसे लाकर दे देते। एक बार उस राज्य के एक गांव माधवपुर में आदमखोर शेर का आतंक हो गया। उस गांव के लोग राजा के पास आए और उनसे शेर से बचाने के लिए गुहार लगाई,
👳 गाँव वाले – महाराज, हमें बचाइये। हमारे गाँव में एक आदमखोर शेर आ गया है। वह रोज एक आदमी को उठा ले जाता है और मार कर खा जाता है।
🤴🏻 राजा – ठीक हैं, मैं कुछ सैनिक आप लोगों के साथ भेज देता हूँ।
राजा अपने सैनिकों को उनके साथ भेज देते है, लेकिन सैनिक शेर को पकड़ने में सफल नहीं होते है। तब राजा कहता है,
🤴🏻 राजा – हमारे सैनिक आदमखोर शेर को पकड़ने में असफल हो गए। अब मैं खुद शेर का शिकार करने के लिए जाऊँगा।
🧞 मंत्री – महाराज, आपको जाने की क्या आवश्यकता है! तीस मार खा है ना! सुना है वह तीस शेरों को मार चुके हैं। उन्हें ही शेर का शिकार करने के लिए भेज देते हैं।
राजा को मंत्री की सलाह सही लगी। उसने उसी वक्त दो सैनिकों को तीस मार खां को बुलाने के लिए भेज दिया।
💂🏽♂️ सैनिक – तीस मार खां जी, आपको महाराज ने बुलाया है।
🧖🏻 तीस मार खा – क्या बात हो गई?
💂🏽♂️ सैनिक – एक गाँव में आदमखोर शेर आ गया है। उसी को मारने के लिए आपको बुलाया है।
आदमखोर शेर के शिकार का सुनते ही तीस मार खां को काटो तो खून नहीं। उसने सोचा अब तो यहाँ से भाग जाने में ही भलाई है। अपने डर को छुपाते हुए उसने कहा,
🧖🏻 तीस मार खां – आप लोग चलिए, मैं थोड़ी देर में आता हूँ।
💂🏽♂️ सैनिक – नहीं, महाराज ने आपको साथ लेकर आने के लिए कहा है। आप हमारे साथ ही चलिए।
बेचारा अब क्या करता, सैनिकों के साथ हो लिया। सैनिक उसे लेकर दरबार में आ गए। तीस मार खां ने राजा को प्रणाम किया। राजा ने कहा,
🤴🏻 राजा – हमारे राज्य के माधवपुर गांव में आदमखोर शेर का आतंक हो गया है। तुम पहले भी तीस शेर मार चुके हो इसलिए हम चाहते हैं कि उस गाँव को उस शेर के आतंक से तुम ही बचाओं।
🧖🏻 तीस मार खां – ठीक है, आप ऐसा करिए कि उस गाँव के सबसे ऊंचे पेड़ की सबसे ऊंची टहनी पर एक मचान बनवा दीजिए और मुझे दो तलवारें दे दीजिए। शेर को लालच देने के लिए उस पेड़ के पास एक एक भैंसा बांध दीजिए। मैं उस शेर को मार दूँगा।
और तीस मार खां जी बेहोश!
राजा ने सारी व्यवस्था करवा दी। तीस मार खां ने मन में सोचा कि रात को जब सब सो जाएंगे तो मैं मचान से उतर कर भाग जाऊँगा। शाम होने पर तीस मार का तलवार लेकर मचान पर चढ़ गया। चाँदनी रात थी, सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था। अभी आधी रात भी नहीं हुई थी कि उसे कोई आवाज सुनाई दी। उसने नीचे देखा तो शेर झाड़ियों में से निकल कर उसकी ओर ही आ रहा था।
शेर ने भैंसे की तरफ तरफ देखा भी नहीं, वह तो सीधा उसी पेड़ के नीचे आकर उसकी ओर देखकर दहाड़ने लगा। शेर को देखकर तीस मार खां की तो घिग्गी बंध गई। उसके हाथ-पैर कांपने लगे। उसके काँपते हाथों से तलवार छूटकर सीधे शेर के पेट में घुस गई। शेर दर्द के मारे जोर से दहाड़ा। जख्मी शेर और भी ज्यादा खतरनाक होता है, यह तो तीस मार खाने सुन रखा था।
अब तो उसकी हालत और पतली हो गई, वह बुरी तरह से कांपने लगा। उसने बड़ी मुश्किल से दूसरी तलवार उठाई। लेकिन इतने में शेर ने दहाड़ते हुए उसकी तरफ छलांग लगाई। तीस मार खां जी इतने ऊपर बैठे हुए थे, फिर भी वह इतना डर गए कि दूसरी तलवार समेत मचान से नीचे गिर पड़े। उनके हाथ वाली तलवार छूटकर सीधे शेर के मुंह में घुस गई और वह सीधा शेर के ऊपर जा गिरे।
शेर के पेट में और मुंह में तलवार लगने से शेर घायल तो हो ही गया था। तीस मार खां के ऊपर गिरने से उसके पेट वाली तलवार और अंदर घुस गई और शेर मर गया। तीस मार खां जी शेर के ऊपर ही बेहोश हो गए। सुबह गाँव के लोगों ने देखा शेर मरा पड़ा है और तीस मार खां जी उसका तकिया बनाकर सो रहे है।
मरे हुए शेर पर तीस मार खां के सोने की खबर राजा तक भी पँहुच गई, राजा भी अपने मंत्रियों और सिपाहियों के साथ वहां आ गए थे।थोड़ी देर में तीस मार खां जी को होश आया तो उन्होंने देखा कि उसके चारों तरफ बहुत सारे गाँव वाले खड़े थे और उसको आश्चर्य से देख रहे थे। जैसे ही तीस मार खां ने आंखे खोली, सब उसकी जय-जयकार करने लगे। शेर को मरा हुआ जानकर उसकी जान में जान आई। राजा ने उससे पूछा,
🤴🏻 राजा – तुमने शेर को कैसे मारा?
🧖🏻 तीस मार खां – (शेखी बघारते हुए) जैसे ही शेर आया, मैं ऊपर से दोनों तलवार लेकर उसके सामने कूद पड़ा। एक तलवार मैंने उसके मुँह में घुस दी और दूसरी उसके पेट में। मैंने सोचा अब इतनी रात को किसी को क्या परेशान करना, इसलिए शेर को मारने के बाद मैं उसका तकिया बना कर सो गया।
तीस मार खां की बहादुरी पर राजा बहुत प्रसन्न हुए उन्होनें उसका सम्मान करके उसे बहुत सारा धन और एक सुंदर महल जैसा घर ईनाम में दिया। अब तो चारों तरफ उनकी तूती बोलने लगी। उसने अपनी माँ को भी वहाँ बुला लिया। अब तीस मार खां अपनी माँ के साथ मजे से महल में रहने लगा।
बुरे फँसे तीस मार खां
एक बार उस राज्य पर किसी दूसरे देश के राजा ने बहुत बड़ी सेना के साथ आक्रमण कर दिया। इतनी बड़ी सेना को देखकर राजा को चिंता होने लगी कि इतनी बड़ी सेना से मुकाबला कैसे करेंगे? तभी उन्हें तीस मार खां की याद आ गई। उन्होनें तुरंत तीस मार खां को बुलावा भेज दिया। तीस मार खां ने आकर राजा को प्रणाम किया। राजा ने कहा,
🤴🏻 राजा – हमारे नगर पर दूसरे राज्य के राजा ने बहुत बड़ी सेना के साथ आक्रमण कर दिया है। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी सेना का नेतृत्व करो। यदि तुमने यह युद्ध जीत लिया तो मैं अपनी कन्या का विवाह तुमसे कर दूँगा।
तीस मार खां ने मन में सोचा, “विवाह तो बहुत दूर की बात है। यदि मैं युद्ध में सैनिकों के साथ गया तो मारा जाऊंगा। मेरे तो बाप-दादाओं ने भी कभी तलवार नहीं चलाई, मैं भी तो उसी खेत की मूली हूँ। कुछ ऐसा करता हूँ कि मैं यहां से भाग सकूँ। उसने राजा से कहा,
🧖🏻 तीस मार खां – महाराज, मुझे सेना की जरूरत नहीं है, उस सेना के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ। बस आप कल सुबह मुझे एक सबसे तेज भागने वाला और सबसे ताकतवर घोड़ा दे दीजिएगा। कल सुबह मैं उस सेना पर आक्रमण करके उसे यहाँ से भगा दूँगा।
🤴🏻 राजा – हम जानते हैं कि तुम बहुत बहादुर हो लेकिन फिर भी हम तुम्हें अकेला नहीं भेज सकते। हमारे कुछ सैनिक तो तुम्हारे साथ जाएंगे, रही घोड़े की बात तो तुम अस्तबल में जाकर अपने लिए घोड़े का चयन कर लो।
तीस मार खां अस्तबल में गया और यह सोचकर सबसे मरियल सा घोडा चुन लिया कि यह घोड़ा तो तेज भाग नहीं पाएगा और मैं सैनिकों से बहुत पीछे रह जाऊँगा और मौका देखकर भाग जाऊँगा। अब उसने घुड़सवारी तो कभी की नहीं थी, इसलिए घोड़े की लगाम पकड़ कर उसने सैनिकों से कहा,
🧖🏻 तीस मार खां – मुझे इस घोड़े के साथ रस्सियों से बाँध दो।
अरेरे गड़बड़ हो गई!
सैनिकों ने बिना कुछ पूछे उसे घोड़े के साथ कस कर बाँध दिया और युद्ध का बिगुल बजा दिया। बिगुल की आवाज सुनते ही घोड़ा भागने लगा। लेकिन भाई सब उल्टा हो गया, वह मरियल सा घोड़ा तो हवा से बातें करने लगा। थोड़ी देर में ही सेना पीछे छूट गई। अब तीस मार खां साहब घोड़े से कूद भी नहीं सकते थे, बंधे हुए जो थे। उनके हाथ-पाँव फूल गए।
तीस मार खां ने सोचा, “इस तरह से तो में सबसे पहले शत्रु सेना के पास पँहुच कर मारा जाऊँगा।” तभी उसे सामने एक बड़ा पेड़ दिखाई दिया। बस फिर क्या था उन्होनें दोनों हाथों से पेड़ की एक डाल को यह सोच कर पकड़ लिया कि इससे घोडा रूक जाएगा, लेकिन यह क्या घोड़ा तो इतना ताकतवर था कि पेड़ तो जड़ समेत उखड़कर उसके हाथ में ही आ गया।
डर के मारे तीस मार खां से पेड़ को कसकर पकड़ लिया। घोड़ा अब भी तेज गति से भागा जा रहा था। घोड़े की तेज गति और पेड़ के जमीन पर रगड़ने के कारण धूल के गुबार उड़ने लगे।
शत्रु सेना ने दूर से धूल के गुबार उड़ते देखे तो सोचा, “इतनी धूल तो किसी बहुत बड़ी सेना के घोड़ों के कारण ही उड़ सकती है। लगता है, हमसे भी ज्यादा बड़ी और ताकतवर सेना हमसे युद्ध करने के लिए आ रही है। हमें तो अंदेशा ही नहीं था कि इस राजा के पास इतनी बड़ी सेना होगी। हमने तो इतनी तैयारी भी नहीं कर रखी है। अभी तो हमें यहाँ से पलायन कर जाना चाहिए।” यह सोच कर शत्रु सेना वहाँ से बिना युद्ध करे ही जाने लगी।
युद्ध भूमि में पहुँच कर घोड़ा अपने आप ही रूक गया। धूल का गुबार कम होने पर तीस मार खां ने देखा कि शत्रु सेना लौट रही है। तब तक राजा के सैनिक भी वहाँ आ गए। शत्रु सेना को दुम दबाकर भागता देखकर, सब तीस मार खां की जी-जयकार करने लगे।नगर में पँहुचने पर नगरवासियों ने तीस मार खां का फूलों से स्वागत किया। राजा ने अपने वचनानुसार अपनी पुत्री का विवाह उससे करवा दिया।
इसी की कहते है, “किस्मत मेहरबान, तो गधा पहलवान” या “बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना”
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तो दोस्तों, कैसी लगी तीस मार खां की कहानी! मजा आया ना, आशा करती हूँ आप लोगों ने खूब enjoy किया होगा। फिर मिलेंगे कुछ सुनी और कुछ अनसुनी कहानियों के साथ। तब तक के लिए इजाजत दीजिए।
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